कर्ज़ (एक श्राप)
मेरी कहानी एक शहर के छोटे कस्बे से शुरू होती हैं।
मां, मै ऑफिस के लिये जा रहा हूं।जोर से आवाज लगाते विनोद ने कहा। बेटा , नाश्ता तो करता जा। किचेन से कमला देवी ने कहा। ठीक है मां, जल्दी करो, कही मै लेट न हो जाऊ।
इतना कहते ही विनोद कुर्सी पर बैठ गया। कुर्सी क्या थी बस कुर्सी के नाम पर उसके चार पैर जो अब न तब गिरने को हो रहे थे। बड़ी सावधानी से ही उसपर बैठा जा सकता था। मां जल्दी करो, बहुत ही देरी हो गई है। लेट पहुंचने पर बॉस की डॉट सुननी
पड़ेगी। बस बेटा आ गई।
गरम गरम आलू के पराठे की थाली विनोद के सामने आ गई।
क्या बात है मां, मेरी पसंद की चीज बनाई है। ये कहते हुए विनोद मां की देखने लगा।कमला देवी की आंखों में प्यार के आंसू आ गए। उनके घर में जब कभी अच्छा खाना या नाश्ता बनता था।तो उसमें एक डीस आलू के पराठे जरूर होते थे।
विनोद नाश्ता पूरा करके ऑफिस के लिए निकल जाता है,
कमला देवी किचेन से बाहर आते हुए , सुनते हो अभी तक सोते ही रहोगे। सुबह के 8बज गए है। ओ कमरे के अंदर आ जाती हैं।
ये महाशय है, विनोद के पापा जिनका नाम हैं वीरेंद्र सिंह धामा।
उम्र होगी 58 साल। ये अपने समय के बहुत ही बड़े textile इंजीनियर थे। इन्हों ने अपनी जिंदगी बड़ी शान से जी। लेकिन आज जो हालत हैं। ओ भी इन्हीं की दें हैं।
कमला देवी , आज उठना नहीं है क्या। विनोद आफिस चला गया है। वीरेन्द्र,' उठ रहा हु भाग्यवान। करहाते हुए वीरेंद्र बिस्तर को छोड़ते हुए बाथरूम की चले जाते है। और कमला अपने बाकी के काम जो बचे हैं उसमें लग जाती हैं।
इस परिवार कहानी बड़ी ही दिलचस्प और शिक्षा हेतु है। हम कहानी में थोड़ा पीछे चलते हैं। करीब 15 साल पीछे....
रामा टेक्सटाइल मिल जो फरीदाबाद, हरियाणा में एक मानी ही कपड़े की मिल थी। उसी में वीरेन्द्र production मैनेजर के पोस्ट पर काम करते थे। ये है वीरेंद्र का ऑफिस।
वीरेन्द्र, क्या भाई रमेश आज की प्रोडक्शन क्या रही। सर, आज 70000मीटर कपड़े फोल्डिंग में पैक हो गए हैं।
बहुत ही अच्छा, वीरेंद्र ने कहा। कहते हुए वीरेंद्र मशीनों के बीच चले जाते है। और एक पूरा राउंड मिल का लगाते हुए करीब एक घंटे बाद ऑफिस में आते हैं। सब ठीक है।
पूरा दिन इसी तरह काम चलता रहता है। शाम को 6 बजे ओ घर को निकलते है। रमेश मै चलता हूं, बाकी काम तुम देख लेना , वीरेंद्र रमेश को कहते हुए ऑफिस से बाहर निकलते है।
ठीक है sir। रमेश ने बोलते हुए नमस्कार करता है। रमेश एक ईमानदार और वीरेंद्र का खास अस्सिटेंट है। कोई भी कम हो रमेश बड़ी ही ईमानदारी और जल्दी ही करता था। इसी के कारण वीरेंद्र काम से फ्री जो जाते और शाम को घर पहुंचने से पहले अपनी शाम की महफिल अपने दोस्तों के साथ बिठा लेते।
इन्हीं आदतों ने उनको फिजूल खर्ची बढ़ा दिया था। जितना भी ओ कमाते उससे ज्यादा ओ खर्च कर देते थे। उनका बैंक balace हमेशा बहुत ही कम रहता। जिससे उनका परिवार खुश तो रहता था।क्योंकि जो भी कोई फरमाइश होती ओ वीरेंद्र पुरी कर देता था। इसी तरह इनका समय चल रहा था।
घर का डोरवल बजता है,कमला दरवाजा खोलती है, ,"आप अभी आ रहे हैं, ऑफिस से तो आप जल्दी ही निकल गए थे,
वीरेन्द्र ने ऊपर की ओर देखा, मेरी जान तुमे तो पता है आज कुछ दोस्तो ने मुझे पकड़ लिया और बोले, यार वीरेंद्र बहुत दिन हो गए साथ बैठे नहीं। बस उन्ही के साथ इतना टाइम हो गया।
ठीक है कमला बोलते हुए अंदर चली जाती हैं। खाना खा कर तो नहीं आए। कमला ने पूछा।
हां, खाकर आया हूं, मै सोने जा रहा हूं। ok good night। वीरेंद्र ने कहा और कमरे में चल गया।
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