Chapter 7 - Pakal (Part 1)

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सुबह 7 : 00 बजे ।

सुबह जब डर से मेरी आँखें खुली तब मैं नीचे होल में दरवाज़े के पास ज़मीन पर पड़ी थी । कल रात हुए हादसे के बाद मेरा शरीर अब तक डर से काँप रहा था । लेकिन, मुझे ऑफ़िस तो जाना ही था । क्योंकि ऐसा ना करने पर सलोनी को शक हो जाता । और फ़िर ख़ुद पर ज़ोर देते हुए जाने के लिए तैयार होकर मैं रोज़ की तरह सलोनी के साथ ऑफ़िस पहुँची । मैं ऑफ़िस में अपनी जगह पर बैठकर अपना काम कर रही थी । तभी सलोनी वहाँ आयी । "हेय पलक, मे'म ने तुम्हे केबिन में बुलाया है ।" सलोनी ने आते ही कहा और अपने काम में लग गई । उसके दूसरे ही पल मैं सलोनी के कहने पर मे'म की केबिन में पहुँची । मेरे अंदर जाते ही, "आओ... पलक । मैं तुम्हारी ही राह देख रही थी ।" मे'म ने कहा और मैं उनके पास जाकर खड़ी रही । मे'म ने सामने कुर्सी की तरफ़ इशारा करते हुए, "बैठो । और पहले इसे देखों ।" कहा और मेरे बैठते ही मुझे एक फाईल दी, जिसमें पैड़-पौधें और पृथिवी के बहुत सारी तस्वीरें थी । मैने फाईल ध्यान से देखते हुए, "मगर.. इन सबका मुझे क्या करना होगा, मे'म ?" धीरे से सवाल किया । "इस फ़ोटोज़ को ध्यान से देखों । और बताओ कि तुम्हे इनमें क्या नज़र आता है ?" मे'म ने मेरी तरफ़ देखकर मेरी परीक्षा लेते हुए सवाल किया । मैंने उन तस्वीरों को देखते हुए गहरी सोच के बाद, "मुझे इनमें कुछ इन्सानों की समझदारी के कारण पैंड़-पौधों, हरियाली और इस पृथ्वी की सुन्दरता नज़र आ रही है । तो वहीं दूसरी तरफ़ कुछ नासमझ लोगों की वजह से प्रदूषण, धुएँ, गंदगी और प्रकृति की भारी शक्ति ख़त्म होती नज़र आ रही है ।" सवाल का जवाब देते हुए धीरे से कहा । "अमेज़ीग, पलक । मैं तुमसे.. कुछ ऐसा ही सुनना चाहती थी । असलमें मैंने तुम्हे हमारी एक मेगज़ीन पर काम करने के चूना है । तुम्हें अगले सोमवार तक इस मेगज़ीन के लिए नेचर से जुड़ीं समस्याओ, उसके उपाय और उससे होनेवाले फायदे पर एक आर्टिकल लिखना है ।" मे'म ने मेरी तरफ़ देखकर खुशी से मुस्कुराते हुए कहा । "लेकिन... मे'म.. आप ये आर्टिकल अकेले मुझे क्यूँ देना चाहती हैं ? कहीं मुझसे कोई भूल हो गई तो.." मैं उनकी तरफ़ देखकर हिचकिचाते हुए नीची आवाज़ में कहा । "मुझे पूरा यक़ीन है, तुम ये कर सकती हो । अब ये तुम पर है कि तुम.. मेरे यक़ीन को सही साबित करोगी या मुझे निराश ।" मे'म ने मेरी तरफ़ देखकर भरोसे के साथ कहा । "ठिक हैं, मे'म । अगर चाहती हैं तो मैं अपनी पूरी कोशिश करूँगी ।" मैंने मेडम के यक़ीन पर भरोसा करते हुए हल्की-सी उलझी हुई मुस्कुराहट के साथ कहा । "ठिक है, तो फिर तुम इस पर आज से ही काम शुरू कर सकती हो । और अगर तुम्हे कोई हेल्प चाहिए या तुम्हे कोई जानकारी की जरूरत पड़े, तो तुम ऑफ़िस की लाईब्रेरी या स्टोर-रूम में जा सकती हो । वहाँ तुम्हे हर तरह की बूक्स, मेगज़ीन्स और पुराने न्यूज़पेपर्स मिल जाएंगे ।" मे'म ने मेरी तरफ़ देखकर कहा । मैने धीरे से कहा, "ठिक है, मे'म ।" और उठकर दरवाज़े की तरफ़ बढ़ गई । "और हाँ, ऑल द बेस्ट ।" मे'म ने मेरे जाने से पहले थोड़ी ऊँची आवाज़ में कहा । उनकी आवाज़ सुनते ही मैंने मुस्कुराते हुए मुड़कर उनकी तरफ़ देखा और बाहर चली गई । उस वक्त मेडम का मुझ इतना भरोसा देखकर मुझे अच्छा लग रहा था । तो वही दूसरी तरफ़ मुझे ये डर भी कि कहीं मेरी वजह से उनका ये भरोसा टूट न जाए । लेकिन अब किसी भी तरह मुझे ये भरोसा कायम रखना था ।

दोपहर 1:30 बजे ।

हमारा लंन्च ब्रेक ख़त्म हुए बस कुछ ही समय हुआ था । इस बीच मैं सलोनी को हमारे नये आर्टिकल और मेगज़ीन के बारें में सब बता चूकी थी । सलोनी ये जानकर बहुत खुश थी कि मे'म मुझसे बहुत खुश हैं और वो मुझ पर काफ़ी भरोसा करती हैं । सलोनी से बात करने के बाद अब मैं अपने नये आर्टिकल पर काम करने कि लिए तैयार हो गई । लेकिन मुझे ये समझ नहीं आ रहा था कि मैं इस आर्टिकल की शुरूआत कहाँ से और कैसे करूँ । इसलिए मैंने शाईन ऑफ़ भारत और दूसरी कंम्पनियों की मेगज़ीन देखने के लिए स्टोर-रूम पहुँची । ऑफ़िस का स्टोर-रूम उसी फ्लोर पर, सीढ़ियों के पास था । बाहर सीढ़ियों के पास ऑफ़िस के दरवाज़े के साथ दो औऱ दरवाज़े बनें हुए थे । जिसमें दाई तरफ़वाले दरवाज़े पर स्टोर-रूम और बाएवाले पर लाईब्रेरी लिखा था । बहार जाते ही मैं स्टोर-रूम वाले दरवाज़े के पास पहुँची और उस दरवाज़े को खोलने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया । लेकिन वो दरवाज़ा अटक गया था और खुल नहीं रहा था । मैंने उसे खोलने की कई कोशिशें की मगर वो सब नाकाम रही । और तब.. मैंने सलोनी को हेल्प के लिए बुलाना चाहिए । लेकिन इससे पहले मैंने एक आख़िरी कोशिश की । और... हैरानी की बात ये थी कि इस बार वो दरवाज़ा काफ़ी आसानी से खुल गया । लेकिन उससे भी अजीब बात ये थी कि उस वक्त दरवाज़ा खोलने के लिए मुझे ज़रा भी ज़ोर नहीं लगाना पड़ा । दरवाज़े का खुल जाना मेरे लिये अच्छी बात थी । मगर इसी बात के कारण मेरा मन मुझे अंदर जाने से रोक रहा था । लेकिन.. मुझे अंदर जाना ही पड़ा । अंदर जातें ही मैंने कमरे की लाईट ऑन की और अपनी काम की चीज़ें ढूँढना शुरू कर दिया । मैंने वहाँ रखी हर मेगज़ीन को एक-एक करके देखना शुरू किया । उसके बाद मैं काफ़ी देर तक मेगज़ीन्स देखते हुए उनके पन्ने पलटती रही । तभी किसी मेगज़ीन में छपी तस्वीर मेरी नज़रें पड़ते ही एकदम से चौंक गयी । उस किताब में मैंने उसी महल की तस्वीर देखी, जहाँ मैं रह रही थी । शायद ये वही एड थी जिसके बारे में सलोनी मुझे पहले ही बता चूकी थी । लेकिन उस तस्वीर को देखते ही मेरे अंदर का डर मुझे फ़िर बेचैन करने लगा । उस वक्त मेरे ज़ेहन में बस उसी महल की बातें दौड़ रही थी । मैं बस.. उस महल के अतीत के बारें में पता करना चाहती थी, जिससे शायद मेरा डर कम हो सकता था । उस जगह पर हुए हादसों के किस्सें सलोनी मुझे पहले ही सूना चूकी थी । और अब मैं.. उन हादसों के पीछे का रहस्य पता करना चाहती थी । और फ़िर मैंने तुरंत उन हादसों के बारे में पुराने न्यूज़पेपर में देखना शुरू कर दिया । मैं इस बात को लेकर इतनी परेशानी हो चूकी थी कि मैंने एक-एक करके कई सारे न्यूज़पेपर देख लिए थे । लेकिन मुझे ऐसा कुछ नहीं मिला, जो मेरी इस उलझन को सुलझा सके । उस ख़बर की खोज में मैं कमरे के हर कोने तक जा पहुँची थी । लेकिन, मैं निराश हो गयी; मुझे वहां कुछ नहीं मिला । तभी मुझे एक और कपबर्ड नज़र आया, जिसमें कई सारे पुराने न्यूज़पेपर्स, फाईल और कागज़ात पडे़ हुए थे । उसे देखते ही तेज़ी से उस तरफ़ जा पहुँची और धूल हटाते हुए मैंने अपनी खोज शुरू कर दी । कुछ देर बाद अचानक एक न्यूज़पेपर कहीं से मेरे ऊपर गीर पड़ा । और.. उस पर नज़र पड़ते ही मेरी धड़कनें तेज़ हो गयी । '16th - मे - 1993' ये वही न्यूज़ थी, जिसे मैं.. पागलों की तरह ढूँढ रही थी । मैंने उस पेपर में महल के सामने पुलिस और एक एम्बुलेंस की तस्वीर छपी देखी । साथ ही उस तस्वीर में कई सारी लाशें सफेद कपड़ों में ढककर नीचे ज़मीन पर रखी हुई थी । उस तस्वीर की ऊपरी ओर बड़े - लाल अक्षरों में लिखावट, 'महल में छुट्टीयाँ मनाने आएँ चार युवा लड़कों की रहस्यमय तरीक़े से मौत । लड़कों कि कोई जानकारी नहीं ।' पड़ते ही मैं औऱ परेशान हो उठी । लेकिन तभी उसी पल अचानक मेरे आसपास की सभी चीज़ें हिलना शुरू हो गयी । मैंने घबराहट में पलटकर चारों तरफ़ देखा । मगर चीज़ों के पूरी जगह के हिलते ही डर के मारे मेरे हाथ से पेपर छुटकर गिर गया । और तभी अगले ही पल मैने अपने सामने वहीं काला साया देखा । ये वही था, जिसे मैंने उस दिन सुबह देखा था । उसका वो डरावना चेहरा मेरे ज़हन में अब भी ज़िन्दा था । वो.. तो.. बिल्कुल मेरे पास; मेरे सामने खड़ा था । उसका ज़्यादातर चेहरा और शरीर उसके काले कपड़ो से ढ़का था । मगर उसे अपने सामने देखते ही डर और घबराहट के मारे मेरी धड़न रूक गई । ना तो मैं कुछ कर पा रही थी और नाहिं मेरे गले से कोई आवाज़ निकल पा रही थी । उस वक्त मैं बस किसी बेजान पुतले की तरह खड़ी होकर उसे देख रही थी । तभी अगले ही पल उसने काफ़ी रहस्यमय तरीक़े से अपना बायाँ हाथ हवा में लहेराया । उसके ऐसा करते ही कमरे में काफ़ी तेज़ी से हवाएँ तूफ़ान उठाने लगी । वहां पड़े सभी कागज़ात तेज़ हवा में उड़कर मुझसे टकराने लगे । उस तूफ़ानी हवा ने कमरे में रखें हुए सभी कागज़ात तहसनहस कर दिए । कमरे की हर एक चीज़ ऊपर - नीचे हो गयी । और तभी.. उन उड़ते हुए कागज़ों से एक पन्ना मेरे चहरे से आकर लिपट गया । उस समय मुझे लग रहा था, जैसे ये काग़ज़ का टुकड़ा मेरा दम घोटनेवाला था ।' लेकिन ऐसा नहीं हुआ; तीन - चार कोशिशों के बाद वो टुकड़ा मेरे चहरे से हट गया । मगर.. उसी काग़ज़ में छपी ख़बर ने मेरे होश उड़ा दिए । ये टुकड़ा उसी पेपर का था, जिसमें उन चार लड़कों के बारें में लिखा था । लेकिन अब.. उस पेपर की ख़बर अचानक बदल चूकी थी । उस तस्वीर में तीन की जगह बस एक लाश की तस्वीर थी और उसके ऊपर उसी तरह के लाल अक्षरों में लिखा था कि, 'शहर में नयी रहने आयी लड़की, पलक की रहस्यमय तरीक़े से मौत ।' जिसे देखते ही मेरी आँखें बड़ी हो गयी । मेरे दिमाग़ में एक तेज़ सनसनाहट हुई और मुझे कुछ करने का होश आया । तब.. मैंने तुरंत अपने कदमों को पीछे खीचते हुए वहां से भागने की कोशिश की ।डर और परेशानी में कांपते पैरों को उठाकर मैं बाहर जाने का दरवाज़ा ढूंढ ही रही थी कि एक औ़र काग़ज़ का टुकड़ा मेरे पैर से आकर लिपट गया । मैंने झट से अपने घुटनों को मोड़कर बैठते ही उस काग़ज़ के टुकड़े को अपने पैर से दूर किया । तब अगले ही मेरी नज़रें किसी मेगज़ीन के फटे पन्ने पर गयी । ये वही मेगज़ीन थी, जिसमें उस महल के बारें में एड छपी थी । लेकिन दूसरी बार देखने पर उस पन्ने की स्याही अपना रंग बदल चूकी थी । मेगज़ीन की चमकीली रंगीन स्याही डरावने रंगों में बदल चूकी थी । उसमें छपी महल की खूबसूरत तस्वीर, अब अचानक डरावना और भूतियाँ रूप ले चूकी थी । और ऊपर की तरफ़ उसी लाल अक्षरों में, 'यहाँ से चली जाओ । वरना अगले दिन यहां तुम्हारी तस्वीर छपी होगी ।' लिखा गया था । ये सभी खौफ़नाक घटनाऐं मेरी लिए खुली चेतावनी थी । और मैं उस चेतावनी को समझते ही झट से उठकर वहां से निकलने का रास्ता खोजने लगी । लेकिन.. मुझे बाहर जाने का दरवाज़ा नहीं मिल रहा था । मैं उस भुलभुल्या से बाहर जाने के लिए परेशान होकर भाग - दौड़ कर रही थी । लेकिन.. बाहर का रास्ता कमरे से ग़ायब हो चूका था, जैसे वो कभी बना ही नहीं था । तभी डर से कांपते और लड़खड़ाते हुए मेरी नज़र एक दूसरे उड़ते हुए पन्ने पर पड़ी, जिस पर चेतावनी के लाल अक्षर बने हुए थे । 'इस महल से निकल जाओ ।' उन अक्षरों को पढ़ते ने अगले ही पल मुझे एक दूसरे पन्ने पर भी इसी तरह की चेतावनी नज़र आयी । और फ़िर मुझे समझ आया कि वहाँ उड़ रहें हज़ारों पन्ने इसी तरह की डरावनी और खौफ़नाक चेतावनीयों से भरे थे । अब ये बात मेरे लिए चेतावनी ना रहकर जानलेवा धमकी बन चूकी थी । मैं बहुत डरी हुई और परेशान थी लेकिल जि तोड़ कोशिशों के बाद भी मैं उस कमरे से बाहर नहीं निकल पायी । मेरे लिए जैसे बाहर निकलने के रास्ते बंध हो चूके थे । मेरा दिमाग़ काम करना बंध होने लगा । मैं ख़ुद पर क़ाबू नहीं रख पायी और आख़िरकार मैंने अपने होश भी खो दिए । मेरी आँखों के सामने अँधेरा छातो ही मैं बेहोश होकर ज़मीन पर गीर पड़ी । दोपहर 2 : 15 बजे । अपनी आँखें खोलते ही, "पलक..? पलक..! क्या हुआ तुम्हे ? ये सब कैसे हुआ ?" मैंने सलोनी को अपने पास परेशान बैठकर कहते सुना । अपनी आँखें खोलते ही मैंने हैरान होकर चारों तरफ़ देखा । इस डरावनी घटना के बाद सलोनी के पास होने के बाद भी मेरा डर मेरा पीछा नहीं छोड़ रहा था । लेकिन अपने चारों तरफ़ देखकर मैं पहले से ज़्यादा परेशान हो गई । होश में आने पर मैंने ख़ुद को सलोनी के साथ ऑफ़िस में अपनी जगह पर बैठे पाया । "पलक, तुम ठिक तो हो..? तुम्हे क्या हो गया था ?" सलोनी ने परेशान होकर सवाल किया और मुझे सहारा देते हुए ठिक से बैठने में हेल्प की । "हाँ, मैं ठिक हुँ । ले...किन... क्या.. तुम मुझे वहां से उठाकर बाहर ले आई ?" मैंने काँपती हुई आवाज़ में हिचकिचाते हुए सवाल किया । "मैं नहीं, आर्या । तुम उसे स्टोर-रूम के बाहर बेहोश पड़ी मिली । पर तुम ये क्या बोलें जा रही हो । बाहर.. लायी..!? लेकिन तुम अंदर गई ही कब थी..?" सलोनी ने परेशानी में सवाल किया । "मैं..ने तुम्हे बताया था कि मैं स्टोर-रूम जा रही हुँ ।" मैंने चौकते हुए धीमे से कहा । "हाँ, और मैं भी इसी लिए मे'म के पास गई थी । क्योंकि स्टोर-रूम का दरवाज़ा लोक है, और उसकी किस मे'म के पास रहती है ।" सलोनी ने हैरान होकर मुझे समझाते हुए कहा । आर्या ने हमारे पास आते ही, "थेन्क गोड कि तुम्हे होश आ गया । मैं तो तुम्हे वहां बेहोश पड़ा देखकर तो मेरी साँस रूक गयी थी । और हाँ, ये तुम्हारे लिए ।" परेशान होकर कहा और पानी की बोतल मेरी तरफ़ आगे बढ़ाई । "शुक्रिया..!" मैंने धीरे से कहा और सलोनी ने उसके हाथ से बोतल लेकर मुझे दी । "क्या अब तुम ठिक हो ?" आर्या ने मेरी तरफ़ देखते हुए परेशान होकर सवाल किया । और मैंने धीरे से सर हिलाकर हाँ में जवाब दिया । अब मैं उस ख़तरे से दूर थी । लेकिन सलोनी की बातों ने मुझे औ़र परेशान कर दिया था । मैं बहुत परेशान थी कि दरवाज़ा लोक होने के बाद भी मैं बिना चाबियों के अंदर जा पायी ! और स्टोररूम में बेहोश होने के बाद मैं अपनेआप बाहर आ गयी ! पता नहीं मेरे साथ हो रहें इन हादसों कि पेपर में छपी उस खबर के साथ ऐसी कौनसी कड़ी थी, जो हमें एक साथ जोड़ रही थी ।

एपिसोड्स
1 Chapter 1 - Palak
2 Chapter 2 - Palak (Part 1)
3 Chapter 2 - Palak (Part 2)
4 Chapter 3 - Palak (Part 1)
5 Chapter 3 - Palak (Part 2)
6 Chapter 4 - Palak (Part 1)
7 Chapter 4 - Palak (Part 2)
8 Chapter 5 - Palak (Part 1)
9 Chapter 5 - Palak (Part 2)
10 Chapter 6 - Palak
11 Chapter 7 - Pakal (Part 1)
12 Chapter 7 - Palak (Part 2)
13 Chapter 7 - Palak (Part 3)
14 Chapter 8 - Palak
15 Chapter 9 - Palak (Part 1)
16 Chapter 9 - Palak (Part 2)
17 Chapter 10 - Palak (Part 1)
18 Chapter 10 - Palak (Part 2)
19 Chapter 11 - Chandra (Part 1)
20 Chapter 11 - Chandra (Part 2)
21 Chapter 12 - Palak (part 1)
22 Chapter 12 - Palaka (part 2)
23 Special Announcement
24 Chapter 13 - Chandra (part 1)
25 Chapter 13 - Chandra (part 2)
26 Chapter 14 - Palak (part 1)
27 Chapter 14 - Palak (part 2)
28 Chapter 15 - Chandra (part 1)
29 Chapter 15 - Chandra (part 2)
30 Chapter 16 - Palak (part 1)
31 Chapter 16 - Palak (part 2)
32 Chapter 16 - Palak (part 3)
33 Chapter 16 - Palak (part 4)
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35 Chapter 17 - Chandra (part 1)
36 Chapter 17 - Chandra (part 2)
37 Chapter 18 - Palak (part 1)
38 Chapter 18 - Palak (part 2)
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40 Chapter 19 - Chandra (part 2)
41 Chapter 20 - Palak
42 Chapter 21 - Chandra ( part 1)
43 Chapter 21 - Chandra (part 2)
44 Chapter 21 - Chandra (part 3)
45 Chapter 22 - Palak. (Part 1)
46 Chapter 22 - Palak (part 2)
47 Chapter 22 - Palak (part 3)
48 Chapter 23 - Chandra (part 1)
49 Chapter 23 - Chandra (part 2)
50 Chapter 23 - Chandra (part 3)
51 Chapter 24.. Palak (part 1)
52 Chapter 24 - Palak (part 2)
53 Chapter 24 - Palak (Part 3)
54 Chapter 25 - Chandra (part 1)
55 Chapter 25 - Chandra (part 2)
56 Chapter 25 - Chandra (part 3)
57 Chapter 25 - Chandra (Part 4)
58 Chapter 25 - Chandra (part 5)
59 Chapter 26 - Palak (Part 1)
60 Chapter 26 - Palak (Part 2)
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Chapter 7 - Palak (Part 3)
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Chapter 25 - Chandra (part 2)
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Chapter 25 - Chandra (part 3)
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Chapter 25 - Chandra (part 5)
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