( लेकिन इससे पहले की उन दोनों के मन में और कोई बुरा ख्याल आ पाता आध्या जिसके गले से मटिल्डा जोर से लिपटी हुई थी और अपनी आंखें बंद कर बहुत डरी हुई थी वह आध्या मटिल्डा को ऊपर पेड़ की डाल की तरफ ला रही थी जैसे ही आध्या ने अपने पैर पेड़ की डाल पर रखे उसने मटिल्डा का सिर प्यार से सहलाते हुए कहा । )
आध्या : तुम सुरक्षित हो अपनी आंखें खोलो !
( मटिल्डा ने अपनी आंखें खोली तो उसने अपने आप को बहुत ऊंचे स्तर पर पाया उसे नहीं पता थी वह कहां खड़ी थी लेकिन वह बहुत डर गए तभी उसने चलते हुए कहा । )
मटिल्डा : एक जगह से जान बचा ली तो दूसरी जगह मारना चाहते हो क्या ऐसी जगह पर अगर मैं खड़ी हुई तो मैं नीचे गिरकर मर जाऊंगी ।
अदिति : ( मटिल्डा को संभालते हुए ) मटिल्डा कम से कम अपनी आंखें तो खोलो हम सब भी यही खड़े हैं ।
रिची : शुक्र है आप दोनों ठीक है मुझे तो लगा पता नहीं ?
आध्या : डरने की बात नहीं है रिची मेरे होते हुए यहां पर किसी को भी कुछ नहीं होगा ।
( मटिल्डा ने अपनी आंखें खोली और डरते हुए पेड़ की डाल पर अपने पांव रखें मटिल्डा के पैर लड़खड़ा रहे थे दरअसल मटिल्डा को ऊंचाई से डर लगता था तभी अतिथि ने कहा । )
अदिति : मटिल्डा संभालो इतनी सी ऊंचाई से डरने की कोई जरूरत नहीं है ।
आध्या : आसमान को छूने वाले ऊंचाइयों से थोड़ी ना डरते हैं।
( लेकिन इससे पहले की और कोई कुछ कह पता पेड़ की दाल टूट कर नीचे गिरने लगी सब लोग नीचे गिरने लगे लेकिन इससे पहले की कोई भी नीचे जमीन से टकरा आता आध्या की आंखें नीली हो गई आध्या खुद हवा में उड़ रही थी और बाकी तीनों के आसपास एक हल्की सी पीले रंग की रोशनी आ रही थी तभी अदिति ने आध्या की तरफ देखते हुए कहा । )
अदिति : ये आपने कैसे किया ?
आध्या : अपनी मानसिक शक्ति की इस्तेमाल से अदिति अपने मानसिक शक्ति के इस्तेमाल की वजह से मैं तुम लोगों को गिरने से बचा रही हूं और इसी वजह से तुम लोग हवा में भी उड़ पा रहे हो ।
( आध्या ने सबको धीरे-धीरे कर जमीन पर उतार दिया तभी रिची ने गहरी सांस लेते हुए कहा । )
रिची : आज आपने बचा लिया आध्या जी वरना मुझे तो लगा मैं तो गया ।
आध्या : मैंने अभी-अभी कहा ना मेरे होते हुए किसी को कुछ नहीं हो सकता था ।
( अदिति ने परेशान होते हुए कहा। )
अदिती : लेकिन हमारी गाड़ी खत्म हो चुकी है अब हम माल्टा कैसे जाएंगे ?
मटिल्डा : हम लोग तो उड़ भी नहीं सकते कि उड़ कर चले जाएं ।
आध्या : गलत हम नहीं सिर्फ तुम यहां पर तुम्हारे अलावा हर कोई उड़ सकता है क्योंकि तुमने जादू सीखने के नाम पर बदतमीजी की ।
मटिल्डा : आप फिर मेरे जादू के पीछे पड़ गए मुझे नहीं सीखना कोई जादू ।
अदिति : ( हैरानी से ) तो क्या मैं भी उड़ सकती हूं ?
आध्या : अगर तुम अपने दिमाग को हुकुम दो कि तुम्हें उड़ाना है तो तुम आराम से उड़ सकती हो ।
अदिति : क्या मैं एक बारी कोशिश करूं ।
आध्या : बिल्कुल तुम कर सकती हो और मुझे पूरा विश्वास है तुम अच्छे से कर पाओगी।
( अदिति ने अपनी आंखें बंद की धीरे-धीरे अदिति के आसपास एक नीली रोशनी निकलने लगी कुछ देर बाद अदिति अपने आप ही हवा में उड़ने लगी अदिति ने अपनी आंखें खोली और खुश होकर ताली बजाते हुए कहा । )
आदिति : ( खुशी में ) मैं उड़ पा रही हूं ! मैं उड़ पा रही हूं ! मुझे यकीन नहीं हो रहा मैं सही में उड़ पा रही हूं !
आध्या : उड़ तो पा रही हो लेकिन जरा ध्यान दो तुम सामने पेड़ से टकराने वाली हो !
( जब अदिति ने ध्यान दिया तो वह सही में पेड़ के बहुत करीब थी तभी अतिथि ने अपनी आंखें बंद की और रुक गई अतिथि ने हवा में खड़े हुए एक लंबी सांस ली और कहा । )
अदिति : आज तो बच गई धन्यवाद आध्या जी ।
आध्या : अपने ध्यान को इधर-उधर मत जाने देना क्योंकि जादू में केवल एक ही चीज काम आती है दिमाग!
( अदिति नीचे आई और आध्या के सामने खड़े होते हुए कहा । )
अदिति : बिल्कुल मैं आपकी बातों का ध्यान रखूंगी ।
( तभी एक जड़ आई और छुपके से मटिल्डा के पैर को जकड़ लिया मटिल्डा को एहसास हुआ की उसका पैर किसी ने पकड़ा हुआ है उसने नीचे देखा और घबरा गई उसने पैर को छुड़वाने की कोशिश करते हुए कहा। )
मटिल्डा : ( घबराते हुए ) छोड़ो मुझे !
( सब ने मटिल्डा के पैर पर जकड़ी जड़ को देखा तभी आध्या ने आस पास देखते हुए कहा । )
आध्या : जरा आपने आस पास देखो !
(आस - पास देखने पर कई सारी जड़ें उनकी तरफ बढ रही थी तभी आध्या ने अपने दोनों हाथों की मदद से उनके ऊपर लाल रंग की किरणें छोड़ने शुरू की और चिल्लाते हुए अदिति से कहा । )
आध्या : ( चिल्लाते हुए। ) अदिति तुम भी कोशिश करो शायद तुम भी इन्हें रोक सको ।
(अदिति ने आध्या की बात मानी और अपने पास आई हुई जड़ों को अपने से दूर कर लिया तभी आध्या ने उनके चारों ओर कुछ दूरी पर आग लगा दी ताकि जो जड उन पर हमला करने के लिए उनके पास आए वह जलकर राख हो जाए तभी आध्या रिची और अदिति ने एक दूसरे की तरफ देखा तभी रिची ने कहा । )
रिची : मटिल्डा जी कहां है ?
आध्या : मुझे क्या पता मेरा ध्यान तो इन जड़ों को भगाने में था ।
अतिथि : मेरा भी !
रिची : तो फिर मटिल्डा जी है कहां ?
( तभी मटिल्डा की आवाज आई । )
मटिल्डा : अरे कोई बचाओ मुझे
( सब लोग इधर-उधर मटिल्डा को ढूंढ रहे थे तभी रिची ने ऊपर इशारा करते हुए कहा । )
रिची : वहां देखो
( अदिति और आध्या ऊपर देखा तो मटिल्डा पेड़ की जड़ से उल्टी लटकी हुई थी तभी अदिति ने कहा । )
अदिति : तुम चिंता मत करो मैं तुम्हें बच्चा लूंगी ।
( इतना कहकर अदिति ने मटिल्डा की तरफ अपना हाथ किया और अपने हाथ से एक लाल रंग की किरण जड़ के ऊपर छोड़ दी जिसके कारण जड़ टूट गई और मटिल्डा नीचे गिरने लगी अदिति और रिची ने अपनी आंखें बंद कर ली डर के कारण क्योंकि उन्हें लगा कि मटिल्डा अब नीचे गिर जाएगी लेकिन इससे पहले की मटिल्डा नीचे गिर पाती आध्या ने अपनी मानसिक शक्ति की मदद से मटिल्डा को नीचे गिरने से बचा लिया मटिल्डा ने अपनी आंखें खोली और अपने आप को सुरक्षित जमीन पर पाया तभी आध्या ने अदिति से कहा । )
आध्या : अदिति जो भी काम करना हो ध्यान से करो तुम्हारी इस प्रतिक्रिया से मटिल्डा की जान भी जा सकती थी ।
अदिति : तो क्या हो गया प्रतिक्रिया मैंने दे दी और आपने बचा लिया ।
मटिल्डा : उसमें बेशक मेरी जान ही क्यों ना चाली जाए।
आध्या : इसमें नाराज़ होने की जरूरत नहीं अदिति को नहीं पता था उसका जादू उसे अभी - अभी मिला है कोई बात नहीं ।
मटिल्डा : अच्छा और यही काम मैं करती तो ?
आध्या : तुम और अदिति मेरे लिए एक जैसे ही हो मैं किसी में भेद - भाव नहीं करती ।
अदिति : अच्छा वह सब छोड़ो हम इस जंगल से बाहर कैसे निकालेंगे हम इस आग से बाहर गए तो यह जड़ें हमें मार देगी।
रिची : और हमारी गाड़ी भी टूट चुकी है हम उड़ कर भी नहीं जा सकते हमें करना क्या है आध्या जी ?
मटिल्डा : मां से क्यों पूछ रहे हो हम अपने आप कोई रास्ता निकाल लेंगे ।
आध्या : अच्छा तो बताओ क्या रास्ता निकाला है तुम्हारे रास्ते का इंतजार कर रही हूं मुझे भी तो पता चले क्या रास्ता है ।
मटिल्डा : मेरे पास अभी तो नहीं है लेकिन हम जल्दी कुछ सोचे लेंगे ।
रिची : वही तो मटिल्डा जी हमारे पास समय नहीं है हमें जो भी करना होगा अभी करना होगा ।
मटिल्डा : तो फिर आप ही बता दीजिए रिची हमें कैसे जाना है ?
आध्या : बस! अब और नहीं हम लोग उड़कर ही जाएंगे ।
मटिल्डा : मुझे अकेला छोड़ कर ?
आध्या : अब बस वैसे तो तुम्हें यहां लाना ही नहीं चाहिए था लेकिन अब आई हो तो यहां पर अकेला नहीं छोड़ सकते मैं अपनी मानसिक शक्ति के अंदर से तुम्हें सबके साथ उदाऊंगी।
अदिती : लेकिन आध्या जी यह बहुत कठिन होगा आप एक साथ दो जगह किस तरह जादू करेंगे ।
आध्या : मेरी चिंता मत करो मैं संभाल लूंगी ।
अदिति : तुम अपने जादू की मदद से उड़ाना रिची तुम अपने उसे आविष्कार की मदद से और मैं और मटिल्डा मेरी जादू की मदद से उड़ेंगे उम्मीद है हम लोग जल्द ही जंगल को पार कर जाएंगे ।
रिची : लेकिन यह आसान नहीं होगा आध्या जी हमें इस जंगल को पार करने के लिए कम से कम 2 से 3 दिन चाहिए ।
अदिति : 2 से 3 दिन इतना समय ।
रिची : जी हां यह जंगल बहुत बड़ा है और बहुत घना भी जिसके कारण यहां पर कई अलग-अलग जानवर रहते हैं कुछ प्यार तो कुछ खतरनाक भी ।
आध्या : कोई बात नहीं वैसे तो शाम होने वाली है लेकिन हम थोड़ी आगे बढ़ते हैं रात होने पर हम लोग कहीं जंगल में ही रुकने की जगह ढूंढ लेंगे।
रिची : रात में जंगल में घूमना खतरनाक हो सकता है हमारे पास तो कोई साधन भी नहीं है जिससे हम रोशनी कर सके ।
आध्या : मैं बिना साधन के नहीं चलती चिंता मत करो तुम मेरे साथ आगे बढ़ो तुम्हारा ख्याल रखने की जिम्मेदारी मेरी ।
रिची : मुझे आपका पर पूरा भरोसा है लेकिन क्या आपको लगता है कि आप इस घने जंगल में रात होने के बाद कुछ कर पाएंगे मुझे लगता है हमें यही रुकना चाहिए ।
अदिती : लेकिन यहां रुकने का भी कोई फायदा नहीं होगा यहां की जड़े कुछ ना कुछ कर के हमें जल्दी ढूंढ लेंगे जिसके कारण हम लोग की जान खतरे में आ सकती है ।
आध्या : देखो तुम लोग इस वक्त समय बर्बाद कर रहे हो हम लोग आगे बढ़ते हैं आगे का काम मेरा ।
मटिल्डा : जब अभी तक मां की बात मान रहे थे तो अब भी मान लो !
रिची : ठीक है हम लोग आगे बढ़े ।
( रिची ने अपनी जेब से वह नीला 🔵 सिक्का निकला और उसे अपनी छाती पर लगा लिया नीले सिक्के के छाती पर लगते ही रुचि के शरीर पर एक स्टील का कवच आ गया जिसे देखने से लग रहा था कि वह बहुत सख्त है तभी रिची ने कहा । )
रिची : यह कवच ही मुझे शक्ति देता है जिससे मैं उड़ पाता हूं ।
आध्या : ठीक है अदिति अपनी आंखें बंद करो और जल्दी से ऊधो रिची अदिति के उड़ते ही तुम पीछे उड़ाना उसके बाद मैं आऊंगी ताकि हम लोग अलग ना हो।
रिची : ठीक है !
( अदिति ने आध्या के कहें अनुसार अपनी आंखें बंद की और उड़ना शुरू किया अदिति के पीछे रिची था जो कि अपने कवच की मदद से उड़ रहे थे तभी अदिति ने मटिल्डा का हाथ पकड़ा और उड़ने लगी आध्या ने मटिल्डा के ऊपर अपनी मानसिक शक्ति का जादू कर रखा था जिसकी मदद से मटिल्डा आराम से हवा में तैर पा रही थी और आध्या उसका हाथ पकड़ उसे रिची और अदिति के पास ले गई इस वक्त तीनों की रफ्तार एक जैसी थी जिसके कारण तीनों एक ही रेखा में साथ में उड़ रहे थे कुछ देर उड़ाने के बाद अंधेरा हो गया तभी आध्या ने जंगल की ओर देखना शुरू किया लेकिन बदकिस्मती से वहां पर एक भी ऐसी जगह नहीं थी जहां पर वह लोग रख सकते थे हर जगह सिर्फ और सिर्फ पेड़ थे तभी रिची ने कहा । )
रिची : आध्या जी मैंने कहा था आपको हम वहीं रुक जाते हैं ।
अदिति : अब हमें कहां रुकना है मैं बहुत थक गई हूं मुझसे और देर तक जादू नहीं हो पाएगा ।
आध्या : चिंता मत करो मैं कुछ करती हूं तुम यही रुको मैं कुछ देर में आई ।
( इतना कहकर आध्या अकेली नीचे जंगल की और बढ़ गई अदिति रिची और मटिल्डा हैरानी से आध्या को देख रहे थे वह आध्या को रोकना चाहते थे लेकिन रोक नहीं पाए तभी कुछ देर इंतजार करने के बाद नीचे से एक गोल सफेद रंग की गेंद उन तीनों की तरफ बढ़ने लगी अदिति ने मटिल्डा का हाथ पकड़ा और उसे उस गेंद से दूर ले गई रिची अपने आप कवच की मदद से गेंद से दूर हो गया हैरानी की बात यह थी कि उस में पांच खिड़कियां थी जिसके अंदर कोई देख नहीं पा रहा था और उस गेंद के नीचे एक लंबी और पतली स्टील की डंडी वह डंडी कुछ खास मजबूत नहीं लग रही थी लगा लो बस एक इंच मोटे लोहे के डंडे से बनी हो और उस डंडे के ऊपर एक बहुत बड़े आकार का गोला खड़ा था तभी आध्या भी ऊपर आई और उसने कहा । )
आध्या : चलो इसके अंदर ।
अदिति : इसके अंदर इसको देखकर तो लग रहा है अगर हमने थोड़ी सी हवा भी मारी तो यह गोला नीचे गिर जाएगा ।
मटिल्डा : ये आप क्या कह रही है हम इसके अंदर कैसे जा सकते हैं ।
( आध्या ने सबको समझते हुए कहा। )
आध्या : चिंता मत करो यह इतना मजबूत तो है कि अगर इस पर 400 हाथी भी अपना बाल प्रदर्शन करें तो भी बड़े आराम से खड़ा रहेगा ।
रिची : सही में ! मतलब यह एक चलता - फिरता मकान है ।
आध्या : हां बिल्कुल यह एक मकान है जो इतनी ऊंचाई पर है कि यहां तक कोई जानवर तो आ ही नहीं सकता और अंदर बहुत ज्यादा जगह है अंदर चलो ।
( तभी आध्या ने अपना हाथ बड़े गोले के ऊपर रखा जिसके कारण उस गोले का दरवाजा खुल गया अंदर बिल्कुल काला अंधेरा था सब लोग अंदर गए सब लोग अंदर गए तभी अदिति ने कहा । )
अदिति : यहां पर कितना अंधेरा है आध्या जी हम यहां पर कैसे रुकेंगे ?
( तभी आध्या ने कहा । )
आध्या : शांत रहो डरने की जरूरत नहीं है अंधेरे से डरना क्या ?
( इतना कहकर आध्या ने दो बार ताली बजाई आध्या के ताली बजाते ही चारों तरफ रोशनी फैल गई वह दृश्य बहुत हैरान कर देने वाला था वह लोग एक बड़े कमरे में खड़े थे जो की बिल्कुल खाली था वो बाहर से देखने पर इतना बड़ा नहीं लग रहा था लेकिन अंदर बहुत बड़ा था । उसके अंदर पांच कमरे थे और हर एक के कमरे के बाहर एक लाल रंग का बटन जिसको दबाने से कमरे का दरवाजा अपने आप ही खुल जाएगा तीनों की आंखें फटी की फटी रह गई तीनों हैरानी से पूरे कमरे को निहार रहे थे उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि एक ऐसा गोला जिसके अंदर जाने से पहले वो कितना डर रहे थे वह गोला इतना शानदार हो सकता था किसी ने इस चीज की उम्मीद भी नहीं की थी तभी आध्या ने नीचे बैठते हुए कहा। )
आध्या : तुम को भूख नहीं लगी क्या चलो कुछ खाते हैं ।
( सब लोग नीचे बैठ गए तभी मटिल्डा ने कहा ।)
मटिल्डा : कुछ खाते हैं लेकिन कैसे यहां पर तो कुछ खाने का नहीं है और हम कुछ लाए भी नहीं ।
अदिति : और मेरे में इतनी शक्ति नहीं है कि मैं अपने जादू की मदद से कुछ खाने का ला सकूं ।
आध्या : मैं जानती हूं बच्चों को शांत रहो मैं हर एक चीज की तैयारी कर रखी है ।
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