एपिसोड 2

"जात पात ने पाकिस्तान बना दिया " अंदर ही अंदर मोहसीन ने विरोध जताया। फिर वो गंदी बस्ती मे अंदर जाने लगा, "चचा बाजी लाये "उधर से अवाज आयी। ताश की फैटी ऐसे मार रहा था जैसे राजनेता

लफ़्ज़ बदलता हो।

"खेलो मिया खेलो "-----मोहसीन ने आगे कदम बढ़ाते कहा।

गली मे कोई सबुह का बुर्श कर रहा था। कोई चार दिन से नहाया ही नहीं था, नहा रहा था...

संतोष घर की सब्ज़ी ले के घर पहुंच गया था। खोले का हाल बुरा था, किसी बीमारी से कम नहीं।

पानी की छटपथ बहुत थी, बच्चे उची से छलाग मार देते थे।

खोला नहा धो रहा था। आज रविवार था। सब आपने कामो मे वयस्त थे।

ब्राह्मण परिवार की लड़की नाम बुझ लो कया होगा, उसकी आँखे हिरणी जैसी थी, लमा चेहरा.. तीखी नाक, अधर पतले थे.. ठोड़ी नुकली डूंग पड़ता था। कुल मिला कर युवती थी। लड़की जो उठ रही थी जुबा दहलीज़ पे। रविवार भी जैसे उसने अच्छे कपड़े पहने थे, फूलदान वाली मोटी चित्र वाली पुशाक, साथ पजामा... उम्र बीस की... तकरीबन।

पस्तक पढ़ रही थी, उसमे था एक गुलाब का फूल, जो पक कर अकड़ गया था... खशबू उसे आती थी, किसी और को पता नहीं.... नाम उसका बता दू खशबू था। ब्राह्मण जाती की एक लड़की, उस खोले मे थी।

केशव की मंदिर की घंटी वज रही थी, जिससे वातावरण शुद्ध हो रहा था... महक थी अजब सही। उसकी पत्नी चितक थी। आपने भाई के बारे मे, "जी, कहा,हो, "----"

"पाठ तो करने दो, तुम "केशव ने पास बैठते हुए चेयर पर। "बोलो " वो अख़बार हाथ मे लेते, घी का दीपक कृष्णा राधे

जी के चरणों मे समर्पित करके आये ही थे। "गुर्दा आज निकाल देंगे, वेतिलेटर पर रखेंगे, बाकी जो मंजूर राधा जी को... बहन अंदर से बोली... पत्नी भी थी, माँ भी थी, बहन भी थी, कमलेश नाम था उसका।

"हमारे पास अब कया है "केशव ने लमी सास निरुत्सहा छोड़ी। कमलेश चुप थी।

"भाई लक्ष्य बच जायेगा, कया "कमलेश ने आँखे भरते हुए कहा।

(3)

बाहर का हाल कुछ ऐसा था, जैसे अभी बरसात होकर रही है। मोहसीन के घर से अब्दुल की उच्ची आवाज आयी।

"पापा "अब्दुल ने कहा।

-----हा मुझे बोलो " मझले ने कहा।

मेरे पर्स मे कुछ पैसे थे कहा गए। जो मैंने करीम की शर्ट बना कर दी थी। "वो पांच सौ रुपए थे " अब्दुल चीखा। जायज था चीखना।

अबू आ गया। चुप। ऐसे हो गए जैसे कुछ हुआ ही नहीं था।

अब्दुल बड़ा था, मझले का नाम दीन था, जो सब से छोटा दस साल का अहमद था।

मोहसीन ने कहा "वो पैसे मैंने सब्जी और फुटवाल के बनाने के लिए लाले को दिया है।"

"जो फुटवाल सियेगे, उससे हम अच्छा कमाएंगे।"

अब्दुल बोला, "पापा, ये फुटबाल की सलाई का कया हिसाब होगा,

मशीने दो खराब है ।" मोहसीन हसा।

----"वाह मेरी जान, उनकी मशीन, उनके फुटवाल, शाम को तकरीबन एक हज़ार से ऊपर तो बना लेंगे। " अब्दुल सोचने लगा।

----"पर उसमे से जो बचा उसको दिया, कितने पापा। "

"तीन सौ "अब्दुल बचेंन था। पर कयो बेचैन था। सोचो।

बेचैन इसलिए था... बता देता हु, सट्टा लगाता था... तीन सौ का सट्टा.... हराम आएगा... खायेंगे हम।

हॉट

Comments

Neeraj Sharma

Neeraj Sharma

lolllz... ❤️

2024-10-23

0

सभी देखें

डाउनलोड

क्या आपको यह कहानी पसंद है? ऐप डाउनलोड करें और अपनी पढ़ाई का इतिहास रखें।
डाउनलोड

बोनस

ऐप डाउनलोड करने वाले नए उपयोगकर्ताओं को 10 अध्याय मुफ्त में पढ़ने का अवसर मिलता है

प्राप्त करें
NovelToon
एक विभिन्न दुनिया में कदम रखो!
App Store और Google Play पर MangaToon APP डाउनलोड करें