3 साल बाद
7 दिसम्बर 2018
11: 59 पी.एम.
1 मिनट बाद ही मेरा 21 वा जन्मदिन शुरू, हमेशा की तरह इस बार भी ध्रुव मुझे सबसे पहले विश करने में कामयाब हुआ और अवनि उसके बाद।
सुबह खूब मौज मस्ती करी, दिन का जमकर मज़ा लिया, फिर शाम को ध्रुव ने कहा कि उसने और अवनि ने प्लान बनाया है, फॉरेस्ट कैंपिंग का और मुझे आना है कैसे भी करके. मेने माँ को पूछा, अजिब बात है माँ ने एक बार में ही हाँ बोल दिया, हम 9 बजे पास ही के ब्लैक बक फारेस्ट में मिले, वहाँ कैम्प लगाया, ये कॉलेज का आखिरी साल भी था तो हम इस लम्हे को पूरा जीना चाहते थे।
गाने और खाने के बाद हमने अपने पुराने लम्हें, कुछ जोक्स जो की हम कई बार सुन चुके थे, से वक़्त बिताया किया। फिर हम अपने कैम्प में सोने चले गए.
मैंने ध्रुव की और देखा, मेरे दिमाग वह सारे लम्हे एक फ़िल्म की तरह चलने लगे जो हमने साथ बिताए, वह सारे पल जब मैंने अपने सबसे अच्छे दोस्त के साथ बुरा बर्ताव किया।
बाद में मैंने अवनि को देखा, वो आज कुछ ज़्यादा ही खूबसूरत लग रही थी जैसे रात की चाँदनी उसी से है, चाँद से नहीं, जैसे कि हर कोई सोचता है एक ड्रीम गर्ल।
वो मेरी ज़िंदगी में अकेली ऐसी दोस्त थी जिसने उन शब्दो को ग़लत साबित किया कि"लड़कियाँ लड़को जितने शिद्दत से दोस्ती नहीं निभा सकती" , ऐसे कई मौके आए जब मुझे उस से अच्छा कोई सँभाल नहीं पाता या सलाह देता। उसके बदले में मैने उसे या ध्रुव को कुछ नहीं दिया ना उनके जितना प्यार ना ही कुछ छोटे शब्द की–थैंक यू या आइ लव यू.
पर आज पता नहीं क्यू मन में एक अजीब से बेचैनी थी, की आज इन्हें बताऊ की मैं इनसे कितना प्यार करता हु, यही सोचते-सोचते कब आँख लग गयी पता ही नहीं चला।
सुबह ध्रुव के चिल्लाने की आवाज मेरे कानों में पड़ी।
"अवनि!"
"अभय!"
"अभय...वो अवनि ...!"
किसी अनहोनी की आशंका ने मुझे उस और खिंचा और अवनि को देख कर मैं कुछ बोल नहीं पा रहा था,
वो कुछ ऐसे लग रही थी जैसे कि उसे बहुत गहरा सदमा लगा हो, वो कुछ भी मूवमेंट नहीं कर रही थी।
हमने बिना देर किए, हॉस्पिटल जाना सही समझा।
डॉक्टर्स ने कहा कि ये इमरजेंसी केस है, हालत बहुत नाजुक है, डॉक्टर्स उसे आई.सी.यू. में ले गए, मेरी हर साँस में मुझे लग रहा था कि मैं उसे खो दूँगा, मुझे एक साथ बिताए वह सारे पल फिर से याद आ गए, तभी ध्रुव ने बताया कि डॉक्टर आई.सी.यू. से आ गए, हमारे पूछने पर उन्होंने बताया कि वह कोमा में जा चुकी है,
सुन के ऐसे लगा जैसे कि मैने अपना एक हिस्सा खो दिया जैसे कि दिल तो है पर धड़कन नही।
हमने अवनि की मम्मी को सब कुछ बताया और ये भी की डॉक्टर्स का कहना है कि अब इसकी रिकवरी के आसार न बराबर है।
आंटी बहुत रोये उस दिन, और ध्रुव जो हमेशा हँसता
और सबको हँसाता, जो हर मुश्किल घड़ी में भी हमे मस्त रहना बताता, वह ध्रुव आज फुट-फुट के रो रहा था, मुझमे हिम्मत नहीं थी कि मैं ध्रुव को या आंटी को संभालू, और हमें तो ये भी नहीं पता कि अवनि की ये हालात क्यों और कैसे हुई, डॉक्टर्स का कहना था उसके ब्रेन को सदमा लगा है जिसे वह झेल नहीं पाई.
मैंने अवनि का हाथ देखा, वह जैसे सुख चुके थे, मैं उसे इस हालत मैं और नहीं देख सकता था, मैं सब कुछ ध्रुव के हवाले छोड़ के चला गया।
ध्रुव खुद को अवनि की इस हालत का जिम्मेदार समझता हैं क्योंकि उसी ने फॉरेस्ट कैंपिंग के लिए बोला था।
मेरे लाख समझाने पर भी वह इस बात को नहीं भुला पा रहा था, 1 हफ्ता हो चुका था, सब खोये-खोये से रहते है, ध्रुव, आँटी और मैं भी तो ...मुझे कुछ सवाल खाए जा रहे थे, काटते थे मुझे। मेने शहर छोड़ने का फैसला किया औऱ किसी को बिना बताए देहरादून चला आया।
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