अध्याय 5

“तुम्हारा क्या मतलब है?” आरव मुझसे पूछता है, और मुझे नहीं पता था कि मैं उसका क्या जवाब दूँ।

“कुछ नहीं। तुम चुपचाप बाइक चलाओ बस।” मैं कहती हूँ, और वह आगे कुछ भी नहीं बोलता है। मैं खुश थी कि उसने कुछ नहीं पूछा, वरना मैं क्या जवाब देती?

हम दोनों के बीच में एक बार फिर से चुप्पी-सी छा गई थी और मुझे यह खल रही थी। मुझे कभी नहीं पसंद था कि आरव मुझसे इतनी बात करता है, लेकिन आज जब वह चुप था, तो मेरा मन उसे सुनने का कर रहा था। मेरा मन कर रहा था कि मैं उसे पीछे से गले लगाऊँ और अपना सिर उसकी पीठ पर रखूँ।

सपना ने क्या कहा, और क्या सही है, क्या ग़लत है, मैं इस सब के बारे में नहीं सोचना चाहती थी। बस एक बार आरव को पीछे से हग करने का मन कर रहा था।

मेरे हाथ धीरे से उसकी कमर की ओर बढ़ते है, लेकिन इससे पहले कि मैं उसे हग कर पाती, वह एक दम से बाइक रोक देता है। मेरा सिर आगे जाकर उसकी पीठ से टकराता है।

“तुम क्या कर रहे हो? मारने का इरादा है क्या?” मैं कहती हूँ, और अपने माथे को छूती हूँ। मेरा माथा दर्द करने लगा था।

“बाइक से उतरो।” आरव कहता है, और मैं उसकी बात सुनकर हैरान थी।

“क्या तुम अब मुझे यहीं पर छोड़कर जाना चाहते हो?” मैं रोती-सी शक्ल बनाते हुए कहती हूँ।

“बकवास बंद करो, और बाइक से उतरो।” आरव अब गुस्से से कहता हैं।

“नहीं। मैं नहीं उतरूँगी। तुम मुझे यहीं छोड़ जाओगे।”

“ मैं नहीं छोड़ कर जाऊँगा। उत्तरों अब।”

“ नहीं। बिलकुल भी नहीं। ” मैं उसकी बात नहीं मानती हूँ।

इस बार आरव बाइक का स्टैंड लगाकर बाइक के अगले हिस्से से अपना पैर लांघकर उतर जाता है।

मुझे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करने वाला है, लेकिन मैं खुश थी कि मैं बाइक से नीचे नहीं उतरी हूँ, अब वह मुझे छोड़कर नहीं जा सकता था।

“ नीचे उतरो।” आरव मेरे पास आकर कहता है।

“तुम बहुत अच्छे लड़के हो। तुम मुझे यहाँ पर छोड़कर नहीं जाओगे, है ना?” मैं बाइक से नीचे उतर जाती हूँ, और इसका कारण था कि आरव मुझे गुस्से से घूर रहा था। अगर मैं खुद-ब-खुद नीचे न आती तो मुझे लग रहा था कि वह मुझे बाइक से नीचे घसीटने वाला है।

“तुम सच में उस लड़के से प्यार करती हो?” आरव अपने हाथ मेरे दोनों ओर बाइक पर रखते हुए और अपना चेहरा मेरे चेहरे के पास लाते हुए पूछता है।

“रुको। क्या कर रहे हो?” मैं कहती हूँ, और अब उसकी सांसे मेरे होंठों पर पड़ रही थी।

मैं अपनी आँखें बंद कर लेती हूँ क्योंकि मुझे लग रहा था कि वह मुझे किस करने वाला है।

“ तुमने अपनी आँखें क्यों बंद की है?” अब उसकी सांसे मेरे होंठों के और करीब महसूस हो रही थी। मुझे लग रहा था कि उसके होंठ मेरे होंठों को छूने ही वाले।

....पर ऐसा कुछ नहीं होता।

आरव मेरा हाथ पकड़ता है और मुझे अपनी बाइक से दूर कर देता है। अब मेरी आँखें पूरी तरह से खुली थी, और मैं उसे बाइक पर बैठते हुए देख रही थी।

'क्या मेरा डर सच हो रहा है? क्या वह मुझे सच में छोड़कर जा रहा है?' मैं सोचती हूँ, और इस बार मैं उसे कुछ भी नहीं कहती।

वह मेरी ओर अपना सिर घुमाकर देखता है और फिर कहता है, “बैठो।”

मुझे समझ नहीं आया कि वह सब क्या था? अगर उसने मुझे किस नहीं करना था, तो मेरे इतने करीब क्यों आया। और अगर वापस बाइक पर बिठाना था तो उतारा क्यों? सच में, कभी-कभी इस लड़के को समझना बहुत मुश्किल का काम था।

मैं वापस बाइक पर बैठ जाती हूँ, और हम अपनी बिल्डिंग में पहुंच जाते है।

बिल्डिंग में पहुंचने के बाद, आरव अपनी बाइक गेराज में लगाने जाता है, और मैं वही खड़कर उसका इंतजार करती हूँ।

सब कुछ मेरे प्लैन से उलटा जा रहा था। कहां मैंने सोचा था कि मैं उससे बात नहीं करूंगी, उसकी ओर देखूंगी नहीं। लेकिन अब देखो, मैं उसका इंतजार कर रही थी।

थोड़ी देर के बाद, आरव गेराज से बाहर आ जाता है, लेकिन वह अकेला नहीं था, उसके साथ एक लड़की भी थी। वह शर्मा अंकल की लड़की सोनाली थी, पर वह आरव से इतना हँसकर क्यों बात कर रही थी और आरव भी। आखिर, ऐसी भी क्या बाते हो रही थी उनके बीच में कि वह दोनों इतना हँस रहे थे।

आरव मेरी ओर देखता है, लेकिन फिर दूसरे ही पल वह उस लड़की की ओर देखकर मुस्कुराता है। आरव उस लड़की से बातें करते-करते उसको बिल्डिंग के अंदर ले जाता है, और मेरी ओर देखता भी नहीं है।

अब मुझे उस पर और उस लड़की पर, दोनों पर बहुत गुस्सा आ रहा था।

मैं उन दोनों के पीछे बिल्डिंग में जाती हूँ, और देखती हूँ कि वह दोनों कहीं भी नहीं थे। मैं थोड़ा-सा और आगे जाती हूँ और वहां भी वह मुझे नहीं मिलते है। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि इतनी जल्दी वह दोनों कहां जा सकते है?

जब काफी ढूंढने के बाद भी, वह दोनों मुझे नहीं मिलते तो मैं लिफ्ट लेकर सातवें फ्लोर पर आ जाती हूँ, यहाँ पर हमारा घर था।

मैं अपने बैग से चाबी निकालती हूँ, और दरवाजा खोलकर घर के अंदर चली जाती हूँ। आज मैं घर पर अकेली थी। पापा और मम्मी अपने-अपने काम पर थे और उस इडियट आरव का कुछ पता ही नहीं था।

मैं दरवाजा बंद करके हॉल में आ जाती हूँ, और सोफे पर लेट जाती हूँ। आमतौर पर, मुझे घर पर अकेले रहना पसंद है, लेकिन आज मेरा घर पर अकेले मन नहीं लग रहा था। मेरा सारा ध्यान उस आरव के बच्चे और उस हँसने वाली चुड़ैल पर था। मेरे दिमाग में बुरे-बुरे ख्याल आ रहे थे और सोच रही थी कि वह दोनों क्या कर रहे होंगे?

'अगर उस लड़की ने आरव के साथ कुछ उलटा-सीधा कर दिया तो?' मेरा दिमाग अब फालतू की भी बातें सोचने लगा था।

“शान्त हो जा रूही। कुछ ग़लत नहीं होगा। अगर हो भी गया तो क्या? तुम उसे पसंद नहीं करती हो।” मैं सोफे पर उठकर बैठ जाती हूँ, और खुद से कहती हूँ। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ? मैं उससे दूर जाना चाहती थी, लेकिन मेरा दिल उसके करीब जाना चाहता था। पिछले तीन सालों में, मैं हमेशा उससे दूर भागती रही। अगर वह मुझसे बात करने आता तो मैं उसकी बातों को नज़र अंदाज करती। मुझे अच्छा लगता था कि कैसे वह हमेशा मुझसे बात करने की कोशिश करता, मुझे खुश करने कि कोशिश करता। मैं सोचती थी कि अगर मैं उससे बातें करने लग गई तो वह मुझसे बोर हो जाएगा, और फिर मुझ पर उतना ध्यान नहीं देगा, जितना देता है। मैं हमेशा इस बात से डरती थी।

मुझे उसका मेरे कमरे में बार-बार आना, अपने बकवास जोक सुनाकर मुझे हंसाने की कोशिश करना, मुझे इस सब की आदत हो गई थी। और शायद मुझे उसकी आदत हो गई थी।

इस लिए मैं हमेशा उससे कहती थी कि मैं उससे नफ़रत करती हूँ, ताकि वह मुझे कभी भी मनाना न छोड़े। पर आज मुझे ऐसा लग रहा था, जैसे वह मुझसे दूर हो गया हो। मुझे बहुत डर लग रहा था और मेरा मन रोने का कर रहा था। पर कितनी शर्म की बात थी कि मैं इस लिए रोना चाहती थी क्योंकि वह किसी और लड़की के साथ था।

‛मैंने आरव को कभी भी अपने सौतेले भाई से बढ़कर नहीं माना था, तो उसके किसी और के साथ होने से मुझे इतना बुरा क्यों लग रहा है? और फिर यह अच्छा ही है ना कि उसे कोई और लड़की मिल गई है। अब वह मुझसे प्यार का झूठा नाटक नहीं करेगा।' मैं सोचती हूँ, और फिर से रोने लग जाती हूँ।

“लेकिन मैं नहीं चाहती कि यह नाटक कभी भी ख़त्म हो।” मैं रोते हुए कहती हूँ।

आधे घंटे के बाद, कोई दरवाजे की घण्टी बजाता है और तब तक मैंने जी भर कर रो लिया था। मैं सोफे से उठती हूँ और दरवाजा खोलने के लिए जाती हूँ।

मैं दरवाजा खोलती हूँ और देखती हूँ कि यह आरव था। वह मुस्कुरा रहा था, और फिर बिना मेरी ओर देखे वह घर के अंदर चला जाता है। मैं हैरान थी कि वह मुझे इस तरह से नजर अंदाज कैसे कर सकता है। मैं दरवाजा बंद करती हूँ, और फिर उसके पीछे हॉल में चली जाती हूँ। वह हॉल में एक मिनट के लिए भी नहीं रुकता है और सीधे ही अपने कमरे में चला जाता है।

अब मुझे ऐसा लग रहा था जैसे कि मेरा दिल टूट गया हो। मेरा फिर से रोने का मन कर रहा था।

हॉल में रोने की जगह मैं अपने कमरे में आ जाती हूँ। मैं नहीं चाहती थी कि वह अपने कमरे से बाहर आये और मुझे हॉल में रोते हुए देखे। वैसे भी वह मुझे चुप कराने की जगह मुझपर हँसने ही वाला था।

कमरे में आने के बाद, मैं अपने बेड पर लेट जाती हूँ और फिर बहुत रोती हूँ। मुझे लग रहा था जैसे कि मैं पूरे साल का आज ही रो दूंगी।

काफी रोने के बाद जब मुझे बेहतर महसूस होने लगा, तो मैं अपने बिस्तर पर उठकर बैठ जाती हूँ, और सोचती हूँ कि अब आगे क्या करना है। मैं हमेशा उस पागल के पीछे रोती तो नहीं रह सकती हूँ ना।

मैंने सोच लिया था कि अब से मैं उस आरव से ज्यादा बात नहीं करूंगी, और उससे जितना हो सके दूर ही रहूँगी। लेकिन फिर मेरे दिमाग में आ रहा था कि क्या मैं सच में उससे दूर रहना चाहती हूँ?

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