आई लव माय डियर ब्रदर

आई लव माय डियर ब्रदर

अध्याय 1

यह रविवार की सुबह थी और मैं अपने बेड पर बैठी कॉलेज का काम कर रही थी।

कुछ समय के बाद, कोई मेरे कमरे का दरवाजा खोलता है, और मैं सिर उठाकर देखती हूँ कि यह मेरा सौतेला भाई आरव था। मुझे कभी-कभी उसपर बहुत गुस्सा आता था। वह उन्नीस साल का हो गया था, लेकिन यह नहीं मालूम कि किसी के कमरे में जाने से पहले दरवाजा खटखटाया जाता है।

“तुम क्या कर रही हो?” आरव मेरी ओर आते हुए पूछता है और मैं गहरी लंबी सांस लेती हूँ। मुझे पता था कि अब जब तक वह वहाँ था, मैं अपने कॉलेज का काम नहीं कर पाऊंगी।

“अरे मैं अभी आया हूँ, और तुम पहले से ही ऐसा चेहरा बना रही हो।” वह अपने हाथ अपनी कमर पर रखता है और गुस्से में दिखने का नाटक करता है, लेकिन फिर अपनी हँसी को रोक नहीं पाता। यही एक बात थी जो मुझे उसके बारे में पसंद थी कि वह क्यूट था, लेकिन फिर तंग भी बहुत करता था। उसने मुझे परेशान किए बिना कोई दिन नहीं जाने दिया था, और मुझे मालूम था कि वह फिर से मुझे तंग करने के लिए ही आया है।

“तो मैं क्या करूँ? आखिरकार तुम दुनिया के सबसे बुरे भाई जो ठहरे।” मैं प्यार से कहती हूँ जबकि मैं वह सब गुस्से से कहना चाहती थी। मेरा मन कर रहा था कि मैं उसे अभी अपने कमरे से बाहर निकाल दूँ जैसे कि हमेशा करती थी, लेकिन फिर पापा मुझे डांटते।

“तुम मुझसे इतनी नफ़रत क्यों करती हो?” वह मेरे बेड पर बैठ जाता है, और उदास-सा चेहरा बनाकर पूछता है।

“क्योंकि मैं तुम्हें पसंद नहीं करती हूँ।” मैं कहती हूँ और फिर से लिखने लग जाती हूँ। मुझे उसका उदास चेहरा देखना बिल्कुल भी पसंद नहीं था। चाहें मुझे वह थोड़ा सा भी पसंद नहीं था, लेकिन जब भी मैं उसका उदास चेहरा देखती थी तो मुझे बहुत बुरा लगता था।

“लेकिन क्यों?” उसने पूछा और मैंने कोई जवाब नहीं दिया। उन शब्दों को कहकर वह मुझे ऐसा महसूस करा रहा था, जैसे कि उसे मालूम नहीं है कि मैं उसे नफ़रत क्यों करती हूँ। क्या उसे पता नहीं है कि वह मुझे कितना परेशान करता है।

“प्लीज, बताओ भी। चुप मत रहो।” वह कहता है और मैं फिर से चुप रहती हूँ।

जब मैंने फिर से उसका जवाब नहीं दिया तो वह गुस्से में बेड से खड़ा हो जाता है और चिल्लाता है, “मैंने तुमसे कुछ पूछा है। मुझे जवाब दो!” मैं फिर से कुछ नहीं बोलती हूँ। असल में उससे छुटकारा पाने का सबसे अच्छा तरीका था कि उसे नजरंदाज किया जाए और मैं वही कर रही थी।

पर इस बार यह तरीका उस पर काम नहीं करता है।

वह और गुस्सा हो जाता है और फिर मेरा ध्यान अपनी ओर करने के लिए वह मुझसे मेरी नोटबुक छीन लेता है जिसपर मैं काम कर रही थी।

“तुम क्या कर रहे हो? मेरी नोटबुक मुझे वापस दो।” वह नोटबुक मेरे लिए बहुत जरूरी थी। मुझे डर लग रहा था कि कहीं आरव उसे फाड़ न दे।

मैं जल्दी से बेड पर खड़ी हो जाती हूँ और अपनी नोटबुक उससे लेने की कोशिश करती हूँ। मैं बार-बार नोटबुक पकड़ने की कोशिश करती हूँ, लेकिन वह हर बार अपना हाथ मुझसे दूर ले जाता था। अब मुझे उस पर गुस्सा आ रहा था, और मेरा मन कर रहा था कि मैं उसका नाक तोड़ दूं।

“मुझे मेरी नोटबुक वापस दो।”

मैं बेड से नीचे उतर आती हूँ और अपनी नोटबुक उसके हाथ से छीनने की कोशिश करती हूँ। हालाँकि वह मुझसे ज्यादा लंबा नहीं था, लेकिन फिर भी मेरा हाथ उसके हाथ तक नहीं पहुंच पा रहा था।

“तुम इसे नहीं ले पाओगी।” आरव कहता है और फिर मेरी नोटबुक को हवा में फेंक देता है। नोटबुक हवा में उड़ते हुए ज़ोर से फर्श पर आ गिरती है और इसके साथ मेरा दिल भी फर्श पर आ गिरता है। मैंने पूरे हफ्ते उसपर काम किया था। अगर उसका एक भी पेज फट जाता तो मुझे दुबारा से सब लिखना पड़ता।

मैं आरव की ओर एक बार गुस्से से देखती हूँ, और फिर अपनी नोटबुक उठाने चली जाती हूँ। मैं नोटबुक उठाती हूँ, और देखती हूँ कि यह बिल्कुल ठीक थी। मैं मन में भगवान का शुक्रिया करती हूँ और फिर अपने बेड की ओर जाती हूँ, लेकिन इससे पहले कि मैं बेड पर पहुंच पाती, आरव मेरा हाथ पकड़कर मुझे रोक लेता है।

“कहाँ जा रही हो?” आरव कहता है और फिर मुझे मेरे हाथ से अपने पास खींच लेता है। मैं हैरानी से उसकी ओर देखती हूँ, और सोचती हूँ कि वह क्या कर रहा है?

इससे पहले कि मैं उसे कुछ पूछ पाती वह मुझे मेरे कमरे की अलमारी पर धकेल देता है और मेरे दोनों हाथ अपने हाथों में कसकर पकड़ लेता है। मेरी नोटबुक एक बार फिर से मेरे हाथ से गिरकर फर्श पर जा गिरती है, और इस बार यह बिल्कुल भी ठीक नहीं लग रही थी।

“तुमने ये क्या किया? अगर मेरी नोटबुक फट गईं तो मेरा सारा काम तुम्हें लिखना पड़ेगा।” मैं उसपर चिल्लाती हूँ और अपने हाथ उसकी पकड़ से छुड़ाने की कोशिश करती हूँ, लेकिन छुड़ा नहीं पाती। पता नहीं वह क्या खाकर बड़ा हुआ था कि उसकी पकड़ इतनी मजबूत थी।

“मुझे छोड़ो!” मैं गुस्से से कहती हूँ।

“नहीं। आज तो मैं तुम्हें नहीं जाने दूंगा। पहले मुझे जवाब दो कि तुम मुझसे नफरत क्यों करती हो?” आरव कहता है। मैं उसकी आँखों में देखती हूँ, और मुझे आज उनमें शरारत नज़र आ रही थी। मुझे पता था कि आज वह मुझे आसानी से जाने नहीं देने वाला है।

“मैं पहले ही बता चुकी हूँ कि मैं तुम्हें पसंद नहीं करती हूँ, तो तुम बार-बार वही सवाल क्यों पूछ रहे हो?” मैं जोर से अपने हाथ उसके हाथों से खींचती हूँ, और वह मेरे हाथ छोड़ देता है।

“तुम्हें पता है?... शायद तुमने अभी तक मुझे अपना भाई माना ही नहीं है।” आरव मेरी ओर देखता है और फिर अपना चेहरा मेरे पास लाते हुए कहता हैं। मैं एकदम से घबरा जाती हूँ और थोड़ा-सा और पीछे जाने की कोशिश करती हूँ, लेकिन वहाँ कोई जगह नहीं थी जहाँ मैं जा सकती।

“तुम क्या कर रहे हो?” मैं उसकी सीने पर अपना हाथ रखकर उसे रोकने की कोशिश करती हूँ।

“तुम्हें पता है?” वह मेरे और करीब आ जाता है, हालांकि मैं उसे रोकने की पूरी कोशिश कर रही थी। “मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ।” अब उसकी सांसे मेरी गाल पर पड़ रही थी, और मेरे दिल की धड़कनें ज़ोर-ज़ोर से धड़क रही थी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि वह ऐसा क्यों कह रहा था।

“पीछे हटो!” मैंने उसे ज़ोर से धक्का दिया और वह पीछे हट जाता है, लेकिन फिर दूसरे ही पल वह फिर से मेरे पास आ जाता है, और अपने हाथ मेरे दोनों ओर अलमारी पर जमा लेता है।

“तुम चाहते क्या हो?” मैं उसे गुस्से से पूछती हूँ लेकिन वह मेरी ओर मुस्कुरा रहा था।

“तुम जानना चाहती हो कि मैं तुमसे क्या चाहता हूँ?” वह एक बार फिर से मेरे चेहरे के करीब आता है, और फिर मेरे कान में कुछ कहता है। उसकी बात सुनकर मेरे होश उड़ गए थे और मेरे दिल की धड़कने अब और भी तेज हो गई थी।

‛वह मेरे साथ क्या?? सोना चाहता है!!!???’ मेरे दिमाग में अब एक ही आवाज़ गूंज रही थी।

“तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है? मैं तुम्हारी बहन हूँ!” मैं चिल्लाती हूँ। “तुम्हें पता है? मैं मम्मी को यह सब बता सकती हूँ, और फिर तुम्हें बहुत गालियां पड़ेगी। ”

“तुम्हें क्या लगता है कि मैं मम्मी से डरता हूँ?” वह एक बार फिर मेरे हाथ अपने हाथों में पकड़ लेता है।“ तुम्हें शायद अभी मालूम नहीं है कि मैं तुमसे कितना प्यार करता हूँ।” यह कहकर वह मेरे गाल पर किस करने की कोशिश करता है, लेकिन मैं अपना सिर इधर-उधर करती हूँ और उसे किस नहीं करने देती हूँ।

“मैं सच में मम्मी को बताऊंगी।” मैं चिल्लाती हूँ।

“ठीक है। बताओ जिसे बताना है। मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।” आरव कहता है और फिर मेरा कमरा छोड़कर चला जाता है।

चाहे अब वह मेरे कमरे में नहीं था पर मेरे दिल की धड़कने अब भी तेज थी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि वह मुझसे वैसा कुछ कैसे कह सकता है। चाहे हम असली भाई-बहन नहीं है, लेकिन फिर भी वह मुझसे प्यार कैसे कर सकता है? हम दोनों के बीच में वह सब नहीं हो सकता है।

मैं सोचते-सोचते अपने बेड पर वापस आ जाती हूँ और नोटबुक के बारे में बिल्कुल ही भूल जाती हूँ। मेरा दिमाग अब एक पल के लिए भी आरव के बारे में सोचना बंद नहीं कर रहा था। मुझे याद आ रहा था कि कैसे तीन साल पहले वह अपनी मम्मी के साथ इस घर में आया था, और उसी दिन से मैं उसे नफ़रत करने लग गईं थी।

असल में, मैं जब सिर्फ पांच साल की थी तो मेरी मम्मी गुजर गई थी, और फिर दादा-दादी के कहने पर भी पापा ने कभी दूसरी शादी नहीं की। वह हमेशा कहते थे कि वह मुझे सौतेली माँ नहीं देना चाहते। वह डरते थे कि उनकी दूसरी पत्नी मुझे असली माँ की तरह प्यार नहीं कर पायेगी। इस लिए उन्होंने कभी शादी नहीं की। लेकिन जब मैं बढ़ी हुई, तो मैं भी दादा-दादी की तरफ थी और पापा को हमेशा शादी करने के लिए कहती थी।

कुछ साल पापा ने ऐसे ही बिता दिए, लेकिन फिर एक दिन वह मुझे बताते है कि वह किसी को पसंद करने लगें है, और वह दोनों शादी करना चाहते है। मैं पापा की यह बात सुनकर बहुत खुश थी, लेकिन बाद में पापा बताते है कि उस औरत का एक बेटा भी है।

मुझे इससे कोई प्रॉब्लम नहीं थी। मुझे बस इतना पता था कि पापा खुश है। मैंने पापा को कह दिया था कि मुझे इससे कोई प्रॉब्लम नहीं है, वह शादी कर सकते है।

इसके बाद पापा कुछ दिनों में उस औरत से शादी कर लेते है, और ऐसे मुझे एक नई मम्मी और एक भाई मिल जाता है।

मैं मम्मी के साथ तो बहुत खुश थी लेकिन भाई के साथ नहीं। मुझे लगा था कि वह मुझसे छोटा होगा, लेकिन वह मेरी ही उम्र का था। लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता था। और अगर मैं उसे शादी के पहले भी देख लेती तो भी मैं शादी के लिए मना नहीं करने वाली थी। मेरे लिये पापा की खुशी सबसे बढ़कर थी और फिर मम्मी भी तो अच्छी थी।

समय के साथ मुझे मम्मी से और प्यार होता गया और आरव से नफरत।

और इसका कारण यह था, क्योंकि आरव हर दिन मेरे कमरे में आ जाता था और जब मैं उससे बात नहीं भी करना चाहती होती थी, तो तब भी वह मुझसे बात करने की कोशिश करता था। मैं यहाँ भी जाती थी, वह पूंछ की तरह मेरे पीछे-पीछे रहता था।

मुझे उसपर बहुत गुस्सा आता था लेकिन मैं कुछ नहीं कर पाती थी। पर शायद वह गुस्सा नहीं था बल्कि कुछ और जो मुझे खुद भी समझ नहीं आ रहा था।

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