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Spring

poems

^^^Spring^^^

With the orange colour of the Sun

May every morning be a new light

With the flowers and leaves

May the colours of nature be pure

With these winds

May the kite grow here

With the chirping of the birds and the humming of the stars

May the king of spring sing a new song

By putting it in the new leaves

It feels like the tree is born again

Bringing the colours of some new festivals

May spring be full of charming joy.

^^^ He who knows all......^^^

He is like the rays of the sun

He is a fierce and unique person

He has a thousand arms to make birth and death

He is ready to test justice

He has a spear and an axe

For the sake of saving the devotees

He is Narasimha, drunk on blood

He was the best among men

He has the words of Raghunandan

To ignite the fire of religion

Dwarkadish has come, son of Nanda

To show the path of true salvation

To erase the crime of the criminal

When will you come to meet me

I did not get birth from you

But I want death from you

Ready to offer myself to you

Taking my shadow from my body too

^^^Something special ^^^

Sometimes something special gets lost

Even when many people are with us

The heart becomes lost

Sometimes it falls asleep while waiting for someone

I don't know why it gets upset when someone is not with us

Sometimes It don't even realize it

Sometimes It don't want to accept it

Yes, sometimes this happens

Something close to the heart gets lost

^^^Mother of all ^^^

Mother, your body was milky white

Eyes were painted with kaajal

And in those very lotus-like eyes

Today the flame of anger is burning

Your hairs were like dark clouds

They are also decorated in the flowers

And the hands in which I had seen mehndi

Today they are painted with the blood of sinners

The face on which your affection was present

Is filled with blind anger

And the feet which I had once seen in the flowers

Today they are surrounded by the thrones of the battlefield

Your form back then was also captivating

It was as if nature was decorated in spring

And there is something unique in this form too

Today you were created in the same nature's destruction

I bowed down to you even then

When you were the idol of love

And even now my head is bowed down

When today you stand as the end of all

^^^The pleasent fear^^^

Who is he who becomes a fear every day

On hearing whose footsteps

My heart gets nervous

On hearing whose soft breaths

Every hair on my body shivers

On seeing whose shadow

My heart becomes restless

Who is he who keeps me awake every night

And puts me to sleep

Who is he who sometimes seems like one of mine

And sometimes becomes a stranger

Why does he sometimes wipe my tears

And sometimes makes me cry

Why does he sometimes caress my head

Why does he sometimes make me tremble

Who is he

my dear doll

^^^मेरी प्यारी गुड़िया^^^

सुन ओ मेरी प्यारी गुड़िया

तुझे एक कहानी सुनाऊं मैं

पहले लगती थी आफत की पुड़िया

अब तेरे बारे में सोच मुस्काऊ मैं

सुन ओ मेरी प्यारी गुड़िया

तुझे एक कहानी सुनाऊं मैं

तेरा दिल तो जैसे है कांच की चूड़ियां

कही दर्द इसे न दे जाऊ मैं

सुन ओ मेरी प्यारी गुड़िया

तुझे एक कहानी सुनाऊं मैं

तू तो जैसे है रोशनी की लड़ियां

तुझे पा कही खुद ही न खो जाऊ मैं

सुन ओ मेरी प्यारी गुड़िया

तुझे एक कहानी सुनाऊं मैं

मेरे बिना चांद है तू, सबसे बढ़िया

कही तुझपे दाग ना बन जाऊं मैं

सुन ओ मेरी प्यारी गुड़िया

तुझे एक कहानी सुनाऊं मैं

बिखरी है आपने रिश्तों की कड़िया

पर मन को कैसे समझाऊं मैं

सुन ओ मेरी प्यारी गुड़िया

तुझे एक कहानी सुनाऊं मैं

^^^पार्वती^^^

श्याम बदन ओ मां तेरा

आंखे काजल में रंगी हुई

और उन्ही कमल से नयनों में

आज है क्रोध की ज्वाला जली हुई

थे केश काली घटाओं से तेरे

वो भी पुस्पो में सजे हुए

और जिन हाथों में देखी थी मेंहदी

आज वो पापियों के रक्त से रंगे हुए

थी जिस मुख पे ममता तेरे

वो है अंध क्रोध से भरे हुए

और जो पद कभी देखे थे पुस्पो में

आज वे है रणभूमि के मत में घिरे हुए

था रूप वो भी मनमोहक तेरा

वो थी मानो प्रकृति बसंत में सजी हुई

और इस रूप में भी कुछ बात निराली है

आज तू उसी प्रकृति के प्रलय में रची हुई

थी मैं नतमस्तक तब भी तेरे

जब तू थी प्रेम मूरत बनी हुई

और अब भी मस्तक है झुका मेरा जब

आज तू अंत के रूप में खड़ी हुई

^^^पवन^^^

है साथ चलीं जो पवन मेरे

उससे पूछो क्यों जीता मैं

यदि होता शेष अन्य मार्ग कोई

तो जहर से घूट क्यों पीता मैं

पूछो कोई उस आकाश से भी

क्यों हर दर पर ठोकर खाता था मैं

यदि होता सहारा एक अंश का भी

तो हर बार निराशा से क्यों थक जाता था मैं

पूछो जरा इस धरती से

हर परीक्षा कैसे पार करता था मैं

चलते रहने और न कही ठहरने से

हर पग कैसे लेता था मैं

पूछो उन नदीयों झरनो से

कैसे हर दिन जीता था मैं

इस मुक्कदर तक पहुंचने को

कितनो से हरा कितनो से जीता था मैं

^^^तुम कौन हो^^^

मेरी अंधेरी सी जिंदगी में ,

पल भर का नूर हो तुम,

बहुत चाहा आपने पास रख लू ,

पर मेरी पहुंच से काफी दूर हो तुम,

उस काले आसमान की रोशनी हो,

इस कीचड़ से निकला फूल हो तुम,

सुबह की जैसे रागिनी हो,

जैसे गीतों का उसूल हो तुम,

मेरे बचपन के खूबसूरत हिस्से में

मेरी ही परछाई हो,

इसलिए लगता है पल भर का ही सही

जिंदगी का सुकून हो तुम।

^^^_शिव_^^^

वो रूप तुम्हारा बिखरा हुआ सा

मैने आंखों में अपनी समेत लिया

जोगन सी बनके तेरी हुई मै

और तुझमें ही रास्ता देख लिया ।

हजार सीरतो वाले तुममें

मैने कोई अपना सा देख लिया

जोगी जो मन ऐसा हुआ कि

तुम्हारे लिए ही जीना सिख लिया।

मदहोशी सी लगती है बाते

जो तुझपे लिखा देख लिया

महादेव मेरे भोले शंभू

कैसे कहूं के तुझमें ही है अब सारा जीवन देख लिया।

notice

I will be leaving this account for a particular time so any one who is reading this non sense can find another one so that you can continue with poems else where

Let me write something for you if you are reading this ~

दुनिया मतलबियो से भरी है ,

बस कोई काम कोई ज्यादा होता है ।

हा, कुछ परिभाषा इसी दुनिया ने अलग की है,

पर यहा कोई नही सादा होता है।

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