सुबह 4:30 बजे । उसने मेरे सामने उजागर होते ही, "मैं तुम्हे कभी भी मारना नहीं चाहता था । मैं तो.. तुम्हे बचाना चाहता था ।" परेशान होकर धीरे से कहा । ख़ुद पर क़ाबू करने की कोशिश करते हुए, "क्या.. तु..म मुझे.. बचाना चाहते थे ! लेकिन.. तु..तुमने मेरे साथ ऐसा.. क्यूँ किया ?" मैंने अब तक अपनी कांपती हुई आवाज़ में सवाल किया और सर उठाकर हैरानी भरी नज़रों से उसकी तरफ़ देखा । उसने मेरी तरफ़ देखते हुए, "मैं बस.. इतना ही चाहता था कि तुम इस जगह से जल्दी से चली जाओ । जिससे जो मेरे साथ हुआ वहीं सब तुम्हारे साथ ना हो ।" धीमे से कहा । उस वक्त मैं उसकी आवाज़ में गहरी मायूसी और तड़प महसूस कर पा रही थी । उसकी बात सुनते ही, "जो.. तुम्हारे साथ हुआ..?!" कांपती हुई आवाज़ में हैरान होकर मेरे मुँह से निकल गया । उसने मेरी तरफ़ देखते हुए, "हाँ, कई सालों पहले मैं यहाँ अपने दोस्तों के साथ छुट्टीयाँ मनाने आया था । लेकिन हमारी छुट्टीयाँ हमारे लिए एक बहुत ही खतरनाक सज़ा बनकर रहे गई ।" परेशान होकर कहा । अब भी उसकी आवाज़ में वही तड़प कायम थी । "इसका.. मतलब.. उस न्यूज़पेपर में जो खबर छपी थी वो.. तुम्हारे बारें में थी ।" कांपती हुई आवाज़ में मैंने धीरे से कहा ।"हाँ ।" उसने कहा । मैंने सर झूकाकर, "लेकिन.. तुमने मेरे साथ ऐसा क्यूँ किया ? हर वक्त तुम मुझे डराते रहे; मुझे मारने की धमकी देते रहे । और जब.. आज मैं ख़ुद अपनी ज़िंदगी ख़त्म करने जा रही थी तब तुमने ऐसा नहीं होने दिया । तुमने ऐसा क्यूँ किया ? मुझे क्यूँ बचाया ? वैसे भी अब मुझमें जीने की कोई इच्छा नहीं बची ।" परेशानी और गुस्से में कहा । और बिति बातों के साये याद आते ही एक बार फ़िर मेरी आँखों से आँसू बहने लगे । उसने परेशानी और गुस्से से मेरी तरफ़ देखते हुए, "क्योंकि.. मैं नहीं चाहता था कि जो तकलीफ़ और परेशानियाँ हमें उठानी पड़ी, वही सब तुम्हारे या किसी औ़र को झेलनी पड़े । मैं तुम्हें.. उस ख़ौफ़नाक मौत से बचाना चाहता था, जिसका शिकार मैं और मेरे दोस्त बने थे ।" अचानक ऊँची आवाज़ में कहते हुए एक पल के लिए खामोश हो गया ।
"मुझे.. माफ़ कर देना । लेकिन पता नहीं मैंने तुम्हारे साथ इतनी बड़ी गुस्ताख़ी करने की हिम्मत कैसे की ।" उसने शर्मिंदा होकर अपना सर झूकाते हुए, "मैंने पहली बार किसी के साथ इतना ज़्यादा कठोर बर्ताव किया है जबकि, हर बार मैं यही कोशिश करता कि जो तकलीफ़ मुझे झेलनी पड़ी, वैसा कभी किसी औ़र के साथ ना हो । और मैं.. तुम्हे उस तकलीफ़ से बचाने के लिए मैं ख़ुद.. तुम्हे इतनी तकलीफ़ें देता चला गया ।" काफ़ी परेशान होकर मुझसे नम आवाज़ में माफ़ी मांगी । मैंने कांपते हुए, "मैं.. समझ सकती हुँ कि.. तुमने मुझे बचाने के लिए ऐसा किया । लेकिन, अगर मुझे ज़िदा रेहना पड़ा तो.. मैं यहां से कही नहीं जा सकती ।" धीरे से कहा । "नहीं, तुम्हे यहां से जाना ही होगा । मेरे यहां होते हुए किसी औ़र के साथ भी वही सब हो जो मेरे साथ हुआ ये मैं कभी बरदाश्त नहीं कर सकता ।" उसने गुस्से में आकर परेशान होते हुए मुझे जाने के लिए ज़ोर दिया । मैंने उसकी तरफ़ देखकर, "मैं समझती हूँ कि किसी वजह से तुम मुझे यहां रहने देना नहीं चाहते । लेकिन.. मैं यहां से नहीं जा सकती । क्योंकि मेरे पास रहने की कोई जगह नहीं । मेरे पास बस दो रास्ते हैं । अगर मुझे यहां से जाना ही पड़ा तो.. कहीं जाने के बजाय मैं यहां से कूदकर सारे सवालों को हमेशा के लिए मिटा दुं या फ़िर इसी जगह ख़ौफ़ के साये में जिती रहूँ ।" घबराते हुए धीरे से कहा । मेरी बात सुनते ही उसकी नज़रें उठ गयी, "लेकिन.. यहां रहना तुम्हारे लिए आत्महत्या के बराबर होगा । तुम यहां कितने दिनों तक जी पाओंगी इस बारें में मैं कुछ नहीं कह सकता । तुम्हारी सुरक्षा के लिए तुम्हारा यहां से जाना ही सही होगा ।" और उसने मेरी तरफ़ देखकर परेशान होकर कहा । मैंने काफ़ी परेशान होकर उसे मनाते हुए, "मु..झे पता है.. मेरा यहां रहना सुरक्षित नहीं । लेकिन मेरे पास कोई और रास्ता नहीं बचा । मुझे इसकी कोई परवाह नहीं कि मैं कितने दिन औऱ जि पाउंगी । मगर जो भी हो, जैसे भी हो मैं यही रह लुंगी । प्लिज़.. मुझे यहां रहने दो । तुम जैसा कहोंगे मैं वैसा ही करूँगी ।" धीमे से कहा और अपने आँसू पोंछे । "अगर तुम यही चाहती हो तो मैं वादा करता हूं कि मेरी वजह से तुम्हे किसी भी तरह की कोई तकलीफ़ नहीं होगी ।" आखिरकार मेरी बात मानते हुए उसने मेरी तरफ़ देखते हुए, "लेकिन, मेरी एक शर्त है ।" कठोरता से कहा । "शर्त ?" घबराहट में मेरे मुँह से निकल गया । उसने अपनी शर्त बताते हुए, "हाँ, शर्त । अब तुम महल के औ़र कोई दूसरे दरवाज़े नहीं खोलोगी । अब तक तुम जितने कमरों के दरवाज़े खोल चूकी हो, तुम्हे उसी में रहना होगा ।" मुझे चेतावनी दी । उसकी बातों पर भरोसा करते हुए, "हाँ, मैं वादा करती हुँ । जैसा तुम चाहते हो वही होगा । आई प्रोमिस ।" मैंने सर झूकाकर उसकी शर्त मान ली । मेरी तरफ़ हैरानी भरी नज़रों से मेरी तरफ़ देखकर, "इट्'स ओके । तो फ़िर अब तुम अंदर जा सकती हो ।" गंभीरता से जवाब दिया । उसका जवाब सुनते ही एक पल के लिए मैं चौंक गई । लेकिन उस वक्त मैं उससे कोई औऱ सवाल करने की हालत में नहीं थी । इसलिये उसके कहते ही दूसरे ही पल मैं घबराहट और परेशानी में तेज़ी से दौड़ते हुए अंदर कमरे में चली गई । कमरे में जाने के काफ़ी देर बाद भी मैं बिस्तर में बैठी रही । मुझे उसके बारें में बहुत कुछ पता चल चूका था । मेरे मन में कई सारे सवाल तूफ़ान उठा रहें थे । लेकिन मेरे पास उनके जवाब मांगने की हिम्मत नहीं थी । जब वो मुझे बचाना चाहता था तो उसने मेरे साथ इतनी ख़तरनाक बर्ताव किया । उसकी बेपनाह नफ़रत और तकलीफ़ के पीछे ऐसी कौनसी वजह हो सकती थी, जिसे मरने के बाद भी वो नहीं भूला पाया । मैं जानती थी कि वो मुझे कोई नुक़सान नहीं पहुँचाना चाहता था । और शायद आगे भी मुझे कोई नुक़सान नहीं पहुँचाएगा। लेकिन उसने अब तक जो मेरे साथ किया उसे मैं चाहकर भी भूूल नहीं पा रही थी। मैं.. अभी भी काफ़ी डरी हुई थी । मगर थकावट के कारण मुझे नींद आ ही गई। और मैं कब सो गई मुझे पता ही नहीं चला।
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