अब तक
सपना का सीना अभी भी तेजी से उठ-गिर रहा था, उसके शरीर पर ताज़े निशान थे। अथर्व उसे देखता है और कहता है –
"अरे तुम रो क्यों रही हो? अब तो ये रोज़ होगा। तुम्हें इसकी आदत डालनी चाहिए।"
और अपनी कातिलाना मुस्कान के साथ दूसरी तरफ करवट लेकर सो जाता है।
सपना अपना शरीर सिकोड़कर चादर में लिपट लेती है। आँखें बंद करते ही उसे थोड़ी राहत मिलती है कि यह सब ख़त्म हुआ, और कुछ ही पल में वह नींद में डूब जाती है।
अब आगे
सुबह होते ही बिस्तर पर कुछ सिलवटें पड़ी होती हैं। दोनों बिस्तर पर सुकून की नींद सो रहे होते हैं। उनके चेहरे देखकर साफ पता चल रहा था कि दोनों की रात कितनी शानदार गुज़री है।
तभी अचानक सपना की नींद खुलती है। उसे कुछ समझ नहीं आता कि वह किस स्थिति में है। वह बिना कपड़ों के बिस्तर पर लेटी हुई थी। उसने पास देखा तो उसका पति, अथर्व, गहरी नींद में सो रहा था।
सपना खुद को संभालने की कोशिश करती है। जैसे ही उठने लगती है, उसे अपने शरीर में—खासकर योनि में—चुभन और दर्द महसूस होता है। दर्द इतना था कि वह ठीक से चल भी नहीं पा रही थी। वह फिर से बिस्तर पर बैठ जाती है। कुछ देर बाद हिम्मत जुटाकर खड़ी होती है, अपनी ब्रा और पैंटी पहनती है और बाथरूम चली जाती है।
फ्रेश होकर लौटने के बाद वह सूटकेस से कपड़े निकालती है और एक पीले रंग का सूट पहन लेती है। वह तैयार ही हो रही होती है कि अचानक अथर्व की नींद खुलती है। वह अंगड़ाई लेते हुए कहता है –
“चाय पीने का मन कर रहा है, तेरी।”
सपना घबराकर उसकी ओर देखती है, लेकिन जल्दी-जल्दी तैयार होकर बाहर जाने लगती है। तभी अथर्व उठकर कहता है –
“अरे, रुको! कहां जा रही हो?”
सपना उसकी बात सुनकर अपनी जगह पर जम जाती है। अथर्व बिस्तर से उठता है। उसने वह सपना के करीब आता है, उसकी ठोड़ी पकड़कर मुस्कुराते हुए बोलता है –
“अभी तो सुबह का सेशन बाकी है।”
यह कहकर वह सपना को दीवार से टकरा देता है। सपना की जान निकलने वाली थी। उसने धीमी आवाज़ में कहा –
“मुझे नीचे जाना है… किचन में काम है… मुझे बुलाया गया है।”
सपना की मासूम और डरी हुई आवाज़ सुनकर भी अथर्व हंसते हुए बोला –
“कोई तुम्हें कुछ नहीं कहेगा। मैं सबसे बात कर लूंगा। चलो, एक घंटा और…”
सपना डरते-डरते बोली –
“नहीं… सुबह के सात बजने वाले हैं। मुझे जाना है। मुझे दर्द हो रहा है… अब नहीं करना।”
उसकी आंखों में डर और बेचैनी साफ दिख रही थी। दोनों की आंखें मिलीं तो अथर्व के दिल में अजीब-सा झटका महसूस हुआ। उसकी पकड़ ढीली हो गई। सपना की काली आंखें और उन पर लगा काजल देखकर उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने उसके सीने पर खंजर चला दिया हो। उसका दिल ज़ोरों से धड़कने लगा।
वह हड़बड़ा गया और नज़रें हटा लीं। कुछ सेकंड की खामोशी के बाद वह बोला –
“अभी भी तुम्हें समझ नहीं आ रहा कि मैं कह रहा हूं क्या? तू चाहती है कि मैं जबरदस्ती करूं?”
सपना घबराकर बोली –
“नहीं… मैं बस आ ही रही हूं।”
उसका चेहरा लाल और डरा हुआ था। मन ही मन उसने सोचा – क्या वो फिर से कल रात जैसा ही करेगा? क्या उतना ही दर्द होगा? और अगर देर हो गई तो मम्मी क्या सोचेंगी कि मैं शादी की पहली सुबह ही लेट हो गई…
अथर्व का दिल अब और भी जोर से धड़क रहा था। वह सपना की आंखों में देखने से बच रहा था। उसने धीमी आवाज़ में कहा –
“चिंता मत करो… तुम्हारे कपड़े नहीं फाड़ूंगा। बस पैंटी उतार दो।” उसके बाद सपना ने अपनी पैंटी हटा ह और अथर्व उसके अंदर अपने आप को दाल दिया और दोनों एक दूसरे को चमने लगे सपना भी बहुत खुश हो रही थी ना उसे अच्छा लग रहा था और
सपना धीरे-धीरे मानने लगी, लेकिन तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई। बाहर से आवाज़ आई –
“भाभी, आप उठ गईं ना? जल्दी कीजिए… आज आपकी पहली रसोई है।”
यह सुनते ही दोनों शांत हो गए। अथर्व ने तुरंत कहा –
“ठीक है, वो बाथरूम में नहा रही है। तुम वेट करो।”
उसने सपना के मुंह से हाथ हटाया और उठ गया। सपना जल्दी से अपने कपड़े और बाल ठीक करने लगी।
मगर अथर्व का दिल अभी भी धड़क रहा था, उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसके साथ हो क्या रहा है। कल रात तो उसके लिए नहीं धड़का, तो आज क्यों धड़क रहा है? उसकी आँखों में देखने के बाद वह सपनों के बल और सपनों की कश्ती हुई कमर देख रहा था, जिस पर अपना सलवार कस ही थी।
वह अपने दिमाग को समझाता है – “सच में पापा की पसंद को तो मानना पड़ेगा। रात को भी इतना सुकून मिला और अभी कुछ 5 मिनट के समय में ही मुझे इतना सुकून मिल गया है कि लग रहा है जैसे अब किसी चीज़ की ज़रूरत ही नहीं। ऊपर से इसकी आँखें... जितनी बार इसमें देखता हूँ, मेरा तो दिल ही बाहर आ जाता है। ऐसा क्या है इसमें, अपने आप को उससे दूर नहीं कर पाता हूँ। मैं तो आज तक कोमल के साथ भी ऐसा नहीं किया कि रात को करने के बाद सुबह उठूँ और फिर से यह करना चाहूँ। तो मैं इसके साथ क्यों कर रहा हूँ?”
उसको कुछ समझ नहीं आ रहा था। तभी सपना, अपने शरीर को ठीक करते हुए, बाहर चली गई। बिना आहट के उसने दरवाज़े का कुंडा खोला और बाहर चली गई। उसका ध्यान सपना पर ही था। लेकिन सपनों की नज़र से बाहर उसे लग रहा था कि आज उसको सब क्या-क्या सुनाएँगे।सुबह-सुबह ही सब सुनेंगे कि पहले दिन ही वह देर से उठी है।
अथर्व गुस्से में सोचता है – “चाहे हजार बातें क्यों न हो जाएँ, जाते-जाते उसे कम से कम एक बार मेरी तरफ पलटकर देखना चाहिए था। लेकिन उसने तो मेरी तरफ देखा तक नहीं।”
वह गुस्से में तकिया फेंक देता है। तभी उसकी नज़र बिस्तर पर पड़ती है, जहाँ कुछ खून की बूंदें दिखाई देती हैं। यह देखकर वह हैरान रह जाता है।
उसने आज तक कभी किसी लड़की के साथ शारीरिक संबंध नहीं बनाए थे। लेकिन यह देखकर उसे अजीब-सा सुकून मिल जाता है कि सपना ही पहली लड़की है जिसके शरीर पर उसका हक हुआ है।
उसका दिल खुश हो जाता है कि उसकी बीवी – जिससे उसकी शादी हुई है – को छूने वाला, उसे अपनाने वाला पहला मर्द वही है।
थोड़ी देर वह सोच में पड़ जाता है – “क्या मैं इसके दिल में जगह बनाना चाहता हूँ? क्या मैं इसे सच में खुश रखूँगा?” लेकिन अगले ही पल उसके मन की दूसरी आवाज़ कहती है – “नहीं... मुझे उसके दिल में कोई जगह नहीं बनानी। मुझे बस इसके साथ शारीरिक रिश्ता रखना है। मुझे इसके साथ सिर्फ जिस्मानी तौर पर पेश आना है।”
इतना सब सोचने के बाद भी उसके चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान आ जाती है।
वह उठकर बाथरूम चला जाता है, फ्रेश होकर बाहर आता है, टेबल से अपनी गाड़ी की चाबी उठाता है और सीढ़ियाँ उतरकर बाहर निकल जाता है। वह ऑफिस जाने ही वाला होता है कि तभी उसकी बुआ कंचन की आवाज़ आती है –
“कहाँ जा रहा है? पहले अपनी बीवी के हाथ का नाश्ता तो कर। उसे शगुन तो दे दे, फिर जाना।”
अथर्व मन ही मन सोचता है – “शगुन तो उसे दे चुका हूँ... ऐसा शगुन कि कम से कम शाम तक उसके शरीर में दर्द रहेगा।”
वह हल्की-सी हंसी दबाता है और बिना कोई जवाब दिए वहाँ से चला जाता है।
इधर सपना बार-बार आँसुओं में भीग रही थी। उतनी ही बार मिसेज पांडे (उसकी सास) उसे गौर से देख रही थीं और उसके हाव-भाव नोटिस कर रही थीं।
उनके मन में सवाल उठ रहा था – “क्या अथर्व ने उससे कुछ कहा? क्या दोनों के बीच कुछ हुआ?”
लेकिन बहू से सीधे-सीधे यह सब पूछना तो संभव नहीं था।
इसलिए वह थोड़ी दूर जाकर अपनी बड़ी बेटी कनक के पास पहुँचीं और बोलीं –
“कनक, तुझे राज़ तो पता ही होगा... क्यों न तू ही जाकर अपनी भाभी से पूछ ले? उसकी मदद भी हो जाएगी और बातें भी साफ़ हो जाएँगी।”
कनक झिझकते हुए बोली –
“माँ, यह कैसी बातें कर रही हो? मैं जाकर भाभी से कैसे पूछ सकती हूँ?”
माँ ने समझाया –
“अरे, तू उससे उम्र में बड़ी है
अगर यह बात पूछ भीलगी तो क्या दिक्कत होगी। और मुझे ऐसा लगता है कि तुझे बताएगी… कभी-कभी मन में ऐसी बातें किसी से नहीं पूछनी चाहिए।
यह कहकर वह वहाँ से चली जाती है।
सपना का मन बहुत परेशान हो रहा था। आज वह पहली बार ससुराल में खाना बना रही थी। लेकिन बनाते-बनाते उसके हाथ काँप रहे थे। मन में अजीब-अजीब से सवाल उठ रहे थे—
कहीं नमक ज्यादा तो नहीं हो गया? कहीं खीर ज्यादा मीठी तो नहीं हो गई? कहीं सब्ज़ी कच्ची तो नहीं रह गई?
इतने में उसकी सास, श्रीमती शोभा पांडे अंदर आईं और बोलीं—
“बहू, हो गया हो तो डाइनिंग टेबल पर खाना लगा दो। नाश्ते का समय तो निकल ही गया है, 10 बजने को आए हैं।”
उनकी बात में हल्का-सा ताना था, जो सपना तुरंत समझ गई। वह बोली—
“जी मम्मी जी, जैसा आप कहें।”
श्रीमती पांडे मुस्कुराते हुए बोलीं—
“नहीं, रहने दो। मैं खुद लगा लूँगी। तुम जाओ, थोड़ा आराम कर लो। थक गई होगी। जब अथर्व दुकान से आ जाएगा तब मैं तुम्हें बुला दूँगी। फिर तुम अपने हाथ का बनाया खाना सबको खिलाना। आखिर ससुराल में यह तुम्हारा पहला शगुन है।”
लेकिन उनके मन में यह खटक रहा था कि अभी तक उन्होंने बहू से यह नहीं पूछा कि उसकी और बेटे की आपस में कोई बातचीत हुई भी है या नहीं। उन्हें अपने बेटे का स्वभाव अच्छे से पता था, इसलिए शक बना हुआ था।
सपना जैसे ही किचन से बाहर निकली, तभी सास ने आवाज़ दी—
“अरे बेटा, सुनो सपना।”
“जी मम्मीजी, कुछ रह गया क्या? अभी कर देती हूँ।”
श्रीमती पांडे बोलीं—
“नहीं बहू, कुछ नहीं। बस इतना कहना था… अगर तुम्हारा बिस्तर गंदा हो गया हो तो चादर बदल लेना।”
यह सुनकर सपना का चेहरा शर्म से झुक गया। बिना कुछ बोले वह तुरंत ऊपर कमरे में चली गई। वहाँ जाकर देखा तो सच में बिस्तर गंदा था। उसने जल्दी-जल्दी अलमारी खोली, एक साफ़ चादर निकाली और बदल दी। उसे ऐसा लग रहा था जैसे कोई बड़ा गुनाह कर दिया हो और अगर किसी को पता चल गया तो लोग क्या सोचेंगे।
उधर अथर्व दुकान पहुँच चुका था। वहाँ जतिन मुस्कुराते हुए बोला—
“अरे यार! आज तो सोचा था तुम नहीं आओगे। अपनी पत्नी के साथ समय बिताते। लेकिन तुम तो हमेशा की तरह यहाँ आ गए।”
अथर्व ने चिड़चिड़ेपन से जवाब दिया—
“क्या मैं इतना पागल दिखता हूँ कि शादी के अगले ही दिन घर बैठा रहूँ? बस देर से उठा, इसलिए थोड़ा लेट आया हूँ।”
जतिन हँसते हुए बोला—
“चल कोई नहीं। लेकिन इतनी सुबह-सुबह काम क्या था?”
अथर्व बोला—
“कल रात पैसे नहीं निकाले थे। आज खाना खाने के समय मुंह दिखाई देनी है। अगर पापा के सामने खाली हाथ बैठा तो डाँट पड़ जाएगी। इसलिए पहले कुछ पैसे अपने पास रख रहा हूँ।”
जतिन ने हँसकर कहा—
“देखा, मैं हमेशा कहता हूँ ना कि पैसे अपने पास रखना चाहिए। तुम तो घर में छोड़कर चले आते हो।”
अथर्व हल्की मुस्कान के साथ बोला—
“क्योंकि मुझे तुम पर भरोसा है।”
जतिन मुस्कुरा दिया। फिर छेड़ते हुए बोला—
“तो, रात कैसी रही?”
अथर्व ने उसे इग्नोर करते हुए कहा—
“मेरे लिए हर रात जैसी ही थी। कोई नई बात नहीं।”
जतिन ने सिर हिलाते हुए कहा—
“तू कभी बदलने वाला नहीं।”
इतने में अथर्व के फोन पर मैसेज आया—
“मुझसे तुरंत मिलो, मेरे घर आओ।”
उसका चेहरा बदल गया। हल्की-सी घबराहट, थोड़ी लालिमा और एक अजीब-सी मुस्कान। वह बोला—
“मैं अभी आया।”
और बुलेट उठाकर निकल गया।
दरवाजे पर पहुँचते ही वह देखता है कि दरवाज़ा जैसे उसी का इंतज़ार कर रहा हो। दरवाजा खुला और सामने खड़ी थी कोमल— उसकी पुरानी प्रेमिका।
कोमल को अब पता चल चुका था कि अथर्व की शादी हो चुकी है। शादी को बस एक दिन ही हुआ था लेकिन उससे अब तक कुछ नहीं बताया गया था।
कोमल की आँखों में दुख, जलन और गुस्सा साफ झलक रहा था। उसने तंज कसते हुए कहा—
“आ गए साहब? रात तो किसी और की बाँहों में बीती होगी ना?”
अथर्व थोड़ा झिझकते हुए बोला—
“लेट हो गया, सॉरी।”
कोमल ने आँखों में आँसू लिए कहा—
“मुझे सब पता चल गया। तुम्हारी बहन ने फेसबुक पर फोटो डाली है। तुम्हारे घर वाले पागल हो गए हैं क्या, इतनी जल्दी शादी करवा दी? और तुमने मुझे एक शब्द भी नहीं बताया!”
अथर्व गहरी साँस लेते हुए बोला—
“तुम जानती हो ना मेरे पापा को। अगर उनकी बात नहीं मानता तो शायद आज ज़िंदा भी न रहता। मेरी मजबूरी थी।”
कोमल ने उसकी आँखों में देखते हुए पूछा—
“ठीक है, लेकिन एक बात सच-सच बताओ… उस लड़की के साथ कोई रिश्ता तो नहीं बनाया ना?”
अब अथर्व क्या बोलेगा कोमल को? क्या सच जानने से कोमल उसके साथ अपना रिश्ता तोड़ देगी? सपना को कभी अथर्व से प्यार होगा? क्या उसे आधार के धोखे का पता चलेगा?
END
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Comments
Quản trị viên
I'm obsessed with this story, don't stop writing!
2025-08-22
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