दोपहर 12:30 बजे । घर पहुंचने के कुछ देर बाद मैंने और सलोनी ने मिलकर अपना काम शुरूकर दिया । "पलक ! क्या तुमने यहाँ का कित्चन देखा ?" सलोनी ने आगे बढ़ते हुए सवाल किया । "नहीं, मैंने नहीं देखा ।" उसके पीछे जाते हुए मैंने कतराते हुए कहा । सिढ़ियों के बिच से सीधे आगे बढ़ते हुए, बाई तरफ़ एक बड़ा दरवाज़ा बना हुआ था । और सलोनी के पीछे चलते हुए हम उसी दरवाज़े को खोलकर अंदर किचन तक जा पहुँचें ।ये महल भले ही ऐतिहासिक हो । भले ही कई सो सालों पेहले बना हो। लेकिन यहां का किचन काफ़ी फैंसी और आधुनिक सुविधा से लैस था। यहां का किचन सच में काफ़ी बड़ा था । "तो ये है तुम्हारा रोयल किचन ।" सलोनी ने अंदर जाते ही, "ये महल ज़रूर पुराना है। लेकिन यहां की सारी सुविधाएं बिल्कुल हाईफाई है।" पलटकर मेरी तरफ़ देखकर मुस्कुराते हुए कहा । "ठीक कहा तुमने। क्या ये सब पैलेस के मालिक ने करवाया था?" गहरी सोच के साथ मैंने सवाल किया। "हां। असल में, मिस्टर. शर्मा ख़ुद यहां रहने आने वाले थे। इसलिए उन्होंने यहां की मरम्मत कराई। और सभी सुविधाएं उपलब्ध कराई। वो एक दो बार यहां रहने भी आ चुके हैं। लेकिन फिर अचानक उन्होंने अपना मन बदल दिया।" मेरे सवाल का जवाब देते हुए सलोनी खिड़कियाँ खोलने लगी, जो दरवाज़े के बिल्कुल सामने की तरफ बनी हुई थी । क्या मिस्टर. शर्मा ने गाँव वालों की बातों में आकर अपना फ़ैसला बदल दिया? या उन्होंने भी यहां कोई ऐसी चीज़ को मेहसूस किया होगा जिससे वो अपना फ़ैसला बदलने को तैयार हो गए?अंदर जाते ही चमकते सफ़ेद संगमरमर से बने फर्श पर, अंदर कमरे के बीचोंबीच चिमनी के तले शानदार कूकींग टेबल मेरे सामने था, जिस पर चार बर्नर वाला बड़ा स्टॉव रखां हुआ था । सामने कूकींग टेबल के पीछे की तरफ़ लंबा किचन प्लेटफ़ॉर्म था, जो लाल संगमरमर से बना था । उसीके उपर दीवार से भरते हुए कई सारे हल्के-सुनहरे और सफ़ेद रंग के कपबर्ड्स बने हुए थे । दाई तरफ़ प्लेटफ़ॉर्म के आख़िर में एक बड़ा बेसीन लगाया गया था और उसके ऊपर बड़ी सी खिड़की बनी हुई थी । तो वहीं दरवाज़े के दाई तरफ़ एक बड़ा सा रेफ्रिज़रेटर रखां हुआ था । "पलक, तुम फ्रिज़ का बटन ऑन कर दो । क्योंकि उसे ठंडा होने में थोड़ा टाईम लगेगा ।" सलोनी ने अंदर जाते ही कहा और सारा सामान वहाँ के लंबे प्लेटफ़ॉर्म पर रख दिया । उसके बाद फ्रिज़ का बटन ऑन करते ही मैं भी सलोनी के साथ किचन के कामों में जुट गई । सबसे पहले वहां की अच्छी तरह से सफ़ाई करने के बाद हमने सारा सामान खोलकर चीज़ों को सही जगह पर रखना शुरू किया । और फ़िर हमने ग्रोसरी का सामान निकालना शुरू किया । "पलक, एक काम करते हैं । मैं इन सब चीज़ों को जार में डालती हूँ, तुम इन्हें शेल्फ में रखना शुरू करो ।" सलोनी ने जल्दी से पेकेट खोलकर चीज़ों को जार में भरना शुरू कर दिया । सलोनी चीज़ों को जार में भरकर किचन के बीच बनें कूकींग टेबल पर रखती जा रही थी और मैं जार के ढक्कन बंध करते ही उन्हें दायी तरफ़ के कपबर्ड में रखती जा रही थी । मैं एक-एक करके लगभग सभी जार अंदर शेल्फ में रख चूकी थी । अब बस कुछ ही औ़र जार रखना बाकी था । तब आख़िरी बचा जार लेने के लिए मैं पीछे मुड़ी और जार उठाकर पलटते ही सामने देखकर मैं बिल्कुल हैरान रह गयी । मैंने देखा कि शेल्फ से वो सारे जार अचानक गायब हो गए थे, जो मैंने कुछ ही समय पहले यहां रखें थे । वो जार बस एक मिनट से भी कम समय में गायब हो गए थे ! इतने सारे जार एक ही पल में यूं हवा में गायब कैसे हो सकते थे !? मेरे लिए ये बात काफ़ी बेचैन करनेवाली थी । इस हादसे ने मुझे काफ़ी परेशान कर दिया था । क्योंकि यहाँ मौजूद उस अंजान साये को मैंने पहले ही दिन महसूस कर लिया था । "स..सलोनी !" अपनी हड़बड़ाहट को छुपाते हुए, "तुमने वो जार देखे जो मैंने यहाँ शेल्फ में रखें थे ?" मैंने धीरे से सवाल किया । "नहीं, मैंने नहीं देखे ।" सलोनी के इस जवाब ने मुझे सोच में डाल दिया । "अरे... वो देखों तुम्हारे जार ।" सलोनी ने बेसीन की तरफ़ इशारा करते हुए कहा । "ले..किन... मैंने तो ये जार यहाँ... तो ये वहां कैसे...!?" अपनी परेशानी और हड़बड़ाहट में मेरे मुँह से निकल गया । "अरे... तुम वहाँ रखकर भूल गई होगी ।" सलोनी ने बात को हल्के में लेते हुए मुस्कुराकर कहा । पर मुझे... याद था कि मैंने वो सभी जार यहीं इसी शेल्फ पर रखें थे । मैं इतनेे सारे जार को इतना दूर नहीं रख सकती थी । मगर फ़िर वो वहाँ कैसे पहुँचें... मैं बस एक पल के लिए पीछे मुड़ी और इतनी जल्दी इतना सब कैसे हो सकता था ?! लेकिन मेरे साथ जो भी हो रहा था वो सब मेरी समझ के बाहर था । मगर जो भी हो मुझे ये काम फिरसे करना था । इसलिए मैं वहां जाकर सारे जार इस तरफ ले आई । और उन्हें फ़िर से अंदर शेल्फ में रखना शुरू कर दिया । कुछ ही देर में आख़िरकार उन सभी जार को अंदर रखकर मैंने शेल्फ का दरवाज़ा बंधकर दिया । मगर तभी... शेल्फ के दरवाज़े पर लगे शीशे में अचानक नज़र आयी किसी की हल्की सी काली परछाईं ने मुझे चौंका दिया । 'हमारे सिवा यहां कोई औ़र भी है, जो हमें देख रहा है ।' इस सोच ने मुझे और भी ज़्यादा डरा दिया । उस परछाईं को देखते ही मैं डर के मारे लड़खड़ाते हुए कदमों से पीछे हट गई । वो जो कोई भी था, मैं बस उसकी बहोत ही हल्की सी परछाईं देख पायी थी । लेकिन फिर भी मैं बहोत डर गयी थी । इसी बीच पीछे हटते हुए मैं पीछे कूकींग टेबल से टकरा गयी और घबराहट में मैंने पीछे मुड़कर देखा । लेकिन वहाँ... कोई नहीं था । और जब मैंने फ़िर आगे पलटकर देखा । मगर तब तक शीशे में उस परछाईं का अक्षत भी गायब हो चुका था । उस वक्त मैं बहोत ही हैरान और डरी हुई थी । मगर मैंने सलोनी को इस बात का पता नहीं चलने दिया । क्योंकि मैं जानती थी कि सलोनी को इस बात का पता चलते ही वो बिना कुछ सोचे मुझे अपने साथ ले जाती और अपने साथ उन दूसरी लड़कियों को भी मुश्किल में डाल देती । "स..सलोनी..!" ख़ुद को संभालते हुए, "तुम बहोत काम कर चूकी । अब तुम बाहर जाकर कुछ देर आराम करो । व..वैसे भी हमें काम करते हुए काफ़ी समय हो चूका है । मैं हमारे लिए चाय बनाकर लेकर आती हूँ ।" मैंने कांपती हुई आवाज़ में ही सही मगर सलोनी को बाहर जाने को कहा। ताकि सलोनी को यहां से दूर रख पाऊं। "ठिक हैै ।" मुस्कुराकर जवाब देते ही, "मैं बस ये सब्जियां फ्रिज में रख देती हूँ ।" सलोनी अपने काम में जुट गई । "पलक, मेरा काम ख़त्म हो गया है । मैं होल में जाकर बैठती हूँ । तुम भी जल्दी आओ । ओके?" अपना काम ख़त्म करते ही सलोनी नेे कहा । और मैंने सहमति में अपना सर हिलाया । "और हाँ, अगर कुछ काम हो तो बुला लेना ।" सलोनी ने जाते हुए आख़िरी बार मेरी तरफ़ पलटकर कहा और बाहर चली गई ।
शाम 5 : 30 बजे ।
चाय और कुछ बिसकीट्स लेकर सलोनी के पास पहुंचने पर मैंने देखा कि उसने होल भी बिल्कुल साफ़ कर दिया था । उसने वहाँ की हर चीज़ पर ढ़के कपड़ों को निकालकर चीज़ों को सही जगह पर सज़ा दिया था । कमरे में आगे की तरफ़ एक बड़ा - सा टेलिविज़न तो उसके बिल्कुल सामने की तरफ़ थोड़ी दूरी पर बड़ा - सा सोफा रखा गया था । वही कमरे में बाई तरफ़ दीवार से कुछ दूरी पर एक काँच का टेबल और चार कुर्सियाँ रखी गई थी । उस बड़े - से खूबसूरत कमरे में चारों तरफ़ कई सारी खिड़कियाँ बनी हुई थी, जिन में से सलोनी ने कुछ खिड़कियाँ खोल रखी थी और वहाँ से काफ़ी अच्छी हवा चल रही थी । मेरे वहाँ पहुंचने तक सलोनी सारा काम ख़त्म चूकी थी । और टेलिविज़न ऑन करके सोफा पर बैठी थी । "हेय.. पलक, कैसा लगा कमरा ? बिल्कुल रोयल होल की तरह लग रहा है ना ?" सलोनी ने मुझे देखते ही खुश होकर मुस्कुराते हुए कहा । सलोनी के पास बैठते हुए, "बहुत खूबसूरत । लेकिन तुमने ये सब क्यूँ किया ? मैंने तुम्हें आराम करने भेजा था, काम करने नहीं ।" मैंने चाय की ट्रे हमारे बीच सोफा पर रख दी और हल्की मुस्कुराहट के साथ कहा । "हाँ, लेकिन मुझे लगा कि जब हम साफ़ - सफ़ाई कर ही रहें है तो इस कमरे को छोड़ दे । इसलिए मैंने इसे भी साफ़ कर दिया । वैसे मुझे तो बहुत भूख लगी है । चलों कुछ खाते हैं ।" सलोनी ने मेरी बात का जवाब देते हुए मुस्कुराकर कहा । "माफ़ करना, लेकिन बिसकीट्स के सिवा कुछ नहीं है ।" मैंने मायूस होकर धीरे से कहा । "अरे.. इट्स ओके । तुम बस पीछे से मेरी वो बेग़ दो ।" सलोनी ने मेरी तरफ़ देखकर कहा और मैंने वो बेग़ उसके हाथ में पकड़ाई । सलोनी ने उस प्लास्टिक बेग़ से समोसें निकालकर प्लेट में रखें, "ये तुम्हारे लिए ।" उसे मेरी तरफ़ बढ़ाते हुए कहा । "शुक्रिया । लेकिन.. तुमने ये कब लिया ?" मैंने सलोनी की तरफ़ देखकर धीरे से कहा । "जब तुम ग्रोसरी शॉप में थी तब ।" सलोनी ने मुस्कुराकर कहा । और तभी.. अचानक कित्चन में हुईं अजीबोगरीब हादसे की यादें एक बार फ़िर मेरे झेहन में जाग उठी और मैं फ़िर बेचैन हो गयी । मगर मैंने अपना ये डर चेहरे पर नहीं आने दिया । सलोनी के साथ होने से मुझे इस जगह से डर नहीं था । मगर सलोनी के जाने के बारें में सोचते ही मेरा डर फिरसे लौटने लगता । पर मैं.. सलोनी को यहाँ नहीं रोक सकती थी । क्योंकि यहाँ रहने से उसे भी खतरा हो सकता था । "हेय..! पलक..? कहाँ खो गई ? इसे जल्दी से खा लो वरना ये समोसें ठंडे हो जाएंगे । तुम्हें पता है ये यहाँ के फेमस और मेरे फेवोरीट जगह के समोसें है ।" सलोनी ने मुझे चुपचाप बैठा देखकर मुझे मनाते हुए मुस्कुराकर कहा । हम दोनों ने मिलकर खाना शुरूकर दिया ।
शाम 6 : 00 बजे ।
अचानक घड़ी में समय देखते ही, "सलोनी, बहुत देर हो चूकी है । मुझे लगता है तुम्हें अब जाना चाहिए ।" मैंने धीरे से कहा । "इट्स ओके । तुम मेरी फ़िक्र मत करो । मैं बाद में चली जाऊंगी । लेकिन पहले हमें दूसरे काम भी पूरे करने है ।" सलोनी ने मेरी बात का जवाब देते हुए, लापरवाही से मुस्कुराकर कहा । "कोई बात नहीं । वो सब मैं ख़ुद कर लुंगी । तुम.. मेरी चिंता मत करो । और, वैसे भी हम कल मिलने वाले हैं ।" मैंने सलोनी को समझाते हुए धीरे से कहा । "ठिक है, तो फ़िर.. मैं चलती हूँ । वैसे भी.. कल तुम्हारा पहला दिन है । तुम्हें जल्दी सोना चाहिए । और हाँ, हम कल थोड़ा जल्दी ओफ़िर चलेंगे । ठिक है ?" सलोनी ने मेरी तरफ़ देखते हुए कहा और मैंने धीरे से सर हिलाकर सहमती दी । सलोनी को गए काफ़ी समय बित चूका था । लेकिन मैं अब भी वहीं टेलिविज़न के सामने बैठी थी । मैं कल रात हुए अजीब हादसे को लेकर पहले ही परेशान थी । लेकिन आज.. मेरे साथ जो हुआ उस बात ने मुझे औ़र भी ज़्यादा डरा दिया था । इसलिए आज रात मैं उस कमरे में सोना नहीं चाहती थी । और वहाँ जाने से बचने के लिए मैं आज यहीं होल में सोनेवाली थी ।
शाम 7 : 30 बजे ।
मैने सलोनी के साथ नाश्ता करने के बाद मेरा खाना खाने का ज़रा भी मन नहीं था । इसलिए जल्दी से उपर कमरे में जाते ही मैं अपने हाथ - मुँह धोने के बाद वापस नीचे होल में लौट आई । थोड़ी देर बाद टेलिविज़न और लाईट ऑफ़ करते ही मैं वहीं सोफा पर लेट गई । और कुछ देर की कोशिश के बाद आख़िरकार मुझे नींद आ ही गई ।
रात 11 : 00 बजे ।
रात में अचानक मेरी आँखें खुलने पर मैंने टेलिविज़न ऑन पाया । और मैं हैरान हो उठकर बैठ गयी । लेकिन अगले ही पल डर के मारे मेरी आँखें पूरी तरह से खुल गई । और तब.. टेलिविज़न की स्क्रिन पर बनें अक्षरों को पढ़कर मेरे होश उड़ गए । 'अगर अपनी जान बचाना चाहती हो तो यहाँ से चली जाओ । वरना तुम्हारा बचना नामुमकिन है ।' इन अक्षरों को पढ़ते ही मैं डर के मारे झटके से उठ खड़ी हुई और मैंने परेशान होकर अपनी नज़रें दूसरी तरफ़ मौड़ ली । लेकिन जब मैंने फ़िरसे अपनी नज़रें उस तरफ़ घुमाई तब वहाँ कुछ नहीं था । टेलिविज़न.. पूरी से बंध था । मगर फ़िर भी मुझे इस बात पर यक़ीन नहीं हो रहा था ।मुझे समझमें नहीं आ रहा था कि मैंने जो देखा वो क्या था ?! क्या वो सपना था या... कुछ औ़र.. मगर टेलिविज़न की जाँच करने पर जब मैंने उसके बटन्स को बंध पाया । और तब मैं फिरसे सोफा की तरफ़ मुड़ी । मैं सोने जा ही रही थी कि अचानक ज़ोर की आवाज़ के साथ कमरे की एक खिड़की खुल गई और काफ़ी ठंडी हवा के झोकें अंदर कमरे में बहने लगे । उस आवाज़ को सुनते ही मैं काफ़ी डर गई । और कांपते हुए पैरों से उस खिड़की के पास जाकर बाहर देखा । मगर वहाँ.. कोई नहीं था । वहाँ काफ़ी अँधेरा था । इसलिए घबराकर मैंने जल्दी से खिड़की के दरवाज़े बंध कर लिए और सोफा की तरफ़ चल पड़ी । लेकिन तभी.. मेरे सामनेवाली दूसरी खिड़की के दरवाज़े ज़ोर की आवाज़ के साथ खुल गएं । और दूसरे ही पल एक औ़र खिड़की के दरवाज़े खुल गए । तीसरी बार अचानक खिड़की खुलने की घटना ने मुझे बेहद डराकर रख दिया । उसके बाद.. कमरे की हर एक खिड़कियों के दरवाज़े ज़ोरदार तरीक़े से खुलने और बंध होने लगे । वो आवाज़ मेरे लिये बहुत ही तेज़ और खौफ़नाक थी । उस वक्त मैं कुछ करने के होश में नहीं थी । मैं बस बेजान होकर इन अंजान, रहस्यमय घटनाओं को अपने सामने सच होता देख रही थी । उस समय मैं कुछ नहीं कर सकती थी । इसलिए मैं डर के मारे अपने हाथ - पैरों मोड़कर, सर झुकाकर सोफा पर बैठी रही । तभी मेरे टेलिविज़न की स्क्रिन अचानक एक बार फ़िर चलने लगी और.. उस पर वहीं चेतावनी भरी लिखावट उभर आई । इतना कुछ देखने और महसूस करने के बाद अब मुझे पूरा यक़ीन हो गया था कि यहाँ.. कोई है, जिसे मेरी मौजूदगी पसंद नहीं थी । लेकिन मेरे पास यहाँ रहने के सिवाय कोई रास्ता नहीं था । इतना कुछ होने के बाद भी मैं कांपते हुए खिड़की के पास गई और उसके दरवाज़े बंध कर दिये । उसके बाद एक-एक करके मैंने सारी खिड़कियों के दरवाज़े बंध किये । और तब खिड़कियों के बंध होते ही टेलिविज़न भी अपनेआप बंध हो गया । पता नहीं ये मेरी निडरता थी या बेवकूफी; लेकिन इतना सब अपनी आँखों से देखने के बाद भी मैंने ख़ुद को सोने के लिए राज्ञी कर लिया । एक बार फिर उसी सोफा पर लेटकर सोने की कोशिश की । और.. आख़िरकार थकान के मारे मेरे ज़िन्दा बेजान शरीर को नींद ने घेर लिया ।
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