दहेज , एक प्रेम कथा..
प्रस्तावना ,
विवाह के वक्त लड़की को परिजनों या रिश्तेदारों द्वारा दिए जाने वाले उपहारों (Gifts) को तो दहेज़ नहीं कहा जा सकता। आसान शब्दों में समझें तो जिन वस्तुओं या धन की मांग वर पक्ष द्वारा की जाती है, वही दहेज़ कहलाता है।
यह कहानी एक साधारण नाक नक्श मगर आत्म विश्वास से भरपूर लड़की "काव्या" की है, जो अपने पापा से मिले संस्कारों और अपने व्यवहार से सबको खुश रखते हुए उलझे हुए मामले सुलझाती है।
स्पष्टीकरण :-
" दहेज़, एक प्रेम कथा " विशुद्ध रूप से स्वरचित है, एवं पूर्णतः काल्पनिक है। यह कहानी मेरे कहानी संग्रह "प्रतिसाद " से ली गई है। इस कहानी में पात्रों एवं स्थानों के नाम एवं घटनाएं मेरी कल्पना के उत्पाद हैं, या काल्पनिक रूप से उपयोग किये गए हैं। वास्तविक घटनाओं या लोकेशंस या व्यक्तियों, जीवित या मृत लोगों के साथ यदि कोई समानता है, तो वह पूरी तरह से संयोग हो सकता है।
"दहेज़, एक प्रेम कथा " के बारह भाग हैं। जिनके कुल शब्दों की संख्या लगभग 10146+ हैं। कृपया इसे काॅपी या पुनः प्रकाशित न करें।कृपया Follow करें । इससे आपको नईं पोस्ट की सूचना मिल जाया करेगी।
विजय देवरे
दहेज़, एक प्रेम कथा..
1.
" काव्या बेटा आपका आई कार्ड, मोबाईल और हेंड बैग टेबल पर रख दिया है। नाश्ता करने के बाद ले लेना, मैं नहाने जा रही हूँ ।"अपर्णा ने अपनी बेटी काव्या से कहा।
" थैक्स मम्मा, लव यू।"
" लव यू बेटा ।"
इतना कह कर काव्या की माँ अपर्णा नहाने चली गई। काव्या ने नाश्ता किया और टेबल पर रखा सामान ले कर ऑफ़िस का रूख किया। उसकी कैब उसे अगले मोड़ पर खड़ी मिल जाएगी। उसका फ्लैट ज़रा अंदर होने की वज़ह से ड्राइवर को कार लाने में परेशानी होती थी। उसने कह दिया था, वह कैब भीतर लाने की ज़हमत न करे।
अभी कुछ ही वर्षों पूर्व की बात है, जब वहआई. आई. एम. में प्रवेश पाने से बस कुछ ही नम्बरों से चूक गईं थी, लेकिन इसकी कमी उसने एक अच्छे काॅलेज में एडमिशन ले कर और आनर्स के साथ एम.बी.ए. की पोस्ट ग्रेजुऐशन की डिग्री ले कर पूरी कर ली। उसने सिर्फ पढ़ाई ही नहीं की ज्ञान भी हांसिल किया था। दरअसल पढ़ाई तो सब करते हैं, लेकिन ज्ञान बहुत कम लोग हासिल कर पाते हैं। यह ज्ञान पढ़ने से नहीं आता, यह तो व्यक्ति के भीतर जन्मजात होता है। बस ज़रा उसे जगाना पड़ता है । तो उसने भी किसी ऋषि मुनि की तरह कुंडली जागरण करते हुए अपने भीतर के ज्ञान को जागृत कर लिया था।
कहते हैं, स्त्री में सिक्स सेंस होता है, मगर इसमें तो उसके आगे के भी बहुत सारे सेंस थे।
2.
जब उसने नौकरी के लिये इन्टरव्यूह दिया, तो इन्टरव्यूह लेने वाली पेनल पाँच सात मिनट में उसके इस ज्ञान से परिचित हो चुकी थीं। वे अच्छी तरह जानते थे, इस पद के लिये सिर्फ किताबी ज्ञान पर्याप्त न होगा । उन्हें अपने प्रत्याशी में किताबी ज्ञान के अलहदा जो हुनर चाहिये थे, वे सब इस प्रत्याशी में उपलब्ध थे।
वे कोई बीस मिनट काव्या से बात करते रहे। जिसमें उन्होंने उसके विषय के संम्बध में कोई बात नहीं की। अंत में उससे कहा गया उसे एक एग्रीमेन्ट साइन करना होगा, जिसके अनुसार वह एक साल तक यह जाॅब नहीं छोड़ सकती।
इस पर उसने जवाब दिया,
"वह चार महीने काम करके देखेगी, अगर कंपनी और काम उसे पसंद आया तो चुकि उसे पैसों का लालच नहीं है, तो वह इसे छोड़ कर दूसरी कंपनी में नहीं जाएगी। इसलिये फिलहाल वह सिर्फ चार महीने का प्रामिस कर सकती है। उसने यह भी कहा कि वह यह जाॅब किसी मज़बूरी में नहीं कर रही है। काम करना तो उसका शौक है और अपने शौक को किसी ऐग्रीमेन्ट जैसे बंधन में बांधने का उसका कोई इरादा नहीं है। उसका यह जवाब सुन कर पैनल के ऑफीसर एक दूसरे का मुँह ताकने लगे। थोड़ी देर आपस में सलाह मशविरा कर उन्होंने उससे पूछा,
" क्या वह उनकी कंम्पनी अगले दिन से ज्वाईन कर सकती हैं ? "
उसके "हाँ" कहने के साथ ही उन्होंने उसे ज्वाईनिग लेटर दे दिया।
कंपनी ज्वाइन करने के पश्चात उसने पहले चार महीने कम्पनी के कामों को समझने में और फिर कम्पनी के कम होते ग्राहकों को वापस लाने की युक्ती सोचने में बिताए। इसके पश्चात उसने मेनेजमेन्ट की मिटिंग में अपने विचार रखें। मेनेजमेन्ट ने विचार किया घटते हुए ग्राहकों की संख्या बढाने के लिए यह प्रयास भी क्यों न आजमाया जाए।
उसके द्वारा सुझाए गए तरीकों का जादुई असर हुआ और कुछ ही दिनों में कंपनी की सेल बढ़ने लगी और इसके साथ ही कंपनी के आला अधिकारियोँ का विश्वास भी।
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12 एपिसोड्स को अपडेट किया गया
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