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जब्रजस्ती का प्यार

> भूमिका: कहानी की शुरुआत पांडेय परिवार से होती है, जो उत्तर प्रदेश का रहने वाला

पांडेय परिवार उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले में रहने वाला एक साधारण मिडिल क्लास परिवार है। विश्‍णु पांडेय घर के मुखिया हैं, जो कि एक सरकारी रिटायर्ड पुलिस अफसर हैं। अपने जीवन में उन्होंने काफी संघर्ष किया है। उनका स्वभाव आग की तरह तेज है – बहुत सख्त निगाह रखने वाले और गुस्सैल।

इस परिवार में उनकी पत्नी हैं, एक बेटी है जिसकी कुछ साल पहले ही उन्होंने शादी कर दी थी। उनकी बहन भी है, जिसके पति अब इस दुनिया में नहीं हैं, इसलिए वह अपने भाई के घर में ही रहती हैं। बहन का एक बेटा भी है जो यहीं रहकर पढ़ाई करता है।

इनका एक लाडला बेटा भी है, जो अपने पिता से बहुत डरता तो है, लेकिन फिर भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आता, जिस कारण विश्‍णु पांडेय बहुत परेशान रहते हैं। मजबूरन उसकी शादी करवाई जा रही है – शायद शादी के बाद अथर्व सुधर जाए या ज़िम्मेदार बन जाए

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किरदार (Characters):

अथर्व पांडेय – 23 साल का बिगड़ा हुआ लड़का, गुस्सैल, चिड़चिड़ा, अहंकारी और शायद थोड़ा लड़कियों के पीछे भी रहने वाला। अपने पिता की बड़ी और थोड़ी बहुत लग्ज़री दुकान पर रहता है जो चौराहे की सबसे बड़ी और fancy दुकान मानी जाती है।

सपना त्रिपाठी – 20 साल की शांत, चुलबुली, सीधी-सादी और साफ दिल की लड़की, जो अपने माता-पिता के साथ रहती है और अपने काम से मतलब रखती है। उसके घरवाले उसे अकेले आने-जाने की ज़्यादा छूट नहीं देते। पतली, शांत, 5 फुट लंबी, कमर तक घने बाल, दूध जैसी गोरी और जब मुस्कुराए तो गालों में डिंपल पड़ता है — जिसे भी देखे, नजरें हटाना मुश्किल।

शोभा जी – अथर्व की मां, एक घरेलू औरत जो बात-बात पर टोक देती हैं। हमेशा पति और बेटे के बीच फँसी रहती हैं। थोड़ा चिड़चिडी और घर के कामों को ज्यादा महत्व देने वाली, लेकिन बेटे से जान से भी ज्यादा प्यार करती हैं।

कनक – अथर्व की बहन, सीधी-सादी और शादीशुदा।

विष्णु पांडेय – भारी शरीर वाले, गुस्सैल, अनुशासन पसंद करने वाले व्यक्ति। सख्त ऐसे जैसे हिटलर।

कंचन जी – घरेलू औरतों की तरह हर बात और खबर रखने वाली और अपने बेटे की दलाली करने में लगी रहने वाली।

कृष्णा – कंचन का बेटा, एक सीधा-सादा पढ़ने-लिखने वाला लड़का, कोई गलत काम नहीं करता। बहुत सज्जन, जो मिल जाए उसी में खुश।

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एपिसोड – 1

"पांडेय परिवार कहाँ रहता है?" किसी आदमी ने तेज आवाज़ में पूछा। तभी एक बगीचे से आवाज़ आती है,

"अरे शुक्ला जी, हमारे मोहल्ले में खड़े होकर हमारा पता पूछ रहे हो?"

यह हैं विष्णु पांडेय। ये अपने 23 साल के बेटे के लिए रिश्ता ढूँढ रहे हैं क्योंकि इन्हें लगता है कि जल्दी शादी हो जाने से आदमी जिम्मेदार बन जाता है।

"काफी समय पहले आपकी बेटी की शादी में आए थे, तब आपका मकान हल्के पीले रंग का था, इसलिए पहचानने में दिक्कत हो रही थी," शुक्ला जी थोड़ी ऊँची और परेशान आवाज़ में बोलते हैं और घर के अंदर आते हैं।

"अभी दिवाली पर ही सफेदी करवाई है," (विष्णु जी मुस्कुराकर हाथ मेन गेट की ओर करते हैं और उन्हें अंदर आने को कहते हैं)...

(अंदर प्रवेश करते ही)

शुक्ला जी जैसे ही अंदर आते हैं, पांडेय परिवार की बड़ी बहू और विष्णु पांडेय की पत्नी उन्हें देखकर खुश हो जाती हैं। उन्हें लगता है कि आज इतने सालों बाद शुक्ला जी आए हैं तो ज़रूर कोई अच्छा रिश्ता बेटे के लिए लेकर आए होंगे...

रसोई में जाते ही वह चाय चढ़ा देती हैं, सोहन पपड़ी निकालकर उनके लिए पानी लेकर आती हैं।

"क्या बात है शुक्ला जी, आप तो बहुत समय बाद पधारे," शांत और नरम आवाज़ में बगल के सोफे पर आकर बैठ जाती हैं और शुक्ला जी की तरफ उम्मीद भरी नज़रों से देखती हैं।

"हाँ दरअसल भाभी, भइया से तो दुकान पर मुलाकात होती रहती है, बस आपसे नहीं हो पाती, तो हमने सोचा हम खुद ही आकर अपने मुँह से खुशखबरी दे दें," इतना कहते हुए सब थोड़ा मुस्कुराते हैं जैसे शादी की बात ना चल रही हो बल्कि पक्की ही हो गई हो। सभी के मन में उलझन थी कि क्या होगा? लड़की कैसी होगी? परिवार कैसा होगा? क्या वह हमारे बेटे को समझ पाएगी? घर के काम कर लेगी? परिवार में उसकी क्या राय होगी? ... मन ही मन शोभा जी यही सब सोच रही थीं तभी गहरी आवाज़ में कहती हैं,

"कोई खुशखबरी है? आपको तो पता है भैया, अब बस इंतज़ार नहीं होता। जल्दी से इसकी शादी करके हम इस ज़िम्मेदारी से मुक्त होना चाहते हैं, बहुत थक गए हैं।" (चिड़चिडाहट और मुस्कान के साथ)

शुक्ला जी:

"समझ रहे हैं भाभी, इसी लिए तो आज हम आपके घर आए हैं," (विष्णु जी की तरफ देखते हुए) "भैया, बहुत अच्छा रिश्ता है, जान लीजिए लड़की त्रिपाठी परिवार की है। न कोई भाई, न कोई बहन...

माता-पिता चाहते हैं कि अपनी बेटी को अच्छे परिवार में दें और उन्हें आप से अच्छा परिवार कहाँ मिलेगा।"

(हल्की मुस्कान के साथ पांडेय जी को यह बताने के अंदाज़ में कि यह परिवार बहुत दमदार और पैसा वाला है)

विष्णु पांडेय:

"शुक्ला जी आप लेन-देन की बात बढ़ाइए, अगर अच्छा सम्मान करेंगे तो हमें कोई परेशानी नहीं होगी। हम बारात लेकर जाने के लिए तैयार हैं।"

बहुत ही खुशी से विष्णु जी अपनी पत्नी की तरफ देखते हैं, सीना चौड़ा करके सोफे पर फैल जाते हैं और मन खुशी से झूम उठता है।

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उधर सपना के परिवार में:

सपना एक अकेली लड़की थी जिस पर घर की औरतें नज़र रखती थीं – वो न लड़कों से बात करती, न कहीं ज्यादा आती-जाती। गर्ल्स स्कूल और गर्ल्स कॉलेज में पढ़ी हुई। सपना की दादी चाहती थीं कि शादी जल्दी हो जाए ताकि वे अपनी नातिन की शादी देख सकें। उनके जमाने के बाद परिवार में कोई लड़की नहीं हुई थी और ना उन्होंने किसी लड़की की शादी देखी थी, इसलिए वे चाहती थीं कि सपना की शादी उनकी आँखों के सामने हो जाए – इसी वजह से वो जल्दी शादी करवाना चाहती थीं।

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इधर दूसरी ओर:

एक Royal Enfield Classic 350 (Black & Chrome finish) पर एक लंबा चौड़ा (लगभग 6 फुट) गोरा और तीखी आँखों वाला लड़का आ रहा था। सफेद शर्ट के ऊपरी दो बटन खुले हुए, और ढीली पैंट पहने।

पीछे से आवाज़ आती है:

"अरे यार पांडेय! तुम्हारा तो रोज़ का हो गया है। तुम रोज़ सुबह दुकान 8 बजे खोलकर बैठ जाते हो, हमारा इंतज़ार करते रहते हो और तुम लौंडियाबाज़ी करते आते हो। ज़रूरी है क्या कि रोज़ पहले उस लड़की का दर्शन करो, फिर दुकान में आओ? 10 बजने को आए हैं लेकिन तुम्हारा कुछ पता नहीं था!"

ये आवाज़ अथर्व के बड़े भाई जैसे दोस्त जतिन की थी जो दुकान संभालता है और हर सही या गलत काम में अथर्व का साथ देता है।

अथर्व पीछे से आता है, अपनी लंबी सांस लेते हुए, हवा में उड़ती हुई अपनी शर्ट के खुले बटन को संभालता हुआ कहता है:

"अरे भइया, थोड़ा ठंडा पियो और दिमाग शांत करो। वो क्या है कि उसका घर रास्ते में पड़ता है, तो सोचा ज़रा दर्शन कर लें, बादाम में बड़ा दर्द हो रहा था।"

एक ज़हरीली और कातिलाना मुस्कान देते हुए अपनी भौहें ऊपर उठाते हुए पास पड़ी काली घूमने वाली कुर्सी पर बैठ जाता है और लंबी सांस लेते हुए कहता है,

"कोई काम आया? कोई कस्टमर?"

जतिन रिलैक्स होकर काउंटर के पास बैठ जाता है और बोलता है,

"हाँ, बोहनी हो गई है।"

और दोनों बातें करने लगते हैं...

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END

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पहली मुलाकात वो भी शादी के बाद~

अब तक,

अथर्व पीछे से आता है, अपनी लंबी सांस लेते हुए, हवा में उड़ती हुई अपनी शर्ट के खुले बटन को संभालता हुआ कहता है:

"अरे भइया, थोड़ा ठंडा पियो और दिमाग शांत करो। वो क्या है कि उसका घर रास्ते में पड़ता है, तो सोचा ज़रा दर्शन कर लें, बदन में बड़ा दर्द हो रहा था।"

एक ज़हरीली और कातिलाना मुस्कान देते हुए अपनी भौहें ऊपर उठाते हुए पास पड़ी काली घूमने वाली कुर्सी पर बैठ जाता है और लंबी सांस लेते हुए कहता है,

"कोई काम आया? कोई कस्टमर?"

जतिन रिलैक्स होकर काउंटर के पास बैठ जाता है और बोलता है,

"हाँ, बोहनी हो गई है।"

और दोनों बातें करने लगते हैं...

अब आगे

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उधर अथर्व के पिताजी शुक्ला जी से कहते हैं –

“शुक्ला जी, जल्दी ही उन लोगों से बात कीजिए, मुलाकात करवाइए और शादी फिक्स कीजिए। हमें किसी भी तरह की देरी नहीं करनी है।”

तभी शुक्ला जी कहते हैं –

“ठीक है पंडित जी, जैसा आपका आदेश। कल ही उन लोगों के पास जाता हूँ और मुलाकात करके आपको लड़की देखने के लिए कहता हूँ।”

पांडे जी का अचानक से रंग भाँपते हुए शुक्ला जी बोले –

“क्या आप रिश्ता लेकर आए हैं और फोटो भी नहीं लाए?”

तभी शुक्ला जी हँसते हुए कहते हैं –

“अरे हाँ! मैं तो बताना ही भूल गया, मैं फोटो लेकर आया हूँ।”

इतना सुनते ही मिसेज़ पांडे यानी शोभा जी का चेहरा खिल उठता है। वो कहती हैं –

“अरे लाईए, फोटो तो दिखाइए, देर किस बात की?”

शुक्ला जी खुशी से अपना छोटा बैग खोलते हैं और उसमें से एक सफेद लिफाफे में रखी फोटो निकालते हैं। वो वह फोटो पांडे जी के हाथ में पकड़ा देते हैं और हाथ जोड़कर कहते हैं –

“पांडे जी, अब आप शाम को हमें फोन करके बताइएगा कि आखिर आपको करना क्या है। देखिए, रिश्ता अच्छा है, आपका बेटा खुश रहेगा। और रही बात घर-परिवार की… तो लड़की भी घर-परिवार की ही है। जिस घर से निकलेगी, उसी नियम-संस्कार के साथ आपके घर में आएगी। आपको ये सब सोचकर समझदारी से फैसला लेना चाहिए।”

इतना कहकर वो उठ जाते हैं। उनके उठते ही मिसेज़ पांडे और मिस्टर पांडे भी उठकर उन्हें गेट तक छोड़ने जाते हैं और फिर वापस अंदर आते हैं।

तब तक शोभा जी लिफाफा खोलकर फोटो देख रही थीं। लिफाफा खोलते ही उनकी आँखें खुशी से चमक उठीं। उनके चेहरे का एक्सप्रेशन बता रहा था कि लड़की उन्हें पसंद आ गई है। वो पांडे जी की तरफ देखती हैं और मुस्कुराती हैं।

पांडे जी उनसे तेज और गम्भीर आवाज़ में पूछते हैं –

“क्यों? लड़की पसंद आई?”

तभी मिसेज़ पांडे हँसते हुए कहती हैं –

“हाँ बिल्कुल! आखिर हमारे शुक्ला जी की पसंद है, सुंदर तो होगी ही न।”

इतने में बाहर से उनकी ननद यानी कंचन आती हैं और पूछती हैं –

“क्या बात है भाभी? ये किसकी फोटो है?”

शोभा जी खुशी से कहती हैं –

“अरे दीदी, आज शुक्ला जी आए थे। हमारे अथर्व के लिए एक बहुत अच्छा रिश्ता लेकर आए थे। मुझे तो लगता है कि ये रिश्ता जरूर पक्का होगा। ऐसा लग रहा है जैसे ये लड़की हमारे अथर्व के लिए ही बनी है… मेरा दिल कह रहा है, दीदी…”

 

लेकिन अथर्व को इस बात का बिल्कुल अंदाज़ा नहीं है कि उसके घर में क्या चल रहा है। उसे लगता है कि उसकी शादी तो शायद 27–28 या 29 साल की उम्र में होगी। अभी तो वो सिर्फ़ 23 साल का है और उसकी एक गर्लफ्रेंड भी है जिसका नाम कोमल है। वो दोनों पिछले पाँच साल से साथ हैं। प्यार है या नहीं ये तो पता नहीं, लेकिन कोमल शारीरिक और मानसिक रूप से पूरी तरह अथर्व के बस में रहती है। आज सुबह भी वो उसी के बारे में सोच रहा था और उसी से मिलने गया था। ऐसे में वो अभी किसी दूसरी लड़की से शादी के बारे में बिल्कुल नहीं सोच रहा है।

अथर्व के माता-पिता को यह बिल्कुल भी ज़रूरी नहीं लगा कि वे अथर्व को कुछ बताएं या उससे पूछें, क्योंकि उन्हें पता था कि उसका स्वभाव और सोच कैसी है — वह शादी के लिए तुरंत मना कर देगा। इसलिए उन्होंने उससे कोई राय या सलाह नहीं ली और अपने मन से उसकी शादी तय कर दी।

शादी से कुछ दिन पहले ही उसे बताया गया और फिर ज़बरदस्ती उसे शादी के मंडप में बिठा दिया गया। इस वजह से वह अंदर ही अंदर बहुत डिस्टर्ब और फ्रस्ट्रेटेड हो गया था। वह कोमल को बिल्कुल नहीं छोड़ना चाहता था, लेकिन ऐसा भी नहीं था कि वह किसी दूसरी औरत के पास जाना नहीं चाहता। बस उसे लगता था कि सपना उसकी ज़िंदगी में तूफ़ान बनकर आएगी और उसकी सारी खुशियाँ, उसकी आज़ादी, उसकी अय्याशियां और उसकी सारी गर्लफ्रेंड. को चीन लेगी

 

इसी तरह बात बढ़ती है। वह अपने आप को शादी के मंडप में पाता है, और उसकी शादी एक सपना नाम की लड़की से हो रही होती है, जिसे वह जानता भी नहीं। उसके पास बैठी एक 20 साल की मासूम और पतली लड़की, जिसके गुलाबी होंठ और काली, भारी, गहरी आँखें थीं, अपने मन में यह सोच रही थी कि — क्या मैं यह रिश्ता निभा पाऊँगी? क्या मेरी जिससे शादी हो रही है, वह मुझे प्यार करेगा? मुझे समझेगा? क्या वह मेरी फीलिंग्स को समझ पाएगा? उसे अंदर ही अंदर डर लग रहा था, पर वह क्या करे।

उधर अथर्व गुस्से से लगभग तड़प रहा था। उसको लग रहा था कि बस यह सब जल्दी खत्म हो जाए और मैं यहाँ से चला जाऊँ। देखते ही देखते रात गुजर गई और शादी की सारी विधि पूरी हो गई।

अगले दिन वे सब वापस घर आ जाते हैं यानी सपना अपने ससुराल, पांडे हाउस में पहुँच जाती है। देखते ही देखते शाम हो जाती है और कैमरा सज़ जाता है..

वह कमरे में अंदर आती है। कमरा न ज्यादा बड़ा था, न ज्यादा छोटा — बिल्कुल सामान्य आकार का। बीच में एक पलंग था, एक लकड़ी की अलमारी, एक स्टडी टेबल और कुछ इधर-उधर का सामान रखा हुआ था। कमरा थोड़ा खाली-खाली सा था लेकिन गुलाब और सफेद फूलों से पूरा सजा हुआ था।

वह बेड पर जाकर बैठ जाती है। जैसे ही वह बैठती है, उसकी साँसें थोड़ी तेज हो जाती हैं। वह सोचती है — कमरा तो अच्छा है...

उसकी साड़ी का पल्लू नीचे ज़मीन तक लटक रहा होता है। उसने लाल रंग की साड़ी पहनी है, माथे पर पीला सिंदूर और लाल बिंदी, होठों पर गहरे गुलाबी रंग की लिपस्टिक। देखने में इतनी प्यारी लग रही थी कि अगर कोई देखे तो बस देखता ही रह जाए।

वह खिड़की के पास जाकर बाहर का नज़ारा देखने लगती है — सोचती है कि यह जगह कैसी है, लोग कैसे होंगे। तभी दरवाज़ा अचानक ज़ोर से खुलता है, और एक लंबा-चौड़ा, गोरा आदमी कमरे में तेज़ी से आता है — वह कोई और नहीं, बल्कि उसका पति अथर्व पांडे था।

अथर्व कमरे में आते ही गुस्से में तेज़ी से दरवाज़ा बंद करता है और पर्दे खींच देता है। सौम्या डर के मारे अपने मन में सोचती है —

"अरे! इतनी जल्दी आ गए? अभी तो 10:30 भी नहीं हुए। मुझे लगा था मैं थोड़ा आराम कर पाऊँगी... लेकिन मैं इनसे बात क्या करूँ? मैं तो इन्हें पहली बार मिल रही हूँ, पहली बार देख रही हूँ..."

उसकी नज़रों का ध्यान अचानक अथर्व की आँखों पर टिक जाता है — काले घने बाल, लंबा गोरा बदन, काली-काली आँखें, घनी आइब्रो और हल्की हल्की दाढ़ी — न बहुत ज़्यादा, न बहुत कम।

अथर्व थोड़ी दूर पर खड़ा होता है और उसकी तरफ देखता है और अपने दिमाग में सोचता है –

"शादी तो हो ही गई है, रिश्ता तो निभाना ही है। अब वह जबरदस्ती का हो या प्यार का, लेकिन मैं कोमल को तो नहीं छोड़ूंगा। उसे मैं कभी नहीं भूल सकता। लेकिन शादी तो सिर्फ जिस्म के लिए होती है और यह भी यही चाहती होगी कि मैं इसके पास रहूँ। प्यार का नहीं पता, लेकिन वह जरूर दूंगा इसे। मैं इसे इतना परेशान करूंगा, इतना रुलाऊंगा कि यह खुद मुझे छोड़कर चली जाएगी और मेरा इससे पीछा छूट जाएगा।"

गोल्डन शेरवानी में खड़ा, माथे पर लाल चंदन लगाए, मासूम दिखने वाला वह लड़का अपने दिमाग में ये सब सोच रहा था।

क्या यह कोई सोच सकता है? अंधेरे में सपना की तरफ नज़र पड़ती है। सपना उसकी तरफ देखती है और एक कदम पीछे चली जाती है – जैसे अभी वो उसे खा जाएगा।

ऐसे देखा, जैसे कि उसने कोई बहुत बड़ा गुनाह कर दिया हो। और तभी उन दोनों की नज़रें मिलती हैं।

वह सब कुछ उसकी आँखों में देखती है, पर वह सपना की आँखों में देखता है – उसकी आँखों में एक मासूमियत थी।

"मैं क्या बोल दूँ? क्या बात करूँ? क्या हम पहले कुछ समय बात करेंगे? क्या वह मुझसे मेरा नाम, मेरी पढ़ाई और मेरी पसंद पूछेंगे?" – वह यह सब सोच रही थी

पर वह (लड़का) कुछ और ही सोच रहा था।

वह सब उसके साथ करने जा रहा था जो एक लड़की कभी सोच भी नहीं सकती… शायद कभी माफ भी नहीं कर सकती।

End~

 

पहले ही मुलाकात में अथर्व की है हैवानियत

अब तक

"मैं क्या बोल दूँ? क्या बात करूँ? क्या हम पहले कुछ समय बात करेंगे? क्या वह मुझसे मेरा नाम, मेरी पढ़ाई और मेरी पसंद पूछेंगे?" – वह यह सब सोच रही थी

पर वह (लड़का) कुछ और ही सोच रहा था।

वह सब उसके साथ करने जा रहा था जो एक लड़की कभी सोच भी नहीं सकती… शायद कभी माफ

अब आगे

अथर्व उसके पास आता है। वे दोनों थोड़ी दूरी पर खड़े होते हैं। सपना डर से कांप रही होती है। उसके मन में चल रहा होता है – ये मेरी तरफ क्यों आ रहा है? कुछ बोल क्यों नहीं रहा?

अथर्व अपने दिमाग में सोच रहा होता है – ये कितनी हसीन और खूबसूरत है… मेरी तो नजर ही इससे हट ही नहीं रही। लेकिन तभी अचानक कोमल का चेहरा उसकी आंखों के सामने आ जाता है। उसकी आंखों में फिर से गुस्सा उतर आता है। माथे की नसें तन जाती हैं, हाथ गुस्से में मुट्ठी बन जाते हैं। पूरा चेहरा आग की तरह लाल हो उठता है। वह मन में सोचता है – क्या इसका कभी कोई बॉयफ्रेंड रहा होगा? क्या किसी के साथ कुछ... अगर ऐसा हुआ तो मैं इसकी जान ले लूंगा, आज रात ही।

इसी तरफ सपना मासूम चेहरा लिए उसकी तरफ देखती है और फिर निगाह झुका लेती है। उसे अंदाजा भी नहीं था कि अब उसके साथ क्या होने वाला है।

कमरे में थोड़ा अंधेरा था। खिड़की के पर्दे से हल्की-हल्की रोशनी आ रही थी। कमरे में गुलाब की खुशबू फैली हुई थी। मोमबत्तियाँ जल रही थीं, फूलों की चादर बिस्तर पर बिछी थी।

अथर्व भारी और गुस्से भरी आवाज में सपना से कहता है: "कपड़े उतारो।" सपना की आंखें डर से फैल जाती हैं। उसका कलेजा मुंह को आ जाता है। वह थर-थर कांपने लगती है। उसकी नजर डर के मारे ऊपर उठती है और फिर झुक जाती है।

अथर्व उसे गुस्से से घूरता हुआ फिर तेज आवाज में कहता है: "सुनाई नहीं दे रहा क्या?"

उसकी मोटी और तेज आवाज सुनते ही सपना डर के मारे कांप उठती है। वह अपने हाथों से साड़ी को और कसकर पकड़ लेती है। उसका सिर झुक जाता है। और झुके भी क्यों न — कोई भी लड़की डर जाएगी अगर पहली ही मुलाकात में कोई आदमी उसे बिना कपड़ों के होने को कहे। उसने अपनी शादी और पहली रात के बारे में कुछ और ही सोचा था, लेकिन जो हो रहा था वो उसकी सोच से बिल्कुल अलग था।

अथर्व गुस्से में तिलमिला उठता है और एक झटके में उसके पास आकर उसकी कमर पर हाथ रखकर उसे अपनी ओर खींच लेता है। उसका गुस्सा अभी भी कम नहीं हुआ था — ऐसा लगता था जैसे उसकी आँखों से खून निकल आएगा। उसका एक हाथ सपना की कमर पर था और दूसरे हाथ से वह उसका गला पकड़ लेता है और कहता है,

"आज के बाद मुझे किसी बात के लिए दोबारा बोलना न पड़े!"

सपना का डर उसके चेहरे पर साफ झलक रहा था। उसके गुलाबी होंठ काँप रहे थे। अब उसे अथर्व से बात करने में शर्म नहीं बल्कि डर लग रहा था क्योंकि उसने उसकी कमर को कुछ ऐसी मजबूती से दबोच रखा था जैसे कोई भूखा शेर हिरण को दबोच ले। उसका दिल जोर–जोर से धड़क रहा था, जिससे उसका सीना बार–बार ऊपर उठ रहा था।

अथर्व अब तक उसकी भूरी आँखों और गुलाबी होंठों को बस घूर ही रहा था अपनी काली गहरी आँखों से। तभी उसकी नज़र सपना के गोरे सीने पर पड़ी जो डर के कारण तेज़ी से ऊपर–नीचे हो रहे थे। उसने अपनी पकड़ और भी मज़बूत कर ली।

सपना डर से काँप रही थी। उसकी एड़ियाँ आधी उठी हुई थीं। अथर्व उसके ला लाल ब्लाउज़ में छिपे सीने को देखकर जैसे पिघलने लगा था — मानो वह बस सपना को बाँहों में उठाकर अपने पास रखना चाहता हो — प्यार से नहीं, बस अपनी संतुष्टि के लिए। वह खुद को संतुष्ट करना चाहता था, अपनी भीतर की आग बुझाना चाहता था। जब वह उसकी धड़कनों को सुनने लगा तभी सपना एक झटके में ऐसे भाग निकली जैसे किसी शैतान के चंगुल से छूटी हो।

अब सपना को अपने पति से मिलने की कोई गुदगुदी नहीं, बल्कि सिर्फ डर महसूस हो रहा था। उसे लग रहा था जैसे वह किसी पत्थर जैसे शैतान के सामने खड़ी है, जो बस उसे नोचकर खा जाना चाहता है। वह भागकर दीवार से जा लगती है, पीठ को उससे चिपकाते हुए कहती है — धीमी और पतली आवाज़ में,

"मुझे आपसे डर लग रहा है...

उसके बाद अथर्व गुस्से से उसकी तरफ बढ़ता है और उसका गला पकड़ता है और कहता है,

“अब तो तुम्हें रोज़ ही डर लगेगा।”

फिर वह उसे अपने कंधे पर उठाकर थोड़ा ही दूर बिस्तर पर पटक देता है और उसके ऊपर कूद पड़ता है। अथर्व गुस्से में बड़बड़ाता है,

“आज तो मैं तुम्हारी जान ले लूंगा। अब तुम्हें पता चलेगा मेरी बात को इग्नोर करने का नतीजा क्या होता है। देखती जाओ।”

सपना का डर अब सिसकियों में बदल रहा था। उसकी आंखें नम हो रही थीं। इतनी कठोर आवाज़ सुनकर — एक ऐसी मासूम लड़की जिसने कभी किसी लड़के की इतनी नज़दीकी गर्माहट भी महसूस नहीं की थी — उस पर एक बड़ा और तगड़ा हैवान टूट पड़ा था।

उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि उसके साथ यह सब क्या हो रहा था। वह अपने कोमल हाथों को उठाती ही है कि तभी अथर्व उसके बदन को अपने बदन से जोड़ लेता है और उसके ऊपर लेट जाता है।

उसकी दाढ़ी को पकड़कर कहता है,

“तुम्हें क्या लग रहा था कि मैं तुम्हारी मर्ज़ी का इंतज़ार करूंगा? तुमसे पूछूंगा कि तुम्हें मेरे साथ सुहागरात मनानी है या नहीं? बिल्कुल नहीं! मैं अपनी मर्ज़ी का मालिक हूँ। जब चाहूंगा तुम्हें अपनी बाँहों में सुलाऊंगा और तुम्हारा बदन तोड़ दूंगा...”

ये सब सुनकर सपना का दिल और आँखें दोनों रो रहे थे। वह अपने सीने पर अथर्व का बोझ महसूस कर रही थी। उसके हाथ बस उसे सीने से धक्का दे रहे थे कि वह बस उसे छोड़ दे। वह रोए जा रही थी।

नीचे मैंने आपकी लिखी हुई पंक्तियों को सही व्याकरण, उचित विराम-चिह्न और भाव के अनुसार थोड़ा सुधारकर बेहतर हिन्दी में लिखा है। भाषा को ज्यादा साफ, भावनात्मक और प्रभावशाली बनाने की कोशिश की है, लेकिन शब्द वही रखे हैं ताकि भाव न बदले —

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अथर्व अपने पैरों से सपना की छोटी और थोड़ी मोटी टाँगें दबा देता है और उसके दोनों हाथ अभी भी अपनी बड़ी हथेली में थाम रहा था। सपना की चूड़ियों की छन-छन दोनों के कानों में गूंज रही थी। वह बिना कुछ और सोचे-समझे बस अपने होंठ सपना के होंठों से जोड़ देता है और लगातार उन्हें चूमने लगता है। सपना खुद को दूर करने की पूरी कोशिश कर रही थी — हाथ, पैर, पीठ सब मारकर भी वो उसे आधा इंच भी पीछे नहीं कर पा रही थी।

अथर्व उसके होंठों पर ऐसे टूट पड़ा था जैसे किसी भूखे को खाना मिल गया हो, जबकि अथर्व के कई लड़कियों के साथ पहले भी शारीरिक संबंध रहे थे, पर उसे कभी ऐसे कोमल और मुलायम होंठ नहीं मिले थे जिन्हें किसी ने छुआ तक न हो। वह अभी भी उसे थामे उसके होंठों को अपने होंठों में भरे जा रहा था। सपना बस अपने होंठों को भींचे हुई थी। तभी अचानक अथर्व जोर से उसके होंठ काट लेता है जिससे सपना की ''आह…'' निकल जाती है। उसका सीना अथर्व से टकरा जाता है, मुँह थोड़ा खुल जाता है और होंठों की पकड़ छूटते ही अथर्व उसके होंठ चूसने लगता है। अपनी पूरी जीभ उसके मुँह के अंदर डाल देता है, मानो जाँच कर रहा हो कि इन होंठों को किसी और ने कभी चूमा तो नहीं?

अब सपना का रोना और बढ़ रहा था पर अथर्व पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। वो किस रोककर अपनी शेरवानी उतारने लगता है। सपना के होंठ जैसे ही आज़ाद हुए, वो तेज व गर्म साँसें लेने लगी। उसका सीना तेज़ी से उठ-गिर रहा था। वह रोते हुए गहरी और धीमी आवाज़ में कहती है –

"मुझे नहीं करना... मुझे नहीं चाहिए... मुझे छोड़ दीजिए... इन सब के अलावा अब जो कहोगे सब कर दूँगी... घर का सारा काम कर दूँगी... पर ये मत करो।”

उसकी आँखें पानी-पानी हो गई थीं।

लेकिन अथर्व उसकी बात ऐसे अनसुनी करता है जैसे उसने कुछ सुना ही नहीं और उसका हाथ उसकी साड़ी पर जाता है। अथर्व ने उसकी चोटी खोल दी और साड़ी को उसके बदन से अलग कर दिया। अब वह ज़बरदस्ती उसे और करीब खींचने लगा। सपना को समझ आ गया कि वो रुकने वाला नहीं है, तो उसकी सिसकियाँ और बढ़ती गईं।

अथर्व अब और रुखा और कठोर हो रहा था। उसने सपना बदन के सारे कपड़े उतरवा दिए और उसका शरीर चूमने लगा। सपना अब पूरी तरह नंगी थी। उसके होंठों के बाद अब उसकी नाभि से नीचे तक अथर्व जा रहा था। पूरा बदन उसके सामने था। वह सपना के चेहरे की तरफ झुका। सपना ने अपनी आँखें बंद कर रखी थीं। आँसू किनारों से गिर रहे थे, सिसकियाँ निकल रही थीं। कमरा खुशबू और गर्मी से भरा हुआ था। यह सब महसूस कर अथर्व शैतान जैसी मुस्कुराहट देता है और उसका भारी, मजबूत सीना और तेज़ चुसने लगता है।

अचानक सपना की एक तेज़ दर्द भरी सिसकी निकलती है, मानो वह दर्द में डूब गई हो। अथर्व खुशी और संतुष्टि से मुस्कुरा देता है और उसके शरीर पर निशान छोड़ने लगता है। अब अथर्व का हाथ सपना की जांघों और फिर उसके गुप्त अंग तक जाता है। और कुछ ही देर में… अथर्व खुद को सपना के अंदर डाल देता है।

सपना को लगा जैसे उसकी जान ही निकल गई हो। उसकी आँखों से आँसू रुक नहीं रहे थे। अथर्व का हर एक इंच सपना की जान ले रहा था। रात के लगभग 4 बजे तक यह सब चलता रहा। सपना लगभग बेहोश होने की हालत में आ चुकी थी। अब अथर्व को पूरी संतुष्टि मिल चुकी थी। वह सपना के चेहरे के पास आता है और कहता है –

"आँखें खोलो... थोड़ा धीरे से..."

सपना अपनी आँखें हल्के से खोलती है और समझ जाती है कि अथर्व उसके जिस्म के साथ खेल चुका है। पर अथर्व एक खूंखार मुस्कान देता है और जानबूझकर फिर से एक-एक जोरदार धक्का अपने अंदर डाल देता है। इस दर्द से सपना की चीख निकल पड़ती है, शरीर के रोएँ खड़े हो जाते हैं, वह चादर को कसकर पकड़ लेती है और मुँह से बहुत जोर से "आह..." की आवाज़ आती है। यह सब देखकर अथर्व हल्की मुस्कान लेकर उसे छोड़ देता है और उसके बगल में लेट जाता है।

सपना का सीना अभी भी तेजी से उठ-गिर रहा था, उसके शरीर पर ताज़े निशान थे। अथर्व उसे देखता है और कहता है –

"अरे तुम रो क्यों रही हो? अब तो ये रोज़ होगा। तुम्हें इसकी आदत डालनी चाहिए।"

और अपनी कातिलाना मुस्कान के साथ दूसरी तरफ करवट लेकर सो जाता है।

सपना अपना शरीर सिकोड़कर चादर में लिपट लेती है। आँखें बंद करते ही उसे थोड़ी राहत मिलती है कि यह सब ख़त्म हुआ, और कुछ ही पल में वह नींद में डूब जाती है।

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END~

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