Mafia little innocent bride chapter 2

सुबह का सूरज उस दिन कुछ अजीब था।

मानो उसकी किरणें भी डर कर ज़मीन पर उतर रही हों।

मंदिर के बाहर वही पुरानी काली गाड़ी फिर से खड़ी थी,

और आर्या — अब रुद्र रावत की पत्नी — सफेद साड़ी में चुपचाप खड़ी थी।

उसकी मांग में सिंदूर था, लेकिन वह स्याही जैसी भारी लग रही थी।

न कोई मंगल गीत, न कोई बधाई।

बस हवा में सन्नाटा और एक आदमी की ठंडी नज़र।

रुद्र बिना कुछ कहे गाड़ी का दरवाज़ा खोलता है,

“बैठो।”

उसकी आवाज़ में कोई ग़ुस्सा नहीं था,

लेकिन उसमें वो आदेश छिपा था जो किसी को झुकाने के लिए काफी था।

आर्या ने पल भर को उसकी आँखों में देखा —

वहाँ कोई कोमलता नहीं थी, बस एक अनकही ज़िम्मेदारी।

वह गाड़ी में बैठ गई।

 

शहर से कुछ किलोमीटर दूर,

रुद्र का बंगला मानो किसी दूसरे संसार का हिस्सा था —

उँची दीवारें, सशस्त्र गार्ड, चारों तरफ़ कैमरे,

और अंदर एक ऐसी शांति, जो डर से पैदा होती है।

गाड़ी जैसे ही मुख्य गेट से अंदर गई,

आर्या ने अपने हाथ कसकर जोड़े —

उसे लगा, वो किसी महल में नहीं, एक किले में दाखिल हो रही है,

जहाँ हर खिड़की के पीछे एक रहस्य है।

दरवाज़ा खुलते ही उसके सामने एक लंबा हॉल था,

दीवारों पर पुराने चित्र,

झूमरों से गिरती सुनहरी रोशनी,

और बीच में खड़ा रुद्र —

जो अब किसी राजा की तरह नहीं,

बल्कि किसी कैदी के मालिक की तरह लग रहा था।

“यह तुम्हारा घर है अब,”

उसने धीमे से कहा।

“लेकिन यहाँ कुछ नियम हैं —

मेरी बातों से बहस नहीं,

बाहर जाने की इजाज़त नहीं,

और सबसे ज़रूरी — किसी पर भरोसा नहीं।”

आर्या की आँखों में आँसू आ गए।

“क्या मैं अब भी आपकी सुरक्षा में हूँ या आपकी कैद में?”

रुद्र कुछ पल तक उसे देखता रहा,

फिर धीरे से बोला,

“दोनों में फर्क बस नाम का है, आर्या।

कभी-कभी बचाने के लिए भी कैद करनी पड़ती है।”

वह मुड़ गया —

पर जाते-जाते उसकी नज़र आर्या की आँखों पर अटक गई,

जैसे उनमें कुछ ऐसा दिखा जो उसके अंदर के पत्थर को भी दरकाने लगा।

 

रात ढल चुकी थी।

आर्या को एक बड़ा कमरा दिया गया था,

पर उस कमरे की हर दीवार उसे देखने वाली लग रही थी।

एक खिड़की से बाहर गार्ड्स की परछाइयाँ दिख रही थीं।

वह धीरे-धीरे कमरे में टहलती रही,

फिर बिस्तर के पास रखी मेज़ पर एक फ्रेम देखा —

उसमें उसके भाई आर्यन की तस्वीर थी।

आर्या की आँखें भर आईं।

वह तस्वीर को सीने से लगाकर बोली,

“भाई… आपने उसे क्यों चुना…

वो तो डरावना है… खामोश है… जैसे कोई जख़्म हो जो बोलता नहीं…”

तभी पीछे से एक आवाज़ आई,

“क्योंकि मैं वही ज़ख़्म हूँ… जिसे तेरे भाई ने अपनी जान से सींचा है।”

आर्या मुड़ी —

रुद्र दरवाज़े के पास खड़ा था।

उसकी आँखों में थकान थी, और हाथ में एक पुराना लॉकेट।

“यह तुम्हारे भाई का था,”

उसने कहा और लॉकेट आर्या की ओर बढ़ाया।

“वो हमेशा तेरी तस्वीर अपने पास रखता था।

मुझे पता है वो तुझसे कितना प्यार करता था।”

आर्या ने काँपते हुए हाथों से लॉकेट लिया,

“और आपने उसका बदला लिया?”

रुद्र ने गहरी साँस ली,

“अभी नहीं… लेकिन लूँगा।

जो लोग उसे मारकर गए हैं,

उनके नाम मैंने दिल की दीवार पर खुद लिए हैं।

अब वो एक-एक कर मिटेंगे।”

आर्या ने धीरे से कहा,

“लेकिन मैं नहीं चाहती किसी की मौत मेरे नाम पर हो…”

रुद्र की नज़र उस पर अटक गई,

“अब तेरे नाम पर जो होगा, वही दुनिया देखेगी —

क्योंकि अब तू रुद्र रावत की बीवी है।”

उसकी आवाज़ में वो हुक्म था जो किसी वादे से ज़्यादा भारी था।

आर्या चुप रही —

पर उसके भीतर कुछ बदलने लगा था।

वो अब डर नहीं रही थी,

बल्कि उस डर के पीछे छिपे आदमी को समझने की कोशिश कर रही थी।

 

रात के सन्नाटे में रुद्र अपने स्टडी रूम में बैठा था,

सामने आर्यन की फाइल खुली थी,

उसमें हर उस इंसान का नाम था जिसने उसकी मौत में हाथ दिया था।

पर फाइल के कोने में लगी एक तस्वीर पर उसकी नज़र रुक गई —

आर्या की।

वो तस्वीर देखकर उसके होंठों पर एक अनजानी मुस्कान आई।

“तेरे भाई का वादा था आर्या…

पर अब ये वादा… मेरे दिल का बन गया है।”

 

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