अब तक,
अथर्व पीछे से आता है, अपनी लंबी सांस लेते हुए, हवा में उड़ती हुई अपनी शर्ट के खुले बटन को संभालता हुआ कहता है:
"अरे भइया, थोड़ा ठंडा पियो और दिमाग शांत करो। वो क्या है कि उसका घर रास्ते में पड़ता है, तो सोचा ज़रा दर्शन कर लें, बदन में बड़ा दर्द हो रहा था।"
एक ज़हरीली और कातिलाना मुस्कान देते हुए अपनी भौहें ऊपर उठाते हुए पास पड़ी काली घूमने वाली कुर्सी पर बैठ जाता है और लंबी सांस लेते हुए कहता है,
"कोई काम आया? कोई कस्टमर?"
जतिन रिलैक्स होकर काउंटर के पास बैठ जाता है और बोलता है,
"हाँ, बोहनी हो गई है।"
और दोनों बातें करने लगते हैं...
अब आगे
...----------------...
उधर अथर्व के पिताजी शुक्ला जी से कहते हैं –
“शुक्ला जी, जल्दी ही उन लोगों से बात कीजिए, मुलाकात करवाइए और शादी फिक्स कीजिए। हमें किसी भी तरह की देरी नहीं करनी है।”
तभी शुक्ला जी कहते हैं –
“ठीक है पंडित जी, जैसा आपका आदेश। कल ही उन लोगों के पास जाता हूँ और मुलाकात करके आपको लड़की देखने के लिए कहता हूँ।”
पांडे जी का अचानक से रंग भाँपते हुए शुक्ला जी बोले –
“क्या आप रिश्ता लेकर आए हैं और फोटो भी नहीं लाए?”
तभी शुक्ला जी हँसते हुए कहते हैं –
“अरे हाँ! मैं तो बताना ही भूल गया, मैं फोटो लेकर आया हूँ।”
इतना सुनते ही मिसेज़ पांडे यानी शोभा जी का चेहरा खिल उठता है। वो कहती हैं –
“अरे लाईए, फोटो तो दिखाइए, देर किस बात की?”
शुक्ला जी खुशी से अपना छोटा बैग खोलते हैं और उसमें से एक सफेद लिफाफे में रखी फोटो निकालते हैं। वो वह फोटो पांडे जी के हाथ में पकड़ा देते हैं और हाथ जोड़कर कहते हैं –
“पांडे जी, अब आप शाम को हमें फोन करके बताइएगा कि आखिर आपको करना क्या है। देखिए, रिश्ता अच्छा है, आपका बेटा खुश रहेगा। और रही बात घर-परिवार की… तो लड़की भी घर-परिवार की ही है। जिस घर से निकलेगी, उसी नियम-संस्कार के साथ आपके घर में आएगी। आपको ये सब सोचकर समझदारी से फैसला लेना चाहिए।”
इतना कहकर वो उठ जाते हैं। उनके उठते ही मिसेज़ पांडे और मिस्टर पांडे भी उठकर उन्हें गेट तक छोड़ने जाते हैं और फिर वापस अंदर आते हैं।
तब तक शोभा जी लिफाफा खोलकर फोटो देख रही थीं। लिफाफा खोलते ही उनकी आँखें खुशी से चमक उठीं। उनके चेहरे का एक्सप्रेशन बता रहा था कि लड़की उन्हें पसंद आ गई है। वो पांडे जी की तरफ देखती हैं और मुस्कुराती हैं।
पांडे जी उनसे तेज और गम्भीर आवाज़ में पूछते हैं –
“क्यों? लड़की पसंद आई?”
तभी मिसेज़ पांडे हँसते हुए कहती हैं –
“हाँ बिल्कुल! आखिर हमारे शुक्ला जी की पसंद है, सुंदर तो होगी ही न।”
इतने में बाहर से उनकी ननद यानी कंचन आती हैं और पूछती हैं –
“क्या बात है भाभी? ये किसकी फोटो है?”
शोभा जी खुशी से कहती हैं –
“अरे दीदी, आज शुक्ला जी आए थे। हमारे अथर्व के लिए एक बहुत अच्छा रिश्ता लेकर आए थे। मुझे तो लगता है कि ये रिश्ता जरूर पक्का होगा। ऐसा लग रहा है जैसे ये लड़की हमारे अथर्व के लिए ही बनी है… मेरा दिल कह रहा है, दीदी…”
लेकिन अथर्व को इस बात का बिल्कुल अंदाज़ा नहीं है कि उसके घर में क्या चल रहा है। उसे लगता है कि उसकी शादी तो शायद 27–28 या 29 साल की उम्र में होगी। अभी तो वो सिर्फ़ 23 साल का है और उसकी एक गर्लफ्रेंड भी है जिसका नाम कोमल है। वो दोनों पिछले पाँच साल से साथ हैं। प्यार है या नहीं ये तो पता नहीं, लेकिन कोमल शारीरिक और मानसिक रूप से पूरी तरह अथर्व के बस में रहती है। आज सुबह भी वो उसी के बारे में सोच रहा था और उसी से मिलने गया था। ऐसे में वो अभी किसी दूसरी लड़की से शादी के बारे में बिल्कुल नहीं सोच रहा है।
अथर्व के माता-पिता को यह बिल्कुल भी ज़रूरी नहीं लगा कि वे अथर्व को कुछ बताएं या उससे पूछें, क्योंकि उन्हें पता था कि उसका स्वभाव और सोच कैसी है — वह शादी के लिए तुरंत मना कर देगा। इसलिए उन्होंने उससे कोई राय या सलाह नहीं ली और अपने मन से उसकी शादी तय कर दी।
शादी से कुछ दिन पहले ही उसे बताया गया और फिर ज़बरदस्ती उसे शादी के मंडप में बिठा दिया गया। इस वजह से वह अंदर ही अंदर बहुत डिस्टर्ब और फ्रस्ट्रेटेड हो गया था। वह कोमल को बिल्कुल नहीं छोड़ना चाहता था, लेकिन ऐसा भी नहीं था कि वह किसी दूसरी औरत के पास जाना नहीं चाहता। बस उसे लगता था कि सपना उसकी ज़िंदगी में तूफ़ान बनकर आएगी और उसकी सारी खुशियाँ, उसकी आज़ादी, उसकी अय्याशियां और उसकी सारी गर्लफ्रेंड. को चीन लेगी
इसी तरह बात बढ़ती है। वह अपने आप को शादी के मंडप में पाता है, और उसकी शादी एक सपना नाम की लड़की से हो रही होती है, जिसे वह जानता भी नहीं। उसके पास बैठी एक 20 साल की मासूम और पतली लड़की, जिसके गुलाबी होंठ और काली, भारी, गहरी आँखें थीं, अपने मन में यह सोच रही थी कि — क्या मैं यह रिश्ता निभा पाऊँगी? क्या मेरी जिससे शादी हो रही है, वह मुझे प्यार करेगा? मुझे समझेगा? क्या वह मेरी फीलिंग्स को समझ पाएगा? उसे अंदर ही अंदर डर लग रहा था, पर वह क्या करे।
उधर अथर्व गुस्से से लगभग तड़प रहा था। उसको लग रहा था कि बस यह सब जल्दी खत्म हो जाए और मैं यहाँ से चला जाऊँ। देखते ही देखते रात गुजर गई और शादी की सारी विधि पूरी हो गई।
अगले दिन वे सब वापस घर आ जाते हैं यानी सपना अपने ससुराल, पांडे हाउस में पहुँच जाती है। देखते ही देखते शाम हो जाती है और कैमरा सज़ जाता है..
वह कमरे में अंदर आती है। कमरा न ज्यादा बड़ा था, न ज्यादा छोटा — बिल्कुल सामान्य आकार का। बीच में एक पलंग था, एक लकड़ी की अलमारी, एक स्टडी टेबल और कुछ इधर-उधर का सामान रखा हुआ था। कमरा थोड़ा खाली-खाली सा था लेकिन गुलाब और सफेद फूलों से पूरा सजा हुआ था।
वह बेड पर जाकर बैठ जाती है। जैसे ही वह बैठती है, उसकी साँसें थोड़ी तेज हो जाती हैं। वह सोचती है — कमरा तो अच्छा है...
उसकी साड़ी का पल्लू नीचे ज़मीन तक लटक रहा होता है। उसने लाल रंग की साड़ी पहनी है, माथे पर पीला सिंदूर और लाल बिंदी, होठों पर गहरे गुलाबी रंग की लिपस्टिक। देखने में इतनी प्यारी लग रही थी कि अगर कोई देखे तो बस देखता ही रह जाए।
वह खिड़की के पास जाकर बाहर का नज़ारा देखने लगती है — सोचती है कि यह जगह कैसी है, लोग कैसे होंगे। तभी दरवाज़ा अचानक ज़ोर से खुलता है, और एक लंबा-चौड़ा, गोरा आदमी कमरे में तेज़ी से आता है — वह कोई और नहीं, बल्कि उसका पति अथर्व पांडे था।
अथर्व कमरे में आते ही गुस्से में तेज़ी से दरवाज़ा बंद करता है और पर्दे खींच देता है। सौम्या डर के मारे अपने मन में सोचती है —
"अरे! इतनी जल्दी आ गए? अभी तो 10:30 भी नहीं हुए। मुझे लगा था मैं थोड़ा आराम कर पाऊँगी... लेकिन मैं इनसे बात क्या करूँ? मैं तो इन्हें पहली बार मिल रही हूँ, पहली बार देख रही हूँ..."
उसकी नज़रों का ध्यान अचानक अथर्व की आँखों पर टिक जाता है — काले घने बाल, लंबा गोरा बदन, काली-काली आँखें, घनी आइब्रो और हल्की हल्की दाढ़ी — न बहुत ज़्यादा, न बहुत कम।
अथर्व थोड़ी दूर पर खड़ा होता है और उसकी तरफ देखता है और अपने दिमाग में सोचता है –
"शादी तो हो ही गई है, रिश्ता तो निभाना ही है। अब वह जबरदस्ती का हो या प्यार का, लेकिन मैं कोमल को तो नहीं छोड़ूंगा। उसे मैं कभी नहीं भूल सकता। लेकिन शादी तो सिर्फ जिस्म के लिए होती है और यह भी यही चाहती होगी कि मैं इसके पास रहूँ। प्यार का नहीं पता, लेकिन वह जरूर दूंगा इसे। मैं इसे इतना परेशान करूंगा, इतना रुलाऊंगा कि यह खुद मुझे छोड़कर चली जाएगी और मेरा इससे पीछा छूट जाएगा।"
गोल्डन शेरवानी में खड़ा, माथे पर लाल चंदन लगाए, मासूम दिखने वाला वह लड़का अपने दिमाग में ये सब सोच रहा था।
क्या यह कोई सोच सकता है? अंधेरे में सपना की तरफ नज़र पड़ती है। सपना उसकी तरफ देखती है और एक कदम पीछे चली जाती है – जैसे अभी वो उसे खा जाएगा।
ऐसे देखा, जैसे कि उसने कोई बहुत बड़ा गुनाह कर दिया हो। और तभी उन दोनों की नज़रें मिलती हैं।
वह सब कुछ उसकी आँखों में देखती है, पर वह सपना की आँखों में देखता है – उसकी आँखों में एक मासूमियत थी।
"मैं क्या बोल दूँ? क्या बात करूँ? क्या हम पहले कुछ समय बात करेंगे? क्या वह मुझसे मेरा नाम, मेरी पढ़ाई और मेरी पसंद पूछेंगे?" – वह यह सब सोच रही थी
पर वह (लड़का) कुछ और ही सोच रहा था।
वह सब उसके साथ करने जा रहा था जो एक लड़की कभी सोच भी नहीं सकती… शायद कभी माफ भी नहीं कर सकती।
End~
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