दुसरा दिन, 10 अगस्त - सतारा, सांगली, कोल्हापुर
रात को ढेड़ बजे सोया लेकिन सुबह जल्दी निकलने की जरूरत के चलते सुबह 6 बजे उठा योग किया पुणे से निकले। राष्ट्र सेवा दल की केन्द्रीय कचहरी स्थित स्कूल में जाने वाले बच्चे मास्क लगाए दिखलाई पड़े। अखबारो में भी स्वाईन फ्लू की खबरो की भरमार थी। गुलामनवी आजाद स्वास्थ मंत्री का मूर्खतापूर्ण बयान देखा कि अगले दो वर्षाे में भारत की 33 प्रतिशत जनता स्वाईन फ्लू से प्रभावित होगी। मुझे याद आया जब मैं आस्टेªलिया गया था 1985 में तब वहॉ पहली बार एड्स के बारे में सुनने मिला था। बाद में जब भारत में एड्स की चर्चा ज्यादा होने लगी तथा अफ्रीका को एड्स ने गिरफ्त में लिया, तब मुझे लगा था की कहीं यह बायलोजिकल वारफेयर का हिस्सा तो नहीं। कहीं बहुराष्ट्रीय कम्पनियॉ की चाल तो नही। पश्चिम के देशो से आने वाले यात्री ही सबसे पहले केरियर बने प्राईवेट पेथोलॉजिकल लेब को इजाजत देकर आम आदमी की लूट का रास्ता खोला गया। सरकार लोक स्वास्थ्य की जिम्मेंदारी से क्यों मुंह चुराना चाहती है ?
मैं मुलताई के अनुभव के आधार पर कह सकता हू कि गांव में बुखार साल में कई बार इस तरह असर डालता है जब हर घर में मोटे तौर पर कोई न कोई बुखार, मलेरिया, वाईरल से पीड़ित दिखलाई पड़ता हैं। अब जिसे बुखार आएगा वह स्क्वाईन फ्लू का संदेहास्पद मरीज बन जाएगा। सभी स्क्वाईन फ्लू का टेस्ट कराऐगें। लूटे जाऐंगे।
सुबह 8.30 बजे षिखाड पहुंचे। राष्ट्र सेवा दल के कार्यकारी अध्यक्ष दिलावर खान के यहा नाश्ता किया। गांव के सरपंच और अन्य साथियो से मुलाकात हुई। कुसी नागेवाडी में शहीद बिंदुल खंडझोडे मोहनशंकर सांवत ने स्वागत किया। सातारा पहुंचे राष्ट्र सेवा दल गुरूनाथ दरवाडे शाखा अध्यक्ष, प्रकाश टोंपे, प्रो. पुरूषोत्तम सेठ, वर्षा देशपाण्डे, विजय मांडके, किरण माने, अरूण पाटिल, पोर्त पुडके, सुनील खडेकर, ने पवई जाकर शिवाजी पुतला पर स्वागत किया। मैंने शिवाजी के पुतले पर हार चढ़ाया, जयकारे लगवाये। काफी प्रेस के साथी उपस्थित थे। वहॉ से हम प्रतापसिंह महाराज के पुतले पर गए। उन्होंने महिलाओं के लिए 1818 में पहला स्कूल चलाया था। 1840 में सातारा किला घेरे जाने पर अंहिसात्मक सत्याग्रह किया था। हांलाकि युद्ध के दौरान हथियार डालने को आत्मसमर्पण कहा जाता हैं। अग्रेंजो ने प्रतापसिंह पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया था। राजद्रोह का मुकदमा गुप्त ने 10 वर्ष तक लंदन में लड़ा था। लेकिन नतीजा नही निकलने पर 1857 की बगावत में शामिल हुए थे। अंग्रेजो ने उन्हंे फांसी दी थी। सातारा 1942 की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण स्थान हैं। नाना पाटिल ने यहॉ समानान्तर सरकार चलायी थी। उसे पत्री सरकार भी कहते थे। अगें्रजो के साथ देने वालो के पैर में नाल लगा दी जाती थी। जब राष्ट्र सेवादल से जुडे़ नाना पाटिल संसद में पहंुच थे तब डॉ. लोहिया ने उनसे बोलने को कहा था तथा उनका इतिहास याद दिलाया था। सातारा में चुनिन्दा वरिष्ठ साथियो के साथ बैठक हुई। जिसमें सातारा पत्रकार संघ के अध्यक्ष विजय दत्तात्रय मांडके, पार्ध पोलके, विद्रोही सांस्कृतिक संस्थान के अध्यक्ष प्रो. पुरूषोत्तम सेठ, दत्ता शिंदे, सुनील खलेकर, षिन्दे हजारे, प्रर्णित भ्रष्टाचार विरोधी जनआन्दोलन के जिला अध्यक्ष मोहनराव शंकरराव सावंत शामिल थे। सभी ने कहा की खबर यात्रा के आने के कुछ ही दिन पहले मिली इस कारण साथियो को नही बुलाया जा सका। सभी ने कहा की सातारा में सभी समाजवादी राष्ट्र सेवा दल के कार्यक्रमों में आते है। वहॉ खुलकर यह बात हुई की महाराष्ट्र मंे अब कार्यक्रमो में अधिकतर सफेद बाल वाले ही आते है। उनका कहना था की काले बाल वालो की यात्रा देखकर उन्हें अच्छा लगा है तथा समाजवादी आन्दोलन के विस्तार की सम्भावनाए दिखलाई पड़ रही हैं। सभी ने कहा की वे फिर से मुझे सतारा में बुलाऐंगे। मैंने प्रस्ताव दिया की डॉ. लोहिया जन्म शताब्दी समारोह समिति का गठन किया जाना चाहिए। सभी ने सहमति व्यक्त की तथा समिति गठित करने के लिए आष्वत किया।
सांगली पहुंचने पर खाना खाया। सेवा दल के छात्र छात्राओं ने झांज के साथ रैली निकाली। गांधी पुतले पर पहुंचकर सभा की। सभा में जनतादल (सेक्युलर) के प्रदेष अध्यक्ष, माजी आमदार विनायक पाटिल मौजूद थे। सभा स्थल के बगल में मंदिर था जहॉ धार्मिक कार्यक्रम पूरे जोषखरोष के साथ चल रहा था। पूछने पर मालुम हुआ कि बारिश नही होने के कारण देवदासियों द्वारा भगवान को प्रसन्न करने के लिए यात्रा निकाली जा रही है। पूरी मस्ती के साथ पूरे माथे पर हल्दी कुम कुम लगाकर औरते नाच रही थी। गाने डेक पर फुल वाल्युम में चल रहे थे। भगवान को खुश कर बारिश लाने की कोशिश पूरे हिन्दुस्तान में चलती हैं अलग अलग कर्मकाण्ड किए जाते है। अंध विश्वास देश में कायम ही नही है लगातार बढ़ता जा रहा हैं हालांकि महाराष्ट्र में अंध श्रद्धा निर्मुलन का बड़ा आन्दोलन है लेकिन फिर भी अंध विश्वासो ने पूरे समाज को आज भी जकड़ रखा है।
वहॉ से हम कोल्हापुर पहंुचे। राष्ट्र सेवा दल के 100 छात्र छात्राओं ने सांस्कृतिक नाच गाने, झांझ लेजिम के साथ जोरदार स्वागत किया। मुझे अतिप्रसन्नता तब हुई जब भाई वैद्य, भरत लाटकर, बाबा मुलीक, हसन देसाई और अनवर राजन स्वागत के लिए दिखलाई पडे़। उन्होंने गले लगाया आशिर्वाद दिया। हमने तारा रानी शिवाजी महाराज की बहू की पुतले पर पुष्पाजंली अर्पित की। तारा रानी ने कोल्हापुर की रियासत का संचालन किया था। स्त्री होकर भी औरंगजेब का मुकाबला किया। वहॉ से हम कर्मवीर भाऊराव पाटिल के पुतले तक गए। भाई वैद्य घुटने बदले जाने के बाद भी बार बार कहने के बावजूद हमारे साथ चले भाऊराव पाटिल ने बहुजन समाज को षिक्षा दिलाने के लिए स्कूल और छात्रावास चलाए। ''कमाई करो और पढ़ाई करो'' का नारा दिया था। उनकी पत्नी की प्रतिबद्धता भी इतनी थी कि एक बार जब छात्रावास में बच्चो को खाना देने के लिए कुछ नही होने की बात बताई तो उन्होंने मंगल सूत्र बेचकर छात्रावास चलाया। मुझे लगता है की हिन्दुस्तान में महाराष्ट्र से ज्यादा शिक्षा पर कार्य सामाजिक सुधार की दृष्टि से कहीं नही किया गया।
कोल्हापुर में आंतकवाद विरोधी मुहिम चलाने के अभियान कार्यक्रम के दौरान जगन्नाथ कांदलकर, विजय टिपूगडे, व्यंकाप्पा भोसले, सुरेष षिपुरकर, राजू बनसोडे, विनायक सुतार, हसन देसाई, एम.एम. पाटोले,तरूण भारत, निवासी संपादक समीर देषपांडे, मनोज साकंुरवे, भरत लाटकर बाबूबेन पठान, गंगाप्रसाद, व्यंकप्पा भोसले, सुरेष षिपुरकर, प्रा. जब्बार कुरेषी, अन्वर हुसैन, भाई वैद्य, हुसेन जमादार, आबा कांबई ने अपने विचार रखे।
अगले दिन के कार्यक्रम की बात चली पता तब चला कि संवादहीनता के कारण बेलगांव बात नही हो सकी। मेरी एक बार रैयत संगठन के नेता पूर्व मंत्री नाना गौडा पाटिल से बात हुई थी बाद में नहीं हुई। तत्काल युसुफ मेहर अली सेंटर में ट्रस्टी, खादी गामोद्योग आयोग के पूर्व सदस्य हरीष शाह से बात की। उन्होंने अपने मित्र तरूण भारत के सम्पादक एवं मलिक से तुरन्त बातचीत कर व्यवस्था कराई।
अल्प संख्यक सर्वसेवा संघ के द्वारा आंतकवाद पर गोष्टी में हम शामिल हुए। वहॉ एक से एक धुरन्धर वक्ताओं के विचार सुनने मिले। अमरनाथ भाई, जावेद भाई सभी का कहना था कि आतंकवादियो का कोई मजहब नही होता। सभी वक्ताओं ने बतलाया की किस तरह चुन चुन कर मुसलमानो को आंतकवादी घोषित किया जा रहा है मुस्लिमो को प्रताड़ित किया जा रहा है। मैंने कहा कि धर्म के भीतर लोकतंत्र लाना महत्वपूर्ण हैं। मैंने सभी वक्ताओं से सहमति व्यक्त की कि धर्म निरपेक्षता में विश्वास रखने वालो को अपने मजहब के भीतर ही सुधार का वातावरण बनाना चाहिए। मैंने यह भी कहा कि धार्मिक कार्यक्रमो, आयोजनो मस्जिदो मंदिरो की बैठको में कही भी सेक्युलरवादी टिक नही पाते। जब तक धर्म के भीतर खुली बहस नही की जाएगी तब तक बात बनेेगी नहीं। अपने धर्म के भीतर ही कट्टरवादियो का पर्दाफाष करना पड़ेगा लेकिन ऐसा करने की हिम्मत आमतौर पर देखी नही जाती। सरकारी तंत्र के दमन की बात भी बहुत चली। मैंने डॉ0 लोहिया का उल्लेख करते हुए कहा कि बैलेट से बुलेट के यात्रा को रोकने का तरीका सत्याग्रह और सिविल नाफरमानी के अलावा और कुछ नही हो सकता। रात को कोरगांवकर हाई स्कूल जिसका राष्ट्र सेवा दल संचालन करता है। वहॉ पर प्राचार्य के कमरे में दरी बिछाकर सोया।
यात्रा के दौरान अखबार में धूलिया में कोली समाज के प्रदर्षन पर पुलिस फायरिंग की खबर मिली मन दुःखी हुआ। फिर सोचा की पुलिस गोली चालन पर यदि डॉ. लोहिया जी केरल के समाजवादी मुख्यमंत्री पटृमथानु पिल्लई से इस्तीफा मांगने के मुद्दे को यदि समाजवादियो ने पकड़ लिया होता तो देष की हालत अलग होती। यात्रा में इस पर हम जोर दे रहे है लेकिन कोई भी राजनीतिक दल इस पर सोचने तक को तैयार नही हैं। सभी राज्य सत्ता का इस्तेमाल विरोधियो का दमन करने तथा लूट की खुली छूट बनाए रखने के लिए करना चाहते हैं।
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