Disclaimer - इस कहानी के सभी पात्र पूर्णतः काल्पनिक एवं मौलिक हैं । इसका किसी भी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से मेल केवल एक संयोग मात्र होगा ।
इस कहानी का उद्देश्य किसी के भी विचारों धार्मिक भावनाओं को आहत करना नहीं है । ये कहानी केवल मनोरंजन के लिए लिखी गई है तो कृपया मनोरंजन की दृष्टि से ही पढ़ें ।
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रात का समय,
आसमान में काले घने बादल छाए हुए थे और रह रह कर बिजली चमक रही थी । साथ में घनघोर बारिश भी हो रही थी । इसी बारिश में वो कोई पुराने फैक्ट्री जैसी जगह थी जहां से किसी के चीखने की आवाजें आ रही थीं ।
वो चीखें बहुत ही हृदय विदारक थीं । धीरे - धीरे उन चीखों में मिला हुआ दर्द बढ़ता जा रहा था और ऐसा लग रहा था कि उस शख्स के साथ आसमान भी रो रहा है ।
उस फैक्ट्री के अंदर एक महिला और एक पुरुष आराम से सोफे पर बैठे हुए थें । महिला की उम्र 45 - 46 साल रही होगी तो वहीं पुरुष की उम्र 50 - 51 साल ।
वो दोनों आराम से बैठ कर सामने हो रहे तमाशे के मजे ले रहे थें या यूं कहें कि तमाशा किया ही इन दोनों ने था । उनके सामने एक 15 - 16 साल का लड़का एक बंधा हुआ था ।
उसके हाथ और पैर रस्सियों के जरिए दीवारों से बंधे हुए थे । अंधेरा होने की वजह से उसका चेहरा नजर नहीं आ रहा था लेकिन उसकी चीखों में उसका दर्द साफ महसूस हो रहा था ।
उसके पीछे कुछ हट्टे कट्टे आदमी खड़े थे जो उस पर कोड़े बरसाए जा रहे थे । उस लड़के के शरीर पर बहुत सारे घाव बन चुके थे और जगह जगह से खून रिस रहा था लेकिन उस महिला और उस पुरुष को इस सबसे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था ।
ऐसा लग रहा था मानो उस लड़के की चीखों से इन दोनों को सुकून मिल रहा हो ।
कुछ समय बाद वो लड़का बेहोश हो गया तो उस महिला ने खड़े होते हुए कहा, " इसकी खातिरदारी रुकनी नहीं चाहिए । "
उनके आदमियों ने हां में सिर हिला दिया तो वो आदमी भी उठ खड़ा हुआ और वो दोनों वहां से चले गए । उनके जाने के बाद उन आदमियों ने अपनी गर्दन उस लड़के की ओर घुमा ली जो बेहोश होकर झूला हुआ था ।
2 साल बाद,
सुबह का समय था जब एक लड़का आराम से सड़क पर चलता जा रहा था । उसकी उम्र कोई 17 - 18 साल के आस - पास रही होगी । उसके चेहरे पर एक अलग ही नूर था ।
उसने अपने कानों में मैग्नेटिक इयररिंग्स पहने हुए थे । उसके मुंह पर एक मास्क था । उसने सफेद रंग की शर्ट के साथ काले रंग की पैंट पहन रखी थी और साथ में एक काले रंग का ब्लेजर पहन रखा था ।
ब्लेजर की बाजुओं को उसने कोहनी तक मोड़ रखा था । उसके पैरों में सफेद रंग के स्नीकर्स थे । उसकी पीठ पर एक स्कूल बैग टंगा हुआ था ।
उसके बाएं हाथ में एक काले रंग की स्पोर्ट्स वॉच थी और दाएं हाथ में कलावा बंधा हुआ था । उसके गले में सोने के चैन जैसा कुछ दिख रहा था लेकिन बता पाना मुश्किल था कि वो चैन ही था या कुछ और ।
उस लड़के के बाल सलीके से सेट थे और उसने अपने कानों में हेडफोन पहन रखा था । उसे आस पास के लोगों से कोई मतलब नहीं था ।
वो तो बस म्यूजिक सुनते हुए, सामने की ओर देखते हुए , अपने हाथ अपने पैंट्स की पॉकेट में डाले हुए आगे बढ़ रहा था लेकिन तभी कोई उसका पैंट पकड़ कर उसे खींचने लगा ।
उस लड़के ने अपनी सर्द नजरें उस ओर घुमाईं तो वहां पर एक छोटी सी बच्ची खड़ी थी जिसकी उम्र कोई 5 - 6 साल के आस पास रही होगी ।
उसकी आंखों में आंसू भरे हुए थे । उसने मैले से कपड़े पहने हुए थे और उसके बाल भी पूरी तरह से बिखरे हुए थे । उसे देख कर उस लड़के की आंखें नॉर्मल हो गईं । उसने अपने हेडफोन उतार कर गले में लटका लिये और उस बच्ची के पास बैठ गया ।
उसने उस बच्ची के सिर पर हाथ फिराते हुए कहा, " क्या हो गया बच्चा ? आप ऐसे रो क्यों रहे हो ? "
उस बच्ची ने रोते हुए ही कहा, " भैया, बहुत जोर की भूख लगी है । कुछ खाने को दे दो । "
उस बच्ची के शब्द सुन कर उसे लड़के की आंखों में आंसू आ गए लेकिन उसने उन्हें साफ करके कहा, " ओह ! तो आपको भूख लगी है । अच्छा तो बताओ क्या खाओगी आप ? "
उस बच्ची ने मासूमियत कहा, " जो भी आप खिला दो, भैया । "
उस लड़के ने उस बच्ची के आंसू पोंछते हुए कहा, " ओ के, तो चलो, आज हम छोले भटूरे खाएंगे । क्या कहती हो ? "
छोले भटूरे का नाम सुनते ही उस बच्ची के आँखों में चमक आ गई । उसने बड़ी सी मुस्कान के साथ अपनी गर्दन हां में हिला दी तो उस लड़के ने उस बच्ची का हाथ पकड़ा और दूसरी ओर बढ़ गया ।
वो लड़का उस बच्ची को लेकर एक रेस्टोरेंट में चला गया । वो दोनों एक टेबल पर पहुंचे तो लड़के ने एक कुर्सी खींच कर उस बच्ची से कहा, " बैठो ! "
उस बच्ची ने खुद को प्वाइंट करके कहा, " मैं ! "
तो उस लड़के ने कहा, " तुम्हारे अलावा मैं किसी और को यहां लेकर आया हूं क्या ! "
उस बच्ची ने कहा, " नहीं । " तो लड़के ने कहा, " तो तुम्हें ही कहूंगा न ! "
उस बच्ची ने अपनी नजरें झुका लीं तो उस लड़के ने कहा, " अब बैठ जाओ । "
वो बच्ची उस कुर्सी पर बैठ गई और आस पास की चीज़ें देखने लगी । वो हर चीज को बड़े ही कौतूहल से देखे जा रही थी और वो लड़का उसकी हरकतों को देख कर हंस रहा था ।
तभी ना जाने उसके दिमाग में क्या आया कि उसने अपना फोन निकाला और चुपके से उस बच्ची की एक फोटो खींच कर किसी को कुछ मैसेज कर दिया ।
फिर उसने अपना फोन पॉकेट में रखा और वापस से उस लड़की को देख कर मुस्कुराने लगा । इतने में वेटर वहां आ गया ।
उस वेटर ने उस लड़के को देख कर हल्के से अपना सिर झुका दिया तो उस लड़के ने भी अपना सिर हां में हिला दिया ।
वेटर ने मेन्यू उस लड़के की ओर बढ़ाते हुए बहुत ही आदर के साथ कहा, " आप क्या लेना पसंद करेंगे सर ? "
उस लड़के ने मेन्यू लिया और कुछ चीज़ों का ऑर्डर दे दिया । ऑर्डर लेकर वेटर वहां से चला गया । उसके जाने के बाद वो लड़का फिर से उस बच्ची को देखने लगा ।
उसने उस बच्ची को देखते हुए नम आंखों के साथ अपने मन में खुद से ही कहा, " कितनी अच्छी होती है न कॉमन लोगों की लाइफ ! भले ही गरीबी हो, दुख हो, लेकिन छोटी छोटी बातों से खुशी भी तो मिल जाती है । हमें तो वो भी नसीब नहीं होती । "
थोड़ी देर बाद जब उस बच्ची ने इधर उधर देखने के बाद उस लड़के की ओर देखा तो उस लड़के ने मुस्कराते हुए कहा, " क्या हुआ, क्या देख रह थी इतनी देर से ? "
उस लड़की ने कहा, " वो, मैं कभी यहां आई नहीं हूं । "
उस लड़के ने कहा, " अब तो आ गई न ! "
उस बच्ची ने कहा, " हां ! "
उस लड़के ने कहा, " तो अब इधर उधर देखना बंद करो और खाना खाओ । "
उस बच्ची ने इधर उधर देखते हुए कहा, " पर खाना है कहां ? "
उस लड़के ने पीछे की ओर इशारा करके कहा, " वो आ रहा है । "
उस बच्ची ने अपने पीछे देखा तो वहां 4 वेटर अपने दोनों हाथों में बहुत सी डिशेज लेकर उसी ओर लेकर आ रहे थे ।
उन वेटर्स ने वो सारी प्लेटें वहां लाकर रख दीं और अपना सिर झुका कर वापस चले गए । उन प्लेटों में अलग - अलग तरह की डिशेज थीं जो शायद उस बच्ची ने कभी देखे भी न हों ।
उस बच्ची ने सारे खाने को देखते हुए एक्साइटमेंट के साथ कहा, " इतना सब कुछ, मेरे लिए ! "
उस लड़के ने उस बच्ची के गाल खींचते हुए कहा, " हां, इतना सब कुछ सिर्फ आपके लिए । "
वो बच्ची इतना सारा खाना देख कर खुश हो गई । वो जल्दी से स्प्रिंग रोल्स उठा कर खाने लगी लेकिन उसने अपने हाथ अपने मुंह के पास ही रोक लिये ।
ये देख कर उस लड़के ने कहा, " क्या हुआ ? " तो उस बच्ची ने कहा, " आप मुझसे इसके पैसे तो नहीं लोगे न ! "
उस लड़के ने हंस कर कहा, " नहीं, मैं इसके पैसे आपसे नहीं लूंगा । "
उस बच्ची ने मजे से कहा, " फिर ठीक है । "
उस लड़के ने उसके सिर पर हाथ फेर कर कहा, " तो अब खाना खाएं । "
उस बच्ची ने कहा, " हम्म ! "
और खाना खाने लगी । वो एक साथ सब कुछ खा रही थी जिससे उसका ध्यान आस पास गया ही नहीं ।
तभी उसकी नजर अपने सामने बैठे लड़के पर पड़ी तो उसने कहा, " आप क्यों नहीं खा रहे हो, भैया ? "
वो लड़का जो किसी सोच में डूबा हुआ था उस बच्ची की आवाज सुन कर होश में आया ।
उसने उस बच्ची से कहा, " मैंने खा लिया है, आप खाओ । "
इतने में उस लड़के के फोन पर कोई मैसेज आया । उस लड़के ने अपना फोन चेक किया और फिर उस बच्ची की ओर देख कर कहा, " अच्छा, आपका नाम क्या है ? "
उस बच्ची ने अपना पूरा ध्यान खाने पर रखते हुए ही कहा, " मेरा नाम खुशी है । "
उस लड़के ने अपनी भौंहें सिकोड़ कर कहा, " सिर्फ खुशी । "
खुशी ने नॉर्मली कहा, " हां, सिर्फ खुशी । "
उस लड़के ने फिर से सवाल करते हुए कहा, " और आपके मम्मी पापा ! "
उस लड़के का सवाल सुन कर खुशी के हाथ पास्ता खाते खाते रुक गए । उसने मायूसी से कहा, " मेरा कोई नहीं है । "
उस लड़के ने फिर से कहा, " तो आप रहती कहां हो ? "
खुशी ने अपने कंधे उचका कर कहा, " कहीं भी रह लेती हूं । "
उस लड़के ने टेबल की ओर थोड़ा सा झुक कर कहा, " देखो खुशी, आप किसी से भी, कोई भी झूठ बोल लो लेकिन अपने मम्मी पापा के होते हुए ये नहीं बोलना चाहिए कि वो जिंदा नहीं हैं । "
खुशी ने हिचकिचाते हुए कहा, " मैं सच बोल रही हूं, भैया । "
उस लड़के ने पीछे होकर अपनी कुर्सी पर पसरते हुए अपने हाथ बांध कर कहा, " रश्मि और विनय, यही नाम है न आपके मम्मी और पापा का । "
उस लड़के के मुंह से अपने माता पिता का नाम सुन कर खुशी को झटका सा लगा । उसके हाथ जहां के तहां रुक गए ।
उसने उस लड़के की ओर देख कर सवाल करते हुए कहा, " आपको कैसे पता, भैया ?
उस लड़के ने अपनी भौंहें उठा कर कहा, " मतलब आपने झूठ बोला था । "
खुशी ने अपनी नजरें झुका कर कहा, " सॉरी, भैया । "
उसने अपने हाथ भी पीछे खींच लिये थे इसलिए उस लड़के ने कहा, " खाना खाओ । "
खुशी ने ना में सिर हिलाते हुए कहा, " नहीं । "
उस लड़के ने थोड़ी कड़क आवाज में कहा, " मैंने कहा न, खाओ ! "
उसकी आवाज सुन कर खुशी चुपचाप अपनी नजरें झुकाए खाना खाने लगी । ये देख कर उस लड़के ने आराम से कहा, " और अब ये बताओ कि झूठ क्यों बोला । "
खुशी ने अपनी नजरें उठा कर उसकी ओर देखा तो लड़के ने आगे कहा, " और हां, इस बार सच बोलना । ठीक है ! "
खुशी ने धीरे से कहा, " हम्म ! "
उस लड़के ने सीधा होते हुए कहा, " तो चलो बताओ, झूठ क्यों बोला ! "
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कौन था वो लड़का जिसे इतनी कम उम्र में ही इतना सब कुछ झेलना पड़ रहा था ?
कौन था ये लड़का जो खुशी को खाना खिला रहा था ?
उसने उस बच्ची की फोटो क्यों खींची और किसे भेजी ?
उसे खुशी के मां बाप के बारे में कैसे पता चला ?
किसके लिए काम करते थें वो दोनों ?
इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़ते रहिए,
डी एंड वी : प्रिंसेज बियोंड रॉयल्टी
लाइक, कमेंट, शेयर और फॉलो करना न भूलें ।
^^^ लेखक : देव श्रीवास्तव^^^
सुबह का समय था जब रेस्टोरेंट में अपने सामने बैठे लड़के की आवाज सुन कर खुशी चुपचाप अपनी नजरें झुकाए खाना खाने लगी । ये देख कर उस लड़के ने आराम से कहा, " और अब ये बताओ कि झूठ क्यों बोला । "
खुशी ने अपनी नजरें उठा कर उसकी ओर देखा तो लड़के ने आगे कहा, " और हां, इस बार सच बोलना । ठीक है ! "
खुशी ने धीरे से कहा, " हम्म ! "
उस लड़के ने सीधा होते हुए कहा, " तो चलो बताओ, झूठ क्यों बोला ! "
खुशी ने हिचकिचाते हुए कहा, " वो, वो ! "
उस लड़के ने चिढ़ कर कहा, " अब बोलो भी । "
खुशी ने नम आंखों के साथ सुबकते हुए कहा, " जब भी मैं किसी से बोलती हूं कि मुझे भूख लगी है और उन लोगों को पता चलता है कि मेरे मम्मी पापा जिंदा हैं तो वो लोग मुझे बहुत ही अजीब तरीके से देखते हैं ।
मुझे कुछ खाने को भी नहीं देते और, और अगर मम्मी पापा से मिल लेते हैं तो उन्हें भी बुरा बुरा बोलते हैं । "
उस लड़के ने अपने मन में ही कहा, " वो तो बोलेंगे ही । काम ही ऐसे इंसान के लिए करते थें वो दोनों । अब समझ आ गया होगा कि जो अपनों के सगे नहीं हुए वो उनके क्या खाक सगे होंगे । "
फिर उसने खुशी की ओर देख कर कहा, " इस बार तो सच बोल रही हो न ! "
खुशी ने हां में सिर हिला दिया तो उस लड़के ने कहा, " अच्छा, अगर कोई आपके मम्मी पापा को बुरा बुरा ना बोले और आपको किसी और से खाना मांगने की जरूरत भी ना पड़े, फिर तो आप नहीं कहोगे न, कि आपके मम्मी पापा नहीं हैं । "
खुशी ने अपने आंसुओं को साफ करते हुए कहा, " नहीं । "
उस लड़के ने अपने हाथ टेबल पर रखते हुए कहा, " तो चलो, आज इस बात का इंतेज़ाम कर ही देते हैं कि आपके मम्मी पापा को कोई भी बुरा बुरा न बोले । "
फिर उसने अपनी भौंहें उठा कर कहा, " क्यों ? "
खुशी ने चमकती हुई आंखों के साथ कहा, " आप ऐसा कर सकते हो ! "
उस लड़के ने सोचते हुए कहा, " हां, कर तो सकता हूं । "
फिर उसने खुशी की ओर देख कर अपनी भौंहें उठा कर कहा, " अगर वो लोग मेरा कहा करने को तैयार हो जाएं तो ! "
खुशी ने तुरंत कहा, " हां, हां, वो लोग जरूर करेंगे । आप जो बोलोगे, वो सब करेंगे । "
उस लड़के ने अपने हर शब्द पर जोर देते हुए कहा, " सिर्फ उनको ही नहीं, आपको भी कुछ करना पड़ेगा । "
खुशी ने खाना निगलते हुए कहा, " मुझे ! "
उस लड़के ने अपनी भौंहें उठा कर कहा, " हां, आपको । "
खुशी ने हिम्मत करके कहा, " क्या करना पड़ेगा ? "
उस लड़के ने उससे कुछ कहने के बजाय उस वेटर को कुछ इशारा किया जो उनका ऑर्डर लेने आया था । उस वेटर ने हां में सिर हिला दिया और अंदर चला गया ।
दो मिनट बाद वो वेटर अपने हाथ में कुछ पैकेट्स लेकर आया और उन्हें उस लड़के की ओर बढ़ा दिया ।
उस लड़के ने वो पैकेट्स खुशी की ओर बढ़ाते हुए कहा, " ये गंदे कपड़े छोड़ कर, ये साफ सुथरे और अच्छे कपड़े पहनने होंगे और हर रोज़ स्कूल भी जाना होगा । बोलिए, करेंगी ! "
खुशी ने वो पैकेट्स लेते हुए खुश होकर कहा, " हां, हां, जरूर करूंगी । "
उस लड़के ने अपनी कुर्सी पर पसरते हुए कहा, " फिर तो टेंशन वाली कोई बात ही नहीं है । आप एक काम करिए, शाम को अपने मम्मी और पापा के साथ यहाँ चली आइए, ठीक है ! "
खुशी ने हां में सिर हिलाते हुए कहा, " हम्म्म ! "
तो उस लड़के ने खड़े होते हुए उस रेस्टोरेंट के मालिक से कहा, " भैया, ये जो खाना खाये इसे खिला दीजिएगा और बाकी का बचा हुआ पैक करके इसे दे दीजिएगा । "
उस आदमी ने मुस्करा कर कहा, " तुम्हें कहने की जरूरत नहीं है कान्हा, सब हो जाएगा । "
कान्हा ने उनके गाल खींचते हुए कहा, " वो तो मुझे पता ही है कि मेरे भैया बहुत अच्छे हैं । "
उसकी बातें सुन कर सभी लोग हंसने लगे और साथ में वो खुद भी । कुछ देर बाद कान्हा ने खुशी की ओर देख कर कहा, " अच्छा तो खुशी, भैया अभी चलते हैं । शाम को फिर मिलेंगे । ओ के ! "
खुशी ने खुश होकर कहा, " हम्म्म ! "
तो कान्हा ने सबकी ओर देखते हुए कहा, " अब मैं चलता हूं । "
उसने बाहर जाते हुए सबकी ओर देख कर कहा, " बाय एवरीवन ! "
बाकी सबने भी उसे बाय कहा तो कान्हा बाहर निकल गया । उसने उस रेस्टोरेंट से निकलते ही फिर से अपने हेडफोन पहन लिये और भावहीन चेहरे के साथ उसी ओर चल दिया जिधर वो पहले जा रहा था ।
कुछ ही देर में वो एक स्कूल के सामने खड़ा था । उस स्कूल के गेट पर बड़े - बड़े अक्षरों में लिखा हुआ था, सर्वम इंटर कॉलेज, आर्यनगर ( काल्पनिक नाम ) ।
कान्हा ने एक नजर उस कॉलेज के गेट पर डाली और अंदर की ओर बढ़ गया । उसका ऑरा तो नॉर्मल था लेकिन उसके चेहरे पर अभी भी कोई भाव नहीं था ।
जैसे ही वो अंदर आया वैसे ही बहुत से लोगों की नजरें उस पर पड़ीं । उसने स्कूल यूनिफॉर्म ही पहन रखी थी लेकिन उसके गोरे रंग पर वो यूनिफॉर्म बहुत ही फब रही थी ।
तीखे नैन नख्श, कानों में मैग्नेटिक इयररिंग्स, उसके सिल्की बाल जो उसके माथे पर बिखरे हुए थे और उस पर भी मास्क उसे और अट्रैक्टिव लुक दे रहा था ।
वो जहां से गुजरता, वहां के लोग अपने कदम रोक कर, अपना दिल थामे उसे ही देखने लगते थे । लड़कियाँ तो उसे देखते ही खो सी गई थीं क्योंकि वो था ही इतना हैंडसम लेकिन उसे इस सब से कोई फ़र्क नहीं पड़ रहा था ।
उसकी नजरें सिर्फ सामने की ओर थीं । वो चलते हुए सीधा प्रिंसिपल ऑफिस के अंदर चला गया । लगभग पांच से दस मिनट बाद वो वापस आया तो उसके हाथ में उसका आइडेंटी कार्ड था ।
वो वहां से निकला और अपनी क्लास की ओर बढ़ गया लेकिन वो कुछ कदम ही आगे बढ़ा था कि इतने में पांच - छः लड़कों ने उसका रास्ता रोक लिया ।
कान्हा ने ठंडी नजरों से उन सबकी ओर देखा तो उनमें से एक लड़के ने कहा, " क्या मुन्ना, बड़ा गुस्सा भरा हुआ है तेरे अंदर, हां । "
तभी दूसरे लड़के ने कहा, " घूरता है बे, नजरें नीचे कर । "
कान्हा ने बिना कोई बहस किए अपनी नजरें नीचे कर लीं तो उन लड़कों की तो जैसे मन मांगी मुराद पूरी हो गई हो ।
पहले वाले लड़के ने उसका आइडेंटी कार्ड पकड़ते हुए कहा, " नाम क्या है बे तेरा ? "
फिर उसने खुद ही कान्हा का असली नाम पढ़ कर कहा, " विवेक अग्निहोत्री । "
तो विवेक ने कहा, " जी ! "
तभी दूसरे लड़के ने पहले लड़के के कंधों पर हाथ रख कर कहा, " अबे, जब ये कॉलेज के अंदर आया था तो मुझे लगा कि इस बंदे में दम होगा । "
फिर उसने विवेक की ओर देख कर उसका मजाक बनाते हुए कहा, " पर ये तो पानी कम चाय निकला । "
और इसी के साथ वो सभी हंसने लगे । वो सभी हंस रहे थे और गर्दन झुकाए हुए विवेक के के चेहरे पर कोई भाव नहीं थे । उसने धीरे से कहा, " अब मैं जाऊं, सर ! "
पहले लड़के ने कहा, " हां, चले जाना, पर उससे पहले हमारा एक काम करना होगा । "
विवेक ने धीरे से कहा, " क्या सर ? "
उस लड़के ने अपना हाथ विवेक के गर्दन में लपेट कर स्कूल की मेन गेट की ओर इशारा करके कहा, " अभी इस गेट से जो भी सबसे पहले अंदर आएगा उसे तुझे गुलाब का फूल देकर प्रपोज करना होगा । "
विवेक ने हकलाते हुए कहा, " सर, पर मैं कैसे... "
उस लड़के ने विवेक की बात काटते हुए कहा, " देख, करना तो तुझे होगा ही । अब तू खुद कर ले तो ठीक, वरना हम जबरदस्ती भी करवा सकते हैं । "
उसने इतना ही कहा था कि इतने में एक लड़का गेट से अंदर आया । उसकी उम्र कोई 27 - 28 साल रही होगी ।
उसने काले रंग के फॉर्मल पैंट के साथ सफेद रंग का प्लेन शर्ट पहना हुआ था । उसके बाएं हाथ में एक चैन वाली घड़ी थी और दाएं हाथ में कलावा बंधा हुआ था ।
उसके पैरों में काले फॉर्मल जूते थे । उसके बात सलीके से सेट थे और उसके चेहरे पर हल्की दाढ़ी थी । विवेक की नजर जैसे ही उस पर पड़ी, उसकी आँखें डर और हैरानी से बड़ी हो गईं ।
उसने अपने मन में खुद से ही कहा, " ये, ये यहां क्या कर रहे हैं । अगर इन्होंने हमें पहचान लिया तो ! नहीं, नहीं । हम, हम इनके सामने नहीं आ सकते । बिल्कुल नहीं आ सकते । "
अपने मन में ये सब बोल कर वो दूसरी ओर मुड़ने लगा लेकिन इतने में उन दोनों लड़कों ने उसे पकड़ लिया ।
विवेक ने रोनी सी शक्ल बना कर कहा, " सर, मैं खुद एक लड़का हूं । मैं किसी लड़के को प्रपोज कैसे कर सकता हूं ! "
दूसरे लड़के ने कहा, " अब बहुत ज्यादा जुबान चल रही है तेरी ! "
विवेक ने ना में सिर हिला कर कहा, " नहीं, सर । "
उस लड़के ने पास के गमले से एक गुलाब तोड़ कर उसके हाथ में पकड़ाते हुए कहा, " तो चल, अब चुपचाप से ये गुलाब उठा और जाकर उस लड़के को प्रपोज कर । "
विवेक ने कांपते हुए हाथों से वो गुलाब लेते हुए कहा, " ओ के, सर । "
और आगे बढ़ने लगा । वो अभी भी कोशिश कर रहा था कि वो उस लड़के के सामने न जाए इसलिए वो अपने कदम बहुत ही धीरे धीरे बढ़ा रहा था ।
ये चीज उन लड़कों को भी दिखाई दे रही थी इसलिए वो दोनों भी उसके साथ चलने लगे । इस वजह से विवेक को भी जल्दी से वहां जाना पड़ा ।
उसने अपने मन में खुद से ही कहा, " ये लड़के तो मान ही नहीं रहे हैं । "
फिर उसने एक गहरी सांस लेकर कहा, " डी, अब और कोई रास्ता नहीं है । अब जो होगा वो देखा जाएगा । "
वो अपने मन में खुद से ही बातें कर रहा था इसलिए उसे पता ही नहीं चला कि कब वो उस लड़के के पास पहुंच गया । वो तीनों उस लड़के से कुछ ही कदमों की दूरी पर थे ।
उन लड़कों ने विवेक के कंधे पर हाथ रख कर कहा, " चल मुन्ना, हो जा शुरू । "
विवेक ने अपनी आँखें बंद की और एक गहरी सांस छोड़ कर आगे बढ़ गया ।
वो उस लड़के के सामने जाकर अपना एक घुटना नीचे करके बैठ गया । अचानक से किसी के सामने आ जाने से उस लड़के ने अपने कदम रोक लिये ।
वो नासमझी से अपने सामने बैठे लड़के को देख रहा था जिसकी गर्दन झुकी हुई थी ।
इससे पहले कि वो कुछ कहता, विवेक ने अपनी गर्दन उठा कर गुलाब उसके सामने करके कहा, " आई लव यू, मिस्टर हैंडसम ! "
ये बात सुनते ही सामने वाले लड़के की आंखें हैरानी से बड़ी हो गईं । वो कुछ कहने को हुआ ही था कि तभी उसकी नजरें विवेक के आंखों पर ठहर गईं क्योंकि विवेक के चेहरे पर मास्क अभी भी था ।
वो लड़का विवेक को ऐसे देख रहा था जैसे कि उसे पहचानने की कोशिश कर रहा हो और अगले ही पल उसने अपने हाथ बांध कर आराम से कहा, " ये क्या बद्तमीजी है ! "
विवेक ने कुछ कहने के बजाय अपनी नजरें नीची कर लीं । ये देख कर सामने खड़े लड़के ने थोड़ी कड़क आवाज में कहा, " उठो । "
विवेक उठ कर खड़ा हुआ तो उस लड़के ने उसके हाथ से वो गुलाब ले लिया । फिर उसने विवेक का बाजू पकड़ कर कहा, " चलो मेरे साथ । "
और विवेक को लेकर आगे बढ़ गया । विवेक कुछ बोलने को हुआ तो उस लड़के ने आगे बढ़ते हुए ही अपने होठों पर उंगली रख कर उसे चुप रहने का इशारा कर दिया ।
उनके पीछे खड़े दोनों लड़कों ने नासमझी से एक दूसरे की ओर देखा और फिर विवेक और उस लड़के के पीछे चले गए ।
चलते चलते वो लड़का विवेक को एक केबिन, जिसके बाहर असिस्टेंट प्रोफेसर सार्थक निगम का बोर्ड लगा हुआ था, उसमें लेकर गया और दरवाजा अंदर से बंद कर दिया और वो दोनों लड़के बाहर ही रह गए ।
उन दोनों ने एक दूसरे का चेहरा देखा और अपने भौंहें उठा दीं । फिर दरवाजे की ओर इशारा करके वो दोनों ही अपने कान दरवाजे पर लगा कर खड़े हो गए । वो बात अलग है कि उन्हें सुनाई कुछ भी नहीं दे रहा था ।
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कौन था सार्थक निगम ?
वो विवेक को अपने केबिन ने क्यों ले गया ?
इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़ते रहिए,
डी एंड वी : प्रिंसेज बियोंड रॉयल्टी
लाइक, कमेंट, शेयर और फॉलो करना न भूलें ।
^^^ लेखक : देव श्रीवास्तव^^^
सुबह का समय,
सर्वम इंटर कॉलेज, आर्यनगर
जब सार्थक विवेक का हाथ पकड़े हुए आगे बढ़ गया तो उनके पीछे खड़े दोनों लड़कों ने नासमझी से एक दूसरे की ओर देखा और फिर विवेक और उस लड़के के पीछे चले गए ।
चलते चलते वो लड़का विवेक को एक केबिन, जिसके बाहर असिस्टेंट प्रोफेसर सार्थक निगम का बोर्ड लगा हुआ था, उसमें लेकर गया और दरवाजा अंदर से बंद कर दिया और वो दोनों लड़के बाहर ही रह गए ।
उन दोनों ने एक दूसरे का चेहरा देखा और अपने भौंहें उठा दीं । फिर दरवाजे की ओर इशारा करके वो दोनों ही अपने कान दरवाजे पर लगा कर खड़े हो गए । वो बात अलग है कि उन्हें सुनाई कुछ भी नहीं दे रहा था ।
वहीं कमरे के अंदर,
जैसे ही विवेक ने सार्थक को दरवाजा बंद करते हुए देखा, उसने हकलाते हुए कहा, " आई, आई एम सॉरी, सर । वो वो उन लोगों ने... "
लेकिन इससे पहले कि वो अपनी बात पूरी कर पाता, सामने खड़े लड़के ने थोड़ी शांति से कहा, " वी, क्या है ये सब ? और तुम कब से रैगिंग वगैरह को बर्दाश्त करने लगे ? हां ! "
ये सुनते ही विवेक जो किसी खरगोश की तरह सिकुड़ा हुआ था वो नॉर्मल हो गया । उसने आराम से एक चेयर पर बैठते हुए बेफिक्री के साथ कहा, " तो आपने हमें पहचान ही लिया । "
उस लड़के ने अपनी भौंहें उठा कर कहा, " तो, तुम्हें क्या लगता है ! ये मास्क लगा लोगे तो मैं तुम्हें पहचानूंगा नहीं ! सार्थक नाम है मेरा, सार्थक निगम ! तुम किसी को भी बेवकूफ बना सकते हो पर मुझे नहीं । "
विवेक ने बुदबुदाते हुए कहा, " वो तो दिख ही गया । "
सार्थक ने अपनी भौंहें सिकोड़ कर कहा, " क्या कहा तुमने ? "
विवेक ने तुरंत बात बदलते हुए कहा, " कुछ नहीं, सर । आप बोलिए, क्या कह रहे थें आप ? और मुझे यहां क्यों लेकर आए हैं ? "
सार्थक ने थोड़ी चिंता के साथ कहा, " पहले तुम मुझे ये बताओ कि तुम वहां से ऐसे अचानक से गायब क्यों हो गए ! आई मीन हुआ क्या था ? "
विवेक ने एकदम सर्द आंखों के साथ कहा, " कुछ नहीं, सर । बस ये समझ लीजिए कि हमारा वहां से हटने का समय आ गया था, इसलिए हम हट गए । "
ऐसा लग रहा था कि उसके मन में न जाने कितने विचार चल रहे हों ।
फिर भी उसने खुद को कंट्रोल करके बात बदलने के लिए सार्थक से ही सवाल करते हुए कहा, " लेकिन आप यहां कैसे ? "
सार्थक ने हैरानी के साथ अपनी भौंहें उठा कर कहा, " ये सवाल तुम पूछ रहे हो ! लाइक सीरियसली ! जबकि तुम अच्छे से जानते हो कि तुम्हारे अचानक से गायब होने की वजह से मैं कितना डरा हूंगा । "
विवेक ने धीरे से कहा, "आई एम सॉरी, सर । "
सार्थक ने चिढ़ कर ने कहा, " हां, तुम्हारे लिए मैं यहां तक आ गया और तुम मुझे सॉरी बोल रहे हो ! "
विवेक ने मुंह बना कर कहा, " क्या सर, आप भी ! "
सार्थक को भी समझ आ रहा था कि विवेक के मन में बहुत कुछ चल रहा है ।
इसलिए उसने भी बात बदलते हुए कहा, " ठीक तो हो न ! "
विवेक ने भी कहा, " ठीक हूं, सर । "
सार्थक ने ऐसे कहा जैसे कि उसका कितना बड़ा काम पूरा हो गया हो, " सच बोल रहा हूं, जब तुम अचानक से किसी को बिना बताए वहां से गायब हो गए न, तो बहुत बुरा लगा था मुझे लेकिन को इंसीडेंस देखो, मैं भी वहीं पहुंच गया जहां तुम आने वाले थे । "
विवेक ने अपनी भौंहें उठा कर कहा, " लेकिन अभी तो आपने कहा कि आप मेरे लिए आए थें । "
सार्थक ने चिढ़ कर कहा, " अरे छोड़ो उस बात को । द फैक्ट इज, कि किस्मत में हमें फिर से मिला ही दिया । "
विवेक ने अपनी एक भौंह उठा कर कहा, " किस्मत ! "
सार्थक ने भी अपनी दोनों भौंहें उठा कर कहा, " क्यों ? तुम्हें कोई शक है ! "
सार्थक ने हल्के से हंस कर कहा, " नहीं, नहीं । हमें क्या शक होगा ! "
सार्थक ने अपनी कुर्सी पर बैठते हुए कहा, " गुड ! "
फिर उसने बात आगे बढ़ाते हुए कहा, " वैसे, किस क्लास में एडमिशन लिया है ? "
विवेक ने नॉर्मली कहा, " 11th में, सर । "
सार्थक ने मुस्करा कर कहा, " हम्म्म, कुछ भी हो पर साल बर्बाद ना हो । "
विवेक ने भी कहा, " बिल्कुल सर । "
सार्थक ने मुंह बना कर कहा, " लेकिन ये क्या, तुमने फिर से क्या मास्क पहन लिया है ? "
विवेक ने हल्के से हंस कर कहा, " आदत सर, इतनी आसानी से नहीं छूटेगी । "
सार्थक ने एक गहरी सांस ली और फिर अपना सिर ना में हिला कर कहा, " तुम नहीं सुधरोगे न ! "
विवेक ने स्टाइल से अपने बालों में हाथ फिरा कर कहा, " बिलकुल नहीं, सर । जो सुधर गया, वो विवेक अग्निहोत्री नहीं । "
सार्थक ने मुंह बना कर कहा, " चलो, चलो, क्लास में जाओ । "
विवेक ने कहा, " ओ के, सर । "
और दरवाज़े की ओर बढ़ गया । उसने अपने हाथ हैंडल की ओर बढ़ाए ही थें की इतने में ना जाने उसके मन में क्या आया कि उसने वापस सार्थक की ओर देख कर कहा, " सर, एक बात और ! "
सार्थक ने अपनी भौंहें उठा कर कहा, " बोलो । "
विवेक ने हिचकिचाते हुए कहा, " वो गुलाब वाली बात ! "
सार्थक ने अपनी आई विंक करके कहा, " उसकी टेंशन मत लो तुम । वो मैंने खुद एक्सेप्ट की है । "
ये सुन कर विवेक के मुंह से निकला, " हां ! "
सार्थक ने लापरवाही से कहा, " अब मुझे ऐसे मत देखो और निकलो यहां से । "
विवेक फिर से कुछ कहने को हुआ ही था कि सार्थक ने कहा, " मुझे दुबारा ना बोलना पड़े । निकलो यहां से ! "
विवेक फिर से कुछ बोलता लेकिन ना जाने उसके दिमाग में क्या आया कि उसने अपना सिर हां में हिलाया और फिर से दरवाजे की ओर पलट गया ।
उसने दरवाजे का लॉक खोल कर धकेला तो डरवासे के बाहर खड़े दोनों लड़कों को भी धक्का लग गया । वो दोनों संभल नहीं पाए और नीचे जा गिरे ।
उनके गिरने की आवाज सुन कर सार्थक भी तुरंत बाहर आ गया । बाहर आते ही उसकी नजर सामने गिरे हुए दोनों लड़कों पर पड़ी ।
उसने थोड़ी कड़क आवाज में कहा, " तुम दोनों कौन हो और क्लास में होने के बजाय यहां क्या कर रहे हो ? "
उनमें से एक लड़के ने हकलाते हुए कहा, " कुछ नहीं, सर । हम तो, हम तो बस... "
उसकी आवाज मानों बाहर आ ही नहीं रही थी इसलिए सार्थक ने चिढ़ कर कहा, " क्या हम तो, हम तो लगा रखा है ! अभी के अभी क्लास में जाओ । "
उसकी आवाज इतनी कड़क थी कि वो दोनों लड़के तुरंत उठे और अपनी क्लास की ओर भाग गए । विवेक अभी भी वहीं पर खड़ा था । सार्थक ने उसके कंधे पर हाथ रख कर कहा, " ये दोनों तुम्हारे रैगर्स ही हैं न ! "
विवेक ने कुछ कहे के बजाय सिर्फ हां में दिया । सार्थक में उसके कंधे थपथपा कर कहा, " उनको टेंशन तुम मत लो । उन्हें तो मैं देख लूंगा । "
विवेक ने एकदम आराम से कहा, " उसकी जरूरत नहीं पड़ेगी सर । उनके लिए तो मैं खुद ही काफी हूं । "
सार्थक ने अपनी भौंहें उठा कर कहा, " अच्छा ! तो अभी उनकी बात क्यों मानी ? अभी ही उनकी अक्ल ठिकाने लगा सकते थे न ! "
विवेक ने कहा, " नहीं सर, मैं फिर से वही सब नहीं करना चाहता । हां, अगर हालत वैसे ही बन गए तो जरूर मैं भी उसी रूप में आ जाऊंगा लेकिन तब तक जैसा चल रहा है, वैसा चलने देते हैं । "
सार्थक ने हल्के से मुस्करा कर कहा, " जैसी तुम्हारी मर्जी । बस ये याद रखना कि मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं और आगे भी रहूंगा । "
विवेक ने हल्के से झुक कर कहा, " श्योर सर ! "
और फिर अपने क्लास की ओर बढ़ गया । वो क्लास में जाकर पीछे की एक बेंच पर चुपचाप बैठा हुआ था । उसने किसी से भी एक शब्द भी नहीं बोला था ।
हां, वो बात अलग है कि मास्क पहनने के बाद भी बहुत सी लड़कियां उसे अप्रोच करने की कोशिश कर रही थीं, क्योंकि उसकी आंखों में भी एक नशा था जो किसी को भी अपना दीवाना बना ले ।
कुछ देर बाद प्रोफेसर क्लास में आए और सबका इंट्रो लेने लगे तब जाकर विवेक ने कुछ बोला ।
उसने अपना इंट्रो देते हुए कहा, " हेलो एवरीवन ! माय नेम इज विवेक अग्निहोत्री । "
इतना बोल कर वो चुप हो गया तो प्रोफेसर नासमझी से उसे देखने लगे और बाकी सारे बच्चों की गर्दन भी उसकी ओर ही घूम गई लेकिन विवेक चुपचाप खड़ा था ।
ये देख कर प्रोफेसर ने कहा, " बस ! हो गया तुम्हारा इंट्रो ? "
इससे पहले कि विवेक कुछ कहता, सार्थक वहां आ गया ।
उसने क्लास के दरवाजे पर खड़े होकर ही प्रोफेसर से कहा, " सर, दो मिनट आप बाहर आ सकते हैं क्या ! "
प्रोफेसर ने एक नजर विवेक को देखा और फिर हां में सिर हिला कर कहा, " जी ! " और बाहर चले गए ।
दो मिनट के बाद वो अंदर आए । उन्होंने विवेक, जो कि अभी तक खड़ा था, उसकी ओर देख कर कहा, " मुझे सर ने तुम्हारे बारे में बता दिया है । तुम बैठ सकते हो । "
विवेक ने कहा, " थैंक यू, सर । "
और फिर से अपनी सीट पर बैठने लगा लेकिन इतने में प्रोफेसर ने कहा, " लेकिन ! "
विवेक नासमझी से उनकी ओर देखने लगा तो प्रोफ़ेसर ने कहा, " तुम्हें अपना मास्क उतारना होगा । ये कोविड का टाइम नहीं है जो तुम इस वक्त भी मास्क लगा कर घूमते हो । "
ये सुनते ही विवेक की नजरें तुरंत दरवाजे की ओर घूम गईं जहां बाहर सार्थक खड़ा था । विवेक उसे देख कर चिढ़ गया तो सार्थक के होठों पर एक चिढ़ाने वाली मुस्कान आ गई ।
विवेक ने प्रोफेसर की ओर देख कर कहा, " सर, ये मेरी आदत है । "
प्रोफेसर ने उसकी बात का जवाब देते हुए कहा, " तो आदत बदली भी जा सकती है । "
अब विवेक के पास और कोई ऑप्शन नहीं था । उसने एक गहरी सांस ली और अपना मास्क उतरने लगा । पूरे क्लास की नजरें उस पर ही टिकी हुई थीं ।
जैसे जैसे उसका मास्क हट रहा था वैसे वैसे सभी स्टूडेंट्स की सांसें रुकती सी जा रही थीं । उसके बाईं ओर से मास्क हटते ही सबसे पहले दिखी उसकी जॉ लाइन जो बिल्कुल शार्प थी ।
फिर उसके मक्खन जैसे मुलायम गाल, फिर उसके गुलाबी होंठ और साथ में पतली और लंबी नाक । इसी तरह से उसका पूरा चेहरा नजर आया ।
वो देखने में बहुत ही हैंडसम और क्यूट था । लड़कियां तो लड़कियां, लड़के भी उसे देख कर खुद को कंट्रोल नहीं कर पा रहे थें । सबके मुंह उसे देख कर खुले हुए थे ।
विवेक ने मास्क उतारने के बाद प्रोफेसर की ओर देख कर कहा, " सर, मे आई सीट नाउ ? "
प्रोफेसर, जो खुद उसे देख कर को से गए थे, उसकी आवाज सुन कर होश में आए । उन्होंने हड़बड़ा कर कहा, " हां, हां ! बैठो, बैठो । "
फिर उन्होंने क्लास का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए गला खराश कर कहा, " अटेंशन क्लास ! "
सारे बच्चे प्रोफेसर की ओर घूम गए और विवेक अपनी जगह पर बैठ गया । इतने में उसकी नजर फिर से दरवाजे की ओर गई तो सार्थक अभी भी वहां खड़ा था ।
उसके हाथ में उसका फोन था जिससे हो विवेक की पिक्चर्स क्लिक कर रहा था । जैसे ही विवेक की नजरें उस पर पड़ीं, सार्थक ने उसे स्माइल करके का इशारा किया ।
उसकी हरकतें देख कर विवेक ने चिढ़ कर मुंह बनाया और मुंह फेर कर बैठ गया लेकिन इस बार उसका मुंह और बन गया क्योंकि बाकी क्लास अभी भी मुड़ मुड़ कर उसे देख रही थी ।
ये देख कर उसने फिर से अपना मास्क पहन लिया । वहीं उसकी हरकतें देख कर सार्थक को हँसी आ रही थी । उसने अपना सिर ना में हिलाया और मुस्कराते हुए ही आगे बढ़ गया ।
दोपहर का समय,
सार्थक अपने कैबिन में आया और दरवाजा अंदर से बंद कर लिया । उसने तुरंत अपना फोन निकाला और विवेक की फोटोज किसी अनजान नंबर पर भेज दीं ।
इतने में उसके दरवाजे पर दस्तक हुई जिससे सार्थक हड़बड़ा गया और उसका फोन उसके हाथ से उछल गया । वो तो अच्छा हुआ कि उसने जल्दी से उसे पकड़ लिया वरना उस फोन का कल्याण होना तय था ।
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क्या चल रहा था विवेक के दिमाग में ?
ऐसा क्या हुआ था जो वो यहां नहीं चाहता था ?
सार्थक ने विवेक की फोटोज किसी भेजी थीं ?
क्या मकसद था उसका ?
इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़ते रहिए,
डी एंड वी : प्रिंसेज बियोंड रॉयल्टी
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^^^ लेखक : देव श्रीवास्तव^^^
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