आत्महत्या की सोच

“लेकिन आपको पता होना चाहिए काला जादू और पिशाचिनी सिद्धि करने वाले तांत्रिक या साधारण इंसान जब ज़रा सी भी गलती कर देते हैं, तो परलोक में भी चैन से नहीं रह पाते हैं।” डॉक्टर महेश बोला 

“सच्चाई यह है कि वह पिशाचिनी मेरा नहीं तेरा पीछा पीछले जन्म से कर रही न जाने वह तुझसे क्या चाहती है और मैं एक मां हूं कोई भी मां अपने बेटे के संकट का आभास होने पर उसे अकेला कैसे छोड़ सकती है।” यह कहकर डॉक्टर महेश कि मां अपना गला ऐसे पकड़ कर जमीन पर गिर जाती है, जैसे कोई अदृश्य शक्ति उसका गला दबा रही हो।

डॉ महेश इससे पहले कुछ कर पाता उसकी मां के मुंह नाक कान से खून आने के बाद उसकी मां कि मौत हो जाती है।

डॉ महेश कि मां की मौत के एक महीने बाद तक डॉक्टर महेश का बचपन का दोस्त राम सिंह डॉ महेश को अकेला नहीं छोड़ता है और अपनी छोटी साली से उसकी शादी करवाने कि कोशिश करता है, किंतु हमेशा कि तरह इस बार भी डॉक्टर महेश को लड़की पसंद नहीं आती है यानी कि राम सिंह कि साली पसंद नहीं आती है, लेकिन जब राम सिंह अपनी पत्नी के साथ अपने घर जाने कि तैयारी करने लगता है, तो डॉक्टर महेश को बहुत अकेलापन महसूस होता है, क्योंकि अब उसकी मां भी उसके साथ नहीं थी, इसलिए डॉ महेश अपने दोस्त राम सिंह को अपने घर के आसपास ही मकान खरीदने कि कहता है और कुछ रुपए देकर दोस्त कि नया मकान खरीदने में मदद भी करता है।

और उस नए घर में जब राम सिंह कि पत्नी छत पर रखी पानी कि टंकी के पास से जब भी नए उगे पीपल के पौधे को जड़ से उखड़ती थी तो उसे सपने में एक चुड़ैल जैसी भायनक स्त्री दिखाई देती थी जो उसे पीपल के पौधे को उखाड़ ने से माना करती थी और कुछ दिनों बाद वह पीपल का पौधा दुबारा उग आता था।

और जब इस भूतिया घटना का राम सिंह ने डॉ महेश के सामने एक तांत्रिक से पता लगवाया तब तांत्रिक ने बताया था कि “इस घटना का डॉ महेश के जीवन से गहरा सम्बंध है।” 

तब डॉक्टर महेश ने अंधविश्वास कह कर बड़ी मुश्किल से अपने दोस्त को वह मकान बेचने से रोका था और उसकी पत्नी को कुछ भी बताने से रोका था और उस दिन के बाद डॉ महेश अपने दोस्त के सामने उस पीपल के पौधे को खुद उखाड़ कर आता था, दोस्त कि पत्नी से नजरें बचाकर इसलिए वह चुड़ैल जैसी भायनक स्त्री अब उसे सपने में दिखाई देने लगी थी और वह स्त्री हर बार सपने में कहती थी “कब मिलने आओगे मुझसे।” 

 

और जब 30 साल कि आयु से 40 वर्ष की आयु तक डॉक्टर महेश को शांति सुकून नहीं मिलता तो वह एक बार फिर रात के 2:00 बजे उसी कच्ची सड़क से रानी चुड़ैल और उसके भाई को मुक्ति दिलाने के लिए अपनी जान की परवाह किए बिना गुजरता है, क्योंकि इस बेचैनी कि वज़ह से उसके हाथों से एक नौ साल कि बच्ची का दिल का आपरेशन करते वक्त मौत हो गई थी, उस समय उसे ऐसा महसूस हुआ था कि किसी ने उसके कान के पास आकर कहा हो कि “जब तक तू मुझसे मिलेगा नहीं तेरे हाथों से यूं ही बेकसूर लोगों कि जान जाती रहेगी।” और डॉक्टर महेश पर जब लापरवाही से ईलाज का मुकदमा चला तब उसका डॉक्टरी से दिल हटाने के बाद उसकी जीने की भी तमन्ना खत्म हो गई थी, इसलिए वह अपने को एक नौ वर्ष की बच्ची का हत्यारा मानकर पश्चात या कहें मरने से पहले कोई पुण्य कर्म करना चाहता था।

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