अध्याय 5

रमन, कविता और मैंने मूवी देखने का प्लान बनाया। बुआ जी से पूछा तो उन्होंने साफ इंकार कर दिया, "मेरे को बहुत काम हैं आज। तुम लोग जाओ।कविता चिढ़ते हुए बोली, "मम्मी, तुमको ऐसा क्या काम है?"बुआ जी ने कपड़े सुखाते सुखाते जबाव दिया, "आज मिसिज बर्मा के यहां किटी पार्टी है।"रमन हंसते हुए बोला, "तो ऐसा बोलो ना।"हम हंसने लगे तो बुआ जी मुंह बना लिया।

हम माॅल तो पहुंच गए लेकिन ट्रैफिक की वजह से लेट हो‌ गए। हम टिकट काउंटर पर खड़े थे तो रमन बोला, "अब क्या करें? 1/2 घंटे की मूवी निकल गई है।""अब मजा नहीं आएगा। बेकार है पैसे डालने।" कविता टुनकर बोली।रमन मेरी तरफ देखने लगा, "ठीक कह रहीं हैं। अगला शो कब का हैं?" मैंने पूछा।"2 घंटे बाद का। पर इतनी देर क्या करेंगे।" रमन ने पूछा।मैं और कविता एक-दूसरे की तरफ देख कर मुस्कुराने लगे तो रमन बे-मने मन से सर हिलाने लगा।कविता और मैं हर स्टोर पर जाकर कपड़े देखने लगे। कुछ देर तक तो रमन‌ चुप रहा लेकिन जब उससे नहीं रहा गया तो बोला, "अब बस भी करो तुम दोनों। लेना तो कुछ नहीं है बस टाइम पास कर रही हो।" मैंने मोबाइल में टाइम चैक किया और बोली, "और क्या करना है? अभी डेढ़ घंटा है।"कविता मेरे हाथ में हाथ डालते हुए बोली, "ठीक ही तो कह रही है दी। तू अपना मुंह बंद रख।" रमन गुस्से में बोला, "तुम दोनों को जो करना है करो। मैं रेस्टोरेंट की तरफ जा रहा हूं।" और वो चला गया। अब तो कविता और मुझे जैसे आजादी मिल गई। हमने कास्मेटिक से लेकर सैंडिल तक सब देख लिया। जब देखते देखते बोर हो गए और भूख भी लगने लगी तो रमन के पास रेस्टोरेंट चल दिए। रमन की टेबल पर कोई और भी था। जैसे ही रमन‌ ने हमको देखा तो ठीक है बैठ गया। मैंने कविता की तरफ देखा तो उसने इशारे से बाद में बताने को कहा। कविता ने मुस्कुराते हुए कहा, "हैल्लो भाभी, हैल्लो वैदिका और छोटा मोन्टु कैसा हैं?" भाभी और वैदिका मुस्कुराते हुए बोले, "बढ़िया..... तुम बताओ।" जबकि मोन्टु ने मुंह बना लिया।कविता ने जबाव दिया, "मैं भी बढ़िया...." और मेरी तरफ देखते हुए बोली, "ये मेरे मामा जी की लड़की, निशा दी हैं।" मैंने उनसे मुस्कुराते हुए हैल्लो की। भाभी बोलीं, "रमन बता रहा था कि तुम लोग भी मूवी देखने आए हो।" कविता बोली, "हां, अगले शो का वेट कर रहे हैं।" भाभी बोली, "अच्छा है, अब साथ में मूवी देखेंगे।" हमने अपना अपना खाना ओडर किया।मैं अनजान लोगों के साथ जल्दी घुलती नहीं हूं तो मैंने कविता से धीरे से पूछा, "कौन है ये।" वो मेरे कान में बोली, "पड़ोसी है हमारे। अभी कुछ साल पहले ही शिफ्ट हुए हैं। नेचर में अच्छे हैं।" दरअसल मैं उनके सारे पड़ोसी को जानती थीं। बचपन में बुआ के यहां गरमी की छुट्टी में रहते थे तो सबसे जान पहचान थी। मैंने ध्यान दिया तो रमन बहुत खुश नजर आ रहा था।भाभी, कविता और वैदिका बात कर रहे थे जबकि मैं, रमन और मोन्टु सुन रहे थे। दरअसल मोन्टु तो चम्मच के साथ खेल रहा था और भाभी के डांटने पर बीच बीच में का रहा था। वैदिका खुश होते हुए बोली, "कविता, याद हैं ना इस हफ्ते मेरा जन्म दिन हैं।" कविता मुस्कराते हुए बोली, "हां हां, याद हैं। तो पार्टी कहां थे रही है इस बार?" वैदिका चहकते हुए बोली, "पहली वाली जगह पर और निशा दी आपको भी आना है।" मैंने अनचाहे मन से मुस्कुराते हुए हामी भर दी। हम सबने एक साथ मूवी देखी। और घर भी साथ साथ आए। घर आते आते शाम हो गई।

घर के अंदर आते ही सोफे पर बैठ थे कि कविता अचानक बोली, "मैं तो उसका जन्मदिन बिल्कुल भूल ही गई थी। अब गिफ्ट का कैसे करूं?" रमन उसको चिढ़ाते हुए बोला, "हां, तुझको याद ही क्या रहता है सिवाय खाने और सोने के?" वो गुस्से में बोली, "तू तो रहने ही दे। मैं सब जानती हूं कि तुझको इतनी चिंता क्यों हो रही है? और बाकी मेरी फे्न्डो  से तो कोई लेना देना नहीं है।" मैंने मुस्कुराते हुए पूछा, "क्यो?" "क्योंकि ये उसक....." इससे पहले वो कुछ और बोलती रमन ने उसका मुंह अपने हाथों से बंद कर दिया। बस घू.. घू की आवाज आ रही थी। मैं हंसते हुए बोली, "हां, देखा था मैंने। ये कैसे उसको देख रहा था।" रमन ने उसके मुंह से अपना हाथ हटा लिया क्योंकि अब कोई फायदा नहीं था और शरमाते हुएबोला, "क्या दी आप भी ना?"उधर कविता ने गुस्से से कुशन उठा कर उसको जोरदार मारा, "देख दी ने भी तेरी हरकतें देख ली। सुधर जा तू।" रमन चुपचाप मुंह फुलाकर बैठ गया। मैंने रमन से पूछा, "वैदिका को गिफ्ट में सबसे ज्यादा क्या पसंद आयेगा?" पहले तो उसने मेरी तरफ आश्चर्य से देखा। फिर कुछ सोचने के बाद मुस्कराते हुए बोला, "मैं जानता हूं उसको क्या पसंद आयेगा? पर उसमें मुझे आपकी हेल्प चाहिए।" कविता टुनकर कर बोली, "क्या दी आप भी इसके चक्कर में आ रही हो?"मैं हंसते हुए बोली, "चल हेल्प कर देते हैं इसकी। भाई हैं हमारा‌। ये भी क्या याद रखेंगा हमको।" रमन मेरे गले लगते हुए बोला, "थैंक्स दी।" मैं उसको  बोली, "वैदिका अच्छी लगी इसलिए हेल्प कर रही हूं। लेकिन कभी दिल मत दुखाना उसका।" रमन हामी भरते हुए बोला, "हां दी, आपका भाई हूं आखिर।" पर मेरे को नहीं पता था कि मैंने अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारी हैं।

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