नलिनी!! ...... नलिनी!!!! ......... वो आवाज नलिनी को बेचैन कर रही थी, वो नहीं जानती थी कि वो कहाँ जा रही है, ...... चारों तरफ एक सा घुप्प अंधेरा, ....... ऐसा लग रहा था जैसे वो सागर की अनंत गहराइयों में नींचे खिंचती सी जा रही थी। उसका शरीर कभी दाँये कभी बाँये तो कभी ऊपर नींचे घूम रहा था, ..... ऐसी गुरुत्वहीनता उसने पहले कभी महसूस नहीं की थी। अँधेरा इतना घना था कि उसे अपना हाथ तक नहीं दिखाई दे रहा था, समय की इस धारा में वो कहाँ बहती जा रही थी यह उसे भी नहीं पता था।"क्या मैं मर गई हूँ?? ........" अचानक उसके मुँह से निकला लेकिन कोई जवाब नहीं।ना जाने कितनी देर तक वो इस अनंत शून्य में तैरती रही, ..... थोड़ी देर बाद नलिनी ने खुद को कहीं लेटा हुआ महसूस किया। नलिनी थोड़ी देर तक लेटी रही, उसे समझ नहीं आ रहा था कि जो हो रहा है वह सपना है या हकीकत! उसने कई बार अपनी आँखें बंद की और खोली इस उम्मीद में कि अगर यह सपना है तो वो टूट जाए लेकिन हर बार आँखें खुलते ही वही अँधेरा उसके सामने था..... अनंत, .....अटल।वह धीरे धीरे उठी, "मैं कहाँ हुँ??....." उसने फिर से सवाल किया लेकिन वही नीरस शांति।नलिनी समझ नहीं पा रही थी कि वो जिंदा है या यह एक डरावना सपना है। वह हिम्मत करके उठी और अपने चारों तरफ देखने लगी लेकिन हर तरफ़ अँधेरे का साम्राज्य था, सिर्फ उसके आस-पास थोड़ी रोशनी थी। असमंजस की उस अवस्था में उसके कदम उठ गए किसी अनजान दिशा की ओर, अचानक किसी की दर्द भरी चीख उसके कानों में पड़ी और वो बेचैनी से उस चीख की दिशा में बढ़ने लगी।जैसे-जैसे नलिनी उस दिशा में बढ़ रही थी वैसे ही चीखें और भी तीव्र होती जा रही थीं। उसकी धडकन हर चीख के साथ बढ़ती जा रही थी, अचानक उसे जलते माँस की गंध सी आई, कोई जमीन पर लेटा हुआ था नंगे बदन और वो चार वहशी उसकी पीठ को गर्म सलाखों से दाग रहे थे। नलिनी चट्टानों की आड़ लेते हुए और पास पहुँची, वो शख्स बुरी तरह घायल था, उसकी पीठ जगह-जगह से जली हुई थी, उन हैवानों ने उसकी पीठ पर कई कीलें गाड़ रखी थी जिनसे खून रिस-रिसकर जमीन पर फैल रहा था।
अचानक उन चारों मे से एक उठा और उस बेचारे की पीठपर लगी दो कीलें निकाल ली, वो घायल कराह उठा लेकिन उस जालिम पर इसका कोई असर नहीं पड़ा, वो थोड़ी देर तक उस खून से सनी कीलों को देखता रहा फिर उसने अपनी मशाल से उस कील को गर्म करना शुरू किया। नलिनी अंदर तक सिहर गई, कील मशाल की आग में तपकर लाल हो रही थी तभी दूसरा शख्स जिसने मोटे चमड़े के दस्ताने पहने हुए थे उस लाल दहकती कील को उठाया और उसपर ढेर सारा नमक डालकर वो उस घायल के पास पहुँचा और पूरी ताकत से उसने वो नमक से भरी, ...... आग में दहकती हुई उस कील को उसकी पीठ में उसी घाव पर घुसा दिया। वो घायल एक बार फिर दर्द से चीखा, उस हैवान ने अपनू पैरों से उस कील पर ठोकर मारकर उसकी पीठ में और अंदर धँसा दी।उससे दर्द बर्दाश्त नहीं हुआ और वो अपने होश खो बैठा।उसकी पीठ से बहता खून नलिनी के पास तक पहुँच गया, नलिनी अपने हाथ को देख रही थी, ...... उस बेसुध अजनबी के खून के छींटे उसके दामन पर भी थें जिनसे वो अंजान थी। वो वहाँ एक पल भी नहीं रुकना चाहती थी इसलिए वो दूसरी दिशा की तरफ़ जल्दी-जल्दी चलने लगी।उसके आसपास का माहौल बदल रहा था, अँधेरा थोड़ा कम हुआ था लेकिन आसमान पर काले बादलों के बीच कड़कती बिजली किसी आने वाले तूफान की चेतावनी दे रही थी। अचानक सामने कुछ देखकर ठिठक कर रुक गई, कोई सामने खड़ा था, ....... तभी जोरदार बिजली कड़की और उस शख्स को देखक उसकी धड़कन ही जैसे रुक सी गई।सामने खालिद खड़ा था उसके सभी साथियों के साथ, ...... खालिद उसकी तरफ़ ही घूर रहा था, ....... उसकी निगाहों में नलिनी के हाथों हुए अपमान का खून और वासना की चमक थी। नलिनी डरकर पीछे भाग़ने लगी लेकिन वो कुछ दूर ही भाग पाई थी कि किसी ने उसका हाथ पकड़कर नींचे पटक दिया। "मैंने कहा था ना!!........ तुझे मेरे पास आना ही होगा..!!" खालिद की आवाज़ चारों तरफ गूंज रही थी। तभी जोरदार बारिश होने लगी, .......उस साये ने नलिनी को गर्दन से उठाया और जोर से नीचे पटक दिया, खालिद बस यह देखकर मुस्कुरा रहा था।नलिनी का पूरा बदन दर्द से भर उठा, अचानक उस साये ने नलिनी के बाल पकड़े, नलिनी दर्द से तड़प उठी, ... वो उसे घसीटकर खालिद की तरफ ले जाने लगा।एक लकडबग्घे की नज़र उस हिरनी पर पड़ चुकी थी और अब उसका बचना नामुमकिन था।//////कहानी जारी है अगले भाग में //////कहानी अच्छी लगे या बुरी कमेंट कर बताईये जरुर।
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20 एपिसोड्स को अपडेट किया गया
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