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"येस.! मे'म ने मुझे तुम्हारे साथ रहने को कहा है । इसका मतलब हम ज़्यादा समय साथ-साथ रह पाएँगें!" सलोनी ने बाहर आते ही मुझे गले लगाते हुए खुश होकर कहा । "अब चलों, मैं तुम्हे तुम्हारा डेस्क दिखाती हूँ ।" सलोनी ने मेरा हाथ पकड़कर मुझे साथ ले जाते हुए कहा । वहाँ दरवाज़े से दायी तरफ़ बहुत सारे ऑफ़िस डेस्क रखें गएं थे । उनमें से हर एक टेबल पर एक कंम्पयूटर था । और उनमें से मेरा डेस्क सबसे आख़िर में, खिड़की के सामनेवाला था । मुझे अपनी जगह दिखाते ही सलोनी अपनी जगह पर लौट गई और अपना काम शुरू कर दिया । उसके जाने के बाद अपनी कुर्सी पर बैठते ही मैं अपना काम समझने की कोशिश की । लेकिन मैं अपने साथ हुए उन सभी अजीबोगरीब हादसों की वजह से बहुत परेशान और डरी हुई थी । साथ ही आज ऑफ़िस में मेरा पहला दिन था, जिस वजह से यहाँ के तौर - तरीक़े मालूम ना होने के कारण मुझे कुछ समझमें नहीं आ रहा था कि, 'मुझे क्या करना चाहिए' ।
दोपहर 1:30 बजे । "हेय..! पलक, तुम अब तक यहीं बैठी हो ! चलों लंच टाईम हो गया है । हम केन्टिन में चलकर कुछ खाते हैं । मुझे तो बहुत भूख लगी है ।" सलोनी ने मेरे पास आते ही मुस्कुराते हुए कहा और आकर मेरे पासवाले कुर्सी पर बैठ गई । "सोरी... लेकिन मुझे नहीं जाना; मुझे भूख नहीं लगी । तुम जाकर आओ ।" मैंने हिचकिचाते हुए धीरे से कहा । "हेय..! सलोनी..! तुम तो बहुत सेलफ़ीश निकली । नई दोस्त के आते ही मुझे भूल गयी । हंमम.!?" अचानक हमारे पीछे से किसी लड़के ने कहा । वो लड़का और कोई नहीं शायद आर्या ही था । लेकिन मुझे उसकी बातों से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा । इसलिये उसकी आवाज़ सुनने के बाद भी मैं चुपचाप अपना सर झुकाकर बैठी रही । "हाँ, क्यूँ नहीं । वैसे तुम कल कहाँ गये थे ? मैं तो तुम्हे कल ही बताना चाहती थी लेकिन तुम ही ग़ायब थे । समझे ?" सलोनी ने आवाज़ सुनते ही उसकी तरफ़ पलटते ही हुए कहा और खड़ी हो गई । "एक्ट्चुली, मुझे कल मे'म के काम से बाहर जाना पड़ा था ।" आर्या ने जवाब देते हुए कहा । "तो क्या कल तुम ऑफ़िस आये थे ?" सलोनी ने मुस्कुराते हुए सवाल किया । "हाँ, क्यूँ..! तुम्हे क्या लगा ?" आर्या ने कहा । "ओके फाईन । छोड़ों उस बात को ।" बहस ख़त्म करते हुए सलोनी ने मेरे कंधे पर हाथ रखां, "पहले तुम इससे मिलो । ये.." और कहना चाहा । लेकिन आर्या ने सलोनी की बात काटते हुए, "...पलक है । और इसने आज से हमें जोईन किया है, राईट ?" झट से कहा । और उन दोनों की बात सुनकर आख़िरकार मुझे भी खड़े होकर उनके साथ शामिल होना पड़ा । "हाँ, लेकिन..! तुम्हे कैसे पता ?" सलोनी ने हैरान होकर सवाल किया । "मैं इनसे मिल चूका हूँ । मे'म ने इनका पेपर वर्क मुझे कंम्पलीट करने के लिये कहा है ।" आर्या ने जवाब देते हुए मेरी तरफ़ देखकर कहा । "ओ..! वैसे पलक, ये आर्या है । मेरा पागल दोस्त । मैं कल तुम्हे इसी से मिलवाना चाहती थी ।" सलोनी ने मज़ाक़ में हंसते हुए कहा । "हेय.! मैं सिर्फ़ तुम्हारा दोस्त नहीं; तुम्हारा टिम लिडर और यहाँ का चीफ़ एडिटर भी हूँ । याद है ?" आर्या ने मज़ाक़ में मुस्कुराते हुए जवाब दिया । "ओके मिस्टर. लिडर, आई'एम सोरी । प्लिज़ मुझे जोब से मत निकालना ।" सलोनी ने मज़ाक़ में हंसते हुए कहा । "इट्'स ओके, मिस. सलोनी जोषी ।" आर्या ने मज़ाक़ करते कहा और अगले ही पल अपनी नज़रें मेरी तरफ़ करते हुए, "बाय द वेय, नाईस टू मिट यू अगेन ।" मुस्कुराकर कहा और अपना हाथ मेरी तरफ़ आगे बढ़ाया । लेकिन मुझे उससे बात करना काफ़ी अजीब लग रहा था । "नमस्ते..!" मैंने हल्की-सी उलझी हुई मुस्कुराहट के साथ अपने दोनों हाथों को जोड़ते हुए कहा । "ओ.. नमस्ते ।" आर्या ने हैरान होकर अपने हाथ जोड़ लिये । अगले ही पल सलोनी की तरफ़ देखते ही, "वैसे, तुम कहीं जा रहें हो ?" आर्या ने सवाल किया । "हाँ, वो हम केन्टिन जा रहें थे । तुम चलोगे ?" सलोनी ने जवाब में मुस्कुराकर कहा । "नहीं, एक्टूअली अभी मुझे मे'म के काम से जाना है । मैं तुम्हे बाद में मिलता हूँ । ओके बाय ।" आर्या ने उदासी भरी आवाज़ में उलझी हुई मुस्कान के साथ मना करते ही आगे बढ़ गया । उसके बाद मेरे मना करने पर भी सलोनी मुझे हाथ पकड़कर मुझे अपने साथ ज़बरदस्ती केन्टिन ले गई । ऑफ़िस का केन्टिन बिल्डिंग के ग्राउंड फ्लोर पर, पीछे की ओर बनाया गया था । वहाँ की छत, फर्श, दीवारें और हर चीज़ सफेद और दूसरे कई चमकीले लाल, नीले, पीले और हरे रंगों में रंगी गई थी । काँच से बने दरवाज़े के पीछे केन्टिन की बहुत बड़ी जगह थी, जहाँ दरवाज़े के अंदर सामने की तरफ़ बहुत सारे टेबल्स लगे हुए थे । और कमरे के आख़िर में काँच से बना का एक बहुत बड़ा फूड़ काऊटर था । अंदर जाते ही सलोनी मुझे सामनेवाले खाली टेबल के पास छोड़कर खाना लेने के आचली गई । हमें केन्टिन में आये हुए काफ़ी समय हो चूका था और मेरा खाना भी ख़त्म हो चूका था । लेकिन सलोनी अब भी अपना खाना ख़त्म नहीं कर पायी थी । शायद सलोनी ने अपनी हद से कुछ ज़्यादा ही खाना ओर्डर कर दिया था, जो अब उससे खत्म नहीं किया जा रहा था । इसलिए मैं बिना किसी शिकायत के उसके साथ बैठी रही । मुझे वहाँ बैठने में अजीब - सी बेचैनी महसूस हो रही थी । क्योंकि वहाँ बैठे ज़्यादातर लोग की नज़रें मुझे ही घूर रही थी, जैसे मैं किसी दूसरी दुनिया से आई थी । मगर फ़िर भी मैं सलोनी के लिए चुपचाप वहाँ बैठी रही । मैं अपना पूरा ध्यान सलोनी की ओर रखने की कोशिश कर रही थी । तभी मैंने सामने से आर्या को वहाँ आते देखा । लेकिन मैंने तुरंत अपना सर नीचे झुकाते हुए उसे अनदेखा कर दिया । मुझे पता था कि वो सीधा हमारी ही तरफ़ आनेवाला था । और मैं.. नहीं चाहती थी कि कोई भी मुझे देखकर मुझसे किसी भी तरह के सवाल करे । "हाई..! सलोनी, हेलो.. पलक । तुम्हारा लंच हो गया ?" उसने आते ही मुस्कुराते हुए कहा । जो मैं नहीं चाहती थी वही हुआ । वो सीधा हमारी तरफ़ चला आया । और आते ही हमारे पासवाली खाली कुर्सी पर बैठ गया । सलोनी ने अपनी प्लेट दिखाते हुए, "नहीं, अभी ख़त्म नहीं हुआ । तुम हमें जोईन कर सकते हो ।" परेशान होकर कहा । "सलोनी, मुझे कुछ ठिक नहीं लग रहा । मैं ऊपर ऑफ़िस में जाती हूँ । तुम लंच के बाद आ जाना ।" मैंने उठकर खड़े होते ही हिचकिचाहट भरी आवाज़ में कहा । "लेकिन.. तुम्हारी तबियत ठिक नहीं है । तो तुम अकेले कैसे जा सकती हो !" सलोनी ने परेशान होकर कहा । "मैं तुम्हारे साथ चल सकता हूँ ?" आर्या ने मेरी तरफ़ देखकर तुरंत सवाल करते ही मेरे साथ चलने के लिए झट से खड़ा हो गया । "नहीं, मैं.. मैं अकेली चली जाऊंगी ।" मैंने हिचकिचाकर मना किया और हड़बड़ि में वहाँ से निकल गई । वहाँ से निकलने के बाद मैं सीधा ऑफ़िस में अपनी जगह पर जाकर बैठ गई । जब मैं वहाँ पहुँची तो वहाँ कोई नहीं था; मैं वहाँ बिल्कुल अकेली थी । जो मेरे लिए बिल्कुल सही था । क्योंकि इस समय मैं किसी का भी सामना नहीं करना चाहती थी । कुछ देर बाद जब लंच ख़त्म हुआ तब सलोनी और बाकी सभी लोग वापस लौट आएँ । और ऑफ़िस का काम फ़िर शुरु हो गया । सलोनी ने आते ही परेशान होकर, "पलक..? क्या तुम ठिक हो ? तुम वहाँ से चली क्यूँ आई थी ?" सवाल किया और मेरे पास आकर बैठ गई । "हाँ, मुझे वहाँ कुछ ठिक नहीं लग रहा था । बस इसलिए यहाँ चली आई ।" मैंने हिचकिचाहट भरी आवाज़ में धीरे से कहा । "ठिक है । वैसे तुम्हे कोई परेशानी तो नहीं हुईं ? तुम.. यहाँ अकेली थी तो मुझे चिंता हो रही थी ।" सलोनी ने परेशान होकर कहा । "हाँ, मैं ठिक हूँ । वैसे मुझे लगता है अब तुम्हे अपनी जगह पर जाना चाहिए । लंच अब ख़त्म हो चूका है ।" मैंने धीरे से कहा । "डोन्ट वॉरी अबाऊट दाट । अब यहीं मेरी जगह है । मैंने मे'म से पहले ही पर्मीसन ले ली थी । मैंने उनसे कहा कि, 'अगर मैं तुम्हारे साथ बैठ पाऊँ तो तुम्हे काम समझाने में आसानी होगी', और वो मान गई ।" सलोनी ने मुस्कुराते हुए कहा और अपनी पहलेवाली टेबल से अपनी सारी चीज़ें ले आई । उसके बाद हम दोनों अपने - अपने काम में जुड़ गएं ।
शाम 5 : 30 बजे ।
हमारे ऑफ़िस का समय ख़त्म होते ही सलोनी ने मुझे पेलेस छोड़ा और अपने घर चली गई । आज अपनी किसी दोस्त की वजह से सलोनी को जल्दी जाना पड़ा, जिस वजह से मैं आज जल्दी ही अकेली पड़ गई । मेरे साथ हुए सभी अजीबोगरीब हादसों के बाद मैं किसी भी कमरे में जाना नहीं चाहती थी । मगर फ़िर भी मुझे कित्चन तक जाना ही पड़ा । मैं डरते हुए ही सही मगर कित्चन पहुँची । अपने लिए चाय बनाने के बाद ज़रूरत की कुछ चीज़ें, जैसे पानी और खाना लेकर मैं तेज़ी से बाहर हॉल में लौट आई । मैं काफ़ी देर तक वही हॉल में बैठी रही । लेकिन कल रात हुए हादसे के बाद अब मैं यहाँ नहीं सो सकती थी । इसलिए सभी खिड़की - दरवाज़े और लाईट बंध करने के बाद मैं ऊपर के कमरे में चली गई । ऊपर पहुँचते ही मैं सीधा बिस्तर पर लेट गयी और सोने की कोशिश की । कुछ देर बाद आख़िरकार डर के मारे मुझे नींद आ ही गई ।
सुबह 1 : 30 बजे ।
कमरे में किसी चीज़ के गिरने की आवाज़ ने मुझे नींद से जगा दिया । और आँखें खुलते ही सबसे पहले मेरी नज़रें सामने दीवार पर लगी राजकुमारी की तस्वीर पर पड़ी । रात में अचानक उस तस्वीर को देखते ही मैं बहुत ही ज़्यादा डर गई । उस वक्त कुछ पलों के लिए मुझे लगा, जैसे वो मुझे ही देख रही थी । और फ़िर.. अगले ही पल मैंने सफेद रंग की चमकीली, लंबी पोशाक पहने किसी लड़की को अपने सामने से गुज़रते देखा । जो आगे दरवाज़े के पास पहुँचते ही अचानक हवा में ग़ायब हो गई । उस लड़की को देखते ही मैं डरकर अपनी जगह से उठ - खड़ी हुई और कांपते हुए पैरों से उस तस्वीर के पास पहुँची । हैरानी - परेशानी से भरी मेरी नज़रें उसी तस्वीर को देखे जा रही थी । मेरी धड़कनें तेज़ हो गयी थी और तभी अचानक मैंने किसी को काफ़ी तेज़ रफ़्तार में पीछे से गुज़रते महसूस किया । वो शायद.. वही.. था, जिसे मैंने देखा था । उसका वो डरावना चेहरा; उसका वो भयानक रुप मैं कभी भूल नहीं सकती थी । लेकिन एक साथ दो परछाईयाँ देखने के बाद मेरा डर औऱ बढ़ गया । क्या यहाँ एक नहीं बल्कि, किसी दो लोगों की आत्माऐं कैद थी ! लेकिन क्या.. सच में यहाँ दो लोगों की परछाईयाँ मौजूद थी या फ़िर किसी एक की आत्मा मुझे डराने के लिए मेरे साथ ये खेल खेल रही थी ?मैं अपने साथ घटनेवाली हर अजीबोगरीब चीज़ों को महसूस कर सकती थी और उन्हें.. देख सकती थी । लेकिन जो भी हो अब मुझे यही रहना था । मैं बहुत परेशान थी; डर से मेरी साँसे तेज़ हो गयी थी । पर तभी.. अपने बाबा की सीखायी बातें याद आते ही मेरा मन शांत होने लगा । 'अगर कोई मुश्किल आ जाए तो महादेव को याद करना चाहिए । ये कोई अंधविश्वास नहीं; ये विश्वास की ताक़त है । जब हम किसी भगवान पर भरोसा करके कोई काम करते हैं, तब हमें यक़ीन होता हैं कि 'हम जो कर रहें हैं वो बिल्कुल सही है । और इस काम में भगवान भी हमारे साथ हैं '। क्योंकि, भगवान हमेशा सच का साथ देते हैं । हमारा हौसला और काम करने की ताक़त कई गुना बढ़ जाती है । और ये कोई चमत्कार नहीं इन्सानी विचारों की ताक़त है, जिसे भगवान एक सही सोच बनाते हैं । जो हमेशा हमारे साथ रहती हैं ।' अपने बाबा की याद आते ही उनकी सभी बातें मेरे मन में जाग उठी । मेरा डर कम होने लगा । मैंने अपनी आँखें बंध की और महादेव को याद करते हुए इन सब चीज़ों को भूलकर आगे बढ़ने की हिम्मत की । सब जानते हुए भी मैंने सारी बातों को अनदेखा किया । मैंने ख़ुद को ये समझाते हुए शांत किया, कि ये सब मेरे दिमाग़ की कल्पनाएँ है' । आख़िरकार ख़ुद पर ज़ोर डालते हुए मैं बिस्तर पर लेट गई और चद्दर को सर के ऊपर से ओढ़कर ज़बरदस्ती आँखें बंध कर ली । काफ़ी मुश्किलों के बाद अंत में नींद ने मुझे घेर लिया ।
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