अध्याय 2

शाम के छह बजे मैं अपने कॉलेज का काम ख़त्म करके अपने कमरे से बाहर आती हूँ, और देखती हूँ कि मम्मी-पापा पहले से ही हॉल में थे। मैं उनके पास जाकर सोफे पर बैठ जाती हूँ और उनसे बातें करने लगती हूँ। थोड़ी देर के बाद मैं मम्मी के साथ किचन में चली जाती हूँ और उनकी सब्जियां काटने में मदद करती हूँ। जब मैं सब्जियां काट रही थी तो तभी आरव भी हॉल में आ जाता है। मेरी और उसकी एक पल के लिए नजरें मिलती है लेकिन फिर दूसरे ही पल मैं कहीं ओर देखती हूँ।

कुछ देर के बाद, मैं सब्जी काटकर किचन से बाहर आ जाती हूँ, और पापा के साथ सोफे पर बैठ जाती हूँ। आरव जो खाने के टेबल पर बैठा कॉफी पी रहा था, वह भी उठकर वहीं आ जाता है।

वह पापा के पास बैठने के जगह मेरे पास आकर बैठ जाता है और इससे मैं और पापा, हम दोनों उसे हैरानी से देखते हैं।

“अरे, वाह क्या बात है? लगता है तुम दोनों ने अब लड़ना बंद कर दिया हैं।” पापा मुस्कुराकर कहते है।

मैं मन ही मन मैं उनकी यह बात सुनकर हँसती हूँ और सोचती हूँ, ‛अगर आपको पता चलता कि वह क्या करने की कोशिश कर रहा है, तो शायद आप यह न कह पाते।’

“तुम क्यों मुस्कुरा रही हो?” पापा मुझसे पूछते है, और मैं जवाब देने की जगह थोड़ा-सा और मुस्कुरा देती हूँ।

बाद में रात का खाना खाकर, हम सब अपने-अपने कमरे में चले जाते हैं, और मैं भी अपने कमरे में आ जाती हूँ। कमरे में आने के बाद मैं अपने कमरे का दरवाज़ा बंद करने लगती हूँ लेकिन तभी आरव वहाँ पर आ जाता है।

“तुम यहाँ क्या कर रहे हो?” मैं उसे धीमी आवाज़ में पूछती हूँ।

“मैं यहाँ पर यह जानने आया हूँ कि...तुम मुझे प्यार करती हो या नहीं?” आरव पूछता है।

“तुम्हें पता है? मैं तुम्हें चप्पल से मारूँगी। देखना चाहोगे?” मैं अपना पैर उठाती हूँ और चप्पल उतारने का नाटक करती हूँ। मैं सच में उसे नहीं मारने वाली थी।

“तुम मुझे मारोगी?” आरव कहता हैं, और फिर एक दम से मुझे कमरे के अंदर धकेल देता है। वह मेरे कमरे में घुस आता हैं और फिर मेरे हाथ पकड़कर मुझे दीवार से लगा देता है।

“तुम यह क्या कर रहे हो?” मैं अपनी हाथ उसके हाथों से छुड़ाने की कोशिश करती हूँ।

“तुम मुझे मारना चाहती थी ना? तो अब मारो मुझे।“ वह मुस्कुराता है।

“देखो - ।” मैं कुछ कहने ही वाली थी पर उसके पहले ही उसके होंठ मेरे होंठों से छू जाते है। मेरी आँखें फटी की फटी रह जाती है। मैं उसे अपने से दूर धकेलना चाहती थी, लेकिन नहीं धकेल पाई। उसके होंठ मेरे होंठों को बार-बार छू रहे थे। थोड़ी देर के बाद मेरे होंठों को कोई गीली चीज छूती हैं और मुझे पता था कि वह क्या है। आरव अपनी जीभ को मेरे मुंह में डालने की कोशिश कर रहा था।

मुझे वह सब कुछ बहुत अजीब लग रहा था। नहीं, ऐसा नहीं था कि उसकी किस बुरी थी। पर प्रॉब्लम यह थी कि यह मुझे अच्छी लग रही थी। मैंने पहले भी एक बार अपने कॉलेज के एक लड़के को किस किया था, लेकिन तब मुझे इतना अच्छा नहीं लगा जितना अच्छा अब लग रहा था।

“अपना मुंह खोलो।” आरव किस करना छोड़ देता है और मुझसे कहता है।

“मुंह खोलूँ अपना? अभी बताती हूँ तुम्हें।” मैं कहती हूँ और फिर अपना पैर उठाती हूँ उसे मारने के लिए, लेकिन इससे पहले कि मैं उसे मार पाती वह मुझसे पीछे हट जाता हैं।

“तुम बहुत बुरी लड़की हो।” आरव कहता है और मेरा पैर पकड़ लेता है जिससे मैं उसे मारने की कोशिश की थी।

“मेरा पैर छोड़ो।” मैं कहती हूँ और अपना पैर उससे खींचती हूँ, लेकिन वह इसे नहीं जाने देता। आरव एक बार फिर से मेरे करीब आने लगता है, और जैसे-जैसे वह मेरे करीब आ रहा था, वैसे-वैसे ही उसका हाथ मेरी टांग पर ऊपर की ओर जा रहा था। मुझे यह सोचकर डर लग रहा था कि वह क्या करने वाला है, लेकिन इसके साथ ही मेरे दिल में एक नई तरह की उमंग भी थी। उसका हाथ ऊपर बढ़ते-बढ़ते मेरी कमर तक आ जाता है। मेरी दिल की धड़कने अब बढ़ने लगी थी।

“क्या मैं तुम्हें यहाँ छू सकता हूँ?” उसने मुझसे पूछा और अपना हाथ मुझसे दूर ले गया।

मैंने अपनी नजरें नीचे झुका ली और कहा, “ तुम्हें नहीं लगता कि तुमने पहले से ही छू लिया है।“

“तो तुम्हारा क्या मतलब है? मैं तुम्हें और छू सकता हूँ?” वह पूछता है।

“नहीं। ये ग़लत है।” मैंने साफ इनकार कर दिया लेकिन मेरा दिल कुछ और कह रहा था। मेरा दिल चाहता था कि वह मुझे छूए ताकि मुझे भी पता चल सके कि मेरे साथ क्या हो रहा है।

“तुम मना कर रही हो, लेकिन देखो तुम्हारा चेहरा कैसे लाल हो रहा है।” उसका हाथ हल्के से मेरे गाल को छूता है और मैं कांप जाती हूँ। आरव मेरी इस प्रतिक्रिया को देख कर हैरान हो जाता है।

“तुम ठीक तो हो?” अब वह मेरी दोनों गालों को छूता है और मुझे ऐसा महसूस होता है कि जैसे मेरे सारे शरीर में करंट दौड़ रहा हो।

“मुझे छूना बंद करो।” मैं उसके हाथ अपनी गालों से हटाती हूँ।

“तुम्हें नहीं लगता कि तुम भी मेरे लिए कुछ महसूस करती हो?” वह मुस्कराते हुए कहता है।

“कुछ भी मत बोलो, और हटो मेरे रास्ते से।” मैं उसे पीछे धकेलती हूँ और, अपने बेड पर आ जाती हूँ।

आरव अब भी वहीं खड़ा मेरी ओर देख रहा था।

“ओके। गुडनाईट। सुबह मिलते है।” वह कहता है और फिर कमरे से बाहर चला जाता है।

मैं अपने कमरे का दरवाजा भी बंद नहीं करने जाती, और वैसे ही बेड पर लेट जाती हूँ।

उसने मुझे कैसे छुआ और क्या-क्या कहा, ये सब बार-बार मेरे दिमाग में आ रहा था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि यह सब क्या हो रहा है? एक तरफ़ तो मेरा दिमाग कह रहा था कि तुम मम्मी से डांट खाओगी, अगर मम्मी को पता चला के तुम दोनों के बीच में क्या हो रहा है। लेकिन फिर दूसरी तरफ मेरा दिल कुछ और कह रहा था, शायद यह आरव को पसंद करने लगा था।

‛पर ऐसा कैसे हो सकता है? मैं उसे कैसे पसंद कर सकती हूँ?’ मैं एकदम से बिस्तर पर उठकर बैठ जाती हूँ, और अपनी गालों को थपथपाती हूँ। “जागो रूही। जागो। तुम उसके बारे में ऐसा कुछ भी नहीं सोच सकती हो।” मैं एक बार फिर अपनी दोनों गालों को थपथपाती हूँ ताकि मैं उस आरव के बारे में सोचना बंद करूँ।

अगले दिन जब मैं नींद से उठती हूँ, तो मेरा और सोने का मन कर रहा था। कल सारी रात मैं अच्छे से सो नहीं पाई थी। सारी रात मेरा दिमाग उस आरव के बारे में सोच रहा था, और जब नींद आने लगी तो पहले ही सुबह के चार बज गए थे।

“रूही उठ जाओ। तुम्हें कॉलेज नहीं जाना आज?” मम्मी हाल से आवाज़ लगाती है।

“उठ गई, मम्मी।” मैं बेड पर उठकर बैठ जाती हूँ, लेकिन फिर पांच मिनट की झपकी लेने के लिए बेड पर फिर से लेट जाती हूँ।

“रूही, उठ जाओ। ”

“उठ गई हूँ, मम्मी।” मैं एक दम से नींद से उठकर बैठ जाती हूँ। मुझे नहीं लगता था कि मैंने पांच मिनट की भी नींद ली थी कि उससे पहले ही मम्मी ने मुझे उठा दिया।

मैं ब्रश करके, और नहा-धोकर अपने कॉलेज के लिए तैयार हो जाती हूँ, और फिर हाल में खाना खाने के लिए आ जाती हूँ। मम्मी, पापा और आरव पहले से ही डाइनिंग टेबल पर बैठे हुए थे। मैं उनको गुडमार्निंग बोलती हूँ, और फिर खाना खाने के लिए उनके साथ बैठ जाती हूँ।

“तुम्हें क्या हुआ है? आज इतनी बिखरी-सी क्यों लग रही हो?” मम्मी मेरी ओर देखकर पूछती है।

मम्मी की बात सुनकर, मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं मम्मी की बात का क्या जवाब दूं? क्या बता दूँ मम्मी और पापा को कि कल रात इस आरव के बच्चे ने क्या किया? और उसकी ही वजह से मुझे कल रात नींद नहीं आयी, और अब मैं ऐसी लग रही हूँ।

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