( यह कहानी है एक ऐसी दुनिया की है जिस दुनिया में दो समूह है एक समूह मुंडा और एक साखी इस दुनिया में रहते तो दो समूह थे लेकिन दोनों में से किसी को एक दूसरे के बारे में नहीं पता था एक समूह मुंडा समूह जिसका एक मालिक और बाकी सब लोग मालिक की सेवा करना ही सब लोग अपना कर्तव्य और धर्म मानते थे वहीं दूसरी तरफ साखी समूह में हर कोई मिलजुल कर प्यार से रहता था मुंडा समूह का राजा यानी कि मलिक था कुशीम ! कुशीम एक बूढ़ा आदमी था जिसकी बड़ी दाढ़ी - मूंछें थी उसकी दाढ़ी और मूंछें सफेद रंग की थी इसका एक बेटा भी था जिसका नाम था मनोहर और उसकी पत्नी जिसका नाम था लीला कुशीम और उसका परिवार एक बड़े से महल में रहता था जो की काले रंग का बना हुआ था काले रंग का महल किसी ने शायद कभी ना देखा हो और न ही सुना हो लेकिन कुशीम ने अपना महल काले रंग का बनवाया था क्योंकि उसे काले रंग पे अपनी और अपने परिवार की महानता दिखानी थी उस जगह पर काले रंग का मतलब महान वहां पर काला केवल वही पहन सकता थे। जो बहुत ज्यादा अमीर हो या फिर उसके पास बहुत से गुलाम हो कुशीम काले रंग का महल की बहुत बड़ी-बड़ी दीवारें थी जिसके आर पर कोई भी नहीं जा सकता था उस महल की शुरुआत एक बड़े काले दरवाजे से होती है जिसे चाहे तो एक हाथी भी अंदर जा सकता था अंदर जाने पर एक बड़ा सा रास्ता जो की कुशीम के घर तक जाता था कुशीम के महल और रास्ते के बीच एक बहुत बड़ा बगीचा था जिसमें अलग - अलग तरह के फूल लगे हुए थे हजारों लोग उस महल में काम करते थे हजारों लोगों की रोजी रोटी उस महल से चलती थी लेकिन दिक्कत यह थी की
कुशीम बहुत ज्यादा अत्याचार करता था अपने लोगों पर उसके मन में किसी के लिए भी दया नहीं थी एक बार की बात है कुशीम अपने महल के बीचो-बीच बैठा था जिसमें एक दरबार लगा हुआ था ।
एक लाल रंग की कालीन जो कि पूरे दरबार में फैली हुई थी । उस दरबार में केवल एक ही कुर्सी थी जिस पर कुशीम बैठता था । कुशीम उस कुर्सी पर बैठा था उसकी एक तरफ उसका बेटा मनोहर और दूसरी तरफ उसकी बहू लीला खड़ी थी तभी वहां पर कुछ सैनिक एक पतले दुबले इंसान को लेकर आए । वो इंसान बहुत कमजोर लग रहा था तभी उन दोनों सैनिकों ने उस आदमी को लाकर कुशीम के सामने खड़ा कर दिया और अपना एक हाथ आगे करते हुए सिर झुकाया और एक साथ कहा ।)
सैनिक : मालिक को सलाम !
सैनिक 1 : मालिक यह आदमी हमारे ही बगीचे का एक नौकर है ।
सैनिक 2 : इसने एक गणगौर पाप किया है ।
कुशीम : सज़ा तो मिलेगी इसका गुना बताओ !
सैनिक 1 : मलिक इसमें मालकिन के पसंदविदा फूल को तोड़ दिया और अब वह फूल खत्म हो चुका है ।
( कुशीम अपनी कुर्सी से खड़ा हुआ और कहा । )
कुशीम : तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई इतना बड़ा गुनाह कर के भी मेरे आगे इस तरह खड़े हो ।
( तभी सैनिकों ने उस आदमी को छोड़ा और कहा । )
सैनिक 2 : मलिक के आगे खड़े होने की तमीज भी सीखनी होगी तुम्हें ?
( आदमी ने कुशीम के आगे हाथ जोड़ते हुए कहा। )
आदमी : मुझे माफ कर दीजिए मैंने कुछ नहीं किया वह बस गलती से हो गया।
कुशीम : मानते हो ना गलती हुई है तो गलती की सजा भी मिलेगी ।
( कुशीम ने सैनिक 1 को इशारा किया कुशीम का इशारा मिलते ही सैनिक 1 ने अपना एक हाथ ज़ोर से आदमी के कंधे पर मारा सैनिक 1 का हाथ इनती ज़ोर के लगा कि आदमी अपने घुटनों के बल बैठ कर चिल्लाने लगा तभी कुशीम ने सैनिक 2 को इशारा किया सैनिक 2 को इशारा मिलते ही सैनिक 2 वहां से चला गया।तभी पहले सैनिक ने आदमी के दोनों हाथ पीछे कर रस्सी से बांध दिए तभी कुशीम न कहा। )
कुशीम : तुम्हारी हिम्मत कैसे हुए , तुमने इतना बड़ा गुनाह किया बड़ी सज़ा भी मिलेगी ।
( कुशीम के इतना कहते ही सैनिक 2 अपने हाथ में एक बड़ा हथोड़ा लेकर आदमी के साथ आकर खड़ा हो गया तभी पहले सैनिक ने उस आदमी को खड़ा करा तभी कुशीम ने कहा । )
कुशीम: इसके दोनो पैर की हड्डियां तोड़ दी जाए ।
आदमी : नहीं ऐसा मत कीजिए माफ कर दीजिए मुझे ।
( तभी कुशीम ने अपने बेटे की तरफ देखते हुए कहा।)
कुशीम : तुमको मेरा फैसला मंजूर है ?
मनोहर : जी पिताजी मैं आपके साथ हूं मां के पसंदीदा फूल हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण थे लेकिन इस आदमी ने उनको नुकसान पहुंचाया है इसे तो सजा मिलनी चाहिए।
( तभी कुशीम ने अपनी बहू की तरफ देखा और कहा। )
कुशीम : क्या तुम्हें मेरा फैसला मंजूर है लीला जी हां पापा जी मुझे भी आपका फैसला मंजूर है ?
लीला : अजीब कर दी इसने लीला सजा तो मिलनी चाहिए ।
( तभी कुशीम ने कहा। )
कुशीम : सब लोग मेरे साथ हैं सैनिक हमला करो !
( कुशीम के आदेश मिलते ही सैनिक 1 ने उसे आदमी को कसकर पकड़ लिया और सैनिक दोनों 2 ने अपने हाथ में रखे हथौड़े को बस आदमी के पैरों पर मारना शुरू किया एक हथोड़ा लगते ही आदमी की चीख निकल गई वह अपना एक पैर इस्तेमाल भी नहीं कर सकता था उसके पैर में इतना दर्द हो रहा था मानो कि अगर उसने उस पैर पर जरा सा भी ज़ोर दिया तो वह वहीं गिर जाएगा तभी सैनिक 2 ने आदमी के दूसरे पैर पर भी हथोड़ा मार आदमी दर्द के मारे चल रहा था लेकिन किसी को भी उसके ऊपर जरा सी भी दया नहीं आई उल्टा वहां पर मौजूद कुशीम और लीला उसकी हालत देख हंस रहा था जैसे मजा आ रहा हो उसे परेशान करने में लेकिन मनोहर सिर झुका कर खड़ा था कुशीम ने सैनिक 2 से कहा । )
कुशीम : रुक क्यों गए रूकना थोड़ी ना है मेरे अगले आदेश तक तुम्हारे हथौड़े रुकने नहीं चाहिए ।
आदमी : ( दर्द में तड़पते हुए ) मुझे इतनी बड़ी सजा मत दीजिए माफ कर दीजिए मुझे ।
कुशीम : अपना काम जारी रखो और तुम !
(कुशीम ने सैनिक 1 की तरफ इशारा करते हुए कहा।)
कुशीम : तुम इसे बाजू से नहीं गले से पकड़ो ताकि इसे हिलेने में भी तकलीफ हो !
( कुशीम की बात मानते हुए सैनिक 1 ने आदमी के गले को अपनी बाजू में फंसा लिया तभी सैनिक 2 ने हथौड़े मरना शुरू किया दो चार पांच सैनिक के हाथ रुकी नहीं रहे थे क्योंकि वह भी जानता था कि अगर उसके हाथ रुक तो कुशीम उसे भी सजा सुनाएगा और उसकी सजा उस आदमी की सजा से कई हजार गुना भयंकर होगी आदमी दर्द में तिलमिला रहा था उसने कई बार कुशीम को उसे माफ करने के लिए कहा लेकिन कुशीम आदमी को देख कर हंस रहा था तभी लीला ने कहा।)
लीला : अजीब है तेरी लीला इतने आराम से मारोगे तो कैसे चलेगा थोड़ा जोर लगाओ खाना नहीं खाया क्या ?
( लीला की बात सुन सैनिक 2 ने अपना पूरा जोर लगाकर आदमी को मारना शुरू किया तभी कुशीम ने रुकने का इशारा किया और कहा । )
कुशीम : इसे महल के बाहर फेंक दो और याद रहे वापस दिख ना जाए इसे महल की नौकरी से निकाला जाता है ।
आदमी : ऐसा मत कीजिए इतनी बड़ी सजा मत दीजिए मैं अपने घर को कैसे संभाल लूंगा ?
( कुशीम का आदेश मानते हुए सैनिकों ने उस आदमी को महल के बाहर फेंक दिया कुछ देर तक मैं आदमी वही तड़पता रहा और कुछ देर बाद एक बुर्का पहना आदमी उसे उसके घर ले गया ।
वहीं दूसरी तरफ दो भाई बहन जिसका इस दुनिया में कोई भी नहीं था उनकी सोच थी कि उसे दुनिया में कोई ना कोई तो ऐसी जगह है जहां पर उनके समूह के अलावा और कोई समूह भी रह रहा है ऐसा तो हो नहीं सकता था कि एक धरती पर केवल कुछ लोग हों दोनों भाई बहन तारा और सूरज ने फैसला किया कि वह बिना किसी को बताए दूसरे समूह को ढूंढने निकलेंगे। अगले दिन सुबह सबके उठने से पहले दोनों भाई बहन गांव से बाहर निकल गए कुछ दिन तक जंगल में ढूंढने पर उन्हें कुछ नहीं मिला लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी लगभग 15 दिन बाद वह लोग मुंडा समूह के इलाके में पहुंचे उन्हें नहीं पता था की इस इलाके में पहुंचना उनकी सबसे बड़ी गलती हो सकती थी लेकिन उस वक्त सूरज और तारा बहुत खुश थे तभी सूरज ने कहा । )
सूरज : देखा तारा मैंने कहा था ना एक न एक जगह तो ऐसी जरूर होगी जहां पर हमारे समूह के अलावा भी कोई समूह रह रहा होगा और देखो आज हमें वह जगह मिल गई ।
तारा : वह सब तो ठीक है भाई लेकिन हो सकता है यहां पर जंगली जानवर भी हो हम एक रात जंगल में ही बिता लेते हैं
सूरज : ठीक है लेकिन अगले दिन हम वापस जरूर आएंगे ।
तारा : इसीलिए तो इतने दिनों का सफर किया बिल्कुल हम लोग वापस आएंगे।
( सूरज और तारा ने एक रात जंगल में बिताई और अगले दिन सुबह होने पर गांव की चौखट पर आ गए हैरानी की बात यह थी कि सुबह होने के बावजूद भी वहां पर कुछ ज्यादा लोग दिखाई नहीं दे रहे थे सूरज और तारा को अंदर जाने में थोड़ा अजीब लग रहा था तभी तारा ने कहा। )
तारा : भैया हमें अंदर जाना चाहिए इतना सुनसान होगी सुबह होने पर ?
सूरज : क्या पता यहां का क्या रीति रिवाज हो चलो एक बार चल के ही देख लेते हैं ।
तारा : लेकिन अगर कोई गड़बड़ हो गई तो ?
सूरज : कुछ नहीं होगा अब एक नई चीज की जांच करनी है तो खतरा तो उठाना पड़ेगा ना !
तारा : ठीक है लेकिन आपको मुझे वादा करना होगा कि आप अपना और मेरा ख्याल रखेंगे ।
सूरज : इसमें वादा करने की क्या बात है बिल्कुल रखूंगा ।
क्या होगा अब सूरज और तारा के साथ क्या कुशीम उनके साथ अच्छे से बर्ताव करेगा या फिर कुछ गलत होने वाला है जानने के लिए पढ़िए "सच्चाई की लड़ाई"
( इतना कहकर सूरज आगे बढ़ने लगा तारा भी उसके पीछे आ रही थी तभी उन्होंने गांव की चौखट पार की गांव की चौखट पार करते ही एक तेज हवा का झोंका आया जिसमे कुछ अखबार के कागज उड़ रहे थे तभी सूरज ने कहा।)
सूरज : वो देखो अखबार मतलब यहां पर कोई ना कोई तो रहता ही है चलो अंदर चलते हैं ।
तारा : ठीक है!
( सूरज और तारा अंदर जाने लगे कुछ दूर जाने पर वह लोग वहां के बाजार में पहुंचे पूरे बाजार में गिनती की चार दुकान थी वहां पर चार लोग खड़े थे और कुछ महिलाएं सब्जियां ले रही थी तभी सब ने उन दोनों को आते हुए देखा और सारे उनके आस-पास आकर खड़े हो गए तभी वहां पर कुछ कुशीम के सैनिक भी मौजूद थे लोगों को अपनी तरफ आकार आता देखा तारा घबरा गई लेकिन सूरज ने यह बात को आम समझा तभी 2 सैनिक जिनके हाथों में भले थे वह लोग सूरज और तारा की तरफ शक की नजर से देख रहे थे तभी उनमें से एक सैनिक ने कहा। )
सैनिक 1 : तुम लोग यहां के तो नहीं लग रहे हो कौन हो तुम ?
सूरज : जी हम पास के समूह से आए हैं ।
सैनिक 2 : पास का समूह मतलब ?
तारा : मतलब एक और गांव जो की बिल्कुल इसी गांव की तरह है ।
( लोग आपस में बड़बडा ने लगे तभी उनमें से एक सैनिक ने अपना भला सूरज की तरफ करते हुए कहा । )
सैनिक 1 : यह जरूर शैतान के यहां से आया है पकड़ लो इन लोगों को ।
तारा : ये आप क्या कह रहे हैं शैतान के यहां पर हमने अभी तो बताया साथ वाले समूह से आए हैं ।
( तभी दूसरे सैनिक ने भी अपना भला तारा की तरफ कर और कहा । )
सैनिक 2 : चुप रहे बेवकूफ लड़की तुझे नहीं पता औरतों को बोलने की इजाजत नहीं होती ।
( सूरज और तारा हैरानी से सैनिकों की ओर देख रहे थे तभी दूर से 1 सैनिक आया उसके हाथ में जंजीरे थी दूसरे और तीसरे सैनिक में मिलकर तारा और सूरज को जंजीरों में बांध दिया तारा और सूरज सैनिकों को रोकने की बहुत कोशिश कर रहे थे लेकिन किसी ने उनकी एक न सुनी और उन्हे बांधकर महल ले जाने लगे । महल पहुंचने के बाद सैनिकों ने तारा और सूरज को कुशीम के सामने घुटनों के बल बैठा दिया और तीनों ने एक साथ कहा। )
सैनिक : मलिक को हमारा सलाम !
कुशीम : कहो क्या हुआ है ?
सैनिक 2 : मालिक ये लोग शैतान के यहां से आए हैं ।
( कुशीम अपनी जगह से खड़ा हो गया मनोहर और लीला भी दोनों को हैरान से देख रहे थे तभी मनोहर ने कहा। )
मनोहर : ऐसा कैसे हो सकता है कोई शैतान के यहां से कैसे आ सकता है ?
लीला : अजीब है तुम्हारी लीला क्यों नहीं आ सकता ?
कुशीम : मनोहर बच्चों जैसी बातें मत करो तुम लोगों को कैसे पता यह लोग शैतान के यहां से आए हैं ?
(कुशीम ने सैनिकों से पूछा सैनिक 1 ने जवाब दिया । )
सैनिक 1 : मलिक यह लोग पहली बार हमारे समूह में दिखे और पूछने पर बताया कि यह दूसरे गांव से आए हैं।
सूरज : सही में हम दूसरे गांव से आए हैं कुछ दूरी पर यहां पर एक और गांव है वहां से !
तारा : हमारी बातों का यकीन करो हम झूठ नहीं बोल रहे ।
कुशीम : तुम्हारी बातों से लग रहा है तुम झूठ ही बोल रहे हो इस दुनिया में इस समूह के अलावा और कोई समूह ही नहीं है किसे बेवकूफ बना रहे हो तुम लोग ?
तारा : ऐसा कुछ भी नहीं है एक दुनिया में कई सारे समूह हो सकते हैं ।
( कुशीम ने तीसरे सैनिक की ओर इशारा किया तीसरे सैनिक ने अपनी जेब से रुमाल निकालकर तारा के मुंह पर बांध दिया तारा बोल भी नहीं पा रही थी तभी कुशीम ने कहा। )
कुशीम : औरतों को बोलने की इजाजत नहीं होती उन्हें जैसा कहा जाए वैसा ही करना चाहिए ।
सूरज : ये गलत है किसने कहा है औरत को बोलने की इजाजत नहीं होती और तुम कौन होते हो इजाजत देने वाले ?
कुशीम : ( गुस्से में ) अपनी बकवास बंद करो मैं यहां का मालिक हूं कुछ भी कर सकता हूं किसी की भी जान ले सकता हूं।
सूरज : यहां का मालिक केवल एक है भगवान और कोई नहीं !
कुशीम : बहुत समझदारी छा रही है ना तुम्हें अब निकलेगी तुम्हारी सारी समझदारी ।
लीला : अजीब है इसकी लीला बापूजी के सामने बोलने चला है बापूजी इसे मौत दीजिए यह मौत के लायक ही है ।
( तरा ने अपना सर ना में हिलाया तभी कुशीम ने कहा । )
कुशीम : नहीं बहू मौत बहुत छोटी चीज है इन दोनों को मौत नहीं दी जाएगी जरा सोचो शैतान के लोग मेरी गुलामी करेंगे तो हमारा सम्मान और बढ़ेगा।
लीला : आपकी सोच बहुत ऊंची है बापूजी आपका कोई मुकाबला नहीं कर सकता ।
सूरज : गलत इनकी सोच वहां पर खत्म होती होगी जहां पर भगवान की सोच शुरू होती है ।
कुशीम : बहुत भरोसा है ना तुम्हें अपने भगवान पर तो आज देखते हैं भगवान जीता है या यहां पर खड़ा मलिक।
(कुशीम ने तीसरे सैनिक को तारा के मुंह पर बांदा कपड़ा खोलने का इशारा किया और दोनों को बाहर मैदान में ले गए जहां पर दो बड़े स्तंभ खड़े थे सानिकों ने तारा और सूरज को उस स्तंभ से बांध दिया गर्मी का मौसम था और धूप सीधा उनके चेहरे पर आ रही थी तभी कुशीम ने कहा।)
कुशीम : ज्यादा बोलने की सजा यही होती है इन लोगों को कल सुबह 7:00 बजे दरबार में लाया जाए उससे पहले यह लोग यही बंदे रहेंगे ।
( कुशीम ने सैनिकों को आदेश दिया सैनिकों ने हां में सिर हिलाया तभी कुशीम और सब लोग वहां से जा रहे थे लेकिन लीला ने सबको रोकते हुए कहा।)
लीला : अजब है आपकी लीला बापूजी इतनी आसान सजा देकर माफ कर रहे हैं ।
मनोहर : लीला सजा कोई भी आसान नहीं होती ।
कुशीम : बहु सही कह रही है मनोहर इनकी सजा बहुत आसान है सैनिक 2 शुरू करो !
( कुशीम को सुनने के बाद सैनिक 2 सूरज के सामने आकर खड़ा हो गया और अपने दोनों हाथ को एक खास तरह की मुद्रा में ले आया तभी कुशीम ने सैनिक 2 को हां का इशारा किया सैनिक को इशारा मिलते ही सैनिक ने सूरज के पेट में मुक्के जड़ने शुरू किए सूरज दर्द के मारे तिलमिला रहा था वहीं दूसरी तरफ तारा रोते हुए सूरज को बचाने के लिए उस स्तंभ से निकलने की कोशिश कर रही थी लेकिन वो ऊपर से नीचे तक रस्सियों में लिपटी हुई थी वह हील भी नहीं पा रही थी तभी कुशीम ने कहा । )
कुशीम : कोई फायदा नहीं है तुम्हारे इन सब चीजों का मेरे अगले इशारे तक सैनिक नहीं रुकेगा ।
तारा : ( रोते हुए ) ऐसा मत करो छोड़ दो भाई को उसने क्या किया है ?
कुशीम : मेरे साथ बदतमीजी करने की कोशिश ।
तारा : माफ कर दीजिए भाई को छोड़ दीजिए ।
कुशीम : नहीं बिल्कुल नहीं सैनिक जरा अपनी रफ्तार बढ़ाओ ।
तारा : ( चिल्लाते हुए ) नहीं....!
( सैनिक ने कुशीम का कहा मानते हुए अपनी रफ्तार बढ़ा दी सूरज के मुंह से खून निकलने लगा तभी मनोहर ने कहा।)
मनोहर : बस किजिए बापूजी आपको इन्हें अपना गुलाम बनाना था अगर इस तरह तड़पाते रहेंगे तो यह गुलाम कैसे बनेंगे कैसे करेगें आपकी सेवा वो तो ऐसे ही मर जाएगा अपने उन्हें अपना गुलाम बनाना था ना तो रोक दीजिए सैनिक को !
कुशीम : मनोहर सही कह रहा है सैनिक रुको ।
( कुशीम का इशारा मिलते ही सैनिक दो रुक गया और पीछे हो गया सूरज अधमरी हालत में वही बंधा हुआ था तभी कुशीम ने कहा । )
कुशीम : मेरी इजाजत के बगैर इन लोगों के साथ कुछ भी नहीं होना चाहिए चाहे कुछ भी हो ।
( तभी कुशीम में मनोहर की तरफ देखते हुए कहा )
कुशीम : मनोहर इन दोनों की जिम्मेदारी तुम्हारी लेकिन याद रहे अगले 24 घंटे तक ना ही इन्हें खाना मिलना चाहिए ना ही पानी ।
लीला : गजब है आपकी लीला बापूजी कितने दयालु हैं आप अपने सूरज को इतनी आसानी से छोड़ दिया ।
( तारा रो रही थी उसने रोते हुए सूरज को उठाने की कोशिश की । )
तारा : ( रोते हुए ) भैया उठ जाइए एक बारी मेरी तरफ देख लीजिए आपने वादा किया था आप अपने आप को कुछ नहीं होने देंगे उठिए ना !
( तभी कुशीम तारा के सामने आया और उसका मुंह पढ़ते हुए कहा )
कुशीम : ए लड़की चिंता मत कर जिंदा है मरा नहीं है ।
( इतना कह कर कुशीम वहां से चला गया मनोहर वहीं तारा और सूरज को देख रहा था तारा अभी भी सूरज को उठाने की कोशिश कर रही थी लेकिन वह कुछ नहीं कर पा रही थी तारा और सूरज के आस पास चार सैनिक खड़े थे मनोहर बड़े ही ध्यान से उन चारों को देख रहा था कुछ घंटे बीत गए तारा और सूरज भूख और प्यास के मारे परेशान थे सूरज बेहोशी की हालत में बार-बार पानी मांग रहा था तारा उसकी हालत देख रोती जा रही थी तभी उसने एक सैनिक से कहा। )
तारा : ( रोते हुए ) कम से कम कुछ पानी ही पिला दीजिए ।
सैनिक 3 : तुमने सुना नहीं अगले 24 घंटे तक तुम्हें ना खाना मिलेगा ना पानी !
( तभी मनोहर ने सैनिकों के पास जाते हुए कहा। )
मनोहर : तुम लोग इतनी धूप में क्यों खड़े हो सजा इन लोगों को मिली है तुम्हें नहीं जाकर आराम करो मैं यहां पर खड़ा हूं।
( चारों सैनिक मनोहर के पास आए और कहा । )
सैनिक 3 : लेकिन छोटे मालिक हम आपको इस तरह अकेले छोड़कर कैसे जा सकते हैं ?
मनोहर : यह मेरा आदेश है जाओ खाना खाकर आओ मैं यही खड़ा हूं इन लोगों का ख्याल रख रहा हूं ।
सैनिक 2 : आप कितने अच्छे हैं धन्यवाद छोटे मालिक!
( इतना कहकर चारों सैनिक वहां से चले गए महल में दूर-दूर तक कोई नहीं था दोपहर के 12:00 रही थी सूरज सर पर था इस कारण महल में ज्यादा तर सिपाही और कर्मचारी महल के अंदर ही थे मनोहर ने आस- पास देखा और वहां से गायब हो गया तारा सूरज को उठाने की कोशिश कर रही थी और रोती जा रही थी तभी तारा ने रोते और चिल्लाते हुए कहा । )
तारा : ( रोते और चिल्लाते हुए ) अरे कोई है जरा सी भी इंसानियत बची है तो कम से कम पानी ही पिला दो।
( तभी वहां पर एक बुर्का पहने आदमी आया हैरान की बात थी उसने काले रंग के कपड़े पहने थे जो कि उस जगह पर केवल अमीर लोग ही पहन सकते थे आदमी के हाथ में दो खाने की थाली और दो बोतल पानी था आदमी दोनों के पास आया और खाना और पानी को नीचे रखा तभी तारा ने कहा । )
तारा : ( रोते हुए )आप कौन हैं आप यहां क्यों आए हैं ?
आदमी : तुम्हारे सामने खाने क्योंकि बूखों के सामने खाने में ज्यादा मजा आता है।
( तारा चुप हो गई तभी आदमी ने अपनी बात आगे बढ़ाई )
आदमी : अरे दो प्लेट खाना मैं अकेला तो नहीं खाऊंगा ना सीधी सी बात है तुम दोनों के लिए खाना लाया हूं ।
तारा : सच में !
आदमी : लाया तो तुम लोगों के लिए ही था लेकिन अगर तुम चाहो तो मैं इसे वापस ले जा सकता हूं मुझे कोई दिक्कत नहीं है ।
तारा : नहीं ही नहीं हमें सुबह से कुछ नहीं खाया पिया प्लीज हमारी रसियाँ खोल दो ।
आदमी : माफ करना लेकिन मैं ऐसा तो नहीं कर सकता सिपाही कभी भी लौट सकते हैं इससे पहले की कोई हमें यहां पर देख ले तुम लोग पानी पी लो और खाना खा लो ।
तारा : लेकिन ऐसा नहीं हो सकता भाई बेहोश है उसे इन दरिंदों ने बहुत मारा है ।
आदमी : मैं जानता हूं तुम चिंता मत करो
(आदमी ने पानी की बोतल खोली और थोड़ा पानी सूरज के मुंह पर मारा सूरज को होश आया तभी सूरज ने धीमे स्वर में कहा । )
सूरज : ( धीमे स्वर में ) पानी! पानी !
( आदमी ने पानी की बोतल सूरज के मुंह पर लगा दी सूरज पानी पी रहा था तभी आदमी ने सूरज के मुंह से बोतल हटाई और तारा को पानी पिलाया तभी तारा ने कहा। )
तारा : भाई अब ठीक है ।
सूरज : ( धीमी आवाज में ) मैं ठीक हूं मेरी चिंता मत करो ।
आदमी : ठीक है खाना खा लो हमारे पास कुछ समय है ।
सूरज : (धीमी आवाज में ) तुम्हारा दिमाग खराब है क्या हमारे हाथ बंधे हुए हैं हम खाना कैसे खा सकते हैं ।
आदमी : सच में मेरा दिमाग खराब है जो तुम लोगों को खाना खिलाने आ गया नहीं आना चाहिए था लेकिन अब आ ही गया हूं तो खिला कर ही जाऊंगा मैं यहां पर वेला खड़ा हूं मैं खिला देता हूं ।
( आदमी ने एक-एक कर तारा और सूरज को खाना खिलाना शुरू किया कुछ देर बाद आदमी को सैनिकों के पैरों की आवाज आने लगी तभी आदमी ने कहा। )
आदमी : मैं चलता हूं अगर सैनिकों ने मुझे यहां देख लिया तो गड़बड़ हो जाएगी ।
तारा : कम से कम अपना नाम तो बताते जाओ अगली बार अगर हमें मदद चाहिए हो तो तुमसे ही मांग ले।
( आदमी ने पीछे मोड़ते हुए कहा । )
आदमी : मेरा कोई नाम नहीं है तुम जिस नाम से बुलाना चाहो बुला सकती हो!
( इतना कह कर आदमी वहां से चला गया तभी चारों सैनिक सूरज और तारा के सामने आकर खड़े हो गए तभी सैनिक 2 ने कहा। )
सैनिक 2 : तो गया तुम्हें होश ।
सैनिक 3 : मार खाकर मजा तो बहुत आया होगा ।
सैनिक 1 : लगता नहीं इसका चेहरे के हाफ-भाव से तो पता नहीं लग रहा किसी को अच्छा लगा होगा ।
( तभी इधर-उधर देखते हुए कहा सैनिक 4 ने कहा । )
सैनिक 4 : छोटे मालिक कहां हैं ऐसा तो नहीं इन्होंने छोटे मालिक के साथ कुछ गलत कर दिया है ?
सैनिक 2 : लेकिन यह लोग तो ऊपर से नीचे तक बांधे हुए हैं यह कुछ कैसे कर सकते हैं ?
सैनिक 1 : इन लोगों का कोई भरोसा नहीं कुछ भी कर सकते हैं ये शैतान के यहां से जो आए हैं ।
तारा : हम लोग शैतान के यहां से नहीं आए हैं ।
सैनिक 3 : तुमसे किसी ने पूछा नहीं तुम कहां से आई हो बस इतना बताओ छोटे मालिक कहां है ।
सूरज : अरे हमें कैसे पता होगा कहां है तुम्हारे छोटे मालिक ।
( तभी सैनिक 2 ने तारा का मुंह को पकड़ लिया तो तभी सूरज में गुस्से से उसे सैनिक की ओर देखते हुए कहा। )
सूरज : ( गुस्से में ) छोड़ दे मेरी बहन को तेरी हिम्मत कैसे हुई उसे छूने की दरिंदे मैं तुझे जान से मार दूंगा ।
( तभी सैनिक 3 सूरज के आगे आकर खड़ा हो गया और उसके चेहरे पर एक मुक्का जड़ते हुए कहा। )
सैनिक 3 : इतना प्यार आ रहा है अपनी बहन पर तो बता कहां है छोटे मालिक ?
अब क्या होगा सूरज और तारा के साथ ?
कहां है मनोह क्या सैनिक सूरज और तारा के साथ कुछ गलत करेंगे या फिर वह आदमी आकर उन्हें बचा लेगा ?
लेकिन वह आदमी था कौन कहां से आया था और चाहता क्या था ? सूरज और तारा के साथ था या नहीं उनका दोस्त था यह दुश्मन ?
जानने के लिए पढ़िए" सच्चाई की लड़ाई?
( तभी दूर से मनोहर ने उन्हें रोकते हुए कहा । )
मनोहर : सैनिकों रुको !
( सैनिकों ने मनोहर को दूर महल के छत्ते के नीचे खड़ा पाया छत्ता एक ऐसी जगह थी जहां पर दो कुर्सियां लगी थी और वहां पर धूप भी नहीं आती थी तभी मनोहर सैनिकों के पास गया और कहा।)
मनोहर : सज़ा इन लोगों को मिली है हम लोगों को नहीं जो इनके चक्कर में हम पूरी दोपहर गर्मी में रहे चिंता मत करो मैं वहां बैठकर सब कुछ देख रहा था सब कुछ समझ रहा था यहां पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ जैसे तुम सोच रहे हो।
सैनिक 2 : शुक्र है छोटे मालिक आप ठीक हैं अगर आपको कुछ हो जाता तो ?
मनोहर : मुझे कुछ नहीं हो सकता मैं अपनी सुरक्षा करना बखूबी जानता हूं
सैनिक 1 : जी !
सैनिक 2 : छोटे मालिक आप ख्याल रखना।
( इतना कहकर मनोहर वही छत्ते के नीचे चला गया चारों सैनिक तारा और सूरज के आस - पास घेरा बनाकर खड़े थे शाम बीत गई रात हो गई लेकिन दिक्कत यह थी उनका इलाका ऐसा था जिधर दिन में जितनी गर्मी रात में उतनी ही ठंड उस वक्त वहां खून जमा देने वाली ठंड थी तभी मनोहर ने कहा।)
मनोहर : तुम सब भी यहां आकर बैठ सकते हो वैसे भी काफी समय से खड़े हो।
सैनिक 2 : नहीं छोटे मालिक हम आपके साथ नहीं आ सकते ।
मनोहर : यह मेरा आदेश है यहां आओ।
( सैनिक मनोहर के पास है आए और उन्होंने लड़कियां जलाई रात होने के कारण सब लोग सो चुके थे चारों सैनिक भी थकावट के कारण सो चुके थे लेकिन तारा और सूरज ठंड के मारे कप कपा रहे थे ठंड इतनी बढ़ चुकी थी कि उसमें सांस लेना भी मुश्किल हो रहा था और उस घातक ठंड में बाहर खड़े रहना बहुत बड़ी सजा थी तारा और सूरज ठंड में कुछ देर तक खड़े रहे थोड़ी देर बाद जब चारों सैनिक सो गए ।
तब मनोहर ने कुछ और लड़कियां निकाली और सूरज और तारा की तरफ ले गया सूरज और तारा को लग रहा था कि दोनों अब नहीं बचने वाले मनोहर उनके आसपास आग लगा रहा है जिसमें वह दोनों जलकर मर जाएंगे । लेकिन मनोहर तो उन दोनों की मदद करने के लिए एक छोटी सी आग लगा रहा था मनोहर ने आग लगाई और फिर वहां से जाने लगा तभी तारा ने मनोहर से कहा।)
तारा : आपका बहुत-बहुत धन्यवाद आपने हमारी मदद की ।
सूरज : लेकिन क्यों आपने हमारी मदद क्यों की ?
मनोहर : बस तुम्हें इस तरह तड़पते हुए नहीं देख सकता था इसलिए मैंने तुम्हारी मदद कर दी ।
तारा : तो क्या आपने उस आदमी को आते हुए भी देखा था ?
मनोहर : आदमी कौन सा आदमी ?
सूरज : अरे वही आदमी जिसने काले कपड़े पहने थे ।
मनोहर : शायद तुम भूल गए हो काले कपड़े केवल वही पहन सकता है जिसके पास बहुत पैसा हो और इस गांव में इस महल के लोगों के अलावा और किसी के पास पैसा नहीं लगता है तुम लोगों को गलतफहमी हुई है ।
तारा : गलतफहमी तो नहीं हुई लेकिन हो सकता है कोई बात है जो हमें अभी तक नहीं पता ।
सूरज : कोई नहीं बहुत सारे हमें कई सारे रहस्य नहीं पता ।
मनोहर : उन्हें जानने की कोशिश मत करना क्या पता नही शायद उसकी सजा इस सजा से भी भयंकर और शायद उस वक्त मैं तुम्हारी मदद भी ना कर पाऊं।
सूरज : आपका बहुत-बहुत धन्यवाद लेकिन इंसाफ तो मिलना चाहिए ।
मनोहर : तुम दोनों चले जाओ यहां से अपने गांव में शांति से रहो जिस तरह से यहां पर लोग रह रहे हैं उन्हें रहने दो अपनी जान खतरे में मत डालो ।
सूरज : अपनी जान बचाने के लिए हम लोग इतने सारे लोगों की जिंदगी बर्बाद नहीं कर सकते ।
तारा : बिल्कुल भैया हमें इन सब लोगों को भी बचना होगा ।
मनोहर : अच्छा तो कैसे करोगे ?
सूरज : हमें जो भी करना होगा हम तुम्हें क्यों बताएंगे हमे सब पता है तुम जाकर सबसे पहले अपने बापूजी को सारा सच बता दोगे और हमारा सारा प्लान खत्म कर दोगे ।
तारा : तुमने हमारी मदद की इसके लिए धन्यवाद लेकिन हमें किसी भी तरह यहां से निकलना होगा ।
सूरज : और सबको बचना भी होगा।
मनोहर : (हंसते हुए ) भूल जाओ यहां से निकलना नामुमकिन है आज तक कोई नहीं निकल पाया।
( इतना कहकर मनोहर छत्ते में जाकर बैठ गया सूरज और तारा दोनों बहुत थक गए थे इसलिए दोनों की वहीं खड़े-खड़े सो गए सुबह होते ही सबसे पहले मनोहर ने उठकर वह लड़कियों की जगह साफ की ताकि किसी को पता ना चले कि उसने सूरज और तारा की मदद करने की कोशिश की है सारी लड़कियां हटाकर मनोहर फिर से जाकर छत्ते के नीचे लेट गया बैठ गया कुछ देर बाद चारों सैनिक उठे और पहले की तरह सूरज और तारा के आस- पास घेरा बनाकर खड़े हो गए तभी वहां पर कुशीम और उसकी बहू लीला कुशीम और लीला को देखकर चारों सैनिक ने अपने हाथ आगे किया और झुकते हुए कहा । )
सैनिक : मलिक को हमारा सलाम
कुशीम : तो अभी तक सो रहे हैं यह दोनों !
सैनिक 4 : जी मालिक
कुशीम : तो उठाने का तरीका अपनाओ !
सैनिक 4 : जैसी आपकी आज्ञा मलिक।
( इतना कहकर चारों सैनिक वहां से चले गए तभी सैनिक 3 और 4 अपने हाथों में दो लंबी और पतली पाइप ले आए पीछे से सैनिक 1 और 2 ने पानी चला दिया । पानी सीधा सूरज और तारा के मुंह पर पढ़ रहा था सांस ना ले पाने के कारण दोनो पानी से बचने की कोशिश करते हुए चिल्ला रहे थे सूरज और तारा की चीखें सुनकर मनोहर भी घबरा कर उठ गया और उसके पास आया और कहा )
मनोहर : बापूजी रुकिए ये आप क्या कर रहे हैं रुक जाइए वो लोग मर जायेंगे ।
कुशीम : जीते जी मारना ही तो है शांत रहो !
मनोहर : लेकिन बापूजी !
( इससे पहले मनोहर कुछ कह पाता लीला ने उसे बाजू से पकड़ते हुए उसे पीछे खींचा और कहा। )
लीला : अजब है तुम्हारी लीला जी बापूजी के फैसले पर सवाल कर रहे हो चुप चाप यहां खडे रहो!
( मनोहर आगे जाकर सैनिको को रोकना चाहता था लेकिन लीला ने उसे पकड़ रखा था जिसके कारण मनोहर आगे नहीं बढ़ पा रहा था कुशीम ने ये सब कुछ नहीं देखा था क्योंकि लीला मनोहर को पड़कर लीला से दूर खींच लिया था लगभग अगले 5 मिनट तक मनोहर को लीला ने पकड़ा कहा था तभी कुछ देर बाद लीला ने हाथ का इशारा कर सैनिकों को रोक दिया सैनिक 1 और 2 ने पानी का बहाव बंद किया सैनिक 3 और 4 ने पाइप नीचे फेंक दी सूरज और तारा लंबी लंबी सांस ले रहे थे लीला ने भी मनोहर को छोड़ दिया तभी कुशीम दोनों के बीच जाकर खड़ा हो गया और कहा। )
कुशीम : कैसा लगा स्वागत ?
सूरज : ( हाफते हुए) ये स्वागत था तो ऐसा स्वागत कभी नहीं देखा और ना ही किसी के साथ होना चाहिए ।
( कुशीम ने सूरज का गला पकड़ लिया और कहा। )
कुशीम : तुम्हारी इन्हीं बेवकूफों से भरी बातों की वजह से ही तुम्हें सजा मिली थी भूल गए क्या ?
( सूरज दर्द में तड़प रहा था तभी तारा ने कहा। )
तारा : ऐसा मत कीजिए छोड़ दीजिए भैया को ।
( कुशीम ने सूरज का गला छोड़ और पीछे आते हुए कहा।)
कुशीम : बहुत प्यार है ना तुम्हें अपने भैया से मत करो क्योंकि प्यार कमज़ोरी होता है तुम्हें और कुछ सीखा पाऊं या ना सीखा पाऊं लेकिन यह जरूर सीखा दूंगा कि किसी से प्यार मत करना ।
तारा : प्यार कमजोरी नहीं ताकत होता है प्यार के लिए कुछ भी कर जा सकता है।
कुशीम : वही तो मैंने कहा प्यार में कुछ भी किया जा सकता है अपनी जान भी दी जा सकती है इसलिए तो प्यार कमजोरी होता है ।
तारा : गलतफहमी है आपको ।
कुशीम : गलतफहमियां तो बहुत हुई लेकिन अब होगा तुम्हारे मौत का तांडव पूरी दुनिया देखेगी मलिक के आगे बकवास करने का अंजाम क्या होता है मैं तुम्हें मौत की सजा सुनाता हूं पहले तो मुझे लगा था तुम लोग मौत के लायक नहीं लेकिन बहु के समझने पर समझ आया तुम लोगों को मौत ही मिलनी चाहिए ।
( मनोहर हैरानी से लीला की तरफ देख रहा था तभी लीला ने कुशीम की तरफ आते हुए कहा। )
लीला : अजब है आपकी लीला बापूजी महान है आप आप आपने मेरी बात मान ली ।
कुशीम : तुम्हारा दिमाग इतना अच्छा जो है बहू वरना इस नालायक की तरह तो नहीं मनोहर बापूजी आप ऐसे किसी की भी जान नहीं ले सकते ये गलत है।
कुशीम : यहां का मालिक मैं हूं तुम नहीं मेरी मौत के बाद भी तुम नहीं बन पाओगे इसलिए अपना दिमाग मत चलाओ और यहां पर चुपचाप खड़े रहो।
( तभी कुशीम ने फैसला सुनाते हुए कहा। )
कुशीम : मेरा अगला फैसला है अगले 24 घंटे इनके लिए नर्क के समान हो उसके बाद सभा बुलाई जाए उसमें इन दोनों में से एक की मौत होगी।
मनोहर ,तारा ,सूरज : ( धीमी आवाज में ) क्या ?
( चारों सैनिक ने अपना सर झुकाया और कहा। )
सैनिक : जैसी आपकी आज्ञा मालिक हम अभी जाकर पूरे गांव में यह बात फैला देते हैं ।
( इतना कहकर सैनिक 3 और 4 वहां से चले गए और सैनिक 1 और 2 वहीं खड़े रहे । )
लीला : अजब है तुम्हारी लीला सैनी को सैनिकों तुमने सुना नहीं बापूजी ने क्या कहा अगले 24 घंटे इन लोगों के लिए नर्क होंगे इस तरह बंधे रहने से इन्हें नर्क नहीं दिखेगा इन्हें खोलो ।
कुशीम : और रक्सा मैदान में ले आओ।
( कुशीम के में से रक्सा मैदान दोनों सैनिक और मनोहर की रू कहां गई तभी मनोहर ने कहा। )
मनोहर : बापू जी इन लोगों को ऐसी सजा देनी जरूरी है क्या ?
कुशीम : मैं तुमसे पूछा नहीं तुम्हें बताया गया है सैनिकों अगले 5 मिनट में वहां मिलो मनोहर तुम्हारी जिम्मेदारी है इन लोगों को सही सलामत वहां पहुंचने की वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा ।
( इतना कह कर कुशीम और लीला वहां से चले गए तभी सैनिकों ने सूरज और तारा की रस्सी एक-एक कर खोली और उनके हाथ बंदे और दोनों की रस्सी एक एक सैनिक ने पड़ा रखी थी मनोहर सिर झुकाए वहीं खड़ा था तारा तब से मनोहर को ही देख रही थी उसने मन में सोचा।)
तारा : ( मन में ) इसने रात को हमारे लिए आग लगाई वह काले कपड़े पहने आदमी आया और इसने उसे नजर अंदाज किया और यहां पर जली हुई लकड़ियों की राख भी नहीं दिख रही और अभी यह अपने पिता से हमारे लिए लड़ रहा था क्यों क्या चाहता है यह यह है कौन ?
( तारा इतना सोच ही रही थी कि तभी सैनिक 2ने तारा की रस्सी खींची और उससे कहा। )
सैनिक 2 : अपने ख्यालों में खोई रहोगी तो दुगनी सजा मिलेगी चलो!
( इतना कहकर सब वहां से चलने लगे तारा और सूरज सबसे आगे दोनों सैनिक पीछे और मनोहर सबसे पीछे तभी वह लोग महल के दरवाज़े तक ही पहुंचे थे कि तभी कुशीम और लीला वापस आ गए कुशीम ने कहा।)
कुशीम : इस तरह लेकर जाओगे इन्हें अब तुम्हें ले जाने का सिलिका भी बताना होगा ।
सैनिक 1 और 2 : माफी मलिक कृपया कर बताएं किस तरह ले जाना है।
लीला : अजब है तुम्हारी लीला अब यह भी बापूजी ही बताएंगे !
कुशीम : कोई बात नहीं बहू पहली बार है बता देते हैं ।
( कुशीम ने दो बार तालियां बजाई तभी वहां पर चार सैनिक आए और दोनों के पांव में दो बड़े-बड़े गोले बांधकर चले गए तभी कुशीम ने कहा। )
कुशीम : 50 किलो का एक गोला इन्हें इन दो गोलों के साथ मैदान में लेकर आओ ।
सैनिक 1 और 2 : जैसी आपकी आज्ञा मालिक ।
( तभी कुशीम ने एक बार फिर से दो बार तालियां बजाई इस बार दो सुंदर औरतें जिन्होंने अपना सर झुकाया हुआ था वह आई और सैनिक 1 और 2 के आगे एक थाल में दो चाबुक लेकर आई तभी कुशीम ने कहा। )
कुशीम : उनके कदम रुकने पर यह चाबुक चलना चाहिए ध्यान रहे थोड़ी सी भी गलती और उनकी हिस्से की सजा तुम्हें मिलेगी।
( सैनिक 1 और 2 घबरा गए उन्होंने डरते हुए चाबुक लिया और महल से बाहर निकलने लगे मनोहर कुछ भी नहीं कर सकता था वह चुपचाप अपना सर झुकाए महल से बाहर निकल गया महल और रक्स मौदान 5 किलोमीटर की दूरी पर थे किसी भी इंसान के लिए 5 किलोमीटर बिना थके चलना नामुमकिन था उस वक्त गांव में कोई भी मौजूद नहीं था सब लोग महल में काम करने गए हुए थे तारा और सूरज के पांव में तो 50 50 किलो के गोले भी बंधे हुई थी जायज़ था कुछ दूर जाने पर दोनों थक जाते और वैसा ही हुआ लगभग 1 किलोमीटर भी नहीं चले थे और दोनों की सांस फूलने लगी उनके कदम रुकने लगे तभी सैनिकों को कुशीम कि वह बात याद आ गई जब कुशीम ने कहा कि अगर जरा सी भी दया दिखाई तो सूरज और तारा के हिस्से की सजा उन्हें मिलेगी इतना सोच दोनों सैनिकों की रुह कांप गई और उन दोनों ने अपनी आंखें बंद कर सूरज और तारा को चाबुक मारने शुरू किए सूरज और तारा की चीखें निकल रही थी वहीं दूसरी तरफ मनोहर की रूह कांप रही थी उससे सूरज और तारा का दुख देखा नहीं जा रहा था लेकिन सैनिकों के हाथ रख नहीं रहे थे लगभग अगले 1 किलोमीटर तक सैनिकों ने उन दोनों को चाबुक मारते हुए लेकर गए हर एक चीज की एक हद होती है रास्ते में ही तारा थककर अपने दोनों घुटनों के बल बैठ गई और चिल्लाते हुए कहा। )
तारा : ( चिल्लाते हुए) बस अब मुझसे और नहीं होगा।
( तारा के मुंह से यह सुन सैनिक 2 ने तारा के बालों से पढ़ते हुए उसे खड़ा किया और कहा। )
सैनिक 2 : नहीं होने का सवाल ही पैदा नहीं होता सजा मिली है करना तो पड़ेगा।
( सैनिक ने तारा के बाल छोड़ें और उसे चाबुक मारने शुरू किए तारा ने हिम्मत करते हुए अपने कदम बढ़ाए सूरज को भी यह सब देख अच्छा नहीं लग रहा था लेकिन तभी कुछ आगे जाने पर तारा बेहोश हो गई सूरज ने तारा की और जाने की कोशिश की तब सैनिक एक ने उसे पढ़ते हुए कहा ।)
सैनिक 1 : आगे बढ़ो तुम्हें उसके पीछे जाने की जरूरत नहीं ।
सूरज : लेकिन वह बहन है मेरी ।
सैनिक 1 : चाहे कुछ भी हो चलो
( सूरज को सैनिक धक्के से आगे ले गया वहीं तारा बेहोशी की हालत में पानी मांग रही थी तभी सैनिक 2 ने उसके पेट में पांव मारते हुए कहा।)
सैनिक 2 : लड़की उठ हमारे पास समय नहीं है जल्दी कर वरना मेरा चाबुक बोलेगा।
( तारा बेहोश थी तभी सैनिक ने अपनी आंखें बंद की और चाबुक मारने शुरू किया तारा दर्द से तड़प रही थी सूरज भी कुछ नहीं कर पा रहा था वह बस अपनी आंखों में आंसू लिए आगे बढ़ता जा रहा था 2 से 4 चाबुक पढ़ने पर सूरज ने पीछे मुड़कर देखा
अब क्या करेगा सूरज ?
क्या तड़पने देगा अपनी बहन को इसी तरह या फिर बचा लेगा ?
लेकिन कैसे सूरज को तो अपनी जगह से इजाजत ही नहीं थी ?
क्या मनोहर वहीं पर चुपचाप खड़ा सब कुछ देखता रहेगा ?
जानने के लिए पढ़िए " सच्चाई की लड़ाई । "
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