Wo Humsafar Tha
रात के बारह बज रहे थे मैं रेलवे स्टेशन पर बैठा ट्रेन का इंतजार कर रहा था वह दिल्ली से भोपाल जाने वाली आखरी ट्रेन थी ट्रेन के आने का टाईम तो दस बजे का था लेकिन आज ट्रेन दो घंटे लेट थी स्टेशन पर दूर दूर तक कोई नज़र नहीं आ रहा था मैं अकेला बैठा था अपने मोबाइल मैं टाइमपास कर रहा था तभी अचानक मौसम बिगड़ने लगा तेज़ हवा चलने लगी बारिश भी शुरू हो गई लेकिन अभी तक ट्रेन के आने की कोई खबर नहीं थी मैं परेशान होने लगा और सोचने लगा काश आज मामू के यहीं रुक जाता तो अच्छा होता मेने मामू की बात नहीं मानी काश मैं उनकी बात मान लेता बारिश अचानक बहुत तेज़ होने लगी और रेलवे स्टेशन की लाइट चली गई अब मुझे डर लग रहा था क्यों के हर तरफ अंधेरा ही अंधेरा था मेने अपने मोबाइल की टॉर्च जलाई और अपने चारों तरफ देखता रहा शायद कोई शख्स मिल जाए जिस से बात करके मुझे हौसला मिले फिर अचानक मुझे लगा के शायद कोई आ रहा है अंधेरा बहुत गहरा था मुझे साफ नज़र नहीं आ रहा था लेकिन कोई था जो मेरी तरफ ही आ रहा था जब वह मेरे करीब पहुंचा तो मेने अपने मोबाइल की टॉर्च से देखा तो मेरे सामने एक बहुत खूबसूरत लड़की खड़ी थी वह बारिश मैं पूरी तरह भीगी हुई थी उसका सफेद बारीक लिबास उसके बदन से चिपका हुआ था उसकी झील सी आंखों से काजल बह रहा था उसके खुश्क होंठ शायद कुछ कहना चाहते थे उसकी भीगी हुई जुल्फों से बारिश का पानी टपक रहा था..?? Part - 2 के लिए मुझे फॉलो ज़रूर करें
मेरे सामने एक खूबसूरत लड़की खड़ी थी वह मुझे मुस्कुरा कर देख रही थी मेने कहा तुम मुझे इस तरह क्यों देख रही हो उस लड़की ने कहा मैं एक तवायफ हूं पैसों के लिए अपना जिस्म बेचती हूं मुझे भूख लगी है मुझे पैसे चाहिए पैसों के बदले तुम मेरे साथ एक रात गुज़ार सकते हो उसकी यह बात सुनकर मैं हैरान और परेशान हो गया मेने तुरंत अपनी जेब से पांच सौ रुपए निकाल कर उसे दे दिए वह अपने जिस्म से अपने कपड़े उतारने लगी मेने कहा यह क्या कर रही हो उस लड़की ने कहा तुमने मुझे पैसे दिए है इसीलिए कर रही हूं मेने कहा नहीं रहने दीजिए इसकी कोई ज़रूरत नहीं है जाएं आप खाना खा लीजिए वह पैसे लेकर आगे बढ़ी तो अचानक बेहोश हो कर ज़मीन पर गिर गई मेरी ट्रेन भी आ चुकी थी मैं तेज़ी से गया और उसे ज़मीन से उठा कर स्टेशन पर लगी पब्लिक सीट पर लिटा दिया शायद वह गहरे नशे मैं भी उसने शराब पी रखी थी मैं ट्रेन मै बैठने ही वाला था मेरा ध्यान फिर उस लड़की पर गया मेरा दिल यह गवारा नहीं कर रहा था की मैं उस लड़की को इस हालत में छोड़ कर केसे जाऊं रात के दो बज रहे थे रेलवे स्टेशन पर दूर दूर तक कोई नज़र नहीं आ रहा था सिर्फ अंधेरा ही अंधेरा था समझ मैं नहीं आ रहा था के क्या करूं उस लड़की के चेहरे पर इतनी मासूमियत और मजबूरियां नज़र आ रही थी के मैं खुद को रोक नहीं पाया और उसे स्टेशन से उठा कर ट्रेन मैं लिटा दिया वह एक तवायफ थी मुझे इस बात का भी डर था के शैतान के बहकावे मैं आ कर मैं कुछ गलत ना कर बैठूं इसलिए मेने चलती ट्रेन मैं ही दो रकात नमाज़ नाफिल अदा किए ताकि शैतान से मेरी हिफाज़त रहे जब सुबह उस लड़की की आंख खुली तो वह मेरे घर मैं थी part - 3 के लिए मुझे follow करें
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