( इतना कह कर आध्या ने अपनी जेब में से एक पर्स निकला जो की गुलाबी रंग का था और उसके नीले रंग के मोतियों से बने हुए थे उस पर्स को देख रिची ने कहा । )
रिची : यह क्या चीज है ?
अदिति : आध्या जी हम इस पर्स का क्या करेंगे ?
( तभी आध्या ने उस पर्स को खोल और उसके अंदर से एक छोटी मेज निकाल वह मेज बिल्कुल उतनी ही थी जितनी छोटे बच्चे गुड़िया के साथ खेलते वक्त इस्तेमाल करते थे तभी रिची ने कहा।)
रिची : अब हम यहां पर खेल खेलने वाले हैं क्या ?
मटिल्डा : मम्मी अब आप हमारे साथ खेल खेल रही हैं ?
आध्या : नहीं मैं तुम लोगों के साथ खेल कैसे खेल सकती हूं मैं तो तुम लोगों को खाना खिलाने का इंतजाम कर रही हूं ।
अदिति : इसमें इसको निकाल कर इसमें इसको देखकर लग रहा है कि हमारी उंगली भी इसके लिए ज्यादा बड़ी होगी ।
(यह कहते वक्त अदिति ने अपनी उंगली उस मेज पर रख ली लेकिन अदिति को यह नहीं पता था की मेज पर उंगली रखने से वह गायब हो जाएगी । )
मटिल्डा : ( घबराते हुए ) अदिति कहां गई ।
रिची : अदिति जी कहां है?
( आध्या ने अपने सर पर हाथ रख लिया और कहा । )
आध्या : कोई भी काम करने से पहले कम से कम एक बार पूछ तो लिया करो ।
मटिल्डा : ( घबराते हुए ) अदिति ठीक तो है ना उसे कुछ हुआ तो नहीं ?
आध्या : कुछ नहीं हुआ जरा मेज की तरफ ध्यान से देखो वहां पर एक कुर्सी बन गई है ।
( वहां पर एक कुर्सी बन गई थी उस पर एक गुड़िया बैठी थी गुड़िया ने चिल्लाते हुए कहा। )
गुड़िया : अरे ये मेरे साथ क्या हो गया ? आप लोग इतने बड़े कैसे हो गए ?
आध्या : हम लोग बड़े नहीं हुए अदिति तुम छोटी हो गई हो ।
रिची : तो यह अदिति जी है ?
आध्या : जी हां यही है तुम्हारी अदिति है जो अब गुड़िया बन चुकी है ।
मटिल्डा : तो फिर अदिति को ठीक कीजिए ।
आध्या : नहीं बिल्कुल नहीं हम लोग भी उसकी तरह छोटे ही होने वाले हैं ।
अदिति : लेकिन क्यों ?
रिची : बिल्कुल हम लोग छोटे क्यों होने वाले हैं ?
आध्या : अब जानना चाहते हो तो करके देख लो!
( इतना कह कर आध्या ने भी मेज पर अपनी उंगली रख दी जिसके कारण आध्या भी एक छोटी गुड़िया में बदल गई जो की एक बिल्कुल छोटी सी कुर्सी पर बैठी थी वहीं पर बैठी छोटी अदिति में हैरान होते हुए कहा ।)
अदिति : आध्या जी आप यहां क्यों आ गई आपको हमें यहां से बाहर निकलना था और आप यहां गई क्यों?
आध्या : मेरा दिल कर रहा था इस वास्ते चलो रिची माटिल्डा जल्दी आ जाओ हम तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं !
( रिची और मटिल्डा के पास और कोई रास्ता तो नहीं था इसलिए उन्होंने भी आध्या की बात मानना सही समझा तभी आध्या ने कहा । )
आध्या : चलो अब तुम्हारी कुर्सी पर लगे इस पीले बटन को दबाओ ।
( दरअसल उस कुर्सी पर तीन बटन थे पीला लाल और हरा सबने आध्या के कहे अनुसार पीला बटन दबा दिया पीला बटन दबाते ही उनका स्थि शरीर वापस से ठीक हो गया तभी अदिति ने अपने हाथ हिलाते हुए कहा। )
अदिति : आध्या जी ये सब क्या है आप ही क्यों कर रही है ?
मटिल्डा : मम्मी यह सब क्या है आप चाहती क्या है हम लोगों को भूख लगी थी और आप यह सब कर रही है ?
रिची : आध्या जी आप हमारे साथ खेल रही हैं इस वक्त वह भी इस तरह हमें गुड़िया बनाकर आप कोई बच्ची है क्या ?
अदिति : इंसानों की गुड़िया नहीं बनाते बाजार से खरीद लाते हैं आपने यह सब क्यों किया ?
( आध्या चुपचाप बैठी मुस्कुरा रही थी आध्या की मुस्कुराहट देखे हुए मटिल्डा ने गुस्से में कहा । )
मटिल्डा : ( गुस्से में ) यहां पर हम लोग परेशान हो रहे हैं और आप हंस रहे हैं !
आध्या : अब हंसना तो बनता है तुम लोग बेवकूफ जैसी बातें जो कर रहे हो !
रिची : हमने क्या किया ।
अदिति : आपने हमें गुड़िया बनाया और अब आप कह रही है कि हम ही बेवकूफ जैसी बातें कर रहे हैं आप चाहती क्या है आध्या जी साफ-साफ बता दीजिए ।
आध्या : अच्छा बाबा गुस्सा होने की जरूरत नहीं है तुम लोगों ने छोटी सी बात को बतंगड़ बना दिया है ।
रिची : छोटी सी बात! हम लोग गुड़िया बन चुके हैं हम इतने छोटे हो चुके हैं और ये छोटी सी बात है !
आध्या : मुझे बोलने का मौका दोगे तब तो बोलेगी ना ?
मटिल्डा : क्या कहना चाहती है ।
आध्या : तुम लोगों को हर बार मुझे गलत समझने की जरूरत नहीं है दरअसल हम लोग इस मेज पर है ताकि हम लोग खाना खा सके ।
रिची : तो हम गुड़िया खाना खाने के लिए बने हैं ?
आध्या : यही समझ लो !
अदिति : और हम खाना कैसे खाएंगे ?
आध्या : हरा बटन को दबाकर ।
मटिल्डा : हरा बटन को दबाने से यहां पर खाना आ जाएगा क्या ?
आध्या : कोशिश करके देखो ।
( अदिति ने हरे बटन को दबाया और अपने मन में कोई खाने की स्वादिष्ट वस्तु सोची इससे पहले कि वह बोल पाती उसके सामने अपने आप ही मेज पर वह स्वादिष्ट वस्तु आ गई तभी अदिति ने हैरान होते हुए कहा । )
अदिति : ( हैरानी से ) मुझे लगा नहीं था इतनी जल्दी आ जाएगा ।
मटिल्डा : ( ललचाते हुए ) मुझे तो यही नहीं लगा था कि आ जाएगा ।
आध्या : तुम लोग मेरी काबिलियत पर शक कर रहे हो ?
रिची : नहीं - नहीं आपकी काबिलियत पर शक कैसे कर सकते हैं हम ?
( दरअसल वह खाना इतना स्वादिष्ट लग रहा था कि सब लोग उसे खाना चाहते थे रिची और मटिल्डा अपने आप को रोक ही नहीं पा रहे थे । )
मटिल्डा : बस ! अब मुझे और नहीं रुका जाता मैं इसे खा रही हूं ।
आध्या : तो फिर मना किसने कर शुरू करो ।
( सब लोगों ने खाना खाया वापस अदिति ने आध्या से सवाल पूछा । )
अदिति : अब आध्या जी हम लोग वापस बड़े कैसे होंगे ?
रिची : कहीं ऐसा तो नहीं हमें खाना खाने की कीमत हमेशा गुड़िया बनाकर चुकानी पड़ेगी ?
आध्या : नहीं - नहीं ऐसा कुछ नहीं है तुम्हें अपने कुर्सी का लाल बटन दबाना होगा जिससे हम लोग वापस बड़े हो जाएंगे ।
( आध्या की बात सुन सबने लाल बटन दबा लिया उसके बाद सब लोग वापस बड़े हो गए तभी आध्या के कहने पर सब लोग अपने कमरों में सोने चले गए कुछ देर बाद वहां पर एक अजीब घटना घटने लगी वह गोल जिसमें सब लोग रुके हुए थे वो अपने आप ही पिघलने लगा आध्या की नींद खुली तो उसने गोले को पिघलते हुए देखा और अपने कमरे से बाहर गई बाहर आकर एक बड़ा नीले रंग का बटन दबा दिया जिससे सारी कमरों की रोशनी जलने लग गई और एक तेज आवाज बजने लगी जो की इमरजेंसी में बचाई जाती थी सब लोग उठकर अपने कमरे से बाहर आ गए सिवाए मटिल्डा के मटिल्डा अभी भी सो रही थी जब सब लोग उसके कमरे में आए उसने अपने बिस्तर पर मटिल्डा को सोते देखा तभी अदिति ने मटिल्डा को उठाते हुए कहा ।)
अदिति : ( घबराते हुए ) मटिल्डा उठो और कितनी देर तक सोने वाली हो ?
मटिल्डा : ( नींद में ) अभी तो सोई हूं थोड़ी देर और !
आध्या : आजा मटिल्डा यह कुंभकरण जैसी हरकतें करना बंद करो ।
अदिति : कुंभकरण नहीं - नहीं यह कुंभकरण नहीं है जरूर उसके खानदान की ही होगी कुंभकरण तो 6 महीने खत्म होता था लेकिन यह हर वक्त होती है ।
( अदिति ने मटिल्डा को हिलाते हुए कहा तभी मटिल्डा ने अदिति के हाथ पीछे किया और दूसरी तरफ मुंह करके सो गई तभी अदिति ने भी मेज़ पर पड़ा पानी उठाया और मटिल्डा के मुंह पर मार दिया अदिति ने बिना कुछ सोचे समझे पूरा जग मुंह पर डाल दिया आध्या हैरानी से अदिति को देख रही थी। मटिल्डा उठकर अपने बिस्तर पर बैठ गई और कहा ।)
मटिल्डा : ( परेशान होते हुए ) अब क्या हुआ क्यों परेशान कर रहे हो ?
रिची : जरा देखो यह गोला पिघल रहा है हमें जल्द से जल्द यहां से निकलना होगा ।
अदिती : लेकिन यह हो कैसे रहा है ?
मटिल्डा : आप सब सपने में है सो जाइए ।
आध्या : यह सपना नहीं है जाग लगता है यहां पर बारिश हो रही है ।
रिची : लेकिन बारिश इतनी खतरनाक कैसे हो सकती है ?
अदिति : हां बिल्कुल बारिश तो बहुत सुकून देती है वह इस तरह से किसी चीज को कैसे पगला सकती है वह भी इतनी सख्त स्टील से बने इस गोले को ?
आध्या : यहां की बारिश उसे बारिश की तरह नहीं होती यहां यह जंगल श्रापित जंगल है ।
मटिल्डा : ( हैरानी से ) श्रापित जंगल किस चीज का श्रापत है इसे ?
आध्या : अब वह तो मुझे नहीं पता लेकिन इतना जरूर पता है कि इस जंगल की बारिश स्टील तक को पिघला सकती है ।
अदिति : तो अब हमें क्या करना है ?
आध्या : गोले के बीच वाले हिस्से में चलो वहां पर कुछ समय लगेगा इस बारिश को पहुंचने में तब तक हम कुछ ना कुछ सोच लेंगे ।
( आध्या की बात मानकर सब लोग बीच वाले गले में चले गए वो कुछ रास्ता सोच रहे थे कि तभी आध्या की नजर उस गुलाबी पर्स पर पड़ी जो की वहीं जमीन पर पड़ा था तभी आध्या ने उसे उठाते हुए कहा । )
आध्या : यह हम लोगों की मदद कर सकता है ।
अदिति : यह लेकिन कैसे ?
आध्या : तुम लोग इसके अंदर चले जाओ और फिर मैं इसे कहीं ना कहीं छुपा दूंगी जिससे इस बारिश का तुम लोगों पर असर नहीं होगा ।
मटिल्डा : लेकिन हम इतने से पर्स के अंदर कैसे जा सकते हैं वह भी हम तीनों ?
रिची : बिल्कुल ठीक कह रही मटिल्डा जी ऐसा कैसे हो सकता है ?
आध्या : इस पर्स में बड़ी से बड़ी चीज और छोटी से छोटी चीज जा सकती है अब जल्दी करो हमारे पास समय नहीं है ।
मटिल्डा : लेकिन आप आपका क्या ?
आध्या : मेरी चिंता मत करो तुम लोग पर्स में जाओ मैं इस बारिश से लड़ने का तरीका खोज लूंगी ।
अदिति : नहीं मैं आपको छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी ।
आध्या : मैंने कहा ना मेरी बात मानो और जाओ जल्दी आज ।
अदिती : लेकिन आध्या जी !
आध्या : जल्दी करो !
( आध्या ने पर्स खोला और तीनों की तरफ कर दिया तीनों उसके अंदर बढ़ गए अंदर कुछ समय तक अंधेरा था लेकिन तभी मटिल्डा ने अपनी जेब से टॉर्च निकाल कर जला दी वह उसको आध्या ने ही दी थी पर्स के अंदर आने से पहले अंदर देखने पर सब लोग हैरान थे उनके आस- पास एक गुलाबी रंग की रोशनी थी और वह सब हवा में तैर रहे थे जैसे अंतरिक्ष में हों तभी अदिति ने कहा । )
अदिति : ऐसा लग रहा है हम अंतरिक्ष में है ?
रिची : लगता है यह जगह आध्या जी ने इसीलिए बनाई है ताकि किसी मुसीबत में वह इधर आ सके ।
मटिल्डा : लेकिन इस वक्त मम्मी बाहर पता नही उसे बारिश से कैसे लड़ रही होगी ।
अदिति : उसकी चिंता तो मुझे भी हो रही है ।
( वहीं दूसरी तरफ आध्या अभी तक तो इस कमरे में थी अभी तक वहां पर कोई दिक्कत नहीं आई थी लेकिन ज्यादा देर तक ऐसा चलने नहीं वाला था क्योंकि गोले की छत लगभग पिघलने ही वाली थी आध्या ने फैसला किया कि वह इस स्तंभ के सबसे नीचे स्तर पर जाएगी ताकि उसे कोई दिक्कत ना आए और वह आराम से कुछ समय वहां पर बिता सके और बाहर निकलने का कोई रास्ता सोच सके आध्या ने बिल्कुल ऐसा ही किया आध्या ने दो बार जमीन को खटखटाया जिससे एक दरवाजा खुल गया जो कि आध्या को बिल्कुल नीचे ले जा रहा था लेकिन नीचे की हालत तो और भी खराब थी दरअसल वहां पर उसे कई बारिश का पानी इकट्ठा हो गया था दरअसल जो बारिश हो रही थी वह काली थी उस कली बारिश ने स्तंभ के निचले स्तर को बिल्कुल खत्म कर दिया था आध्या तो यही सोच रही थी कि यह गोला खड़ा कैसे था लेकिन उसे जल्द से जल्द वहां से निकलना था तभी उसने अपनी आंखें बंद कर अपने आप को शांत किया और अपने आसपास देखा उसके आस - पास तो केवल अंधेरा ही था तभी उसने कहा । )
आध्या : अगर मैं अपने आस - पास स्टील की एक ऐसी दीवार लगा लूं जो बहुत मजबूत हो और बहुत मोटी हो तो शायद यह बारिश से बच सकूं लेकिन मैं एक जगह बैठ नहीं सकती मुझे लगता है मुझे जंगल को पार करना शुरू करना चाहिए ।
( इतना कह कर आध्या ने अपने चारों ओर स्टील की एक मोटी परत लगा ली और उसे पारदर्शी बना लिया अब आध्या उस स्टील के आर पार देख पा रही थी और तेज रफ्तार में उस जंगल को पार कर रही थी
क्या आध्या सब को बचा पाएगी ?
क्या आध्या खुद उस बारिश से बच पाएगी ?
या सब को बचाते - बचाते आध्या खुद ही मर जाएगी ?
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