अनामिका - 5
नूपुर के खिलाफ साजिश
सुबह का समय सूरज आपनी लालिमा चारों ओर बिखेर रही थीं, पंछियों की मधुर आवाज लुभा रही थी वहीं जंगल के बीचों बीच बने हवेली के एक कमरे में एक खूबसरत सी लड़की नीद की आगोश में अब भी खोई हुई थी, वह स्लीपिंग ब्यूटी और कोई नहीं बल्कि नूपुर थी, वह रजाई में डुबकी एक मासूम सी बच्ची की तरह सो रही थी । तभी कमरे में एक डरावनी मशीनी आवाज गूंजी - उठ जाइए सवेरा हो चुका है, नाश्ता कर लीजिए, नूपुर घबराती हुई सी उठी तो सामने वहीं डरावनी बुढ़िया खड़ी थी हाथ मै चाय नाश्ता लिए हुए, उन्हें एकाएक देखकर वह घबरा गई और सहमते हुए कहा - जी आपका शुक्रिया। उस बूढ़ी औरत ने चाय नाश्ता टेबल पर रखा और कमरे की सफाई करने लगी, नूपुर उठ के चाय की प्याली पकड़ने ही वाली थी की उसे होश आया कि कल रात क्या हुआ था और कविता जी ने उसके सारे कपड़े उतार कर नंगा ही सुलाया था और वह अब भी नंगी ही थी। उसने शरम से रजाई ओढ़ ली और बूढ़ी अम्मा से विनिती की - क्या मुझे कुछ कपड़े मिल सकते है पहनने के लिए कल मै कीचड़ में गिर गई थी और मेरे कपड़े खराब हो गए जो कि बाथरूम में पड़े हैं।
बूढ़ी अम्मा ने कहा मेम साहब अस्पताल गई है उन्होंने कहा था वहीं से किसी को कहेंगी की वो तुम्हारे लिए एक जोड़ी कपड़े बाजार से खरीदकर यहां छोड़ जाए, तुम्हारे लिए कपड़े जल्द आ जाएंगे। तब तक हाथ मुँह धो कर नाश्ता कर लो, नूपुर ने कहा पहले आप यहां से जाइए तभी मै इस रजाई से बाहर आ पाऊंगी मैंने अंदर कुछ नहीं पहना है, बूढ़ी अम्मा ठीक है कहते हुए बाथरूम में गई और नूपुर के कीचड़ भरे कपड़े लेकर बाहर चली गई। बूढ़ी अम्मा के जाते ही नूपुर उठी और फ्रेश होकर सीधे नाश्ता करने बैठ गई, जब तक उसके कपड़े नहीं आ जाते वह रजाई ही उसका सहारा थी वह वहीं रजाई ओढ़ कर बैठी रही कि करीबन एक घंटे बाद वह बूढ़ी अम्मा अंदर आई और कपड़े टेबल पर रख कर चली गई, उसके जाते ही नूपुर उठी और उसने सबसे पहले दरवाज़ा बंद किया और कपड़े देखने लगी। उसे पेंटी ब्रा सिमिज सब बहुत पसंद आया कियूंकी वह महंगे कंपनी के थे पर ऊपर से पहनने के लिए बस एक पीले रंग का टॉप ही था नीचे पहनने के लिए कुछ नहीं था। नूपुर थोड़ी नाराज़ सी हुई और कपड़े पहनने लगी वह पीला टॉप उसके घुटने के थोड़ा ऊपर आता था उसे ऐसे कपड़े पहनने की आदत नहीं थी वह खीच खीच कर आपने टांगें ढकने की कोशिश करने लगी, तभी कमरे में रखी टेलीफोन गूंज उठी और नूपुर ने फोन उठाया । सामने कविता जी थी उन्होंने पूछा अब तुम्हारी तबीयत कैसी है? और भेजे हुए कपड़े कैसे लगे? नूपुर ने जवाब दिया - मेम अब मै बिल्कुल ठीक हूं और मुझे आपके भेजे हुए कपड़े बहुत अच्छे लगे पर उसमे नीचे पहनने के लिए कुछ नहीं था मुझे ऐसे कपड़े पहनने की आदत नहीं है। कविता जी उसकी बात सुनकर हस पड़ी फिर कहा - बेटा तुम्हारे घुटने में चोट लगी है ना इसलिए नहीं भेजा आज के लिए वही पहन लो वहां कोई नहीं आता। जब मैं रात को आऊंगी तब देखते हैं ओके और फोन रख दिया। नूपुर ने भी फोन रखा और आयने के सामने जा के खड़ी हो गई और खुद को निहारने लगी वह वाकई में पीले टॉप में कमाल लग रही थी, तभी उसे याद आया कि उसने शोरूम में किसी को भी नहीं बताया है कि वो कहां है और आज कियूं नहीं आ पाएगी, उसका फोन तो कल रात ही बंद हो गया था उसने टेलीफोन से शोरूम फोन किया और कल रात के हादसे के बारे में बताया साथ ही ड्राइवर परेश की शिकायत भी कि, की वह उसे इस भयानक जंगल में अकेले छोड़कर कैसे चला गया तभी उसे पता चला कि कल रात जंगल में परेश की लाश मिली और पुलिस उसे ढूंढ रही है कि वो लापता है , नूपुर ने भारी मन से फोन रखा, उसे ड्राइवर परेश की मौत का अपसोस था। उसके बाद नूपुर शर्माती हुई कमरे के बाहर आगई और हवेली में घूमने लगी, रात की अपेक्षा दिन में हवेली कम मनहूस और डरावना लगता था। नूपुर पूरी हवेली में इधर उधर घूमने लगी, पता नहीं क्यूँ उसे एक लगाव सा होने लगा उस हवेली से और घूमते घूमते उसे एक गुप्त दरवाज़ा मिला जिसे उसने खोला तो एक सीढ़ी नीचे तहखाने में जाती हूई मिली, वैसे तो नूपुर एक डरपोक किस्म की लड़की थी पर ना जाने क्यूं अपने आप को उस तहखाने में जाने से नहीं रोक सकी, एक मसाल लेकर आगे बढ़ने लगी।
धीरे धीरे डरती हूई सी वो आगे बढ़ती जा रही थी कि अंदर पहुंचकर उसे एक भयानक सा मूर्ति दिखाई दी जो कि करीबन तीस फुट लंबी थी ओर किसी राक्षस कि लगती थी वो देखकर नूपुर चीख पड़ी और बड़ी मुश्किल से आपने आप को संभालते हुए भागने लगी, तभी उसे आचनक एक गहरी दबी हुई सी चीख गुर्रारहट के साथ सुनाई दी, नूपुर सतर्क हो गई और ध्यान से कान लगाकर आवाज सुनने लगी आवाज एक पुराने कमरे से आ रही थी जिसमे एक मोटी सलाखें से बनी दरवाज़ा था और उसमे एक मोटा ताला लटक रहा था, नूपुर ने कांपते हुए अंदर झाकने की कोशिश की तो उसे अंदर एक ताबूत नजारा आने लगा, चीखने चिल्लने और गुर्राने की आवाज ताबूत में से ही आ रही थी, ऐसे लगता था जैसे किसी को उस अंधेरे कमरे में ताबूत में कैद कर लिया हो, ये सब देख कर नूपुर की सिट्टी पित्ती गुम हो गई और वो सीधे सर पे पैर रख के भागी।
वापस भागकर सीधे उस कमरे में पहुंची और दरवाज़ा बंद करके रजाई में दुबक गई , वह सर से पावं तक कांप रही थी, उसे लगने लगा जाने अनजाने में वह एक बेहद बड़ी मुसीबत में फँस चुकी है, उसे जल्दी यहाँ से भागना चाहिए, उसने बहुत सोचा की जरूर यहाँ कुछ भयनक तरीके का तंत्र साधना होता है और शायद इसीलिए कविता शहर से दूर यहाँ वीरान हवेली में अकेली रहती है, वह धीरे से हिम्मत करके उठी और हवेली के बहार जाने लगी। वह उस बूढी अम्माँ से नज़र चुराती धीरे - धीरे बहार निकल गयी और चैन की साँस ली।
जैसे ही वह मेन गेट के पास पहुंची वहाँ एक बड़ा टाला लगा हुआ देखा, उस ताले को देखकर घबरा गयी फिर उसने चारों और नज़र दौराई वह पूरी हवेली लोहे की मजबूत सलाखों से घिरा हूवा था जिसे चढ़कर भी पार नहीं किया जा सकता था, अब वो रउवाँसू होने लगी।
तभी उसे एक तरकीब सूझी वह झट से बूढी अम्मा को पूरी हवेली में ढूंढने लगी जो की उसे किचन में मिली, नूपुर डरते - डरते उसके पास पहुंची और उससे कहा - जी अम्माँ जरा सुनिए , वह बूढी अम्माँ पलटी और एक अजीब नज़र से उसे घुरा, नूपुर नज़र घूमती हुयी बोली - मुझे शोरूम जाना पड़ेगा, मुझे काम पे जाना है पर मेन गेट में टाला लगा है उसकी चाबी कहाँ है? बूढी अम्माँ ने डरावनी आवाज में कहा - उसकी चाबी मेरे पास नहीं है, मेम साहब उसकी चाबी ले जाते है वो जब आएगी तभी वो टाला खुलगे। नूपुर ने सहमते हुए कहा - देखिये मेरा बहार जाना जरूरी है, इस पर वो बूढी अम्माँ गुस्से से झल्लाते हुए बोली - बोला ना उसकी चाबी मेरे पास नहीं है, जाओ यहाँ से।
उनकी यह प्रतिक्रिया देखकर नूपुर की रीढ़ की हड्डी तक कांप उठी और वो वहाँ से सर पे पैर रख कर भागी, सीधे आपने कमरे में जा कर दरवाजा बंद कर लिया और रोने लगी, फिर बिस्तर पर चुपचाप बैठ गयी, उसका मन अब भी ये मानने को तैयार नहीं था की कविता एक बुरी औरत है, उसने तो उस जैसी दो कौड़ी की लड़की को आपने घर में पनाह दी, उसका अपनी बेटी की तरह ख्याल रखा वो ऐसा बुरा काम कैसे कर सकती है, उसे यकीन हो गया की बूढी अम्माँ ही जरूर उनके पीठ पीछे ये सब काम करती होगी, तभी दरवाजे के बहार नॉक करने की आवाज आयी नूपुर चौक गयी, बहार अम्माँ की आवाज आयी - बहार आ कर खाना खा लो, नूपुर ने कहा - नहीं मुझे भूख नहीं है आप खा लो, नूपुर कोई भी रिस्क नहीं उठाना चाहती थी।
जैसे - तैसे दिन ढल गया नूपुर उस कमरे में कैद गुमसुम बैठी रही, तभी उसे मेन गेट के बहार एक तेज रौशनी दिखी, वो मिसेस कविता की न्यू कार bmw ही थी, नूपुर की दिल में थोड़ी धनदास बंधी की सब अच्छा होगा और वो अपने घर जा पायेगी, उसने थोड़ा इंतज़ार किया मिस कविता सीधे आपने कमरे में गई और करीबन एक घंटे बाद सीधे नूपुर से मिलने पहुँच गयी। आते ही उसने नूपुर का हाल - चाल पूछा और उसका चेकउप किया, उन्हें भी सब ठीक लगा, उसके बाद उसने नूपुर की घुटने पर बंधी पट्टी निकल दी, अब नूपुर ने बोलना शुरू किया - मेम मैं आपने घर जाना चाहती हूँ, क्या आप मुझे बस स्टॉप तक छुड़वा सकती है ? कविता ने गंभीर स्वर में कहा - कियूं यहाँ अच्छा नहीं लग रहा या मुझसे नाराज़ हो? नूपुर ने शरमाते हुए कहा ऐसी कोई भी बात नहीं है जरासल मुझे काम पे भी तो जाना है, एक दिन नोकरी पे गयी और दूसरे दिन ही छुट्टी।
कविता ने कहा - ठीक है खाना खा लो फिर मैं तुम्हें छोड़ आउंगी और बहार चली गयी, नूपुर मन ही मन खुश हो उठी, हाश अब वो फाइनली घर जाने वाली थी इस मनहूस और डरावनी हवेली से दूर, थोड़ी देर बाद दोनों ने खाना खाया और कविता जी उसके बाद उसे अपनी नए कार में बैठा का चल पड़ी, कार खुद कविताजी चला रहीं थी।
थोड़ी देर बाद नूपुर ने कहा - मेम आपका बहुत बहुत शुक्रिया तभी उसने देखा की कविता जी गाड़ी बस स्टैंड तरफ नहीं बल्कि शहर की तरफ घुमा रहीं हैं उसने पुछा मेम बस स्टैंड तो उधर है? कविता जी ने कहा - मैं तुम्हें तुम्हारे घर तक सीधे छोड़ आउंगी एक लड़की को अकेले बस में सफर नहीं करनी चाहिए । उसके बाद दोनों ख़ामोशी से कार में बैठे रहे और कब शहर आ गया पता ही नहीं चला कार से उतरकर नूपुर ने एक बार फिर कविता जी का अभिवादन किया और उन्होंने कस के गले लगाकर भारी मन से अलविदा कहा।
आपने कमरे में पहुँचते ही नूपुर की जान में जान आई और वह चैन सो सो गई, वह अगले दिन देर से उठी और नहाकर बाल बना रही थी तभी उसने गौर किया की उसके बाल किसी ने काटें है, उस दो दीन पहले ही बाल सेट किये थे एक ही लम्बाई में और आज एक साइड का बाल कम लम्बाई का दिख रहा था। अब नूपुर घबराने लगी, उसे लगा जरूर उसके बाल उस बूढी अम्माँ ने ही काटे होंगे किसी काले जादू के लिए, अब उसका क्या होगा भगवन ही जाने।
वह परेशान सी शोरूम जाने के लिए निकली और रस्ते में पड़ने वाले हनुमान मंदिर में थोड़ी देर बैठी रहीं फिर शोरूम पहुँच गयी। शोरूम पहुँचते ही अचानक उसे तालियों की गूंज एक साथ सुनाई दी, वह चौक गयी लोग उसके लिए ताली बजा रहे थे, सामने शोरूम के मालिक बलराज खुराना और उसका बेटा धनराज खुराना खड़े थे, बलराज ने नूपुर को अपने पास बुलाया और हाथ मिलकर अभिवादन किया और सभी से कहा - इस लड़की ने आते ही पहले दिन ही इतनी महँगी कार बेचकर मुझे खुश कर दिया है मैं आज ये ऐलान करना चाहता हूँ की आज से जो कोई भी सेलल्सगर्ल या बॉय गाड़ी बेचेगा उसे गाड़ी की कीमत का 2 प्रतिशत इनाम में दिया जायेगा, नूपुर ने ढाई करोड़ की गाड़ी बेचीं है इसलिए उसे पांच लाख का चेक मिलगा, तो ये पांच लाख का चेक नूपुर के नाम और एक चेक नूपुर की और बढ़ाया, नूपुर ने चेक लिया उसे यकीन नहीं हो रहा था उसने पांच लाख कमा लिए वह खुशी से नाच पड़ी।
उसके बाद नूपुर ने दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की की, उसने उसी महीने और चार पांच गाड़ी बेच दी जिनकी कीमत साठ - सत्तर लाख थी जिसके एवरेज में उसे और छे लाख मिले नूपुर की विश्वाश नहीं हो रहा था की एक जॉब जिसे उसने दो कौड़ी की दस हजार की सेल्स गर्ल की समझी थी उसी में उसने एक ही महीने में ग्यारह लाख बारह हज़ार कमा लिए थे। उसने सबसे पहले जाकर एक बिस हज़ार का मोबाइल ख़रीदा और उसके बाद एक टाटा tiago कार खरीदी जिससे उसे कहीं भी आने जाने में सुविधा हो, अब वह हमेशा कार की डिलीवरी देने अपनी कार में ही जाती थी और उसी में लौट आती थी, उसके साथ जो भी उस रात हूवा उसके बाद वो रिस्क नहीं लेना चाहती थी।
शौरूम में सभी उसके कामयाबी से जलने लगे थे शोरूम का मालिक हमेशा उसे आपने पास बुलाता रहता जिससे लोगों को लगता की उसने मालिक को आपने सुंदरता के जाल में फँसा लिया है पर ये बात किसी की भी नूपुर के मुँह पर बोलने की नहीं थी वह एक पल में किसी को भी शोरूम से बहार निकाल सकती थी।
उसकी कामयाबी से शोरूम के मालिक का बेटा धनराज कुछ ज्यादा ही चिढ़ने लगा था, क्यूंकि जब से उसने शोरूम में कदम रखे थे बलराज उसे हमेशा डाटते ही रहता था उनकी नज़र में नूपुर एक बेहद होनहार और काबिल लड़की थी और धनराज एक निकम्मा कामचोर जो बिना बाप के दो पैसे भी नहीं कमा सकता। उसका बाप अक्सर उसे धमकाता की अगर तुम नहीं सुधरे तो तुम्हारी कुर्सी नूपुर को दे दूंगा और उसकी जगह लोगों को गाड़ी तुम दिखाओगे ।
एक दिन धनराज खुराना आपने पद का गलत इस्तिमाल करते हुए शोरूम की सबसे महँगी कार ले गया अपनी गर्लफ्रेंड को घुमाने के लिए और रस्ते में एक बड़ा एसिडेंट हो गया जिसमे कार बुरी तरह से छतिग्रस्त हो गयी उस कार को रिपेयर करने का खर्चा शोरूम के मालिक बलराज को उठाना पड़ा पुरे एक करोड़ रुपये, इससे नाराज़ होकर सच में उसने नूपुर को डायरेक्टर कम मैनेजर के पद पर बैठा दिया और धनराज को शोरूम और आपने घर से निकल दिया। धनराज अपनी गलती मानने के बदले नूपुर को नुक्सान पहुंचाने के लिए हाथ मलने लगा, बलराज को नहीं पता था की अय्याशी में उसका बेटा जिस्म फरोशी का धंदा करने लगा था उसने नूपुर को सबक सीखने के लिए मौका देखना शुरू कर दिया।
आख़िरकार उसे एक दिन वो मौका मिल ही गया भले ही शोरूम से उसे निकल दिया गया हो पर आज भी कुछ लोग उसके लिए वफादार थे, उसे पता चला की एक रहीश आदमी ने एक महंगी गाड़ी खरीदी है और उसकी डिलीवरी करने नूपुर खुद जाने वाली है क्यूंकि वह एक बहुत बड़ा पॉलिटीशन था, बस धनराज पहुँच गया उसके पास नूपुर से भी पहले और आपने आपको शोरूम का मैनेजर बताया और कहा आपने हमारी शोरूम से एक महँगी गाड़ी खरीदी है वह भी पूरा नगद कैश दे कर इसलिए हम आपको एक तोहफा देना चाहते है।
गाड़ी की डिलीवरी करने क लिए एक खूबसूरत लड़की आएगी आप उसके साथ जो चाहे वो कर सकते है, एक रात के लिए वो लड़की भी आपकी और नपुर का फोटो दिखाया जो उसके मोबाइल पे था, फोटा देखकर वह आदमी पागल हो गया, उसे आधीरता होने लगी। उस नेता को वो लड़की इतनी पसंद आ गई की सारा दिन बस उसी के ख्यालों में खोया रहा, उसकी जवान पिघलता सोने जैसा बदन खूबसूरती ने उसे पागल कर दिया था, वह बड़ी बेताबी से रात का इंतज़ार करने लगा ।
इधर नूपुर सबसे अनजान कार की डिलीवरी देने के लिए तैयारी करने लगी और आज फिर वह उसी bmw कार में जाने वाली थी जिसकी डिलीवरी उसे करनी थी, किउंकि उसकी गाड़ी सर्विसिंग में गई थी और नहीं आई थी। वह मन ही मन घबरा रही थी जो उस दिन हूवा था वो फिर आज ना हो, उसे याद आने लगा वो भयनाक आंधी और बारिश की रात, वह जंगल के सुनसान सड़क पर अँधेरे में भटक रही थी, उसके नज़र में झूलने लगा वो खौफनाक पुराणी हवेली का तहखाना और वह डरावनी मूर्ति और ताबूत से आने वाली आवाजें उसके कान में गूंजने लगे थे।
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