जिस्म का खेल

जिस्म का खेल

part 1

औरत एक ऐसी पहेली है! जिसे आज तक ऊपर वाला भी समझ नहीं पाया है! तो इंसान क्या चीज है! कभी-कभी तो लगता है कि औरत भी कहा समझ पाई है खुद को!

सुबह आंख खुली तो सर जोर से भन्ना रहा था! मधु अभी बिस्तर पर ही पड़ी हुई थी और अपने आप को निहार रही थी !!

हथेली की उंगलियों को हवा में लहराते हुए ऊपर की तरफ जोड़ते हुए एक जोर की अंगड़ाई ली! अंगड़ाई लेते लेते चोली के खुले हुए हुको की तरफ ध्यान गया!

शायद रात में जज्बातों का तूफान इतना ज्यादा था कि मधु ऐसे ही सो गई! चोली से निकलते हुए सूरज की किरणों से उज्जवल उरोजो पर ध्यान गया! तो एक पल के लिए खुद पर ही प्यार आ गया और मधु मंद मंद मुस्कुराने लगी!

सब कुछ भूल कर ना जाने क्यों अपने हथेलियों से अपने उरोजो को प्यार से सहलाने लगी! मखमली उरोजो पर वह औस् की बूंद की तरह उभरे हुए 2 मनके जैसे मानो किसी के होंठों का स्पर्श पाने के लिए बुरी तरह से तड़प रहे हो !

यह सोचने मात्र से ही मनको का आकार धीरे-धीरे बढ़ने लगा जैसे ही उसका अंगूठा उस पर रगड़ने लगा! दोनों मनके सीप के मोती के जैसे हो गए!

एक पल के लिए खुद पर ही मान हो गया! फिर अचानक से मधु को अपने जिंदगी की हकीकत का ध्यान आया! मन में एक अजीब सी कोफक्त सी हुई! और अपने मुलायम उरोजो को अपने चोली में डालते हुए हुक लगाने लगी!

साड़ी तक नहीं होती थी रात उसकी, घुटनों तक ऊपर चढ़े  हुए पेटिकोट को मधु सही करने लगती है! और उसकी नजर अपने मखमली पैरों पर पड़ती है एक पल के लिए उसको खुद पर ही मान सा हो गया!

एड़ी  तक लटकी पायल की जंजीरों को मधु गौर से देख रही थी और उसकी नजर अपने खूबसूरत पैरों पर पड़ी! एक पल के लिए उसे खुद से ही प्यार हो गया! पायल जो छोटी सी घंटी थी उसे अपने अंगूठे और उंगलियों के बीच में पकड़कर अपनी एड़ी  पर मार कर होले होले से बजाने लगी ! और उसे देख कर मुस्कुराए जा रही थी! अब उसने अपने दोनों पायलों को धीरे-धीरे अपनी पिंडलियों की तरफ खींचना शुरू किया! पायल और उसके नाखूनों का घर्षण धीरे-धीरे पिंडलियों तक वह कर रही थी!

उसे यह करने में असीम आनंद की प्राप्ति हो रही थी जिसकी वह लगभग कल्पना भी नहीं कर सकती थी! आज उसे खुद को छूकर भी अलग ही मजा आ रहा था! उसने अपनी पायलों को लगभग अपनी पिंडलियों तक खींच लिया और वहां पहले लगभग फस सी गई! उसे इस दर्द में भी मजा आ रहा था!

कितनी खूबसूरत पाव है उसके एक पल के लिए उसने सोचा कि काश वह मर्द होती तो खुद की जवानी का रस जी भर कर पिती ! अचानक उसने अपनी सोच पर जोर-जोर से हंसना शुरू किया!

मधु अपने आप से बड़ा बढ़ाने लगी कि मैं भी क्या सोचने लगती हूं! एकदम से बुद्धू!

पतली धचकनी कमर पर बेतरतीब से लपटी साप की तरह लपटी साड़ी को ठीक किया, लम्बे घने बालों को अलसाये हाथों से लपेटकर गर्दन पर बिखरा सा जुड़ा बनाकर उठी तो सामने टगे शीशे पर नज़र पड़ी तो फिर से अपने आप को मंत्रमुग्ध होकर देखने लगी ! ऐसा नही था वो कमाल की सुन्दरी थी पर कम भी नही थी 

गदराया बदन, उभरे हुए बड़े-बड़े उरोज, और उसकी काया को सजाते भरे हुए नितंब किसी की भी जान लेने के लिए काफी थे ! जो भी मधु को देखता उसका दीवाना सा हो जाता! मधु को भी अपने आप पर खूब नाज था! उसको देख कर आज भी नहीं लगता था की वह शादीशुदा है!अपनी सुंदरता का बखान वह अपने आप से शीशे में देख कर कर ही रही थी कि इतने में बाहर से आवाज आई " मधु अभी तक उठे नहीं हो क्या  ? "

उमेश मधु का पति था और वह बढ़ बढ़ाता हुआ किचन के तरफ बढ़ गया उसने एक पल के लिए भी मधु की तरफ नहीं देखा !  मधु का चेहरा एकदम से उतर गया कि सुबह सुबह उमेश का मूड कुछ गरम सा नजर आ रहा है! वह छुपे हुए कदमों से धीरे-धीरे रसोई घर की तरफ दाखिल हुई उसने देखा कि उमेश चाय बना रहे है! मधु ने पीछे से जाकर उमेश को अपनी बाहों में ले लिया और अपना चेहरा उमेश की पीठ पर रख दिया!

उमेश एकदम से पीछे की तरफ पलटा! क्या तुम्हें भी सुबह-सुबह यह सब कुछ मस्ती सोच रही है कल रात ही को हमने किया था ना?

यह कहते हुए वहां से निकलकर ड्राइंग हॉल में आ गया?मधु को यह सब कुछ बहुत बुरा लगा. उमेश कभी भी उसकी भावनाओं को समझ नहीं पाता! क्या सिर्फ रात में मिलने से ही मन की सारी भावनाओं का समापन हो जाता है या यह कहो कि वह तृप्त हो जाती है तो कहना गलत नहीं होगा !

मधु अपने आप में बिल्कुल अकेलापन सा महसूस करती है लेकिन जो है वह है! वह चाहती है कि उसका पति उसके साथ समय बिताए! और जिस प्रकार का तृप्ति उसका शरीर चाहता है उसका पति उसका साथ दें पता नहीं वह दिन कब आएगा यह सोचते सोचते उसने चाय के कप में चाय डालनी शुरू की लेकिन कप चाय से कब भर गया पता ही नहीं चला

उसमें जल्दी से दूसरे कप में चाय डाली और ड्राइंग हॉल में बैठे हुए उमेश को को चाय देने चली गई!

उमेश को चाय पकड़ा कर वह उसके साथ सोफे पर ही बैठ गई! मधु ने फिर से अपने मन में  उमड़ने  वाले भावनाओं को जाहिर करने की कोशिश की! उसने अपने हाथ की उंगलियां उमेश के कान के थोड़ा सा नीचे गर्दन के ऊपर हल्का हल्का ऊपर नीचे कर रही थी!

वह लगातार उमेश की आंखों में देखना चाह रही थी लेकिन उमेश है कि वह है या तो टीवी की ओर देख रहा है या फिर चाय पी रहा है !

उमेश ने उसको लगभग डांटते हुए बोला   " मधु यह क्या है सुबह-सुबह "

और उमेश वहां से उठकर बाथरूम में चला गया और कह कर गया ऑफिस थोड़ा सा जल्दी जाना है और" हां एक बात बताना भूल गया "और उमेश एकदम से यह कहते हुए पलटा

अब उसने पहली बार आज इस दिन मैं मधु की तरफ देखा था उमेश - आज दिन में एक पेइंग गेस्ट आएंगे उनका नाम वीर है वजह से ही आएंगे तो उनको ऊपर वाला कमरा दिखा देना वह वही रहेंगे बताया था ना कल रात को

बस इतना कह कर उमेश बाथरूम के अंदर घुस गया

मधु बेचारी मासूम सी अपनी किस्मत पर मायूस सी हो गई! वह अपने पति से बात करना चाहती है ढेर सारा प्यार करना चाहती है अपने आपको अपने पति पर लुटाना चाहती है लेकिन कुछ भी हो नहीं पा रहा है पति है कि उसके पास टाइम ही नहीं है पति है कि उसकी भावनाओं को समझ ही नहीं पा रहा है क्यों है मेरी आंखों में देख नहीं पा रहा है क्या मैं उसको समझा नहीं पा रही हूं कहीं ऐसा तो नहीं है की इनको मैं पसंद नहीं हूं नहीं यार  इन सभी सवालों के जवाब उसके दिमाग में चल रहे थे ! वह सब कुछ सोच रही थी उसको पता ही नहीं चला कि कब उमेश तैयार होकर ऑफिस चले गए!

दरवाजे पर जोर से घंटी बजी

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