शाम 6 : 00 बजे । उस समय मैं सलोनी और आर्या की बातों को लेकर काफ़ी परेशान थी । सलोनी आर्या की दोस्त होने के नाते उसका साथ दे रही थी । लेकिन आर्या बार-बार मुझसे सच्चाई जानने की कोशिश में लगा था, जो मैं उसे नहीं बता सकती थी । महल में रहनेवाला वो जो भी था बहुत अच्छा था । मगर ये बात मैं सलोनी या आर्या को कैसे समझा पाती । और अगर आर्या इस सच्चाई को जान गया तो वो ये बात सलोनी को ज़रूर बता देता, जो मैं.. नहीं चाहती थी । क्योंकि मैं ये जानती थी कि जब सलोनी को इस सच्चाई का पता चलेगा तब बिना कुछ सोचे वो मुझे अपने साथ ले जाती । शायद किसी भी इन्सान के लिए किसी आत्मा के साथ रहना नामुमकिन था । और मैं भी इस सच को अच्छी तरह से जान चुकी थी । मैं उन खौफ़नाक दिनों को अपने झहन से नहीं मिटा सकती थी । लेकिन फ़िर भी आज पहली बार मुझे महल में आते हुए कोई डर या परेशानी नहीं थी । आज मुझे यहां वापस लौटकर काफ़ी हद तक सुकून मिल रहा था । मगर अभी भी मेरा अकेलापन मुझे बेचैन कर रहा था । महल में आते ही मैं सीधा ऊपर वाले कमरे में गई । और ऊपर जाते ही अपना बैग और मोबाईल बिस्तर पर रखकर अपनी आँखें बंध कर के बिस्तर पर बैठ गई । मैं बस अपनी आँखें बंध करके आराम से बैठी ही थी कि तभी अचानक मुझे अपने पीछे किसी के होने का एहसास हुआ, जो मुझे देख रहा है । उस वक्त अचानक किसी की मौजूदगी के एहसास ने एक पल के लिए मुझे डराकर रख दिया । मेरे दिल की धड़कने अचानक तेज़ हो और मुझे हल्का पसीना आने लगा । मगर अगले ही मैं समझ चुकी थी कि ये वही था, जो अंजान होकर भी मेरे लिए अंजान नहीं था । एक रूह होने के बाद भी किसी इन्सान से ज़्यादा अच्छा था । उसने मेरी जान बचायी थी और मैं इस बात के लिए उसे शुक्रिया करना चाहती थी । लेकिन मेरे देखते ही वो गाय़ब ना हो जाए, यही सोचकर मैंने अपनी आँखें नहीं खोली । मगर फ़िर भी उसने कुछ नहीं कहा और इस बार भी मुझे उसे शुक्रिया कहने का मौक़ा नहीं मिल पाया । इससे पहले कि मैं पलटकर उसे देख भी पाती वो ग़ायब हो गया । शायद.. वो समझ चूका था कि मुझे उसकी मौजूदगी का एहसास हो गया था और कहीं उसकी वजह से मैं.. फ़िरसे डर ना जाऊँ, यही सोचकर वो मुझसे बिना कुछ कहें चला गया था । उसके जाने के कुछ देर तक मैं वहीं बैठी रही । लेकिन फ़िर भूख और कमज़ोरी महसूस होते ही मैं नीचे कित्चन में गई । वहां की एक खिड़की खोलते ही मैं अपने लिए चाय बनाने में लग गई । मैंने स्टॉव जलाते ही चाय उबालने के लिए रखी । एक तरफ़ मेरी चाय उबल रही ती तो वहीं दूसरी तरफ़ मैं अपने दूसरे कामों में जुट गई । चाय के बर्तन को स्टॉव पर छोड़कर मैंने बेसींग में पड़े बरतनों को साफ़ करके रखना शुरू कर दिया । मैं अपने काम में खोई थी और तभी एक बार फ़िर मैंने अचानक अपने पीछे बहुत तेज़ हवा का झोका महसूस किया । और मैंने घबराकर झट से पीछे मुड़कर देखा । वो कित्चन के दरवाज़े के पास ही खड़ा था । और उसी की वजह से स्टोव की आग बूझ चुकी थी ।
उसे अचानक इस तरह से देखते ही, "तु..मने.. ये क्यूँ.." घबराहट में मेरे मुँह से निकल गया । मेरी आवाज़ सुनते ही उसने मुड़कर मुझे देखा, "आई.. एम सोरी..! मुझे.. माफ़ करना । लेकिन, अगर मैं ऐसा नहीं करता तो यहां आग लग जाती ।" और परेशान होकर धीमे से कहा । "क्या.. आग..!?" उसकी बात सुनते ही मैं परेशान हो गयी । उसने मेरी तरफ़ देखते हुए, "हाँ । शायद तुम्हें नहीं पता, लेकिन स्टोव के नीचे एक कपड़ा पड़ा था जिसने आग पकड़ ली थी । और उससे भी ज़्यादा खतरे की बात ये है कि स्टोव पाईप में हल्का-सा लिकेज है जिस वजह से ये फट सकता था ।" धीमे से कहा । "आई'एम सोरी । मुझे.. ये नहीं पता था ।" मैंने माफ़ी मांगते हुए, "शश..शायद सलोनी काम करते समय भूल गई होगी । लेकिन.. फिरसे मुझे बचाने के लिए तुम्हारा शुक्रिया ।" मायूस होकर अपना सर झुका लिया । और स्टोव के पास जाकर जले हुए कपड़े को उठाया और मैंने स्टोव के बटन को बंध पाया । शायद ये भी इसी ने बंद किया था । क्योंकि इस बार मुझे अच्छी तरह से याद था कि मैंने स्टोव ओन किया था और मेरी तैयार हो चूकी चाय इस बात को साबित कर रही थी । "कोई बात नहीं ।" उसकी आवाज़ सुनते ही मेरी नज़रें उसकी तरफ़ मुड़ गयी, "लेकिन अगर मेरे यहां रहने से तुम्हे डर लग रहा हो तो मुझे माफ़ कर देना । अगली बार से मैं यहां कभी नहीं आऊँगा ।" उसने मेरी तरफ़ देखकर परेशानी में कहना जारी रखां । और अगले ही पल मुझे कुछ भी कहने का मौक़ा देने से पहले ही हवा में गायब होने लगा । लेकिन अब मुझे उससे कोई डर नहीं था । क्योंकि अब हर बार वो अपने उसी अच्छे रुप में मेरे सामने आता, जिसे मैं उस रात मिली थी । अब वो मेरे लिए बिल्कुल भी डरावना या ख़तरनाक नहीं रहा था । मगर हाँ उसका अचानक मेरे सामने आ जाने से मैं कई बार चौक जाती । उसे जाने से रोकने के लिए, "नहीं, प्लिस.. रूको एक मिनट । मत जाओ.." जल्दबाज़ी में मेरे मुँह से निकल गया । और मेरी आवाज़ सुनते ही वो वापस लौट आया । मैंने बात आगे बढ़ाते हुए हिचकिचाहट भरी आवाज़ में, "मु..झे तुम्हारे यहां रहने से कोई तकलीफ़ नहीं । लेकिन.. मैं बस तुमसे इतना कहना चाहती हुँ, के जब तुम मेरे आसपास रहते हो तब बस युंही शांत मत खड़े रहो । मुझसे.. बात करो जिससे मेरा डर.. खत्म हो जाए ।" कहना जारी रखा, "क्योंकि.. हर बार मैं तुम्हे देख पाऊँ या नहीं । लेकिन मैं तुम्हे महसूस जरूर कर सकती हुँ । और तब तुम्हारी आवाज़ ना सुनने पर मेरा डर.. मुझे घेर.. लेता है ।" और वो बिना कुछ कहे मेरी हर बात सुनता रहा । उस वक्त मुझे नहीं पता था कि वो मेरी इस बात पर किस तरह से बर्ताव करेगा । मैं नहीं जानती थी कि वो क्या चाहता था । और इसी सोच ने मुझमें एक नयी घबराहट पैदा कर दि थी । अगले ही पल उसने मेरी तरफ़ देखकर, "ठिक है । जैसा.. तुम चाहो । मैं अगली बार से कोशिश.. करूँगा कि मेरी वजह से तुम्हे कोई तकलीफ़ ना हो ।" पहेलियों में जवाब दिया । उसकी ये बात सुनकर मैं उलझन में पड़ गयी कि उसकी इस बात का मैं क्या मतलब निकालू । क्या वो मेरे कारण यहां से जाना चाहता था या वो हमेशा के लिए मेरी आंखों से ओझल होनेवाला था । और अगर ऐसा हुआ तो एक बार फ़िर मैं अकेली पड़ जाऊंगी, जो मैं नहीं चाहती थी ।कुछ पलों की अजीब सी खामौशि तोड़ते हुए, "व..वैसे.. क्या मैं तु..म्हारा.. नाम जान सकती हुँ ?" उसकी तरफ़ देखकर मैंने हिचकिचाहट भरी आवाज़ में अचानक सवाल किया । और मेरी बात सुनते ही उसने मुड़कर अपनी हैरानी भरी नज़रें उठाकर, "चंद्र ।" बिल्कुल हल्की सी मुस्कुराहट के साथ कहा । और इतना कहते ही चंद्र.. मेरी आँखों के सामने हवा में अदृश्य हो गया ।
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