Chapter 7 - Palak (Part 3)

शाम 6 : 30  बजे । शाम  को  ऑफ़िस  का  समय  ख़त्म  होते  ही  सलोनी  ने  मुझे  महल  तक  छोड़ा  और  अपने  घर  चली  गई । हर  रोझ  मैं  जिस  जगह  से  डरकर  दूर  भागती  उसी  जगह  पर  एक  बार  फिर  मैं  बिल्कुल  अकेली  थी ।  और  ऐसे  में  जब  भी  मुझे  डर  लगता  मैं  अपने  बाबा  की  सिखाई  बातों  को  याद  करके  इन  हादसों  को  भूलाने  की  कोशिश  करती । लेकिन,  पिछले  दो  दिनों  में  ये  सभी  हादसे  इतने  ज्यादा  बढ़  चूकें  थे  कि  मुझे  उन  डरावनी  यादों  से  बाहर  निकलने  का  समय  ही  नहीं  मिल  पा  रहा  था ।  कई  सारी  डरावनी  चीज़ें  मेरे  साथ  बार-बार  और  लगातार  होती  जा  रही  थी,  जिस  वजह  से  मैं  बहुत  ही  ज्यादा  परेशान  हो  चूकी  थी । जब  तक  मेरे  साथ  हुए  एक  हादसे  को  मैं  भूलाने  की  कोशिश  करती  तब  तक  मेरे  साथ  एक  और  घटना  घट  जाती ।  इसी  वजह  से  मैं  अंदर  से  पूरी  तरह  से  टूट  चूकी  थी ।  मैं  बहुत  ही  ज्यादा  डरी  हुई  थी  और  बिल्कुल  अकेली  पड़  चूकी  थी ।  इसी  वजह  से  अब  मुझे  अपने  लिए  कुछ  भी  करने  की  या  जीने  कू  कोई  इच्छा  नहीं  बची  थी । मैं  ऑफ़िस  से  लौट  आई  थी ।  लेकिन  मेरे  लिए  कुछ  पल  यहां  रुकना  भी  मुश्किल  हो  रहा  था ।  मगर  पूरे  दिन  लगातार  हुए  उन  ख़ौफ़नाक  हादसों  की  परेशानियों  को  संभालते  हुए  मैं  बहुत  ही  ज्यादा  थक  चूकी  थी ।  इसलिए  मैं  डरते  हुए  ही  सही  मगर  ऊपरवाले  कमरे  तक  पहुँची । मैं  थकान  की  वजह  से  बहुत  ही  ज्यादा  कमज़ोरी  महसूस  कर  रही  थी ।  और  काफ़ी  परेशान  हो  चूकी  थी ।  इसलिए  बिस्तर  पर  पड़ते  ही  मुझे  नींद  आ  गई । 

रात  12 : 00  बजे । आधी  रात  में  अचानक  मुझे  मेरा  बिस्तर  हिलता  महसूस  हुआ ।  और  मैं  डर  के  मारे  झट  से  अपने  बिस्तर  से  उठकर  जल्दी  से  उससे  दूर  हो  गई । तब  अगले  ही  पल  खिड़की  से  बाहर  देखते  ही,  कड़ती  हुई  बिजली  के  साथ  चल  रही  तेज़  हवाओ  ने  मुझे  बेचैन  कर  दिया ।  और  अगले  कुछ  ही  पलों  में  वहां  काफ़ी  तेज़  बारिश  शुरू  हो  गई । इस  तूफ़ानी  मौसम  और  हिलती  हुई  चीज़ों  को  देख  मुझे  महसूस  हो  गया  था  कि  मेरे  साथ  फ़िर  कुछ  बहुत  ही  बड़ी  और  ख़तरनाक़  घटना  घटनेवाली  थी । इस  खौफ़नाक  सन्नाटे  में  मेरा  चैन  छीन  लिया ।  मेरे  दिल  की  धड़कनें  तेज़  हो  गयी  और  डर  के  कारण  मेरे  माथे  से  ठंडा  पसीना  बहने  लगा । अगले  ही  पल  अचानक  एक-एक  करके  वहां  की  हर  एक  चीज़ें  हिलना  शुरू  हो  गई  और  खिड़कियाँ  बंध  होने  के  बावजूद  कमरे  में  तूफ़ानी  हवाऐं  बहने  लगी ।  इसी  के  साथ  कमरे  की  दीवारों  पर  वहीं  लाल  अक्षरों  में  लिखी  वही  डरावनी  चेतावनियाँ  उभरने  लगी ।  जिसमें  लिखा  था  कि,  'ये  तुम्हारा  आख़िरी  मौक़ा  है ।  यहां  से  निकल  जाओ ।  वरना  आज  तुम्हारी  मौत  तय  है ।' इन  घटनाओं  के  साथ  मेरा  वहम;  मेरा  डर  सच  साबित  होने  लगा । उस  लिखावट  के  पढ़ते  ही  वहां  की  सभी  खिड़कियाँ  और  दरवाज़े  ज़ोरदार  ढंग  से  अपनेआप  खुलने-बंध  होने  लगे ।  और,  उसी  वक्त..  अपने  पीछे  किसी  के  होने  का  एहसास  होते  ही  मैंने  डर  से  कांपते  हुए  पीछे  मुड़कर  देखा । वो..  मेरे  पीछे;  बेलकनि  के  दरवाज़े  के  पास  ही  खड़ा  था ।  लेकिन  हर  बार  की  तरह  मैं  उसे  ठिकसे  देख  नहीं  पा  रही  थी ।  वो  देखने  में  बिल्कुल  कोहरे  से  घीरे  किसी  आईने  में  पड़ती  काली  परछाईं  की  तरह  था,  जिसे  देखकर  बस  यही  कहा  जा  सकता  था  कि  वहां  कोई  है ।  लेकिन..  ये  जान  पाना  बहुत  मुश्किल  था  कि  वो  कौन  है । मेरे  मुड़ते  ही  उसकी  नज़रें  मुझ  पर  पड़ते  ही  वो  धीमे  कदमों  से  मेरी  तरफ़  बढ़ने  लगा ।  उसे  अपनी  तरफ़  बढ़ते  देख  मैं  बहुत  ही  ज़्यादा  डर  गई ।  मगर  इस  बार  मैं  बिना  कुछ  सोचे  तेज़ी  से  कमरे  से  बहार  दौड़  पड़ी । बाहर  रखी  सभी  चीज़ों  के  हिलने  के  साथ  वहां  पर  भी  तेज़  हवाएँ  चल  रही  थी ।  मगर  वो..  मेरे  पीछे  नही  था ।  इस  बात  से  मेरा  डर  कुछ  कम  हुआ  और  मैं  भागकर  सीढ़ियों  से  उतरते  हुए  नीचे  होल  तक  जा  पहुँची । तभी  मेरे  नीचे  पहुँचते  ही  वहां  की  सभी  खिड़कियाँ  और  दरवाज़े  भी  ज़ोर  की  आवाज़  के  साथ  खुलने-बंध  होने  लगे ।  साथ  ही  वहां  के  झूमर  और  चारों  तरफ़  लगी  लाइटें  जलन-बूझने  लगी । वो  सारी  घटनाऐं  और  वो  किस्से  मेरे  लिए  इतने  ज़्यादा  डरावने  और  ख़ौफ़नाक  बन  चूके  थे  कि  उस  वक्त  मरने  के  सिवा  मुझे  कोई  और  कोई  रास्ता  नहीं  सूझ  रहा था ।  लेकिन  फ़िर  भी  मैंने  यहां  से  बाहर  जाने  की  एक  औऱ  कोशिश  की । मैं  तेज़ी  से  दौड़ते  हुए  दरवाज़े  के  पास  पहुँची ।  लेकिन  मेरे  दरवाज़े  के  पास  जाते  ही  वो  दरवाज़ा  बंध  हो  गया ।  और  तभी  अचानक  मैंने  अपनी  दाई  तरफ़  से  उसको  अपनी  तरफ़  बढ़ते  देखा ।  मुझे  लगा  था  कि  मैंने  उसे  पीछे  छोड़  दिया ।  मगर  ऐसा..  बिल्कुल  भी  नहीं  था ।  वो  तो  हर  जगह  मेरा  पीछाकर  सकता  था  और  वो  वहीं  कर  रहा  था । उसे  अपनी  तरफ़  फ़िर  बढ़ता  देख  मैं  बहुत  परेशान  हो  गई ।  मुझे  उस  वक्त  समझ  नहीं  आ  रहा  था  कि  मैं  क्या  करूँ !?  इसलिए  कुछ  भी  सोचे  बग़ैर  मैं  फ़िर  सीढ़ियों  की  ओर  दौड़  पड़ी ।  वहां  से  गुज़रते  हुए  मैं  एक  बार  फ़िर  उसी  ऊपरवाले  कमरे  तक  जा  पहुँची । उस  वक्त  डर  की  बेसुधगी  में  दौड़ते  हुए  मैं  सीधा  आगे  बेलकनि  केे  दरवाज़े  तक  जा  पहुँची,  जहाँ  से  कुछ  कदमों  की  दूरी  के  बाद  मेरे  लिये  सभी  रास्ते  ख़त्म  हो  जाते  थे ।  और  इस  बात  का  होश  आते  ही  मैंने  अपने  कदमों  को  वही  रोकते  हुए  पीछे  मुड़कर  देखा ।

मेरे  पीछे  मुड़ने  पर  वो  वहां  नहीं  था ।  लेकिन,  दूसरे  ही  पल  वो  मेरी  आँखों  के  सामने  था ।  अचानक  हवा  से  प्रगट  होकर  वो  एक  बार  फ़िर  मेरी  तरफ़  बढ़ने  लगा । उन  खौफ़नाक  पलों  में  मैंने  ख़ुद  को  संभालने  की  बहुत  कोशिश  की ।  लेकिन  अब  येे  सारी  चीज़ें  मेरी  सेहने  की  शक्ति  से  काफ़ी  आगे  जा  चुकी  थी ।  मैं  उसे  फिरसे  अपनी  तरफ़  बढ़ता  देख  बहुत  ही  ज़्यादा  डर  गई ।  बार-बार  हो  रही  इन  ख़ौफ़नाक  घटनाओं  से  मैं  तिलमिला  उठी  ।  मेरे  आँखों  से  लगातार  आँसू  बह  रहे  थे ।  और  आख़िरकार  इस  भयानक  घड़ियों  के  चलते  मैंने  अपना  क़ाबू  खो  दिया ।  अपने  कांपते  हुए  कदमों  को  पीछे  घसीटते  हुए  मैं  बाहर  बेलकनि  तक  जा  पहुँची । अपने  आँसू  पौछते  हुए  उसकी  तरफ़  देखकर,  "तुम..  यही  चाहते  हो  ना  कि  मैं.. यहां  से  चली  जाऊँ ।  मैं  जानती  हूं,  तुम  मुझे  मारना  चाहते  हो ।  लेकिन  शायद  तुम्हे  ये..  नहीं  पता  कि  मैं  भी  जिना  नहीं  चाहती ।"  मैं  ऊँची  आवाज़  में  गुस्से  में  चिल्लाई । इतना  कहते  ही  मैं  धीरेधीरे  पीछे  झुकने  लगी  और  आख़िरकार  मैंने  ख़ुद  को  बेलकनि  से  नीचे  गिरा  दिया । 

सुबह  4 : 30  बजे । मेरी  आँखें  खुलने  पर  मैं  महल  के  बाहर  सीढ़ियों  पर  लेटी  थी ।  लेकिन,  मेरा  बचना  मेरे  लिए  किसी  पहेली  से  कम  नहीं  था ।  मुझे  ज़रा  भी  अंदाज़ा  नहीं  था  कि,  इतनी  ऊँची  बेलकनि  से  गिरने  के  बाद  मैं  कैसे  बच  गई  थी !  और  यहां  कैसे  पहुँची  थी' मगर..  इतनी  ऊँचाई  से  गिरने  के  बाद  भी  मेरे  शरीर  पर  एक  खरोंच  तक  नहीं  आयी  थी ।  मानों  जैसे  मेरे  ज़मीन  पर  गिरने  से  पहले  ही  किसी  ने  मुझे  उठा  लिया  था  और  यहां  लाकर  लेटा  दिया  था । शायद  मैं  पूरी  रात  महल  के  बाहर  पड़ी  रही ।  और  अब  सुबह  होने  में  ज़्यादा  समय  नहीं  बचा  था ।  लेकिन  फ़िर  भी  यहां  काफ़ी  अँधेरा  था ।  बारिश  की  वज़ह  से  ज़मीन  भी  काफ़ी  गीली  थी । आँखें  खुलते  ही  मैं  परेशान  होकर  झटके  से  उठकर  बैठ  गई ।  और  तभी  मैंने  फ़िर   से  कुछ  अजीब  महसूस  किया ।  मगर  इस  बार  मैं  कुछ  भी  सेहने  के  लायक  नहीं  बची  थी ।  उस  समय  मेरी  परेशानी  और  मेरा  डर  एकदम  से  बाहर  आकर  मुझ  पर  हावी  हो  गया  था । अब  मुझसे  ये  खौफ़  औऱ  नहीं  सहा  गया,  "क्या  चाहते  हो  तुम ?  अगर  तुम  मुझे  मारना  ही  चाहते  हो  तो  सीधा  मार  क्यूँ  नहीं  देते..?!  वैसे  भी  मेरा  इस  दुनिया  में  कोई  नहीं  है ।  इसी  लिए  मैैं..  ख़ुद  मरना  चाहती  हुँ ।  तुम  जो  भी  हो  मेरे  सामने  आओ..  और  मार  दो  मुझे..."  और  मैंने  गुस्से  से  ऊँची  आवाज़  में  उसे  चुनौती  दी । मगर  इस  असंभव  और  जानलेवा  घटानाओ  से  डरकर  कांपते  हुए  मैंने  चारों  तरफ़  पलटकर  देखा । "नहीं ।"  अचानक  किसी  लड़के  को  कहते  सुनकर  मैंने  पीछे  मुड़कर  उस  तरफ़  देखा । मेरे  मुड़ते  ही  अचानक  एक  काले  रंग  की  आकृति  मेरे  सामने  ऊपर  हवा  में  ऊभर  आई ।  धीरेधीरे  करके  वो  आकृति  औ़र  भी  ज्यादा  साफ़  होने  लगी ।  और  आख़िरकार  वो  आकृति  काले  कपड़े  पहने  एक  लड़के  में  बदल  गई,  जिसका  पैरों  का  कुछ  हिस्सा  अभी  भी  अदृश्य  था ।  जैसे  वो  हवा  में  तैर  रहा  था ।  लेकिन  इस  बार  मेरे  सामने  आते  ही  उसका  वो  डरावना  रुप  काफ़ी  हद  तक  बदल  चूका  था ।  वो  दिखने  में  बिल्कुल  किसी  आम  कॉलेज  के  लड़के  की  तरह  था ।  लेकिन  फ़िर  भी  वो  बिल्कुल  भी  साधारण  नहीं  था । उसकी  त्वचा  का  रंग  कुछ  हद  तक  फ़ीका  पड़  चुका  था ।  उसकी  वो  डरावनी  चमकती  भूरी  आँखें  (लाइटनिंग  ग्रे)  बदलकर  हल्के  नीले  रंग  की  बन  चुकी  थी ।  आगे  से  थोड़े  लंबे,  काले  बाल  पहले  से  अच्छे  लग  रहे  थे ।  वहीं  उसकी  गर्दन  पर  लगे  घाव  से  खून  बहना  रुक  चुका  था ।  लेकिन  उसका  वो  घाव  अब  तक  ठिक  नहीं  हुआ  था ।  उसने  गहरे  भूरे  (ग्रे)  रंग  का  टी-शर्ट,  लंबा-काला  जैकिट  और  पेन्टस  पहनी  थी ।

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