ज्ञान प्राप्ति सदा ही समर्पण से होती है... ये हम सब जानते हैं।
किन्तु समर्पण का वास्तविक महत्व क्या है???
क्या हमने कभी विचार किया???
मनुष्य का मन सदा ही ज्ञान प्राप्ति में विभिन्न बाधाओं को उत्पन्न करता है। जैसे... कभी किसी अन्य विद्यार्थी से ईर्ष्या हो जाती है, तो कभी - कभी पढ़ाये हुए पाठों पर सन्देह जन्मता है, और कभी गुरु द्वारा दिया गया दण्ड मन को अहंकार से भर देता है।
विचार कीजिए... क्या ऐसा नहीं होता???
न जाने कैसे - कैसे विचार मन को भटकाते हैं, और मन की इसी अयोग्य स्थिति के कारण, हम ज्ञान प्राप्त नहीं कर पाते... मन की योग्य स्थिति केवल समर्पण से निर्मित होती है। समर्पण मनुष्य के अहंकार का नाश करता है। ईर्ष्या, महत्वकांशा आदि भावनाओं को दूर कर... ह्रदय को शान्त और मन को एकाग्र करता है।
वास्तव में ईश्वर की सृष्टि में... न ज्ञान की मर्यादा है और न ज्ञानियों की...
गुरु दत्तात्रेय ने तो गाय और समस्त प्रकृति से भी ज्ञान प्राप्त कर लिया था।
अर्थात विषय ब्रह्म ज्ञान का हो या जीवन के ज्ञान का या गुरुकुल में प्राप्त होने वाले ज्ञान का... उस ज्ञान की प्राप्ति के लिए गुरु से अधिक महत्व है, उस गुरु के प्रति हमारा समर्पण...
क्या यह सत्य नहीं....?
स्वंय विचार कीजिए....!
.जय श्री कृष्ण🙏🙏
How to learn everything.....by Lord Krishna
Knowledge is always attained through surrender... We all know this.
But what is the real importance of surrender???
Have we ever thought???
The human mind always creates various obstacles in the attainment of knowledge. Like...sometimes one gets jealous of another student, sometimes doubts arise about the lessons taught, and sometimes the punishment given by the guru fills the mind with arrogance.
Think... isn't it???
Don't know how many thoughts distract the mind, and because of this unqualified state of mind, we are not able to attain knowledge... A worthy state of mind is created only by surrender. Surrender destroys the ego of man. Removes the feelings of jealousy, ambition etc... Calms the heart and concentrates the mind.
In fact, in the creation of God…
Guru Dattatreya had acquired knowledge from the cow and all the nature.
That is, whether the subject is of knowledge of Brahma or knowledge of life or knowledge to be obtained in Gurukul... For attaining that knowledge, our dedication to that Guru is more important than the Guru.
Isn't this true....?
Think for yourself!!!!
Jay Shri Krishna 🙏🙏
पूर्ण श्लोक
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥4-7॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥4-8॥
इस श्लोक का अर्थ
मैं अवतार लेता हूं. मैं प्रकट होता हूं. जब जब धर्म की हानि होती है, तब तब मैं आता हूं. जब जब अधर्म बढ़ता है तब तब मैं साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूं, सज्जन लोगों की रक्षा के लिए मै आता हूं, दुष्टों के विनाश करने के लिए मैं आता हूं, धर्म की स्थापना के लिए में आता हूं और युग युग में जन्म लेता हूं.
श्लोक -शब्दार्थ
इस श्लोक को आसानी से समझने के लिए यहां पर श्लोक के प्रत्येक शब्द के शब्दार्थ दिए जा रहे हैं. इसे ऐसे समझें-
यदा यदा : जब-जब
हि: वास्तव में
धर्मस्य: धर्म की
ग्लानि: हानि
भवति: होती है
भारत: हे भारत
अभ्युत्थानम्: वृद्धि
अधर्मस्य: अधर्म की
तदा: तब तब
आत्मानं: अपने रूप को रचता हूं
सृजामि: लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूँ
अहम्: मैं
परित्राणाय: साधु पुरुषों का
साधूनां: उद्धार करने के लिए
विनाशाय: विनाश करने के लिए
च: और
दुष्कृताम्: पापकर्म करने वालों का
धर्मसंस्थापन अर्थाय: धर्मकी अच्छी तरह से स्थापना करने के लिए
सम्भवामि: प्रकट हुआ करता हूं
युगे युगे: युग-युग में
Srimad Bhagwat Geeta: श्रीमद्भागवत गीता का यह श्लोक जीवन के सार और सत्य को बताता है. निराशा के घने बादलों के बीच ज्ञान की एक रोशनी की तरह है यह श्लोक. यह श्लोक श्रीमद्भागवत गीता के प्रमुख श्लोकों में से एक है. यह श्लोक श्रीमद्भागवत गीता के अध्याय 4 का श्लोक 7 और 8 है।
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Comments
≛⃝👑𝑴𝒓𝑮𝒍𝒊𝒕𝒄𝒉ᵖʰᵃⁿᵗᵒᵐ♂️
good job dear
keep it up 🥂
2023-08-14
2
SAVHELL
i have read gita and gita ke andar sab kuch likha hai insano ke baree mai .you did are a really good effort
2022-03-12
1
Ꭺᥴⲉᤩ
nice especially the shloak part
2021-11-17
8