जिंदगी किरायेदार है।
मैंने कुछ कहना था, कि तुम मेरी बात की नराजगी नहीं मान सकते। मैं बम्बे का वस्नीक हु।
आये दिन कोई न कोई खोली मे शिफ्टिंग होती रहती है....
तुम गरीब पैरवी करने के लिए इतनी दूर कयो खडे हो। सोच
के देखो.. मेरे पास आओ।
देखो कैसे हम इस रुके हुए पानी के बीच रहते है, आस पास
बदबू के झमेले है। सोच कर देखो, दोजख है, धरती पर,
किसी ने बनाया ही होगा, ये दोजख भी, जिसके जीवत प्राणी है, पर वो सास के लेंन देन को ही जीवत मानते है....
होगा कोई ऐसा भी, खाना खाते हो जा नहीं, इस से मतलब है जा नहीं... अख़बार मे सारी दिन कया देखते हो, खबर पढ़ते हो। कया यही न, कि मोनसीन मुसलमान है, ये कभी
रोजे भी रखता है, नहीं रे नहीं..
मुसलमान हु आधा । तो मुसलमान कैसे? कुछ रीती रीवाज़ किये ही नहीं, वो मुलमान था, ना हिन्दू ही था,.... बड़ा चित्र अधूरा था मोनसीन का -----
हसता भी था, कहता था, खुदा ने मुझे अधूरा भेजा है,
किसी के काम आना ये केह कर, तुम हिन्दू हो भाई... "नहीं जात पात नहीं चलेगी इधर... "
बस अख़बार उर्दू पढ़ता... पकड़ा जाता था, धर्म के नाम पे...
आज कल जहर भर गया था... बात अपुन मोदी के शासन की करता था .. मेरे जैसे कितने मोहसीन बली चढ़े होंगे,
यही कहते है, वाह.. मुलमान मारो, मार दो कही भी मिले
देश को फिरकाप्रस्ती ने मार दिया..." चाद पे जायेगे -------"
वाह जी वाह। "
तिरंगा थमाएंगे, भूखे को... "जिसने रोटी नहीं खायी.. चाये नहीं पी.. रोजगार नहीं है ----" चुप मोहसीन फिर से। चेहरा बचपन से माता का प्रकोप हो गया था, चेहरा दागो से भरा हुआ था। चुप मोहसीन था। खुरली मे सोने का रूम था। एक रसोई थी... तीन बच्चे थे, मोहसीन के... स्त्री मर चुकी थी।
हा बच्चा जन्म के वक़्त... बस मोहसीन ही अतीत और भविष्य था... बच्चो का।
साथ की खुरली मे हिन्दू परवार था, नाम केशव था, एक लड़की थी। चुप ही रहती थी। उसका केंद्र न कोई उत्स्व था, न कोई ख़ुशी थी। कटु थी। सहभाव कुंठित थी। पता नहीं कयो। दसवीं की छात्रा थी... बम्बे मे पढ़ती थी सरकारी स्कुल मे -----पढ़ाई मे वजीफा लेती थी, फीस कम थी, ब्राह्मण परवार था, छू छूत वाला नहीं... हा खुरली मे ठिकाना सब का वही था... एक कतार मे आठ घर थे। दूसरी और गली बारा पंद्रहा फुट चौड़ी होंगी। बस दूसरी और भी घर थे।
उसमे पांच घर परिवार वाले थे, जात तो ठीक से नहीं मालूम... पूछो कयो... बस सही सलामत थे सही से। बाप काम पे निकल जाते थे, कोई कसाई का, कोई स्टेशन पे, कोई कुछ कोई फैक्ट्री मे, कोई विचारा परवार चलाने मे कया कया करता था।
ज़ब कोई मेला जा फूँकशन होता सब रलमिल कर भाग लेते थे, उसमे वो हिन्दू परवार ब्राह्मण था कम ही देखने मे मिलता था... सफ़ेद कुर्ते मे कंधे पे परना रखते हुए मोहसीन कभी भारा भार बैठ कर अख़बार पढ़ता। तो दातो मे करीच करता, उसमे जात पात होती थी, वो उसे अच्छी न लगे।
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4 एपिसोड्स को अपडेट किया गया
Comments
Neeraj Sharma
lollllz🤓
2024-10-23
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