अंत

अंत

पाठ -१

सर्द रात थी,काली स्याह रात..वो अकेली सड़क के बीचो बीच चल रही थी..वो बस अपने ख्यालो में थी,नही जानती थी कि किस तरफ जा रही है,किस तरफ रूकेगी,बस चले जा रही थी|

ऐसा लग रहा था कि जैसे उसके अन्दर एक तूफान था,बस उसका दिल कह रहा था कि कुछ ऐसा हो जाये कि सब सही हो जाये उसकी जिन्दगी में जो खराब हो गया था...चलते चलते वो इतनी दूर निकल आई थी,उसे ये एहसास ही नही हुआ कि उसके अंदर और चलने की ताकत खत्म हो गई है !अचानक से उसका सर घूमा और वो चकराकर गिर गई..जब दोबारा उसकी आख खुली तो उसने अपने आप को एक कमरे में पाया !

डरी सहमी सी वो उठ कर बैठ गई !

एक बडा सा कमरा था,सुन्दर सा पलंग था,और एक तरफ फलो की प्लेट पडी थी,एक तरफ एक टेबल और एक कु्र्सी रखी थी !वो पलंग से उठी... और जमीन पर खडी हो गई...तभी उसकी नजर अपने कपडो पर गई,तो वो अपने दोनो हाथो को अपने दिल पर रख कर पीछे दीवार के साथ सट गई," ये कपडे तो नही थे मेरे जो मैंने पहने थे !

फिर मेरे कपडे किसने बदले ?

उसका दिल जोर जोर से धडकने लग गया,और वो धीरे धीरे दरवाजे की तरफ बढने लगी,उसने दरवाजे की तरफ पहुच कर जैसे ही गरदन बाहर झाँकने के लिये निकाली‌ !तभी एक सख्त सी आवाज आई "" फ्रूट पडे है प्लेट में खा लो""वो डर के पीछे हट गई,और एक टक फ्रूट की प्लेट को देखने लग गई,भूख तो उसे काफी लगी थी,उसने ललचाई नजरो से प्लेट की तरफ देखा,और लपक के खाना शुरू कर दिया,जेसे जन्मो की भूखी हो...लेकिन

खाते खाते उसके मन में ख्याल आ रहे थे,कि वो है कहां ? और ये आवाज़ कहां से आई ?

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