सुबह 11: 30 बजे । उस वक़्त मैं अपना काम कर रही थी, "हेलो, पलक ।" तभी अचानक मेरे पीछे से आकर आर्या ने धीरे से कहा और मेरे पास वाली कुर्सी पर बैठ गया । मेरे पलटने पर परेशानी भरी नज़रों से मुझे देखते ही, "वो.. असल में.. उस दिन तुम्हारी तबियत ठिक नहीं थी तो मुझे तुम्हारी बहुत फ़िक्र हो रही थी । अब कैसी हो तुम ? तुम्हारी तबियत ठिक है ?" आर्या ने हड़बड़ाहट में कई सवाल कर दिए । "हाँ, अब मैं बिल्कुल ठिक हूँ । तुम्हें.. फ़िक्र करने कि ज़रुरत नहीं ।" मैंने धीमे से जवाब दिया । मेरी बात सुनते ही, "ज़रुरत कैसे नहीं है, पलक ।" आर्या ने अचानक मेरी तरफ़ झुककर, "मुझे तुम्हारी फ़िक्र है ! आई'एम सोरी ! मैं तुम्हारे पर्सनल मेटर में पड़ना नहीं चाहता । लेकिन पता नहीं क्यूँ उस दिन मैं बिना किसी बात के तुम पर गुस्सा हो गया था । मुझे समझना चाहिए था कि तुम उस वक़्त बहुत परेशान थी ।" कहना जारी रखा, "लेकिन अब.. मैं समझता हूँ । अगर मेरी वजह से तुम्हे कोई प्रेबलम हुई हो तो आई'एम वेरी सोरी । मेरा इन्टेशन तुम्हें तकलीफ़ पहुँचा नहीं था ।" और अगले ही पल आर्या ने मायूसी से मेरी तरफ़ देखकर माफ़ी मांगी । "इट्स ओके । तुम्हें इतना परेशान होने की ज़रुरत नहीं । उलटा मुझे.. तुमसे माफ़ी मांगनी चाहिए । उस दीन मैंने जो किया वो सही नहीं था; मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था ।" मैंने उसकी तरफ़ देखकर हल्की सी मुस्कान के साथ कहा । "तो इसका मतलब अब तुम मुझसे नाराज़ नहीं हो ?" आर्या ने मेरी तरफ़ देखकर मुस्कुराते हुए सवाल किया । और मैंने सहमति में धीमे से सर झुकाया । उसने मेरी तरफ़ देखकर मुस्कुराते हुए, "तो इसका मतलब अब तुम मुझसे दूर तो नहीं भागोगी ?" तुरंत एक औ़र सवाल कर दिया, जिसका मेरे पास कोई जवाब नहीं था । मुझे आर्या का इस तरह से ज़्यादा सवाल करना; मेरे बारे में पता करना मुझे काफ़ी अजीब लग रहा था । आर्या कोई ऐसा - वैसा लड़का नहीं था बल्कि वो तो काफ़ी सीधासादा और शांत किस्म का था । मैं आर्या से कभी गुस्सा नहीं थी ना ही कभी हो सकती थी । लेकिन.. उसका मेरे साथ जान-पहचान बढ़ाना और मुझसे दोस्ती बढ़ाना मुझे पसंद नहीं था । किसी अंजान नयी आयी लड़की की बात से कोई इतना गुस्सा कैसे हो सकता था! जबकि, मैंने उसे जानबूझकर कुछ नहीं कहा था । आर्या का मेरी बात सुनकर अचानक गुस्सा हो जाना । और अगले दिन फ़िर माफ़ी मांगना; उसका ये अजीब बर्ताव मेरी समझ के बाहर था । पता नहीं वो ऐसा क्यूँ कर रहा था जबकि, सलोनी उसे अपना अच्छा दोस्त मानती थी । मैंने अपनी ज़िंदगी में कभी किसी लड़के से दोस्ती नहीं की । और अब अपने परिवार के साथ हुए हादसे के बाद मुझमें किसी से जुड़ने की हिम्मत नहीं थी; मैं बस अकेले रहना चाहती । इस बारे में मैं ना तो आर्या को कुछ कह सकती थी और नाहिं सलोनी से बात कर सकती थी । ऐसे में आर्या की ये बेपरवाह कोशिशें मुझे बेचैन कर देती । मुझे आर्या की बातें परेशान कर रही थी; मैं उससे दूर चले जाना चाहती थी । लेकिन मेरे माफ़ करने पर वो काफ़ी खुश था । और मैं.. उसकी खुशी छीनना नहीं चाहती थी; मैं किसी को कोई तकलीफ़ नहीं देना चाहती थी । इसलिए मैं.. हमेशा आर्या के सामने शांत बनी रहती ।
शाम 5 : 30 बजे । हमारी ऑफ़िस का समय ख़त्म होते ही मैं और सलोनी घर जाने के लिए निकल पड़े । "अरे हाँ, मैं तो पूछना ही भूल गई । क्या तुम्हारी आर्या से बात हुई ?" सलोनी ने मुझसे सवाल किया और मैंने हाँ में जवाब दिया । "तुम उसे गलत समझना । आर्या एक अच्छा लड़का है । असल में तुम्हें बेहोशी की हालत में देखने के बाद हमेशा उसे तुम्हारी चिंता लगी रहती है ।" सलोनी ने आर्या की बाजू लेते हुए, "जबसे उसे ये पता चला है, कि तुम उस नयन तारा पेलेस में रह रही हो तबसे वो तुम्हारे लिए औ़र भी ज़्यादा परेशान रहने लगा है । इसलिए प्लिज़ तुम उसकी बातों से नाराज़ मत होना ।" मुझे समझाया । आर्या मेरे लिए इतना परेशान क्यूँ था जबकि वो तो मुझे ठिक से जानता तक नहीं था । और मुझे बार-बार उस के बारें में बात करना पसंद नहीं था । मैं जानती थी कि आर्या एक अच्छा लड़ाका था । लेकिन उसका मेरे करीब आने की कोशिश करना मुझे पसंद नहीं था । कई बार आर्या की बातें सुनकर मैं तीलमिला उठती; मुझे तेज़ गुस्सा आता; मेरा ज़ोर से चिल्लाने का मन करता । मगर सलोनी की वजह से मैंने अपनी हर तीलमिलाहट, हर गुस्सा अपने अंदर कैद कर लिया । सलोनी आर्या की काफ़ी अच्छी दोस्त थी और मैं.. नहीं चाहती थी कि मेरी वजह से उनकी दोस्ती में मुश्किलें आए । हर बार मेरे सामने जब भी आर्या की बात निकलती मैं खामोश होकर सलोनी की बातें सुनती रहती । और कभीकभार जवाब में 'हां' 'ना' या 'ठिक है' कह देती । युंही बातें करते हुए हम महल तक पहुँच गए । सलोनी को काम से जल्दी जाना था । इसलिए मैं बिना सलोनी की बात का जवाब दिये उसे "बाय.!" कहकर अंदर महल में चली गई ।
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