जब्रजस्ती का प्यार

जब्रजस्ती का प्यार

> भूमिका: कहानी की शुरुआत पांडेय परिवार से होती है, जो उत्तर प्रदेश का रहने वाला

पांडेय परिवार उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले में रहने वाला एक साधारण मिडिल क्लास परिवार है। विश्‍णु पांडेय घर के मुखिया हैं, जो कि एक सरकारी रिटायर्ड पुलिस अफसर हैं। अपने जीवन में उन्होंने काफी संघर्ष किया है। उनका स्वभाव आग की तरह तेज है – बहुत सख्त निगाह रखने वाले और गुस्सैल।

इस परिवार में उनकी पत्नी हैं, एक बेटी है जिसकी कुछ साल पहले ही उन्होंने शादी कर दी थी। उनकी बहन भी है, जिसके पति अब इस दुनिया में नहीं हैं, इसलिए वह अपने भाई के घर में ही रहती हैं। बहन का एक बेटा भी है जो यहीं रहकर पढ़ाई करता है।

इनका एक लाडला बेटा भी है, जो अपने पिता से बहुत डरता तो है, लेकिन फिर भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आता, जिस कारण विश्‍णु पांडेय बहुत परेशान रहते हैं। मजबूरन उसकी शादी करवाई जा रही है – शायद शादी के बाद अथर्व सुधर जाए या ज़िम्मेदार बन जाए

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किरदार (Characters):

अथर्व पांडेय – 23 साल का बिगड़ा हुआ लड़का, गुस्सैल, चिड़चिड़ा, अहंकारी और शायद थोड़ा लड़कियों के पीछे भी रहने वाला। अपने पिता की बड़ी और थोड़ी बहुत लग्ज़री दुकान पर रहता है जो चौराहे की सबसे बड़ी और fancy दुकान मानी जाती है।

सपना त्रिपाठी – 20 साल की शांत, चुलबुली, सीधी-सादी और साफ दिल की लड़की, जो अपने माता-पिता के साथ रहती है और अपने काम से मतलब रखती है। उसके घरवाले उसे अकेले आने-जाने की ज़्यादा छूट नहीं देते। पतली, शांत, 5 फुट लंबी, कमर तक घने बाल, दूध जैसी गोरी और जब मुस्कुराए तो गालों में डिंपल पड़ता है — जिसे भी देखे, नजरें हटाना मुश्किल।

शोभा जी – अथर्व की मां, एक घरेलू औरत जो बात-बात पर टोक देती हैं। हमेशा पति और बेटे के बीच फँसी रहती हैं। थोड़ा चिड़चिडी और घर के कामों को ज्यादा महत्व देने वाली, लेकिन बेटे से जान से भी ज्यादा प्यार करती हैं।

कनक – अथर्व की बहन, सीधी-सादी और शादीशुदा।

विष्णु पांडेय – भारी शरीर वाले, गुस्सैल, अनुशासन पसंद करने वाले व्यक्ति। सख्त ऐसे जैसे हिटलर।

कंचन जी – घरेलू औरतों की तरह हर बात और खबर रखने वाली और अपने बेटे की दलाली करने में लगी रहने वाली।

कृष्णा – कंचन का बेटा, एक सीधा-सादा पढ़ने-लिखने वाला लड़का, कोई गलत काम नहीं करता। बहुत सज्जन, जो मिल जाए उसी में खुश।

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एपिसोड – 1

"पांडेय परिवार कहाँ रहता है?" किसी आदमी ने तेज आवाज़ में पूछा। तभी एक बगीचे से आवाज़ आती है,

"अरे शुक्ला जी, हमारे मोहल्ले में खड़े होकर हमारा पता पूछ रहे हो?"

यह हैं विष्णु पांडेय। ये अपने 23 साल के बेटे के लिए रिश्ता ढूँढ रहे हैं क्योंकि इन्हें लगता है कि जल्दी शादी हो जाने से आदमी जिम्मेदार बन जाता है।

"काफी समय पहले आपकी बेटी की शादी में आए थे, तब आपका मकान हल्के पीले रंग का था, इसलिए पहचानने में दिक्कत हो रही थी," शुक्ला जी थोड़ी ऊँची और परेशान आवाज़ में बोलते हैं और घर के अंदर आते हैं।

"अभी दिवाली पर ही सफेदी करवाई है," (विष्णु जी मुस्कुराकर हाथ मेन गेट की ओर करते हैं और उन्हें अंदर आने को कहते हैं)...

(अंदर प्रवेश करते ही)

शुक्ला जी जैसे ही अंदर आते हैं, पांडेय परिवार की बड़ी बहू और विष्णु पांडेय की पत्नी उन्हें देखकर खुश हो जाती हैं। उन्हें लगता है कि आज इतने सालों बाद शुक्ला जी आए हैं तो ज़रूर कोई अच्छा रिश्ता बेटे के लिए लेकर आए होंगे...

रसोई में जाते ही वह चाय चढ़ा देती हैं, सोहन पपड़ी निकालकर उनके लिए पानी लेकर आती हैं।

"क्या बात है शुक्ला जी, आप तो बहुत समय बाद पधारे," शांत और नरम आवाज़ में बगल के सोफे पर आकर बैठ जाती हैं और शुक्ला जी की तरफ उम्मीद भरी नज़रों से देखती हैं।

"हाँ दरअसल भाभी, भइया से तो दुकान पर मुलाकात होती रहती है, बस आपसे नहीं हो पाती, तो हमने सोचा हम खुद ही आकर अपने मुँह से खुशखबरी दे दें," इतना कहते हुए सब थोड़ा मुस्कुराते हैं जैसे शादी की बात ना चल रही हो बल्कि पक्की ही हो गई हो। सभी के मन में उलझन थी कि क्या होगा? लड़की कैसी होगी? परिवार कैसा होगा? क्या वह हमारे बेटे को समझ पाएगी? घर के काम कर लेगी? परिवार में उसकी क्या राय होगी? ... मन ही मन शोभा जी यही सब सोच रही थीं तभी गहरी आवाज़ में कहती हैं,

"कोई खुशखबरी है? आपको तो पता है भैया, अब बस इंतज़ार नहीं होता। जल्दी से इसकी शादी करके हम इस ज़िम्मेदारी से मुक्त होना चाहते हैं, बहुत थक गए हैं।" (चिड़चिडाहट और मुस्कान के साथ)

शुक्ला जी:

"समझ रहे हैं भाभी, इसी लिए तो आज हम आपके घर आए हैं," (विष्णु जी की तरफ देखते हुए) "भैया, बहुत अच्छा रिश्ता है, जान लीजिए लड़की त्रिपाठी परिवार की है। न कोई भाई, न कोई बहन...

माता-पिता चाहते हैं कि अपनी बेटी को अच्छे परिवार में दें और उन्हें आप से अच्छा परिवार कहाँ मिलेगा।"

(हल्की मुस्कान के साथ पांडेय जी को यह बताने के अंदाज़ में कि यह परिवार बहुत दमदार और पैसा वाला है)

विष्णु पांडेय:

"शुक्ला जी आप लेन-देन की बात बढ़ाइए, अगर अच्छा सम्मान करेंगे तो हमें कोई परेशानी नहीं होगी। हम बारात लेकर जाने के लिए तैयार हैं।"

बहुत ही खुशी से विष्णु जी अपनी पत्नी की तरफ देखते हैं, सीना चौड़ा करके सोफे पर फैल जाते हैं और मन खुशी से झूम उठता है।

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उधर सपना के परिवार में:

सपना एक अकेली लड़की थी जिस पर घर की औरतें नज़र रखती थीं – वो न लड़कों से बात करती, न कहीं ज्यादा आती-जाती। गर्ल्स स्कूल और गर्ल्स कॉलेज में पढ़ी हुई। सपना की दादी चाहती थीं कि शादी जल्दी हो जाए ताकि वे अपनी नातिन की शादी देख सकें। उनके जमाने के बाद परिवार में कोई लड़की नहीं हुई थी और ना उन्होंने किसी लड़की की शादी देखी थी, इसलिए वे चाहती थीं कि सपना की शादी उनकी आँखों के सामने हो जाए – इसी वजह से वो जल्दी शादी करवाना चाहती थीं।

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इधर दूसरी ओर:

एक Royal Enfield Classic 350 (Black & Chrome finish) पर एक लंबा चौड़ा (लगभग 6 फुट) गोरा और तीखी आँखों वाला लड़का आ रहा था। सफेद शर्ट के ऊपरी दो बटन खुले हुए, और ढीली पैंट पहने।

पीछे से आवाज़ आती है:

"अरे यार पांडेय! तुम्हारा तो रोज़ का हो गया है। तुम रोज़ सुबह दुकान 8 बजे खोलकर बैठ जाते हो, हमारा इंतज़ार करते रहते हो और तुम लौंडियाबाज़ी करते आते हो। ज़रूरी है क्या कि रोज़ पहले उस लड़की का दर्शन करो, फिर दुकान में आओ? 10 बजने को आए हैं लेकिन तुम्हारा कुछ पता नहीं था!"

ये आवाज़ अथर्व के बड़े भाई जैसे दोस्त जतिन की थी जो दुकान संभालता है और हर सही या गलत काम में अथर्व का साथ देता है।

अथर्व पीछे से आता है, अपनी लंबी सांस लेते हुए, हवा में उड़ती हुई अपनी शर्ट के खुले बटन को संभालता हुआ कहता है:

"अरे भइया, थोड़ा ठंडा पियो और दिमाग शांत करो। वो क्या है कि उसका घर रास्ते में पड़ता है, तो सोचा ज़रा दर्शन कर लें, बादाम में बड़ा दर्द हो रहा था।"

एक ज़हरीली और कातिलाना मुस्कान देते हुए अपनी भौहें ऊपर उठाते हुए पास पड़ी काली घूमने वाली कुर्सी पर बैठ जाता है और लंबी सांस लेते हुए कहता है,

"कोई काम आया? कोई कस्टमर?"

जतिन रिलैक्स होकर काउंटर के पास बैठ जाता है और बोलता है,

"हाँ, बोहनी हो गई है।"

और दोनों बातें करने लगते हैं...

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END

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