“फकीर चन्द कि यहां बात सुनकर कि उनके गांव पर भूत ने कब्जा कर रखा है, मेरा मंगेतर हीरा वहां से उबड़-खाबड़ नुकीले कांटों से भरे पथरीले पथ (रस्ते) पर अंधेर सन्नाटे में उल्टा अपने गांव कि तरफ भागने लगा था, और तभी हम सब कि आंखों के सामने कांटेदार झाड़ियां उसे टांगों से पकड़ कर उबड़-खाबड़ कच्चे रास्ते पर घसीटते हुए फकीर चन्द के गांव के अंदर ले गई थी, उस समय हीरा ऐसे डर दहशत से चिल्ला रहा था, जैसे क़साई जब बकरे को हालल करता है तब बकरा चिल्लाता है।
और जब मैंने फकीर चन्द से मां और हीरा कि जान बचाने कि विनती कि तो फकीर चन्द ने मां और हीरा कि जान कि किमत रखी मेरे पिता के सामने मुझसे विवाह करने कि दो बेगुनाह बेकसूरों के जीवन के बदले मेरे पिता को यह किमत बहुत कम लगी, इसलिए उन्होंने तुरन्त मेरा विवाह फकीर चन्द के साथ करने का फकीर चन्द को वचन दे दिया था, मुझे भी फकीर चन्द हर तरफ से प्यार और हीरा से कई गुना बेहतर लगा रहा था शायद पिता जी ने मेरे चेहरे के हाव-भाव देखकर यह फैसला लिया था।
“और पिता जी से मेरे साथ विवाह का पक्का वचन मिलते ही फकीर चन्द हम दोनो बाप बेटी से यह कहकर कि मैं जब तक श्मशान घाट में तांत्रिक उपाय या पूजा करू तुम्हें अपनी बैलगाड़ी में ही बैठे रहना,चाहे कितना बड़ा ही संकट तुम्हारे सामने क्यों न आएं और फिर वह श्मशान घाट में जाकर अपनी साधना में लीन हो गया था।
तभी एक बांस जितना लम्बा व्यक्ति कंधे पर बोरा टांग कर काले कपड़े पहन हुए हमारी बैलगाड़ी से थोड़ा सा दूर पीपल के पेड़ के नीचे खड़ा होकर मेरी तरफ इशारा करके मुझे बुलाने लगा था, तब मैंने पिता जी को बताया तो उन्होंने उस व्यक्ति कि तरफ मुझे देखने से माना किया लेकिन मैंने जब आखरी बार उसकी तरफ देखकर चेहरा दूसरी तरफ करने कि सोची तो उसने बोरे में से हीरा की कटी हुई खोपड़ी मुझे दिखाकर दुबारा अपने पास आने का इशारा किया हीरा का कटा हुआ सर देखकर मैं इतना घबरा गई थी कि मेरे मुंह से एक भी शब्द निकलना असंभव हो गया था, तब मैंने पिता जी के कंधों को पकड़ कर जोर से हिला कर पिता जी को हीरा कि खोपड़ी दिखाई थी, हीरा कि खोपड़ी देखकर पिता जी जब घबराकर बैलगाड़ी हांक कर मुझे साथ लेकर वहां से भागने लगे तो सर्दी के मौसम कि धूध कोहरे कि अंधियारी रात कि वजह से फकीर चन्द के गांव से बच कर भागने कि जगह हम फकीर चन्द के गांव में घूसने लगे थे, तब फकीर चन्द कि तंत्रिक विधा कि शक्ति की वजह से चमकदडो ने हमारी बैलगाड़ी पर हमला करके मुझे और पिता जी को फकीर चन्द के भूतिया गांव में घूसने से रोका था और फकीर चन्द ने पीछे से आवाज़ लगा कर कहा था बैलगाड़ी को दक्षिण
दिशा कि तरफ मोड़ दो जिस दिशा में गंगा सागर का मेला लगा हुआ है, मैं दौड़कर बैलगाड़ी मैं चढ़ जाऊंगा वो
समय बहुत ही डरावना था, क्योंकि झींगुरों कि झी झी कि आवाज़ पत्तों कि सरसराहट कि तेज आवाज जैसे तेज सर्दी कि शीतलहर के साथ उड़ कर कोई शैतनी शक्ति हमारी बैलगाड़ी का पीछा कर रही हो बैलगाड़ी में चढ़ते ही फकीर चंद ने बताया था तुम्हारी मां जीवित है लेकिन उस भूत कि मां राक्षसी जिलैया ने जो
चमकादड़ के रूप में उन लोगों का खून पीतीं जो उसको नाम से जानते हैं, उस भूत ने तुम्हारे मंगेतर को यातना दे देकर अपनी जननी का नाम एक बार नहीं सौ बार याद दिलवाया और बोलने पर मजबूर किया इसलिए जिलैया राक्षसी तुरंत प्रगट होकर हीरा का खून पी गई और तुम्हारी मां के प्राण मेरी तंत्र विधा और तुम्हारी मां ने जो मरघट वाली मसानी माता या यह कहें चौराहे वाली काली माता का लॉकेट पहना रखा है उससे बचे हैं और शायद तुम्हें नहीं तो तुम्हारे पिता जी को जरूर जानकारी होगी कि सूर्योदय होने के साथ साथ शैतानी शक्तियों कि शक्ति नाममात्र कि रह जाती है, इसलिए हम सब सुबह होने तक मेरे भूतिया गांव से कुछ दूरी पर रहेंगे सुबह होते ही तुम्हारी मां को श्मशान घाट वाले पूराने पीपल के पेड़ से उतारा कर लें आएंगे क्योंकि उस भूत ने तुम्हारी मां को पीपल के पेड़ पर उल्टा लटका रखा है।
“मेरे पिता जी बैलगाड़ी हांकते हांकते (चलाते चलाते) फकीर चन्द कि पूरी बात ध्यान से सुन रहे थे, मैं और फकीर चन्द बैलगाड़ी में पीछे बैठे हुए थे, तब पिता जी ने घबरा कर पूछ था? सच बातोंओ देविका कि मां जिंदा है। तब फकीर चन्द ने धीरे से मुझसे यह कहने के बाद कि अपने रंग रूप के साथ तुम्हारा नाम भी बहुत खूबसूरत है। पिता जी से कहा था आगे कुएं के पीनी में आपकी पत्नी को दिखाऊंगा कि वह किस हालत में है फिर पिता जी ने कहा तुमने मेरी पत्नी और मेरे होने वाले दामाद को बचाने कि सच्चे दिल से कोशिश कि और शायद मेरी पत्नी कि जान बचा भी दी दुसरा में समझ सकता हूं वह भूत तुम से ज्यादा ताकतवर है, इसलिए मैं मजबूरी में नहीं दिल से कह रहा हूं, मेरी बेटी का जीवन साथी बनने के काबिल स्वर्गवासी हीरा नहीं था, बल्कि तुम हो तांत्रिक फकीरचंद मुझे पूरा यकीन है, एक दिन तुम अपनी तंत्र विद्या से अपने गांव के भूत को कैद करके मुक्त ही नहीं करवाओगे बल्कि दुनिया के मशहूर तांत्रिक बनोगे पिताजी की यह बात सुनकर फकीर चंद ने अंधेरी रात का फायदा उठाकर मेरे हाथ पर अपना हाथ रख दिया था।
यह सुनकर डा महेश भी देविका पिशाचिनी के हाथ पर अपना हाथ रखता है और उसके हाथ को 440 नहीं बल्कि 880 का बिजली जैसा झटका लगता है।
तब पिशाचिनी बोलती है “फकीर चंद तुम 150 साल पहले जैसे चालाक धोखेबाज़ थे, आज भी वैसे ही हो क्योंकि तुम मेरी खुबसूरती मेरे शरीर से प्रेम करते हो मेरी आत्मा से नहीं।”
“मैं कुछ समझा नहीं तूम क्या कहना चाहती हो।”डॉक्टर महेश पूछता है?
“फकीर चन्द का पूरा किस्सा सुनो फिर तुम्हें सब समझ आ जाएगा।” देविका पिशाचिनी बोली
“फकीर चन्द ने मेरे हाथ पर अपना हाथ रखा तो हीरा का भूत बैलगाड़ी के सामने खड़ा होकर रोने लगा था तब मैं डर कर फकीर चंद से चिपट गई थी। तब फकीर चन्द ने तुरंत अपनी तांत्रिक विद्या से हीरा के भूत को वहां से भगा दिया था। हीरा के भूत को भगाने के बाद तांत्रिक फकीर चंद ने स्वयं बैलगाड़ी हांक कर (चला) कर खेतों को पार करके जंगल के पुराने कुएं पर हमें पहुंचा था, यह दिखाने के लिए कि मेरी मां जीवित पीपल के पेड़ पर उल्टी लटकी हुई है। कुंए के पानी में जब तंत्रिका फकीर चंद ने दिखाया की मां पीपल के पेड़ पर जीवित उल्टी लटकी हुई है और मां के गले का लॉकेट मरघट वाली मसानी माता का गले से उतरने को हो रहा है और एक काले रंग की परछाई मधुमक्खियों की तरह मां के चारों तरफ मंडरा रही थी, इसलिए कि कब मेरी मां के गले का लॉकेट उसके गले से निकाल कर जमीन पर गिरे और वह भूत मुझसे ज्यादा खूबसूरत मेरी मां का खून चूस कर उसकी आत्मा को हमेशा के लिए अपनी गुलाम बनाकर रखें।
“तब मेरे कहने से युवा नए तांत्रिक ने पहली बार हीरा के भूत को कैद करके हुक्म दिया था कि मेरी मां सुंदरी के गले का लॉकेट सूर्योदय तक किसी भी हालत में गले से उतर कर जमीन पर ना गिरे। तब दो भूतों के झगड़े की चीखने चिल्लाने की आवाजों को सुनकर जंगली कुत्ते बिल्ली रोने लगे थे और पेड़ों से पक्षी उड़कर शोर मचाते हुए गांव के घरों की छत के ऊपर जाकर छुप गए थे, गांव वालों ने दो भूतों का झगड़े का शोर सुनकर अपने घरों के दरवाजे खिड़की की कुंडी अंदर से बंद कर ली थी, हिरण नीलगाय गीदड़ आदि जानवर जंगल छोड़कर भागने लगे थे, मगरमच्छ मछलियां बत्तख तालाब के पानी में छीप गई थी खुद मेरे पिता बरगद के पेड़ पर छुपाकर बैठ गए थे, जिस समय तांत्रिक फकीर चंद अपनी तंत्र विद्या की शक्ति से हीरा के भूत को गांव के भूत से मुकाबला करने की शक्ति दे रहा था, उस समय मैं फकीर चंद के साथ खड़े होकर कुएं के पानी में दो भूतों का आपस में युद्ध होते बिना भयभीत हुए देख रही थी, शायद तभी शातिर फकीर चंद को समझ आ गया था कि मेरे अंदर तांत्रिक बनने के गुण हैं और वह है यह भी समझ गया था कि गांव का भूत कोई साधारण भूत नहीं है इस भूत का अंत पिशाचिनी सिद्धि से ही संभव है, इसलिए उसने सूर्योदय के बाद पहले मां को पीपल के पेड़ से जीवित सुरक्षित उतार फिर पिता जी से कहा कि मैं भी तुम्हारे साथ गंगा सागर के मेले में चलूंगा अपनी तांत्रिक शक्ति को बढ़ाने के लिए और पिशाचिनी सिद्धि के लिए सामग्री इकट्ठा करने लेकिन बैलगाड़ी के बैलों की तरफ जब सबका ध्यान गया था, दोनों बैल जमीन पर मृत पड़े हुए थे।
“बैलों के बिना गंगा सागर के मेले में पहुंचना बहुत मुश्किल था, तब तांत्रिक फकीर चंद के हुकुम से हीरा का भूत पिता जी कि नायक नायिका कठपुतली बैलों की जगह हमारी बैलगाड़ी को गंगा सागर के मेले तक खींच कर ले गए थे।
“गंगा सागर के मेले में पहुंचकर फकीर चंद ने सिद्ध साधुओं उससे बड़े तांत्रिकों से पिशाचिनी सिद्धि करना सीखी थी और पिशाचिनी सिद्धि के लिए असली रुद्राक्ष की माला और अन्य सामग्री खरीदी थी जिस दिन मेले का आखिरी दिन था मैं मां और बापू के साथ सर्दी की धूप में बैठकर शाम को कठपुतलियों के नाच की तैयारी कर रही थी, फकीर चंद दूर बैठकर मेरी तस्वीर बना रहा था, जो तस्वीर मैंने अभी तुम्हें दिखाई थी, जो तस्वीर तुमने अपने पास रखी है कि मैं तुम्हारे सामने कभी भी पिशाचिनी के भयानक रूप में ना आऊं यह तस्वीर कोई साधारण तस्वीर नहीं है, बल्कि कभी भी नष्ट ना होने वाली तंत्र विद्या से बनाई हुई असाधारण तस्वीर है।”
“लेकिन मुझे तो यह साधारण तस्वीर लग रही है।” डॉक्टर महेश बोलता है
“सूर्योदय होने से पहले मुझे अपनी बात पूरी करने दो वरना मेरे जीवन की अधूरी जानकारी के बाद मुझसे विवाह करने से तुम्हारे जीवन का अंत भी हो सकता है।” पिशाचिनी देविका यह कहकर डॉक्टर महेश को बताती है शाम को कठपुतली का नाच शुरू होने से पहले फकीर चंद मेरे माता-पिता के सामने तस्वीर मेरे हाथ में देखकर यह कहकर चला गया था कि उसे गांव के भूत से मुकाबला करने के लिए उसे तंत्र विद्या के साथ काला जादू की विद्या भी सीखनी पड़ेगी मैं बड़ा तांत्रिक जादूगर बनते ही देविका की तस्वीर की मदद से देविका को ढूंढ लूंगा तब मां ने पूछा था? ऐसा कैसे हो सकता है।
तो फकीर चंद ने मेरी तस्वीर मेरे हाथ से लेकर जैसे ही मेरी तस्वीर की गर्दन दबाई तो मेरा दम घुटने लगा ऐसी तस्वीर बनाने पर मेरे माता-पिता जब उससे बहुत नाराज हुए तब उसने कहा था इस तस्वीर के द्वारा देविका को वहीं पुरुष नुकसान पहुंचा सकता है, जो देविका से सच्चे दिल से शादी करना चाहता हो या देविका से विवाह कर चुका हो।” “और जब तुमने मेरी नजर बचाकर मेरे लाल टमाटर जैसे गालों को तस्वीर में चुम्मा था, तो तुम्हारे चुम्मन का मुझे एहसास हुआ था, तब मैं समझ गई थीं कि तुम मुझसे सच्चे दिल से विवाह करना चाहते हैं।”
“ख़ैर यह तो सच है, लेकिन अब यह बता कि तू पिशाचिनी कैसे बनी।” डॉक्टर महेश पूछता है?
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