सुबह का माहौल हल्का-फुल्का और मस्ती भरा था। घर में नाश्ते की तैयारी चल रही थी। सासु माँ ने बड़े प्यार से आलू के पराठे बनाए थे, और मेज़ पर सभी बैठे इंतज़ार कर रहे थे। तभी नायिका अनाया ने थोड़ा मज़ाक करते हुए कहा –
“मम्मीजी, आप तो सच में शेफ़ बन सकती हैं, बस होटल खोलना बाकी है।”
सभी हँस पड़े, लेकिन तभी नायक आदित्य ने चुटकी ली –
“होटल खोलेंगी तो ग्राहकों को रोज़-रोज़ नसीहतें भी मुफ़्त मिलेंगी क्या?”
सासु माँ ने आदित्य की ओर घूरा और कहा –
“तुम्हारी तो आदत ही है न बात काटने की। बीवी के साथ-साथ मुझे भी परेशान करोगे?”
पूरा परिवार ठहाकों से गूंज उठा।
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नाश्ते के बाद जब सभी अपने-अपने कामों में लग गए, तभी घर में एक नई हलचल शुरू हुई। अनाया की कज़िन रिया अचानक ही घर आ गई। रिया बहुत बातूनी और थोड़ी शरारती स्वभाव की थी। उसने आते ही आदित्य को छेड़ना शुरू कर दिया –
“जीजाजी, आप तो बिलकुल हीरो लग रहे हैं, ये बताइए इतने स्मार्ट कैसे रहते हैं? भाभी को तो टेंशन होती होगी न?”
अनाया वहीं खड़ी थी। उसने बनावटी गुस्से में कहा –
“रिया! अब बस भी करो। मेरी तारीफ छोड़कर जीजाजी की ही चमचागिरी करेगी?”
रिया हँस दी और बोली –
“अरे भाभी, प्यार में थोड़ा जलना-भुनना तो चलता ही है। वैसे भी मैं हूँ आपकी सगी बहन, जीजाजी से थोड़ी बहुत मस्ती कर लूँ तो क्या दिक़्क़त है?”
परिवार को ये नोकझोंक मज़ेदार लग रही थी, लेकिन अनाया के दिल में थोड़ी खटास आने लगी।
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शाम को घर में एक छोटी पूजा का आयोजन था। सब लोग तैयारी में जुटे थे। आदित्य ने रिया को मदद के लिए बुलाया और उससे फूल सजाने में हाथ बंटवाने को कहा। रिया बार-बार आदित्य से मज़ाक करती, बातें करती और पास रहती। ये सब देखकर अनाया को अच्छा नहीं लगा।
पूजा के बाद, जब सभी आराम कर रहे थे, तभी अनाया ने आदित्य से ताना मारा –
“लगता है आपको तो अब मेरी बहन ही ज़्यादा अच्छी लगने लगी है। हर काम उसी के साथ क्यों करते हैं?”
आदित्य चौंक गया –
“क्या? अनाया, तुम क्या सोच रही हो? रिया तो तुम्हारी बहन है। मुझे तो बस उसने मदद की, और कुछ नहीं।”
अनाया ने रूठते हुए कहा –
“हाँ-हाँ, मुझे सब दिख रहा है। अभी से इतना ध्यान है उस पर, आगे क्या होगा?”
आदित्य हँसते हुए उसके पास आया और बोला –
“पगली, जलन अच्छी है, पर बेवजह मत सोचा करो। तुम्हारी बहन मेरी बहन जैसी है। और हाँ, मुझे अगर कोई अच्छा लगता है तो वो सिर्फ़ तुम हो।”
अनाया ने शरमा कर नज़रें झुका लीं, लेकिन गुस्से का नाटक करती रही।
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इसी बीच, रिया अंदर आई और दोनों की बातें सुन लीं। उसने शरारत से कहा –
“ओह्ह, तो यहाँ ये सब चल रहा था! भाभी, आप तो सच में बहुत पज़ेसिव हो। जीजाजी की साँसें भी गिनती हो क्या?”
सब हँस पड़े, और माहौल हल्का हो गया।
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लेकिन कहानी में ट्विस्ट तब आया जब परिवार की पड़ोसी किरण आंटी वहाँ आईं। उन्होंने चुपके से अनाया को अलग ले जाकर कहा –
“बेटा, बहनों का घर आना तो अच्छा है, लेकिन ध्यान रखना। कहीं ऐसा न हो कि रिश्तों में गलतफहमी आ जाए। सुना है, रिया और आदित्य साथ में ज़्यादा वक्त बिता रहे हैं।”
ये सुनकर अनाया का दिल बैठ गया। उसने सोचा – क्या सच में मैं ही बेवजह सोच रही थी, या फिर कोई और सच्चाई है?
उस रात वह करवटें बदलती रही, जबकि आदित्य चैन से सो गया। अनाया के मन में अब सवालों की आँधी थी।
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