हम उसी रास्ते पर आगे बढ़ रहें थे, जिस रास्ते पर मैं कुछ समय पहले अकेले ही चलती जा रही थी । वहाँ से सीधा आगे जाने के बाद वो रास्ता तीन रास्तों में बट गया और सलोनी ने वहाँ से दायाँ मोड़ लिया । उस रास्ते पर करीब 4-5 मिनटों तक आगे बढ़ते हुए आख़िर में वो रास्ता बाई तरफ मुड़ गया । और उसी रास्ते पर आगे बढ़ते हुए हम उस जगह तक जा पहुँचें जहाँ हम जाना चाहते थे । रास्ते पर बायाँ मोड़ लेते ही वो बड़ा-सा महल हमारे सामने था, जो रास्ते के आखिर में एक पहाड़ी पर ख़ण्डरों के बीच अकेला खड़ा था । वो जगह काफ़ी सुन-सान थी और वहाँ महल की इमारत को छोड़कर कोई दूसरी इमारत नहीं थी । वहाँ महल के दाई तरफ एक घना और गहरा जंगल था, जो दूर तक फैला हुआ था, तो दूसरी तरफ महल की बाई ओर बड़ी और गहरी खाई थी । उस रास्ते के खत्म होते ही सलोनी ने वहाँ बनी सिढ़ियों के पास पहुँचते ही अपना स्कूटर रोक दिया । और फ़िर स्कूटर से उतरते ही हम उन सिढ़ियों से गुज़रते हुए महल के सबसे बड़े गेट तक जा पहुँचें । गेट के अंदर की तरफ़ कुछ दूरी पर सामने महल का बड़ा-सा दरवाज़ा बना हुआ था । और उस नक्काशीदार दरवाज़े को धीरे से खोलते हुए हम महल के अंदर गए । "वेलकम..! मे'म, आपका स्वागत है इस बड़े, सुन्दर और शानदार पेलेस 'नयन तारा' में ।" सलोनी ने अंदर जाते ही मेरी तरफ़ मुड़कर, मुस्कुराते हुए कहा । सलोनी पहले ही महल के अंदर जा चूकी थी । लेकिन वहाँ अंदर अँधेरा होने की वजह से मैं बाहर ही खड़ी थी । तभी सलोनी ने जाकर सभी लाईट्स ऑन की । और रोशनी होते ही अब मैं वहाँ की हर एक चीज़ को अच्छे से देख सकती थी । वहाँ अंदर महल की दीवारें लाल, सुनहरे और हल्के गुलाबी रंगों में रंगी गई थी । और सफेद चमकते फर्श पर काफ़ी खूबसूरत आकृतियाँ बनी हुई थी । वहाँ महल के दरवाज़ों और खिड़कियों पर रेशम के चमकते नीले पर्दे लगाए गए थे । और इसके साथ ही उस कमरे के बीचोंबीच छत पर एक बड़ा-सा काच का झूमर लटक रहा था । वहाँ महल में थोड़ी - थोड़ी दूरी पर दीवारों पर लाईट्स लगाई गई थी । और वहाँ की हर एक चीज़ को सफेद कपड़ों से ढककर सँभाल कर रखां गया था । वो महल देखने में काफ़ी खूबसूरत था । मगर फ़िर भी अपना पहला कदम अंदर रखते ही मुझे.. अजीब-सा डर महसूस हुआ । अंदर जाते समय मुझे लग रहा था, जैसे इस जगह पर हम अकेले नहीं हैं । हम दोनों के सिवा यहाँ कोई औ़र भी था; जो यही हमारे साथ था । जो हमें देख रहा था, हमारी बातें सुन रहा था । और वो.. शायद हमारे क़रीब ही था । यहाँ आते ही मुझे अजीब-सी घुटन महसूस होने लगी । उस वक्त ज़मीन पर पड़ रही अपनी ही परछाईं से मैं बहूत डर गयी । जैसे मेरी अपनी परछाईं मुझे यहाँ नहीं रहने देने चाहती थी । और.. मेरे मना करने पर वो मुझे छोड़कर जाना चाहती थी । मगर मैं.. इस बारें में सलोनी को नहीं बता सकती थी । और मैं उसे ये बताना भी चाहती नहीं थी । क्योंकि मेरे ऐसा करने पर सलोनी मुझे अपने साथ ले जाती । और वो ख़ुद किसी मुश्किल में फँस जाती । इसलिए जो भी हो मुझे अब से यही पर रहना था । "हेय..! पलक, तुम वहाँ दरवाज़े के पास क्यूँ खड़ी हो ? चलों..! मैं तुम्हे तुम्हारा शाही बेडरूम दिखाती हूँ ।" सलोनी ने मुझे दरवाज़े के पास खड़े देखकर, मुस्कुराते हुए कहा । उसके कहते ही मैंने अपनी बैग़ उठाई और उसके पीछे चल पड़ी । ऊपर जाने के लिये हमारे सामने दोनों तरफ़ सिढ़ियाँ बनी हुईं थी । उस बड़े से होल के सामने आखिर में बनी उन सिढ़ियों से गुज़ारते हुए हम ऊपर तक जा पहुँचें । वहाँ ऊपर सिढ़ियों के ख़त्म होते ही दोनों तरफ की सिढ़ियों के बीच गोलाकार में बैठने के लिए जगह बनाई गई थी । वहाँ पर दो कुर्सियों के बीच एक छोट़ा-सा गोल टेबल रखा गया था । और उसी जगह से दोनों तरफ़ कई सारे कमरे बनें हुए थे । ऊपर पहुँचते ही सलोनी दाई तरफ़ आगे बढ़ गई और उसे देखकर मैं भी उसी तरफ़ मुड़ गई । तभी दाई तरफ आगे जाकर सलोनी पहले दरवाज़े के पास रुक गई और उस कमरे के बड़े सेे दरवाज़े को दोनों हाथों से धकेलकर खोलते हुए अंदर गई । अंदर जाते ही सलोनी ने मेरी बैग़ वही पर रख दी और आगे बढ़कर वहाँ की लाईट्स ऑन की । रोशनी होने पर मैंने देखा के वो कमरा भी काफ़ी बड़ा था । इस कमरे की दीवारों की सजावट नीले और हल्के गुलाबी रंग से की गई थी । वहाँ का फर्श भी चमकीला और काफ़ी खूबसूरत था । कमरे के आखिर में दरवाज़े के सामने एक बहुत बड़ा काच का दरवाज़ा बना हुआ था, जो उस कमरे की बेलकनि का था । वही दाई तरफ़ कमरे के बीच दीवार के पास एक बड़ा-सा बेड़ रखां गया था और उसके पीछे एक बड़ी खिड़की बनी हुई थी । वही उस बेड़ के सामने कमरे के आखिर में दो औ़र दरवाज़े बनें थे । दूसरी तरफ़ बेड़ के बिल्कुल सामनेवाली दीवार पर एक काफ़ी खूबसूरत लड़की की तस्वीर लगाई गई थी । उस तस्वीर में जो लड़की थी वो काफ़ी खूबसूरत थी और उसने शाही कपड़े पहने हुए थे । उसे देखकर यही लग रहा था, जैसे वो किसी शाही परिवार सेे थी । इसके साथ ही वहाँ टेबल, कुर्सी, मिरर और अलमारी जैसी कई औऱ चीज़ें भी ढककर रखीं गई थी । "हेय..! पलक..! अब यहाँ भी आओगी या एक ही जगह पर खड़ी रहकर सब निहारती रहोंगी ?" सलोनी ने मुझे चुपचाप खड़ा देखकर ऊँची आवाज़ में मुस्कुराते हुए कहा । "हंमम..! हाँ, क्यूँ नहीं ।" मैंने हल्की-सी उलझन भरी मुस्कुराहट के साथ कहा । "अरे..! ये रूम अब तुम्हारा है, तो ये सारे कपड़े हटाओ और देखो कि तुम्हारा रूम कैसा है ।" सलोनी ने खुश होकर मुस्कुराते हुए कहा । "रूको..! मैं ही दिखाती हूँ । तो ये है तुम्हारा किंग साईज़.. आई मिन टू सेय क्विन साईज़ ब्यूटीफ़ुल बेड ।" सलोनी ने तेज़ी से बेड के पास जाकर उस पर लगा कपड़ा हटाते ही मुस्कुराकर कहा । उसके बाद मैंने भी हर चीज़ से कपड़ों को हटाना शुरु कर दिया । सबसे पहले मैने मिरर पर लगे कपड़े को हटाया और देखा कि वहाँ मिरर के आगे ड्रेसींग टेबल और एक छोटा-सा स्टूल रखां गया था । "वैसे..! यहाँ इतनी सारी किंमती चीज़ें हैं । और इन सभी को ढककर रखां गया है । तो फ़िर इस.. तस्वीर को क्यूँ नहीं ?! तुम्हे ये बात थोड़ी अजीब नहीं लगी..? क्योंकि, जहाँ तक मेरा मानना है, इस तस्वीर की किंमत भी काफ़ी ज़्यादा होगी । तो तुम्हे नहीं लगता कि इतनी किंमती चीज़ को ढकना चाहिए ?!" सलोनी ने उस तस्वीर को देखकर शक करते हुए कहा । लेकिन सलोनी ने जो बात कही वो मैंने पहले ही देख ली थी । मगर तब मैंने उस पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया । लेकिन जब मैंने जाना कि सलोनी भी इसी बात को लेकर हैरान थी तब मैं भी सोचमें पड़ गई । मैंने दूसरी चीज़ों पर से हटाएँ हुए उन कपड़ों को stool पर रखां और उस तस्वीर के पास गई । मैंने देखा कि वहाँ उस तस्वीर के बिल्कुल नीचे कपड़े से कुछ ढका हुआ था । मैंने उस कपड़े को भी धीरे से खींचकर निकाला । और मैंने वहाँ उस फायरप्लेस के ऊपर एक औ़र कपड़ा पड़ा पाया । "हम जैसा सोच रहें थे, वैसा नहीं है ।" मैंने उस कपड़े को धीरे से हटाते हुए कहा । "क्या मतलब है तुम्हारा ?" सलोनी ने मेरी बात सुनते ही हैरान होकर सवाल किया । "मेरा.. मतलब है, इस तस्वीर को भी ढककर रखां गया था । लेकिन.. शायद कपड़ा ठिक से लगाया नहीं गया था । इसलिए ये यहाँ गीर गया था ।" मैंने पीछे सलोनी की तरफ़ मुड़कर धीरे से कहा । उसके बाद मैने वहाँ पड़े उस कपड़े को धीरे से उठाया । और तभीे मुझे उसके पीछे, तस्वीर के नीचे लगी एक तख़्ती नज़र आई । उसे देखते ही मैंने उस तख़्ती की तरफ़ अपना हाथ बढ़ाया । उस पर लगी धूल को साफ़ करते हुए मैंने उस सुनहरी तख़्ती पर लिखावट महसूस की । " 'महाराज कि सबसे सुन्दर और प्यारी बेटी, राजकुमारी नैनावती की शान में ।' " मैने उस तख़्ती की लिखावट को पढ़ते हुए हैरान होकर मेरे मुँह से निकल गया । "ओ... तो इसका मतलब ये कमरा राजकुमारी नैना का है, मेरा मतलब था । क्योंकि आज से ये कमरा तुम्हारा है ।" सलोनी ने मेरी बात सुनते ही मुस्कुराते हुए कहा । "तो प्रिन्सेस पलक, ये है आपका शाही स्नान गृह ।" सलोनी ने आगे बढ़कर तस्वीर की दाई तरफ़वाला दरवाज़ा खोलकर मुझे दिखाते हुए, ऊँची आवाज़ में मुस्कुराते हुए कहा । और उसके कहते ही मैं उलझी हुई नज़रों से उसकी तरफ देखने लगी । "एक्टूली..! वो क्या है कि, यहाँ की ऐतिहासिक चीज़ों को देखकर मैं भी थोड़ी-सी ऐतिहासिक हो गई ।" सलोनी ने मुझे हैरान देखकर, समझाते हुए मुस्कुराकर कहा । "कोई बात नहीं । लेकिन अब तुम घर जाओ, काफ़ी देर हो चूकी है । बाकी का काम मैं ख़ुद कर लूंगी ।" मैंने सलोनी की तरफ़ देखकर धीरे से कहा । "ओके, ठिक है । जैसा तुम चाहो । हाँ, लेकिन तुम डिनर का क्या करोगी ? तुम्हे भूख नहीं लगी क्य ?" सलोनी ने मेरी बात का जवाब देते हुए कहा । "नहीं, तुम उसकी चिंता मत करो । वैसे भी मुझे डिनर करने का मन नहीं है ।" मैंने नीची आवाज़ में धीरे से कहा । "ठिक है, जैसे तुम चाहो । लेकिन तुम इतनी नर्वस क्यूँ हो रही हो ? तुम्हारी तबियत तो ठिक है ?" सलोनी ने मेरी तरफ़ देखकर परेशान होकर सवाल किया । "हाँ, म.. मैं बिल्कुल ठिक हूँ । मुझे कुछ नहीं हुआ । असल में मैं.. बहुत थक गई हूँ । और बस सोना चाहती हूँ ।" मैंने असल बात छुपाते हुए थोड़ा हड़बड़ाहट में कहा । मगर सलोनी.. सही थी । मैं उस वक्त सच में काफ़ी परेशान थी । लेकिन शायद उससे भी ज़्यादा मैं.. डरी हुई थी । मगर मुझे इस बात का डर नहीं था, कि, 'मैं इस पेलेस में अकेली रहने वाली थी । मुझे डर इस बात का था कि, 'यहाँ ऐसा क्या था, जिससे पहली बार यहाँ पैर रखते ही मुझे घुटन-सी महसूस होने लगी थी ?!
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