4 एपिसोड ---- बेचैन इसलिए था... बता देता हु, सट्टा लगाता था... तीन सौ का सट्टा.... हराम आएगा... खायेंगे हम।
कयो ऐसा करता था, मेरा बाप... जन्म से, माँ ने मरना नहीं था, वेचनापड़ा सब कुछ... ज़ालिम लोग छोड़ते है... रिवाल्वर दिमाग़ पे रखते है, जो। सब कल्टी हो जाता है, ये मकान विक गया। और कितना कुछ गया..... कया मेरे बाप को पता नहीं लगे।
बापू कयो ऐसा करता है, कौन देखे गा तुझ को, तू कस्मे वादे तोड़ देने वाला, घटिया किसम का बाप, अब्बा...
चलो सवेरे को देखेंगे... वही ड्रामा.. माँ के समय का, पर सट्टा न निकले, मालिक करे --"मस्ती मारेंगा "नहीं निकले।
चुप पसर गयी। शहर कब सोता है, पैसा कब सोता है, तजोरी मे, सब इसने जाग के छोड़े हुए है, मशीन की तरा चल, चल चल... चलता चल। पीछे है पेट आगे है पेट... खाने वाले, खायेंगे... जरूर... मास जिन्दा नोचेगे... सच मे, ----
"रोटी " कबाब के साथ भी, दाल के साथ.... सुखी रोटी... अचार के साथ.... बस। रात पसर गयी। सब जाग रहे थे... शहर था... रेलवे का ट्रेक चलता जा रहा था। गाड़ियां समय पर आ रही थी, जा रही थी.... हॉर्न सुनाई दे रहे थे।
कब 12 वजे कब तीन वजे... पता ही नहीं चला... फिर छे तो नौ वज गए।
सब जा चुके थे, आपने आपने कामो पे... दुपहर एक वज गया था।
"ओह गोडसे नंबर बोल कया आया... जो लगा वो आया.. 10के 700 200 के उठा तो तीतर हो जा... टकर का सौदा किया है।
वो पैसे हराम के मुसलमान के हाथ... हराम के।
कभी सोचा ही नहीं मोहीसन ने... बच्चे कब से मुसलमान पुरे... जितनी ख़ुशी थी उसकी... उतनी का गला घुट गया।
"अबा --" ख़ुशी से अब्दुल ने कहा।
"एक बात पुछू, आप से " अब्दुल बोला।
"पूछ काये इतना पूछ लेने को उतावला है , अब्बा हु तेरा "---
पड़ोसी नहीं हु " कोई बवाल करोगे। "आपनी गरीबी का "
मेरा बाप लाटरी सट्टा लाता है, हराम का पैसा मुसलमान के घर.. भूख ये नहीं पूछती.. हलाल कया है, हराम कया है।'"
"सोचो ---" अबा ने जैसे जबड़ा हिला दिया तमाचा मार के। "
"हाँ, अब बोल " मोहसीन ने जैसे सब्र का टीका घसोड दिया।
"ये गोल टोपी तेरे सर पे लदी है, तू कुरान पढ़ता है, पढ़ ----"
मोहसीन ने दीन के हाथ मे रुपए रखे। जल्दी से सब्जी और रोटी ला, दो बुरकी खा लू।
अब्दुल बिन बोले ही घर से चुप से निकल गया। दीन चुप था।
मोहसीन ने शुक्र किया। और लेटने के लिए वो बड़े तलाब के पास दस को बजुर्गो की जुडली लगती थी। वही चले गया।
दीन को दिया जो रूपये उसने ले लिए थे। बस फिर कया था। यहाँ कोई भी मुसाफिर खोली पे बस उसका ऐसे ही चलता था, कोई ऐसी जिंदगी नहीं थी, कि कोई छोटी किताब के लिए पढ़ लीं जाये।तुजरबे से आती है जिंदगी... कोई हिसाब नहीं, तकसीम गुना का...
केशव आपने साले के पास हॉस्पिटल मे डेंसिल पे आख़री मर्तबा बस। उसके बाद उसके घर मे गया ही नहीं..
जिससे बनती थी वो चला गया। बाकी तो सब कमीने थे। किसे को मै लाइक नहीं करता था
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4 एपिसोड्स को अपडेट किया गया
Comments
Neeraj Sharma
lolllz🙏
2024-10-23
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