पहले ही मुलाकात में अथर्व की है हैवानियत

अब तक

"मैं क्या बोल दूँ? क्या बात करूँ? क्या हम पहले कुछ समय बात करेंगे? क्या वह मुझसे मेरा नाम, मेरी पढ़ाई और मेरी पसंद पूछेंगे?" – वह यह सब सोच रही थी

पर वह (लड़का) कुछ और ही सोच रहा था।

वह सब उसके साथ करने जा रहा था जो एक लड़की कभी सोच भी नहीं सकती… शायद कभी माफ

अब आगे

अथर्व उसके पास आता है। वे दोनों थोड़ी दूरी पर खड़े होते हैं। सपना डर से कांप रही होती है। उसके मन में चल रहा होता है – ये मेरी तरफ क्यों आ रहा है? कुछ बोल क्यों नहीं रहा?

अथर्व अपने दिमाग में सोच रहा होता है – ये कितनी हसीन और खूबसूरत है… मेरी तो नजर ही इससे हट ही नहीं रही। लेकिन तभी अचानक कोमल का चेहरा उसकी आंखों के सामने आ जाता है। उसकी आंखों में फिर से गुस्सा उतर आता है। माथे की नसें तन जाती हैं, हाथ गुस्से में मुट्ठी बन जाते हैं। पूरा चेहरा आग की तरह लाल हो उठता है। वह मन में सोचता है – क्या इसका कभी कोई बॉयफ्रेंड रहा होगा? क्या किसी के साथ कुछ... अगर ऐसा हुआ तो मैं इसकी जान ले लूंगा, आज रात ही।

इसी तरफ सपना मासूम चेहरा लिए उसकी तरफ देखती है और फिर निगाह झुका लेती है। उसे अंदाजा भी नहीं था कि अब उसके साथ क्या होने वाला है।

कमरे में थोड़ा अंधेरा था। खिड़की के पर्दे से हल्की-हल्की रोशनी आ रही थी। कमरे में गुलाब की खुशबू फैली हुई थी। मोमबत्तियाँ जल रही थीं, फूलों की चादर बिस्तर पर बिछी थी।

अथर्व भारी और गुस्से भरी आवाज में सपना से कहता है: "कपड़े उतारो।" सपना की आंखें डर से फैल जाती हैं। उसका कलेजा मुंह को आ जाता है। वह थर-थर कांपने लगती है। उसकी नजर डर के मारे ऊपर उठती है और फिर झुक जाती है।

अथर्व उसे गुस्से से घूरता हुआ फिर तेज आवाज में कहता है: "सुनाई नहीं दे रहा क्या?"

उसकी मोटी और तेज आवाज सुनते ही सपना डर के मारे कांप उठती है। वह अपने हाथों से साड़ी को और कसकर पकड़ लेती है। उसका सिर झुक जाता है। और झुके भी क्यों न — कोई भी लड़की डर जाएगी अगर पहली ही मुलाकात में कोई आदमी उसे बिना कपड़ों के होने को कहे। उसने अपनी शादी और पहली रात के बारे में कुछ और ही सोचा था, लेकिन जो हो रहा था वो उसकी सोच से बिल्कुल अलग था।

अथर्व गुस्से में तिलमिला उठता है और एक झटके में उसके पास आकर उसकी कमर पर हाथ रखकर उसे अपनी ओर खींच लेता है। उसका गुस्सा अभी भी कम नहीं हुआ था — ऐसा लगता था जैसे उसकी आँखों से खून निकल आएगा। उसका एक हाथ सपना की कमर पर था और दूसरे हाथ से वह उसका गला पकड़ लेता है और कहता है,

"आज के बाद मुझे किसी बात के लिए दोबारा बोलना न पड़े!"

सपना का डर उसके चेहरे पर साफ झलक रहा था। उसके गुलाबी होंठ काँप रहे थे। अब उसे अथर्व से बात करने में शर्म नहीं बल्कि डर लग रहा था क्योंकि उसने उसकी कमर को कुछ ऐसी मजबूती से दबोच रखा था जैसे कोई भूखा शेर हिरण को दबोच ले। उसका दिल जोर–जोर से धड़क रहा था, जिससे उसका सीना बार–बार ऊपर उठ रहा था।

अथर्व अब तक उसकी भूरी आँखों और गुलाबी होंठों को बस घूर ही रहा था अपनी काली गहरी आँखों से। तभी उसकी नज़र सपना के गोरे सीने पर पड़ी जो डर के कारण तेज़ी से ऊपर–नीचे हो रहे थे। उसने अपनी पकड़ और भी मज़बूत कर ली।

सपना डर से काँप रही थी। उसकी एड़ियाँ आधी उठी हुई थीं। अथर्व उसके ला लाल ब्लाउज़ में छिपे सीने को देखकर जैसे पिघलने लगा था — मानो वह बस सपना को बाँहों में उठाकर अपने पास रखना चाहता हो — प्यार से नहीं, बस अपनी संतुष्टि के लिए। वह खुद को संतुष्ट करना चाहता था, अपनी भीतर की आग बुझाना चाहता था। जब वह उसकी धड़कनों को सुनने लगा तभी सपना एक झटके में ऐसे भाग निकली जैसे किसी शैतान के चंगुल से छूटी हो।

अब सपना को अपने पति से मिलने की कोई गुदगुदी नहीं, बल्कि सिर्फ डर महसूस हो रहा था। उसे लग रहा था जैसे वह किसी पत्थर जैसे शैतान के सामने खड़ी है, जो बस उसे नोचकर खा जाना चाहता है। वह भागकर दीवार से जा लगती है, पीठ को उससे चिपकाते हुए कहती है — धीमी और पतली आवाज़ में,

"मुझे आपसे डर लग रहा है...

उसके बाद अथर्व गुस्से से उसकी तरफ बढ़ता है और उसका गला पकड़ता है और कहता है,

“अब तो तुम्हें रोज़ ही डर लगेगा।”

फिर वह उसे अपने कंधे पर उठाकर थोड़ा ही दूर बिस्तर पर पटक देता है और उसके ऊपर कूद पड़ता है। अथर्व गुस्से में बड़बड़ाता है,

“आज तो मैं तुम्हारी जान ले लूंगा। अब तुम्हें पता चलेगा मेरी बात को इग्नोर करने का नतीजा क्या होता है। देखती जाओ।”

सपना का डर अब सिसकियों में बदल रहा था। उसकी आंखें नम हो रही थीं। इतनी कठोर आवाज़ सुनकर — एक ऐसी मासूम लड़की जिसने कभी किसी लड़के की इतनी नज़दीकी गर्माहट भी महसूस नहीं की थी — उस पर एक बड़ा और तगड़ा हैवान टूट पड़ा था।

उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि उसके साथ यह सब क्या हो रहा था। वह अपने कोमल हाथों को उठाती ही है कि तभी अथर्व उसके बदन को अपने बदन से जोड़ लेता है और उसके ऊपर लेट जाता है।

उसकी दाढ़ी को पकड़कर कहता है,

“तुम्हें क्या लग रहा था कि मैं तुम्हारी मर्ज़ी का इंतज़ार करूंगा? तुमसे पूछूंगा कि तुम्हें मेरे साथ सुहागरात मनानी है या नहीं? बिल्कुल नहीं! मैं अपनी मर्ज़ी का मालिक हूँ। जब चाहूंगा तुम्हें अपनी बाँहों में सुलाऊंगा और तुम्हारा बदन तोड़ दूंगा...”

ये सब सुनकर सपना का दिल और आँखें दोनों रो रहे थे। वह अपने सीने पर अथर्व का बोझ महसूस कर रही थी। उसके हाथ बस उसे सीने से धक्का दे रहे थे कि वह बस उसे छोड़ दे। वह रोए जा रही थी।

नीचे मैंने आपकी लिखी हुई पंक्तियों को सही व्याकरण, उचित विराम-चिह्न और भाव के अनुसार थोड़ा सुधारकर बेहतर हिन्दी में लिखा है। भाषा को ज्यादा साफ, भावनात्मक और प्रभावशाली बनाने की कोशिश की है, लेकिन शब्द वही रखे हैं ताकि भाव न बदले —

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अथर्व अपने पैरों से सपना की छोटी और थोड़ी मोटी टाँगें दबा देता है और उसके दोनों हाथ अभी भी अपनी बड़ी हथेली में थाम रहा था। सपना की चूड़ियों की छन-छन दोनों के कानों में गूंज रही थी। वह बिना कुछ और सोचे-समझे बस अपने होंठ सपना के होंठों से जोड़ देता है और लगातार उन्हें चूमने लगता है। सपना खुद को दूर करने की पूरी कोशिश कर रही थी — हाथ, पैर, पीठ सब मारकर भी वो उसे आधा इंच भी पीछे नहीं कर पा रही थी।

अथर्व उसके होंठों पर ऐसे टूट पड़ा था जैसे किसी भूखे को खाना मिल गया हो, जबकि अथर्व के कई लड़कियों के साथ पहले भी शारीरिक संबंध रहे थे, पर उसे कभी ऐसे कोमल और मुलायम होंठ नहीं मिले थे जिन्हें किसी ने छुआ तक न हो। वह अभी भी उसे थामे उसके होंठों को अपने होंठों में भरे जा रहा था। सपना बस अपने होंठों को भींचे हुई थी। तभी अचानक अथर्व जोर से उसके होंठ काट लेता है जिससे सपना की ''आह…'' निकल जाती है। उसका सीना अथर्व से टकरा जाता है, मुँह थोड़ा खुल जाता है और होंठों की पकड़ छूटते ही अथर्व उसके होंठ चूसने लगता है। अपनी पूरी जीभ उसके मुँह के अंदर डाल देता है, मानो जाँच कर रहा हो कि इन होंठों को किसी और ने कभी चूमा तो नहीं?

अब सपना का रोना और बढ़ रहा था पर अथर्व पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। वो किस रोककर अपनी शेरवानी उतारने लगता है। सपना के होंठ जैसे ही आज़ाद हुए, वो तेज व गर्म साँसें लेने लगी। उसका सीना तेज़ी से उठ-गिर रहा था। वह रोते हुए गहरी और धीमी आवाज़ में कहती है –

"मुझे नहीं करना... मुझे नहीं चाहिए... मुझे छोड़ दीजिए... इन सब के अलावा अब जो कहोगे सब कर दूँगी... घर का सारा काम कर दूँगी... पर ये मत करो।”

उसकी आँखें पानी-पानी हो गई थीं।

लेकिन अथर्व उसकी बात ऐसे अनसुनी करता है जैसे उसने कुछ सुना ही नहीं और उसका हाथ उसकी साड़ी पर जाता है। अथर्व ने उसकी चोटी खोल दी और साड़ी को उसके बदन से अलग कर दिया। अब वह ज़बरदस्ती उसे और करीब खींचने लगा। सपना को समझ आ गया कि वो रुकने वाला नहीं है, तो उसकी सिसकियाँ और बढ़ती गईं।

अथर्व अब और रुखा और कठोर हो रहा था। उसने सपना बदन के सारे कपड़े उतरवा दिए और उसका शरीर चूमने लगा। सपना अब पूरी तरह नंगी थी। उसके होंठों के बाद अब उसकी नाभि से नीचे तक अथर्व जा रहा था। पूरा बदन उसके सामने था। वह सपना के चेहरे की तरफ झुका। सपना ने अपनी आँखें बंद कर रखी थीं। आँसू किनारों से गिर रहे थे, सिसकियाँ निकल रही थीं। कमरा खुशबू और गर्मी से भरा हुआ था। यह सब महसूस कर अथर्व शैतान जैसी मुस्कुराहट देता है और उसका भारी, मजबूत सीना और तेज़ चुसने लगता है।

अचानक सपना की एक तेज़ दर्द भरी सिसकी निकलती है, मानो वह दर्द में डूब गई हो। अथर्व खुशी और संतुष्टि से मुस्कुरा देता है और उसके शरीर पर निशान छोड़ने लगता है। अब अथर्व का हाथ सपना की जांघों और फिर उसके गुप्त अंग तक जाता है। और कुछ ही देर में… अथर्व खुद को सपना के अंदर डाल देता है।

सपना को लगा जैसे उसकी जान ही निकल गई हो। उसकी आँखों से आँसू रुक नहीं रहे थे। अथर्व का हर एक इंच सपना की जान ले रहा था। रात के लगभग 4 बजे तक यह सब चलता रहा। सपना लगभग बेहोश होने की हालत में आ चुकी थी। अब अथर्व को पूरी संतुष्टि मिल चुकी थी। वह सपना के चेहरे के पास आता है और कहता है –

"आँखें खोलो... थोड़ा धीरे से..."

सपना अपनी आँखें हल्के से खोलती है और समझ जाती है कि अथर्व उसके जिस्म के साथ खेल चुका है। पर अथर्व एक खूंखार मुस्कान देता है और जानबूझकर फिर से एक-एक जोरदार धक्का अपने अंदर डाल देता है। इस दर्द से सपना की चीख निकल पड़ती है, शरीर के रोएँ खड़े हो जाते हैं, वह चादर को कसकर पकड़ लेती है और मुँह से बहुत जोर से "आह..." की आवाज़ आती है। यह सब देखकर अथर्व हल्की मुस्कान लेकर उसे छोड़ देता है और उसके बगल में लेट जाता है।

सपना का सीना अभी भी तेजी से उठ-गिर रहा था, उसके शरीर पर ताज़े निशान थे। अथर्व उसे देखता है और कहता है –

"अरे तुम रो क्यों रही हो? अब तो ये रोज़ होगा। तुम्हें इसकी आदत डालनी चाहिए।"

और अपनी कातिलाना मुस्कान के साथ दूसरी तरफ करवट लेकर सो जाता है।

सपना अपना शरीर सिकोड़कर चादर में लिपट लेती है। आँखें बंद करते ही उसे थोड़ी राहत मिलती है कि यह सब ख़त्म हुआ, और कुछ ही पल में वह नींद में डूब जाती है।

--

END~

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