नूपुर को समझ आ चूका था की उसे उसकी जॉब उसकी खूबसूरती की वजह से मिली है और इसलिए बहुत लोगो की उसपर बुरी नज़र है पर वह आपने आप को संभल के बैठ जाती है, दिन अच्छे से बिट जाता है और कोई खास काम नहीं मिलता उसे करने को, बस शाम को एक रहीश महिला शोरूम आती है जिसे गाड़ी दिखाने की जिम्मेदारी उसे सोपि जाती है। गाड़ी के बारे में जितनी जानकारी उस रहीश अधेड़ उम्र की महिला को थी उतनी नूपुर को नहीं थी फिर भी वो महिला उसकी बात ध्यान से सुनती रही क्यूंकि नूपुर का सिर्फ तन पिगलता सोना नहीं था बल्कि उसकी आवाज में एक जादू था, जब वो बोलती थी रो ऐसा लगता था मनो विणा स्वाम माँ सरस्वती बजा रही है। उस महिला ने आखिर में अपना नाम बता ही दिया उसे - कविता वर्मा ! (ये वही कविता मेमेरियल हॉस्पिटल की मालकिन थी जो अपनी एक लौटी बेटी खो चुकी थी) उसे नूपुर में अपनी बेटी नज़र आने लगी थी नूपुर गाड़ी के बारे में बोले जा रही थी और कविता जी उसे प्यार से वात्सल्य भाव से निहार रही थी। कविता जी वहाँ सिर्फ अपनी पुराणी कार बेचने आयी थी पर उन्हें जैसे ही पता चला की नूपुर का आज पहला दिन है उसने तुरंत उस गाड़ी को खरीदने क लिए हाँ कर दी जो नूपुर ने दिखाई थी, पहले ही दिन नूपुर के हाथों पुरे ढाई करोड़ की bmw 7 सीरीज बिकी थी, शोरूम में ये बात जंगल की आग की तरह फैल गयी और सभी उसकी कामयाबी से दंग रह गए। कुछ उसके साथ के सीनियर सेल्स गर्ल्स उसकी कामयाबी से जलती हुयी दिख रहीं थी किउंकि उनसे आज तक इतनी महँगी गाड़ी नहीं बिकी थी।
कविता जी ने जल्दी से अपना चेक बुक निकला ओर डाउनपेमेंट का एक करोड़ रुपए का चेक बना के नूपुर को दे दिया और बाकी का कर लोन के लिए आपने दस्तावेज देकर चली गई। नूपुर अपनी कामयाबी से इतराती हुई खुशी से झूमती हुई बॉस के पास जाकर चेक दे दिया और एकाउंट सेक्शन में लोन के लिए पहुंच गई, पूरी प्रक्रिया में उसे लगभग दो घंटे लगे ओर अंत में उसी से कहा गया कि एक ड्राइवर लेकर जाओ और गाड़ी डिलीवरी करने खुद जाओ बुके ऑर मिठाई के साथ।
नूपुर खुशी से झूमती हुई निकाल पड़ी ड्राइवर परेश के साथ, उसे लग रहा था कि ये उसके जिंदगी का सबसे अच्छा दिन है। एक आलीशान कार में वह अपनी पसंदीदा गाने बजाती हुई जा रही थी, गाड़ी की खूबसूरती देखते ही बनती थी। लगभग एक घंटे के सफर के बाद वो आखिर आपनी मंजिल पर पहुंच गई, उसे लगा था इतनी महँगी कार की मालकिन का घर कोई बहुत खूबसूरत सा चमचमाता हुआ बंगलो होगा पर उसके अनुमान के विपरीत ये एक बेहद पुरानी हवेली थी, आज के जमाने में भी घर में लाइट नहीं थी क्योंकि हर जगह आग और मशालें जलती दिख रही थी, पूरा घर हिंदी भूतिया फिल्मों का सेट लगता था।
उसने बड़ी हिम्मत करके गाड़ी अंदर डालने को बोला और ड्राइवर की भी अपने साथ चलने को बोला पर उसने हवेली के अंदर जाने से मना कर दिया कियुंकी उस भूतिया हवेली को देखकर उसकी सिट्टी पित्ती गुम हो गई थी, नूपुर बहुत हिम्मत करके अंदर गई और मेन गेट के सामने खड़ी हो गई, कांपते हाथों से पीतल की घंटी बजाई और अंदर से एक अजीब सी आवाज आई - कोन है? आ रही हूं।। थोड़ी देर में एक करररर की आवाज के साथ दरवाज़ा खुला और सामने एक कुब्रदी बूढ़ी औरत दिखी जो दिखने में किसी चुडैल से कम नहीं लग रही थी, नूपुर उसे देखकर डर से चिल्लाने ही वाली थी की उसने अपने आपको रोक लिया और लड़खड़ाते जुबान से कहा - मै मै नूपुर, वो वो नई गाड़ी की डिलीवरी देने आई हूं मेम घर में है।। उसने डरावनी घरघरती आवाज में कहा - हां है अंदर आ जाओ, और भीतर आने लगी, नूपुर का मन नहीं था हवेली के अंदर जाने का मगर वो मना नहीं कर पाई, आगे आगे बूढ़ी अम्मा मशाल लेकर चल रही थी और उसके पीछे पीछे कांपते हुए नूपुर क्योंकि वो हवेली अंदर से और भी जायदा मनहूस और डरावना लगता था। दीवारों पर जानवरों के सर जगह जगह बाघ चीते की खाल और बंदूकें, तलवारें - खंजर सजी थी, आखिर कर उस बूढ़ी अम्मा ने उसे एक बड़े हाल में एक सोफे पर बैठने को कहा और चली गई। अब उस बड़ी सी डरावनी हाल में नूपुर अकेली थी, कुछ माशालें दीवारों पर लगी हुई जल रही थी पर उनकी रोशनी उस कमरे के लिए ना के बराबर ही थी। अब नूपुर पहले से जायदा डरने लगी थी, तभी सीढ़ियों पर किसी की आहट हुई नूपुर की हदियों तक कांपने लगी, तभी एक प्यारी सी जानी पहचानी सी आवाज आई - नूपुर जी! आप आ गई, सब काम हो गया? नूपुर ने पहले अपना गला साफ किया फिर कहा - यस मिस सबकूच हो गया है गाड़ी बाहर बरामदे में खड़ी है ये आपकी चाबी और पेपर और बुके मिठाई।। उसने टेबल पर रखा बुके उठाया और कविता जी को दे दिया, वह बुके बहुत खूबसूरत था कविता जी उसे लेकर बहुत खुश दिख रही थी, फिर नूपुर को बैठने को बोला और बूढ़ी अम्मा को चाय नाश्ता लाने को कहा। नूपुर ने कहा - मेम गाड़ी बाहर बरामदे में खड़ी है आप चलकर देख लीजिए, कविता ने कहा - गाड़ी तो हमेशा यहीं रहने वाली है उसे तो कभी भी देख लूंगी पर पहले तुम्हें तो देख लूं। उनकी बात सुनकर नूपुर चोक गई, क्या ??? नूपुर ने सवालिया मुद्रा बनाया, कविता ने कहा - मेरा मतलब है कि कूूछ अपने बारे में तो बताओ। उसके बाद बातों का सिलसिला शुरू हो गया कविता जी को गाड़ी में कम और नूपुर की जिंदगी में जायदा दिलचस्पी दिखाई दे रही थी। तभी नूपुर ने सहमते हुए कहा - मेम अगर आप बुरा ना मानो तो मै आपसे एक बात पूछूं आप यहां इस भूतिया हवेली में किऊं रहती हैं? कविता ने हस्ते हुए कहा - मुझे पुरानी हवेली बहुत पसंद हैं इसलिए इसे मैंने खरीदा और यहीं रहती हूं शहर के शोर से दूर। तभी नूपुर ने घड़ी की आवाज सुनी जो कि पुरानी कूकू क्लॉक की थी उसमे टाइम दिख रहा था दस, नूपुर ने अपना घड़ी देखा वास्तव में रात के दस बज चुके थे उसने खुशी में टाइम ही नहीं देखा। नूपुर हड़बड़ाते हुए उठी और कविता जी से जाने की इजाजत मांगने लगी, कविता जी ने कहा चाय तो पी कर जाइए पर नूपुर नहीं मनी उन्होंने अनमने मन से उसे विदा किया और बूढ़ी अम्मा को नूपुर को बाहर तक छोड़ने को कहा। बाहर आते ही नूपुर ने सभी तरफ ड्राइवर परेश को ढूंढा पर उसका कहीं पता नहीं चला फोन लगाया पर बंद आने लगा नूपुर अब घबराने लगी थी अब क्या होगा कैसे पहुंचेगी घर। तभी उसे याद आया कि परेश ने कहा था यहां से करीबन सात किलोमीटर दूर बस स्टैंड है जहां से आखरी बस ग्यारह बजे निकलती हैं शहर की तरफ, उसे लगा हो ना हो शायद परेश वहीं होगा ओर अगर ना भी हूवा तो भी बस स्टैंड तक पहुंच गई तो कम से कम घर तक तो पहुंच जाएगी, ऐसा सोचकर नूपुर रात को अकेले जंगल के बीचों बीच बने सड़क पर पैदल चल रही थी, सड़क पर रोशनी भी नहीं थी मोबाइल टॉर्च की मदद से रास्ता देखते हुए गूगल मेप के सहारे चली जा रही थी। अंदर ही अंदर कांप रही थी, वह कभी अकेले कहीं नहीं जाती थी वह भी इस जंगल में, ऊपर से उसे शहर के हालात पता थे कहीं किसी आवारा लड़कों को दिख गई तो छोड़ने वाले नहीं थे। डरी सहमी सी चली जा रही थी कि तभी आंधी चलने लगी आचनक बिजली कड़कने लगी, अब नूपुर की हिम्मत जवाब देने लगी वह वापस उस भूतिया हवेली में नहीं जाना चाहती थी पर अब क्या करें बस स्टैंड अभी भी लगभग छह किलोमीटर दूर थी ओर वो भूतिया हवेली महज एक किलोमीटर नूपुर ना चाहते हुए भी वापस मूड गई की आज की रात वहीं बिता लेगी। तभी वर्षा शुरू हो गई इतनी तेज मुस्ला धार बारिश थी कि एक ही पल में नूपुर के सारे कपड़े गीले हो गए, उसका मोबाइल फ़ोन जवाब डी गया, उस जंगल में उसे कहीं कोई सहारा ना मिला जो उसे इस भयंकर बारिश से बचा सके, वहां कई घने पेड़ थे पर उनकी शरण लेना खतरनाक हो सकता था क्योंकि बारिश और आंधी में अक्सर डाली गिर जाती है, नूपुर अंधेरे में आंखे बंद करती हूई हवेली की तरफ बढ़ रही थी तभी एक पत्थर पर पैर पड़ा और वह बड़ी जोर से मुँह के बल गिर पड़ी घुटना और कोहनी छिला गया और सर से भी खून आने लगा क्यूंकि सर एक पत्थर से टकरा गया था, अब नूपुर आपनी बेबसी पर रोने लगी, वह कीचड़ से गन्दी हो चुकी थी । तभी उसे किसी जंगली जानवर के गुर्राने की आवाज सुनाई दी और नूपुर वहां से सर पे पैर रख के भागी और सीधे उस भूतिया हवेली के सामने जाकर खड़ी हो गई, वह बुरी तरह से भीग गई थी और उसके कोहनी ,घुटने और माथे से खून रिस रहा था थोड़ी देर पहले जो हवेली उसे भूतिया और मनहूस लग रहा था अब वही किसी जन्नत से कम नहीं लग रहा था। नूपुर ने घंटी बजाई उसे लगा फिर वही बूढ़ी अम्मा दरवाज़ा खोलेगी पर उसके अनुमान के विपरीत दरवाज़ा स्वम खुद कविता जी ने खोला। नूपुर को इस हालत में देखकर चोक पड़ी और पूछा क्या हुआ तुम्हे ? ये क्या हाल बना रखा है? नूपुर बताना चाहती थी पर उसके मुख से शब्द नहीं आ रहे थे बस रोना आ रहा था। कविता जी ने उसे संभाला, उसके कपड़ों पर मिट्टी और कीचड़ लगी थी ओर हाथ पैर भी कीचड़ में शने हुए थे। कविता जी ने उसका एक हाथ पकड़ा और खीचकर ले जाने लगी नूपुर को थोड़ा आजिब लगा पर उसने उनका विरोध नहीं किया। वो नूपुर को बाथरूम में लेकर आ गई जो कि पुरानी पर बहुत बड़ी और आलीशान थी। उन्होंने बड़ी फुर्ती से हक जाताते हुए नूपुर के कपड़े उतारने लगी, पहले उसने उसकी जींस उतार दी जो कि बारिश और कीचड़ में भीग कर दो किलो का हो चुका था और फिर शर्ट उतार दी। उसके बाद कविता जी नूपुर की पेंटी और ब्रा भी उतारने लगी नूपुर अब शरमाने लगी और कविता का हाथ पकड़ने लगी। कविता जी ने बड़े प्यार से कहा - अरे बेटा मैं भी एक डॉक्टर हूं ओर इलाज के लिए सबसे पहले पेसन्ट के कपड़े ही उतारे जातें है और वेसी भी मा बाप और डॉक्टर के सामने नहीं शर्माना चाहिए, ऐसा कहकर कविता जी ने एक ही हाथ से नूपुर के दोनों हाथो को पकड़ा और उसे पूरा नंगा कर ही दिया आश्चर्य रूप से नूपुर जवान लड़की होने के बाद भी उस अधेड़ उम्र की महिला के सामने बेबस थी, कहीं - न कहीं कविता जी नूपुर से ज्यादा शारीरिक बल रखती थीं। अब नूपुर पूरी नंगी अपने आपको ढकने की कोशिश करने लगी और कविता उसे छोड़कर बाथतब में पानी भरने लगी, थोड़ी देर में बठतब पूरा भर गया ओर कविता ने नूपुर को उसमे बैठने को कहा। नूपुर ने कहा - मेम मु मुझे बहुत ठंडी लगी है नहाने का मन नहीं है प्लीज। कविता ने कहा डोंट वरी ये गर्म पानी है नूपुर ने हाथ डाला वाकई में गर्म पानी था। नूपुर तुरंत टब में जाके बैठ गई एक तो वह पूरी नंगी कविता के सामने असहज महसूस कर रही थी और ठंड से कांप भी रही थीं, गरम पानी ने उसे बहुत आराम दिया और बाद में उसने पूछा - मेम आपसे एक बात पूछूँ , यहां लाइट तो है नहीं फिर ये पानी गरम कैसे? कविता ने उसके बालों पर शैम्पू लगाते हुए कहा मेरे घर में छत पर सोलर सिस्टम लगा है। थोड़ी देर में कविता जी ने नूपुर को ऐसे नहला धुला कर निकाला जैसे एक माँ अपनी छोटी बच्ची को, और बेडरूम में ऐसे ही लाकर टावेल से पोचा और टावेल सूखने डाल दिया, नूपुर वहां नंगी खड़ी थी उसे शर्म सी आ रही थीं उसने आव देखा ना ताव और बिस्तर में कूद पड़ी और रजाई ओढ़ ली। अब उसे आच्छा लगने लगा था कि कविता जी आपनी डॉक्टर बेग लेकर आ गई। उन्हें देखकर नूपुर ने थूक घुटका क्योंकि उसे बचपन से ही डॉक्टर और इंजेक्शन से बहुत डर लगता था। कविता जी उसके पास आकर बैठ गई और बेग से स्टेठास्कॉप निकालकर कान में लगाते हुए नूपुर को पास आने का इशारा किया। नूपुर सहमी सी और दूर जाने लगी कविता जी ने कहा - अरे डोंट बिहेव लाइक ए चाइल्ड डियर (बच्चो की तरह पेश मत आओ प्यारी) आ जाओ ककुछ नहीं करूंगी और उसका हाथ पकड़ते हुए लेटाया और चेकअप करने लगी, उसे तेज बुखार था शायद बारिश मै भीगने की वजह से, उसके जख्म अभी भी ताज़ा थे कविता ने ड्रेसिंग का सामान निकाला और उसके घुटने कोहनी और माथे पर मलहम पट्टी करने लगी।
उसके बाद जैसे ही कविता जी ने एक इंजेक्शन निकला नूपुर उछल कर बिस्तर से जमीन पर आ गई, उसने लगभग हाथ जोड़ते हुए कहा - मै मै ठीक हूं प्लीज ये ये इंजेक्शन नहीं बहुत दुखता है, भगवान के लिए नहीं। कविता जी ने उसे लाख समझाया पर नूपुर नहीं मानी कविता जी ने उसे अपनी बेटी की तरह डांटते हुए कहा - चलो चुपचाप सो जाओ मैं जा रही हू, और चली गई। इसके बाद नूपुर को अच्छा लगने लगा दवाई लगने से उसे दर्द नहीं हो रहा था, तभी कविता जी वापस आ गई उसे देखकर नूपुर कांप उठी, उन्होंने बड़े प्यार से कहा - खाना तो खा लो बेटा फिर सो जाना, नूपुर का मन नहीं था खाना खाने का कविता जी ने जबरदस्ती थोड़ा सा खिलाया और बाहर चली गई कि अब सो जाओ। उनके जाते ही नूपुर सोने की कोशिश करने लगी पर नींद तो उसके आंखों से कोसों दूर थी इस भयनाक से माध्यम रोशनी वाले कमरे में वो एकदम अकेली थी, डर के मारे उसका बुरा हाल था। तभी कविता जी वापस आई और उससे पूछा - अब तुम्हें कैसा लग रहा है? नींद आ रही है? नूपुर ने कहा सब ठीक है बेहतर महसूस कर रही हूँ, पर कविता उसके हाव भाव देखकर समझ चुकी थी कि ये डरी हुई है और नहीं सो पाएगी। कविता जी धीरे से उसके पास आकर बैठ गई और नूपुर के गले में उल्टे हाथ डालकर तापमान मापने लगी, फिर खुद रजाई में घुसने लगी। नूपुर उन्हें देखकर घबराने लगी और कहने लगी म म मेम ये ये आप क्या कर रही हो? कविता जी ने कहा - डोंट वरी बेटा कुछ नहीं करूंगी मैं तुम्हें , तुम बहुत डरी हुई हो इसलिए मै बस तुम्हें सुलना चाहती हूँ आ जा, और नूपुर को खीचकर अपने बाहों में भर लिया और बड़े जोर से गले लगा लिया, फिर लेटकर नूपुर को आपने ऊपर लेटा लिया और बिल्कुल उसी तरह सुलाने लगी जैसे कि कोई मां आपने छोटे बच्चे को सुलाती है।
तभी नूपुर के कमर में कुछ चुभा और नूपुर के मुख से जोरदार चीख निकल पड़ी, कविता जी ने बड़े प्यार से कहा - बस बस बस हो गया थोड़ा सा, इंजेक्शन था बेटा लेना जरूरी था तुम्हें अच्छा लगेगा ओर उसके बाद कविता नूपुर को बड़े प्यार से सुलाने लगी, नूपुर ने भी इसका विरोध नहीं किया क्योंकि उसने अपनी माँ को बस कुछ महीनों पहले खोया था उसे उनकी बहुत याद आने लगी, इसलिए भी वह वापस आपने घर गांव नहीं जाना चाहती थी किउंकि गावं में बस उसका बूढ़ा बाप था जिसे शराब पीने से फुरसत नहीं थी और उसने कभी नूपुर को नहीं चाहा किउंकि वह लड़की है और उसका भाई शादी के बाद अपनी बीवी का हो चूका था वो घर उसके लिए बेगाना था, माँ के गुजर जाने के बाद वो बिलकुल अकेली तनहा रह गई थी, आंखियों से अश्क छालक आए कविता जी का प्यार देखकर और उसने भी कविता जी को गले से लगा लिया वह भी कसकर और कब नींद की आगोश में खो गई उसे पता ही नहीं चला।
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