NovelToon NovelToon

गीता का सार

कोई भी परिपूर्ण नहीं है.....by Lord Krishna

श्रीमद्भागवत गीता न केवल धर्म का उपदेश देती है, बल्कि जीवन जीने की कला भी सिखाती है। महाभारत के युद्ध के पहले अर्जुन और श्रीकृष्ण के संवाद लोगों के लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं। गीता के उपदेशों पर चलकर न केवल हम स्वयं का, बल्कि समाज का कल्याण भी कर सकते हैं। ... तब उनके सारथी बने श्रीकृष्ण उन्हें उपदेश देते हैं!

Shrimad Bhagwat Geeta not only preaches Dharma, but also teaches the art of living. The dialogues of Arjuna and Shri Krishna before the war of Mahabharata are a source of inspiration for the people. By following the teachings of Gita, not only we can do welfare of ourselves but also the society. ... Then Sri Krishna, who became his charioteer, preaches to him!

...

...

...जगत में प्रत्येक व्यक्ति को किसी न किसी प्रकार की निर्बलता अवश्य होती हैं। जैसे कोई बहुत तेजी से दौड़ नहीं पाता तो कोई अधिक भार नहीं उठा पाता, कोई असाध्य रोग से पीड़ित रहता है तो कोई पढ़े हुए पाठो को स्मरण नहीं रख पाता। ऐसे अनेकों उदाहरण और भी हैं। क्या आप किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हैं, जिसे सब कुछ प्राप्त हों? ...

...और हम जीवन की उस एक निर्बलता को जीवन का केंद्र मानकर बैठते हैं! इसी कारणवश हृदय में दुःख और असंतोष रहता है सदा। ...

...निर्बलता मनुष्य को जन्म से अथवा संजोग से प्राप्त होती है। किंतु उस निर्बलता को मनुष्य का मन, अपनी मर्यादा बना लेता हैं! किंतु कुछ व्यक्ति ऐसे भी होते हैं जो अपने पुरुषार्थ और श्रम से उस निर्बलता को पराजित कर देते हैं!...

...क्या भेद हैं उनमें और अन्य लोगों में? ...

...सरल सा उत्तर हैं इसका! जो व्यक्ति निर्बलता से पराजित नहीं होता, जो पुरुषार्थ करने का साहस रखता हैं हृदय में, वहीं निर्बलता को पार कर जाता हैं!...

...अर्थात निर्बलता अवश्य ईश्वर देता है, पर मर्यादा मनुष्य का मन ही निर्मित करता हैं!!!...

स्वयं विचार कीजिए....!

No one is perfect...... by Lord Krishna

...Everyone in the world has some kind of weakness. For example, if someone is not able to run very fast, then someone is not able to lift much weight, if someone is suffering from incurable disease, then someone is unable to remember the lessons read. There are many more such examples. Do you know someone who has everything? And we sit on that one weakness of life as the center of life! For this reason there is always sorrow and discontent in the heart. Weakness is acquired by a person by birth or by association. But the human mind makes that weakness as its limit. But there are some people who, with their effort and hard work, defeat that weakness! What is the difference between them and other people? There is a simple answer to this! The person who is not defeated by weakness, who has the courage to make effort in the heart, crosses the weakness there! That is, weakness is definitely given by God, but dignity creates the mind of man....

Think for yourself....!

..."All of you respected readers are requested to give your suggestions and comments."...

वर्तमान में रहना शुरू करें.....by Lord Krishna

गीता में लिखा है क्रोध से भ्रम पैदा होता है, भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती है। जब बुद्धि व्यग्र होती है तब तर्क नष्ट हो जाते हैं। जब तर्क नष्ट होते हैें तो व्यक्ति का पतन शुरू हो जाता है। जो ज्ञानी व्यक्ति ज्ञान और कर्म को एक रूप में देखता है, उसी का नजरिया सही है।

It is written in the Gita that anger creates confusion, confusion disturbs the intellect. When the intellect is disturbed, then logic is destroyed. When arguments are destroyed, the downfall of a person begins. The wise man who sees knowledge and action as one, his point of view is correct.

भविष्य का दूसरा नाम है संघर्ष…

हृदय में आज इच्छा होती है और यदि पूर्ण नहीं हो पाती

तो हृदय भविष्य की योजना बनाता है

भविष्य में इच्छा पूर्ण होगी ऐसी कल्पना करता रहता है।

किंतु जीवन…

जीवन न तो भविष्य में है और न अतीत में…

जीवन तो इस क्षण का नाम हैं।

अर्थात इस क्षण का अनुभव ही जीवन का अनुभव हैं।

पर हम ये जानते हुये भी इतना सा सत्य समझ नहीं पाते।

या तो हम बीते हुये समय के स्मरणों (दु:ख के पल) को घेर कर बैठे रहते हैं।

या फिर आने वाले समय के लिए हम योजनायें बनाते रहते हैं।

और जीवन? ?

जीवन बीत जाता है। एक सत्य यदि हम हृदय में उतार लें……

कि न हम भविष्य देख सकते हैं और न ही भविष्य निर्मित कर सकते ।

हम तो केवल धैर्य और साहस के साथ भविष्य को आलिंगन दे सकते हैं।

स्वागत कर सकते हैं भविष्य का..

तो क्या जीवन का हर पल जीवन से नहीं भर जायेगा???

स्वयं विचार कीजिए!

Start living in the present.....by Lord Krishna

The second name of future is struggle..... the heart has a desire today and if it is not fulfilled then the heart plans for the future, keeps imagining that the desire will be fulfilled in the future.

But life...

Life is neither in the future nor in the past... Life is just the name of the moment. That is, the experience of this moment is the experience of life.

But even after knowing this, we do not understand such a truth. Either we sit surrounded by the memories of the past (moments of sorrow). Or we keep making plans for the future!

and life? ?

Life passes. one truth

If we take it to heart!

That we can neither see the future nor create the future.

We can only embrace the future with patience and courage. Welcome to the future..

So will not every moment of life be filled with life???

Think for yourself!

दुनिया में बहुत से धार्मिक किताबें हैं जो धर्म के मार्ग पर ले जाने की प्रेरणा देती हैं परंतु भागवत गीता एक ऐसा किताब है सिर्फ धर्म ही नही बल्कि अपने मन, शरीर, बुद्धि इन सभी को नियंत्रण करने के लिए शिक्षा प्राप्त होती हैं । भागवत गीता में हमें वह शिक्षा मिलती हैं जहां अन्याय के विरुद्ध आप स्वयं लड़ सकते है ।

There are many religious books in the world which give inspiration to take on the path of dharma but Bhagwat Geeta is such a book, not only religion but one gets education to control all these mind, body, intellect. In Bhagwat Geeta we get that teaching where you yourself can fight against injustice.

कुछ भी कैसे सीखें.....by Lord Krishna

ज्ञान प्राप्ति सदा ही समर्पण से होती है... ये हम सब जानते हैं। 

किन्तु समर्पण का वास्तविक महत्व क्या है???

क्या हमने कभी विचार किया???

मनुष्य का मन सदा ही ज्ञान प्राप्ति में विभिन्न बाधाओं को उत्पन्न करता है। जैसे... कभी किसी अन्य विद्यार्थी से ईर्ष्या हो जाती है, तो कभी - कभी पढ़ाये हुए पाठों पर सन्देह जन्मता है, और कभी गुरु द्वारा दिया गया दण्ड मन को अहंकार से भर देता है।

विचार कीजिए... क्या ऐसा नहीं होता???

न जाने कैसे - कैसे विचार मन को भटकाते हैं, और मन की इसी अयोग्य स्थिति के कारण, हम ज्ञान प्राप्त नहीं कर पाते... मन की योग्य स्थिति केवल समर्पण से निर्मित होती है। समर्पण मनुष्य के अहंकार का नाश करता है। ईर्ष्या, महत्वकांशा आदि भावनाओं को दूर कर... ह्रदय को शान्त और मन को एकाग्र करता है।

वास्तव में ईश्वर की सृष्टि में... न ज्ञान की मर्यादा है और न ज्ञानियों की...

गुरु दत्तात्रेय ने तो गाय और समस्त प्रकृति से भी ज्ञान प्राप्त कर लिया था।

अर्थात विषय ब्रह्म ज्ञान का हो या जीवन के ज्ञान का या गुरुकुल में प्राप्त होने वाले ज्ञान का... उस ज्ञान की प्राप्ति के लिए गुरु से अधिक महत्व है, उस गुरु के प्रति हमारा समर्पण...

क्या यह सत्य नहीं....?

स्वंय विचार कीजिए....!

.जय श्री कृष्ण🙏🙏

How to learn everything.....by Lord Krishna

Knowledge is always attained through surrender... We all know this.

But what is the real importance of surrender???

Have we ever thought???

The human mind always creates various obstacles in the attainment of knowledge. Like...sometimes one gets jealous of another student, sometimes doubts arise about the lessons taught, and sometimes the punishment given by the guru fills the mind with arrogance.

Think... isn't it???

Don't know how many thoughts distract the mind, and because of this unqualified state of mind, we are not able to attain knowledge... A worthy state of mind is created only by surrender. Surrender destroys the ego of man. Removes the feelings of jealousy, ambition etc... Calms the heart and concentrates the mind.

In fact, in the creation of God…

Guru Dattatreya had acquired knowledge from the cow and all the nature.

That is, whether the subject is of knowledge of Brahma or knowledge of life or knowledge to be obtained in Gurukul... For attaining that knowledge, our dedication to that Guru is more important than the Guru.

Isn't this true....?

Think for yourself!!!!

Jay Shri Krishna 🙏🙏

पूर्ण श्लोक

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥4-7॥

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।

धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥4-8॥

इस श्लोक का अर्थ

मैं अवतार लेता हूं. मैं प्रकट होता हूं. जब जब धर्म की हानि होती है, तब तब मैं आता हूं. जब जब अधर्म बढ़ता है तब तब मैं साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूं, सज्जन लोगों की रक्षा के लिए मै आता हूं,  दुष्टों के विनाश करने के लिए मैं आता हूं, धर्म की स्थापना के लिए में आता हूं और युग युग में जन्म लेता हूं.

श्लोक -शब्दार्थ

इस श्लोक को आसानी से समझने के लिए यहां पर श्लोक के प्रत्येक शब्द के शब्दार्थ दिए जा रहे हैं. इसे ऐसे समझें-

यदा यदा : जब-जब

हि: वास्तव में

धर्मस्य: धर्म की

ग्लानि:  हानि

भवति: होती है

भारत: हे भारत

अभ्युत्थानम्: वृद्धि

अधर्मस्य: अधर्म की

तदा: तब तब

आत्मानं: अपने रूप को रचता हूं

सृजामि: लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूँ

अहम्: मैं

परित्राणाय: साधु पुरुषों का

साधूनां: उद्धार करने के लिए

विनाशाय: विनाश करने के लिए

च: और

दुष्कृताम्: पापकर्म करने वालों का

धर्मसंस्थापन अर्थाय: धर्मकी अच्छी तरह से स्थापना करने के लिए

सम्भवामि: प्रकट हुआ करता हूं

युगे युगे: युग-युग में

Srimad Bhagwat Geeta: श्रीमद्भागवत गीता का यह श्लोक जीवन के सार और सत्य को बताता है. निराशा के घने बादलों के बीच ज्ञान की एक रोशनी की तरह है यह श्लोक.  यह श्लोक श्रीमद्भागवत गीता के प्रमुख श्लोकों में से एक है. यह श्लोक श्रीमद्भागवत गीता के अध्याय 4 का श्लोक 7 और 8 है।

Download MangaToon APP on App Store and Google Play

novel PDF download
NovelToon
Step Into A Different WORLD!
Download MangaToon APP on App Store and Google Play