पिशाचिनी योनि में प्रवेश

फिर पिशाचिनी हंसकर बोलती है “बहुत आसान है, बस तुझे मुझसे विवाह करना होगा फिर यह पिशाचिनी तेरी हो जाएगी यानि कि मैं तेरे हुकुम कि गुलाम बन जाऊंगी।” यह कहकर पिशाचिनी नई नवेली दुल्हन के रुप में सज संवर कर डा महेश के पीछे खड़ी हो जाती है और डा महेश से पीछे मुड़कर देखने के लिए बोलती है “डा महेश ने इतनी खूबसूरत अप्सरा हूर कि परी जैसी लड़की जीवन में पहली बार देखी थी, इसलिए वह दुबारा वहीं बात सोचता है कि जब तक मैं जीवित रहुं, तब तक अगर यह इतनी ही खूबसूरत जवान युवती बनी रहे तो इस से शादी करने में कोई बुराई नहीं है, क्योंकि यह भी कभी खुबसूरत लड़की थी।” फिर सोचता है काश मां के जीवित रहते यह मेरे सामने शादी करने का प्रस्ताव रखती तो मैं उस समय इस से बिना सोचे समझे शादी कर लेता।

और तभी उसके पीछे से किसी महिला कि आवाज़ आती है, इस पिशाचिनी के जाल में मत फंसना इस ने मेरी आत्मा को भी कैद कर रखा है, एक बार तो उसे ऐसा महसूस होता है कि वह आवाज उसकी मां कि परंतु जब वह आवाज कहती “इस कि एक भी बात मानें  बिना यहां से भागो तो तब वह आवाज उसे किसी इंसान कि नहीं चुड़ैल या भूत प्रेत जैसी लगती है।

उस आवाज के सुनते ही पिशाचिनी के सर के ऊपर उसे चमकादड़ चील कौवे गिद्ध उल्लु मंडराते हुए दिखाई देने लगते हैं और एक ट्रक बहुत तेज गति से अपनी ओर आता हुआ दिखाई देता है। उस ट्रक में उसे ट्रक ड्राइवर और क्लीनर से चमगादड़ जैसे काले रंग का भूत चिपटा हुआ दिखाई देता है और कुछ ही सेकंड में वह ट्रक उसकी गाड़ी को कुचलता हुआ बड़े पहाड़ी पत्थर से टकरा जाता है।

यह सब देखकर डॉ महेश डर जाता है, क्योंकि पिशचिनी तो उससे असाधारण सुन्दरी बनकर बात कर रही थी और उस भूत कि डरावनी आवाज़ सुन कर देविका पिशाचिनी के आसपास पंछी मंडराते देखे ट्रक का एक्सीडेंट देखकर डा महेश सोचता कि वह भूत कितना भायनक होगा,  जिसकी आवाज इतनी डरावनी है, इस वजह से डर कर डा महेश वहां से भागने लगता है।

तब पिशाचिनी डॉक्टर महेश का हाथ पकड़ कर उसे अपने साथ हवा में उड़कर कच्चे रोड़ के किनारे वाले बाबुल के पेड़ों के जंगल में ले जाकर हवा में ही सुखे कुएं के अन्दर सीधा  छोड़ देती और उंचाई से सीधे सूखे कुएं में गिरने से डा महेश के एक हाथ कि हड्डी टूट जाती है और कुछ देर सूखे कुएं में दर्द से तड़पने के बाद जब डॉक्टर महेश कुएं से बाहर निकलने कि कोशिश करता है तो पिशाचिनी कुएं के अन्दर खुद भी हवा में उड़कर आ जाती है और डा महेश से बोलती है “यह कुआं मेरा तब से ठिकाना है, जब मैं इंसान योनि से पिशाचिनी योनि में पहुंची थी, इसलिए विवाह के बाद हम दोनों पति-पत्नी इसी कुएं में रहेंगे।”

पिशाचिन बोली

“दिखावटी (नकली) खूबसूरती वाली पिशाचिनी से शादी करने से अच्छी मौत है, में अपनी जान दे दूंगा लेकिन तेरे साथ शादी नहीं करूंगा।”डॉक्टर महेश बोला 

“यह मेरी दिखावटी (नकली) नहीं बल्कि असली खुबसूरती है, और यह मेरा पिशाचिनी बनने से पहले का रंग रूप है। यकीन नहीं होता तो यह देखो पिशाचिनी योनि में जाने से पहले का मेरा चित्र (पेंटिंग) यह चित्र मेरे आशिक ने तब बनवाया था, जब में अपने माता-पिता के साथ मकर संक्रांति पर गंगा सागर का मेला घूमने गई थी। डेढ़ सौ सालों से अपना यह चित्र मैंने सम्भाल कर रखा हुआ है।” पिशाचिनी बोली 

डा महेश चित्र देखकर सोचता इस से शादी करने से इन्कार करुंगा तो यह मेरी जान ले लेगी, इसलिए इस पिशाचिन से अपने प्राणों कि रक्षा के लिए मुझे इस से शादी करनी ही पड़ेगी और इस पिशाचिनी से शादी करने में हर्ज ही क्या है यह भी कभी खुबसूरत जवान युवती थी, इसलिए डॉ महेश सब-कुछ सोच समझ कर कहता “मैं इसी समय तुम से शादी करने के लिए तैयार हूं, लेकिन तुम्हें वचन देना होगा कि तुम जब तक खुबसूरत जवान युवती बनी रहोगी जब तक कि मेरी मौत नहीं हो जाती और लेकिन जन्म जन्मांतर तक तुम्हारा मेरा संग नहीं होगा।”

“मैं वचन देती हूं, जैसा तुम चाहते हो वैसा ही होगा किन्तु पिशाचिनी योनि से मुक्ति मिलने के बाद तो में साधारण स्त्री के रूप में जन्म लूंगी फिर मुझ से जन्म जन्मांतर तक प्रेम करने में आपको क्या परेशानी।” देविका पिशाचिनी पूछती है? 

“मुझ से प्रश्न मत करो बस अपने वचन का प्रमाण दो।” डा महेश बोलता

कैसे प्रमाण दूं। पिशाचिनी पूछती है? 

“तुम्हें अपना इंसान योनि का यह चित्र बहुत प्रिय है, ना इसलिए इंसान योनि का यह चित्र मुझे दे दो जिस दिन तुमने अपना वचन तोड़ा मैं उसी दिन तुम्हारा यह चित्र अग्नि में भस्म कर दुंगा।” डा महेश बोलता है 

‘तुम भी फकीर चन्द जैसे ही बहुत शातिर हो।” पिशाचिनी बोली 

“कौन फकीर चंद।” डॉक्टर महेश पूछता है? 

“मेरा होने वाला पति मेरा आशिक फकीर चन्द जिसने मुझे तांत्रिक विद्या सिखाई थी ।” देविका पिशाचिनी ने बताया 

“विस्तार से बताओ फकीर चन्द के बारे में।”  डॉक्टर महेश बोलता है 

फकीर चन्द जिस गांव में रहता उस गांव पर एक शक्तिशाली भयानक भूत ने कब्जा कर लिया था। वह भूत जो चाहे मन मानी गांव वाले के साथ करता था, जैसे उनके पालतू दूधरु पशुओं का सारा दूध पी जाना और रोज रात को उन से एक पशु अपने खाने के लिए मांगना, गांव कि किसी भी स्त्री का यौन शोषण करना, शदियों समारोह का पूरा खान खा जाना आदि और जो उसका कहना नहीं मानता था तो गांव के उस इंसान के घर में आग लगाकर उसके घर को राख कर देता, यहां तक कि कभी कभी जान भी ले लेता था और जब कभी पूरे गांव से नाराज़ होता था, तो गांव में पत्थरों कि बारिश कर देता था।

और जब उस भूत ने एक रात फकीर चन्द कि मां कि इज्जत लूटने कि कोशिश कि तो बीस वर्ष के फकीर चन्द ने उस भूत का अंत करने का पक्का फ़ैसला ले लिया था, इसलिए वह रातों-रात अपने गांव से भागकर कलकत्ता के बाद उड़ीसा फिर असम तंत्र विधा सीखने पहुंच गया था। 

एक समय तो उसे ऐसा लगा था कि तांत्रिक बनना उसके सबकी बात नहीं है, जब तंत्र विद्या सिखने के लिए उसे आधी रात को श्मशान घाट में अकेले अधजली लाश के साथ बैठकर तंत्रिका सिद्धि करनी थी, जब उसने देखा और सुना कि अपनी अपनी चिंता के चबूतरे पर एक चुड़ैल भूत बैठे हुए हैं और वह जिस अधजली लाश के साथ तंत्रिका सिद्धियां प्राप्त करने का प्रयास कर रहा है, वह सर से पेट तक जली हुई लाश वहां बैठे भूत और चुड़ैल से कह रही है “मुझे इस नौसिखिए तंत्रिका से बचाओ यह मेरे साथ तुम्हें भी कैद करके तुम से भी अपने कार्य करवाएगा।

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