बाइबल के प्रासंगिक पद
"देख, परमेश्वर का डेरा मनुष्यों के बीच में है। वह उनके साथ डेरा करेगा, और वे उसके लोग होंगे, और परमेश्वर आप उनके साथ रहेगा और उनका परमेश्वर होगा। वह उनकी आँखों से सब आँसू पोंछ डालेगा; और इसके बाद मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी; पहली बातें जाती रहीं" (प्रकाशितवाक्य 21:3-4)।
"जिसके कान हों वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है। जो जय पाए, मैं उसे उस जीवन के पेड़ में से जो परमेश्वर के स्वर्गलोक में है, फल खाने को दूँगा" (प्रकाशितवाक्य 2:7)।
"धन्य वे हैं, जो अपने वस्त्र धो लेते हैं, क्योंकि उन्हें जीवन के वृक्ष के पास आने का अधिकार मिलेगा, और वे फाटकों से होकर नगर में प्रवेश करेंगे" (प्रकाशितवाक्य 22:14)।
"ये वे हैं, जो उस महाक्लेश में से निकलकर आए हैं; इन्होंने अपने-अपने वस्त्र मेम्ने के लहू में धोकर श्वेत किए हैं। इसी कारण वे परमेश्वर के सिंहासन के सामने हैं, और उसके मन्दिर में दिन-रात उसकी सेवा करते हैं, और जो सिंहासन पर बैठा है, वह उनके ऊपर अपना तम्बू तानेगा। वे फिर भूखे और प्यासे न होंगे; और न उन पर धूप, न कोई तपन पड़ेगी। क्योंकि मेम्ना जो सिंहासन के बीच में है उनकी रखवाली करेगा, और उन्हें जीवन रूपी जल के सोतों के पास ले जाया करेगा; और परमेश्वर उनकी आँखों से सब आँसू पोंछ डालेगा" (प्रकाशितवाक्य 7:14-17)।
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन
"आदम और हव्वा का सृजन मूल रूप से इसलिए किया गया था ताकि मनुष्य पृथ्वी की सभी चीजों की देखभाल कर सके; आरंभ में मनुष्य सभी चीजों का स्वामी था। मनुष्य के सृजन में यहोवा का अभिप्राय मनुष्य को पृथ्वी पर अस्तित्व बनाए रखने की और इसके ऊपर की सभी चीजों की देखभाल भी करने की अनुमति भी देना था, क्योंकि तब मनुष्य आरंभ में भ्रष्ट नहीं किया गया था, और पाप करने में असमर्थ था। हालांकि मनुष्य के भ्रष्ट हो जाने के बाद वह चीज़ो का देखभालकर्ता नहीं रहा। और परमेश्वर द्वारा मनुष्य के इस प्रकार्य को, मनुष्य के मूल कारण को पुनः-स्थापित करना और मूल आज्ञाकारिता को पुर्नस्थापित करना है; विश्राम में मानवजाति उस परिणाम का सटीक चित्र होगी जो उसका उद्धार का कार्य प्राप्त करने की आशा रखता है। यद्यपि यह अदन के बगीचे के जीवन के समान अब और नहीं होगा, किन्तु उसका मूलतत्व वही होगा; मानवजाति केवल अपनी आरंभिक बिना भ्रष्ट हुई अस्मिता में अब और नहीं होगी, बल्कि ऐसी मानवजाति होगी जिसे भ्रष्ट किया गया था और फिर उसने उद्धार प्राप्त कर लिया।...यद्यपि मनुष्य का भौतिक अस्तित्व रहता है, किंतु उसके इस जीवन के मूलतत्व और भ्रष्ट मानवजाति के मूलतत्व में महत्त्वपूर्ण अंतर होते हैं। उसके अस्तित्व का अर्थ और भ्रष्ट मानवजाति के अस्तित्व का अर्थ भी भिन्न होता है। यद्यपि यह एक नए प्रकार के व्यक्ति का जीवन नहीं है, किंतु यह कहा जा सकता है कि यह उस मानवजाति का जीवन है जो उद्धार प्राप्त कर चुकी है और ऐसा जीवन है जिसने मानवता और विवेक को पुनःप्राप्त कर लिया है। ये वे लोग हैं जो कभी परमेश्वर के प्रति अवज्ञाकारी थे, और जिन्हें कभी परमेश्वर के द्वारा जीता गया था और फिर उसके द्वारा बचाया गया था; ये वे लोग हैं जिन्होंने परमेश्वर को लज्जित किया और बाद में उसकी गवाही दी। उसकी परीक्षा से गुज़रकर बचे रहने के बाद, उनका अस्तित्व ही सबसे अधिक अर्थपूर्ण अस्तित्व है; ये वे लोग हैं जिन्होंने शैतान के सामने परमेश्वर की गवाही दी; ये वे लोग हैं जो जीवित रहने के योग्य हैं।"
"जब एक बार विजय का कार्य पूरा कर लिया जाएगा, तब मनुष्य को एक सुन्दर संसार में लाया जाएगा। निस्सन्देह, यह जीवन तब भी पृथ्वी पर ही होगा, किन्तु यह मनुष्य के आज के जीवन के पूरी तरह से असदृश होगा। यह वह जीवन है जो सम्पूर्ण मनुष्यजाति पर विजय प्राप्त कर लेने के बाद मनुष्यजाति के पास होगा, यह पृथ्वी पर मनुष्यजाति के लिए एक नई शुरुआत होगी, और मनुष्यजाति के लिए इस प्रकार का जीवन होना इस बात का सबूत होगा कि मनुष्यजाति ने एक नए और सुन्दर क्षेत्र में प्रवेश कर लिया है। यह पृथ्वी पर मनुष्य और परमेश्वर के जीवन की शुरुआत होगी। ऐसे सुन्दर जीवन का आधार ऐसा अवश्य होना चाहिए कि, मनुष्य को शुद्ध कर दिए जाने है और उस पर विजय पा लिए जाने के बाद, वह परमेश्वर के सम्मुख समर्पण कर दे। और इसलिए, इससे पहले कि मनुष्यजाति अद्भुत मंज़िल में प्रवेश करे, विजय का कार्य परमेश्वर के कार्य का अंतिम चरण है। ऐसा जीवन ही पृथ्वी पर मनुष्य के भविष्य का जीवन है, यह पृथ्वी पर सबसे अधिक सुन्दर जीवन है, उस प्रकार का जीवन जिसकी लालसा मनुष्य करता है, और उस प्रकार का जीवन है जिसे मनुष्य ने संसार के इतिहास में पहले कभी प्राप्त नहीं किया गया है। यह 6,000 वर्षों के प्रबधंन के कार्य का अंतिम परिणाम है, यह वह है जिसकी मनुष्यजाति सर्वाधिक अभिलाषा करती है, और यह मनुष्य के लिए परमेश्वर की प्रतिज्ञा भी है।"
"सभी चीजें उसी स्थिति में लौट जाती हैं जैसी मैंने अपने मन में उनकी तस्वीर बनायी थी, तथा अब और अवज्ञाकारी नहीं हैं। बहुत पहले से, पूरी धरती हँसी की आवाज़ से भरी है, पृथ्वी पर हर कहीं प्रशंसा का माहौल है, और कोई भी जगह मेरी महिमा के बिना नहीं है। पृथ्वी पर हर कहीं और सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में मेरी बुद्धि है। सभी चीजों के बीच मेरी बुद्धि के परिणाम ही हैं, सभी लोगों में मेरी बुद्धि की उत्कृष्ट कृतियाँ भरी है; सब कुछ मेरे राज्य की चीजों के समान है और सभी लोग मेरे आसमानों के नीचे मेरे चारागाहों पर भेड़ों के समान आराम में रहते हैं। मैं सभी मनुष्यों से ऊपर चलता हूँ और हर कहीं देख रहा हूँ। कोई भी चीज कभी भी पुरानी नहीं दिखाई देती है, और कोई भी व्यक्ति वैसा नहीं है जैसा वह हुआ करता था। मैं सिंहासन पर आराम करता हूँ, मैं सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड पर आराम से पीठ टिकाए हुए हूँ और मैं पूरी तरह से संतुष्ट हूँ, क्योंकि सभी चीजों ने अपनी पवित्रता को पुनः प्राप्त कर लिया है, और मैं एक बार फिर से सिय्योन में शान्तिपूर्वक निवास कर सकता हूँ, और पृथ्वी पर लोग मेरे मार्गदर्शन के अधीन शान्त, तृप्त जीवन बिता सकते हैं। सभी लोग सब कुछ मेरे हाथों में प्रबंधित कर रहे हैं, सभी लोगों ने अपनी पूर्व की बुद्धिमत्ता और मूल प्रकटन को पुनः-प्राप्त कर लिया है; वे धूल से अब और ढके हुए नहीं हैं, बल्कि, मेरे राज्य में, हरिताश्म के समान शुद्ध हैं, प्रत्येक ऐसे चेहरे वाला जैसा कि मनुष्य के हृदय के भीतर के एक पवित्र जन का हो, क्योंकि मनुष्यों के बीच मेरा राज्य स्थापित हो चुका है।संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के कथन"
"परमेश्वर के विश्राम में प्रवेश करने का अर्थ है कि वह मानवजाति के उद्धार के अपने कार्य को अब और नहीं करेगा। मानवजाति के विश्राम में प्रवेश करने का अर्थ है कि समस्त मानवजाति परमेश्वर के प्रकाश के भीतर और उसके आशीषों के अधीन जीवन जीएगी; वहाँ शैतान की कुछ भी भ्रष्टता नहीं होगी, न ही कोई अधार्मिक बात होगी। मानवजाति सामान्य रूप से पृथ्वी पर रहेगी, वह परमेश्वर की देखभाल के अधीन रहेगी। जब परमेश्वर और मनुष्य दोनों एक साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे, तो इसका अर्थ होगा कि मानवजाति को बचा लिया गया है और शैतान का विनाश हो चुका है, कि मनुष्यों के बीच परमेश्वर का कार्य पूरी तरह समाप्त हो गया है। परमेश्वर मनुष्यों के बीच अब और कार्य नहीं करता रहेगा, और मनुष्य शैतान के अधिकार क्षेत्र में अब और नहीं रहेगा। इसलिए, परमेश्वर अब और व्यस्त नहीं रहेगा, और मनुष्य अब और जल्दबाजी नहीं करेगा; परमेश्वर और मनुष्य एक साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे। परमेश्वर अपनी मूल अवस्था में लौट जाएगा, और प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने स्थान में लौट जाएगा। ये वे स्थान हैं जिनमें परमेश्वर के समस्त प्रबंधन के अंत के बाद परमेश्वर और मनुष्य अपने-अपने विश्राम करेंगे। परमेश्वर के पास परमेश्वर की मंज़िल है, और मनुष्य के पास मनुष्य की मंज़िल है। विश्राम करते हुए, परमेश्वर पृथ्वी पर समस्त मानवजाति के जीवन का मार्गदर्शन करता रहेगा। जबकि परमेश्वर के प्रकाश में, मनुष्य स्वर्ग के एकमात्र सच्चे परमेश्वर की आराधना करेगा। परमेश्वर मनुष्यों के बीच अब और नहीं रहेगा, और मनुष्य भी परमेश्वर के साथ परमेश्वर की मंज़िल में रहने में असमर्थ होगा। परमेश्वर और मनुष्य दोनों एक ही राज्य के भीतर नहीं रह सकते हैं; बल्कि दोनों के जीने के अपने स्वयं के तरीके हैं। परमेश्वर वह एक है जो समस्त मानवजाति का मार्गदर्शन करता है, जबकि समस्त मानवजाति परमेश्वर के प्रबंधन के कार्य का ठोस स्वरूप है। यह मानवजाति है जिसकी अगुवाई की जाती है; सार के संबंध में, मानवजाति परमेश्वर के समान नहीं है। विश्राम करने का अर्थ है अपने मूल स्थान में लौटना। इसलिए, जब परमेश्वर विश्राम में प्रवेश करता है, तो इसका अर्थ है कि परमेश्वर अपने मूल स्थान में लौट जाता है। परमेश्वर पृथ्वी पर मनुष्यों के बीच अब और नहीं रहेगा, या मानवजाति के बीच होने के समय मानवजाति के आनंद या उसकी पीड़ाओं में सहभागी नहीं बनेगा। जब मानवजाति विश्राम में प्रवेश करती है, तो इसका अर्थ है कि मनुष्य एक सच्ची सृष्टि बन गया है; मानवजाति पृथ्वी पर से परमेश्वर की आराधना करेगी और सामान्य मानवीय जीवन जीएगी। लोग परमेश्वर के अब और अवज्ञाकारी और प्रतिरोध करने वाले नहीं होंगे; वे आदम और हव्वा के मूल जीवन की ओर लौट जाएँगे। विश्राम में प्रवेश करने के बाद ये परमेश्वर और मनुष्य के संबंधित जीवन और उनकी मंज़िलें हैं।"
"कि "गेहूँ को जंगली घासपात नहीं बनाया जा सकता है, और जंगली घासपात को गेहूँ नहीं बनाया जा सकता है" इसमें कोई सन्देह नहीं है। जो सचमुच में परमेश्वर से प्रेम करते हैं वे सभी अंततः राज्य में बने रहेंगे, और परमेश्वर किसी ऐसे के साथ दुर्व्यवहार नहीं करेगा जो वास्तव में उससे प्रेम करता है। उनके विभिन्न कार्यों और गवाहियों के आधार पर, राज्य के भीतर विजेता लोग याजकों और अनुयायियों के रूप में सेवा करेंगे, और जो क्लेश के बीच विजेता हैं वे राज्य के भीतर याजकों का एक समूह बन जाएँगे। याजकों का समूह तब बनाया जाएगा जब सम्पूर्ण विश्व में का कार्य समाप्ति पर आ जाएगा। जब वह समय आएगा, तब जो मनुष्य के द्वारा किया जाना चाहिए वह परमेश्वर के राज्य के भीतर उसके कर्तव्य का निष्पादन होगा, और राज्य के भीतर परमेश्वर के साथ उसका जीवन जीना होगा। याजकों के समूह में महायाजक और याजक होंगे, और शेष लोग परमेश्वर के पुत्र और उसके लोग होंगे। यह सब क्लेश के दौरान परमेश्वर के प्रति उनकी गवाहियों के द्वारा निर्धारित होता है, ये ऐसी उपाधियाँ नहीं हैं जो सनक पर दी जाती हैं। जब एक बार मनुष्य की हैसियत स्थापित कर दी जाएगी, तो परमेश्वर का कार्य रुक जाएगा, क्योंकि प्रत्येक को प्रकार के अनुसार वर्गीकृत किया जाता है और उसकी मूल स्थिति में लौटाया जाता है, और यह परमेश्वर के कार्य के समापन का चिह्न है, यह परमेश्वर के कार्य और मनुष्य के अभ्यास का अन्तिम परिणाम है, और यह परमेश्वर के कार्य के दर्शनों और मनुष्य के सहयोग का साकार रुप है। अंत में, मनुष्य परमेश्वर के राज्य में विश्राम पाएगा, और परमेश्वर भी विश्राम करने के लिए अपने निवास स्थान में लौट जाएगा। यह परमेश्वर और मनुष्य के बीच 6000 वर्षों के सहयोग का अन्तिम परिणाम है।"
"जब मनुष्य शाश्वत मंज़िल में प्रवेश करेगा, तो मनुष्य सृजनकर्ता की आराधना करेगा, और क्योंकि मनुष्य ने उद्धार प्राप्त कर लिया है और शाश्वतता में प्रवेश कर लिया है, इसलिए मनुष्य किसी उद्देश्य की खोज नहीं करेगा, इसके अतिरिक्त, न ही उसे इस बात की चिंता करने की आवश्यकता होगी कि शैतान के द्वारा उसकी घेराबंदी की जाती है। इस समय, मनुष्य अपने स्थान को जानेगा, और अपने कर्तव्य को निभाएगा, और भले ही उन्हें ताड़ना नहीं दी जाती है या उनका न्याय नहीं किया जाता है, तब भी प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्तव्य को निभाएगा। उस समय, मनुष्य पहचान और हैसियत दोनों में एक प्राणी होगा। ऊँच और नीच का अब और भेद नहीं होगा; प्रत्येक व्यक्ति बस एक भिन्न कार्य करेगा। मगर मनुष्य तब भी मनुष्यजाति की एक व्यवस्थित और उपयुक्त मंज़िल में जीवन बिताएगा, मनुष्य सृजनकर्ता की आराधना करने के वास्ते अपना कर्तव्य निभाएगा, और इस प्रकार की मनुष्यजाति ही शाश्वतता की मनुष्यजाति होगी। उस समय, मनुष्य ने परमेश्वर के द्वारा रोशन किए गए जीवन को प्राप्त कर लिया होगा, ऐसा जीवन जो परमेश्वर की देखरेख और संरक्षण के अधीन है, और ऐसा जीवन जो परमेश्वर के साथ है। मनुष्यजाति पृथ्वी पर एक सामान्य जीवन जीएगी, और सम्पूर्ण मनुष्यजाति सही मार्ग में प्रवेश करेगी।"
"वे जो परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनाए जाएंगे, उनमें से होंगे जो परमेश्वर की आशीषें और उसकी धरोहर पाएँगे। अर्थात्, वे वही ग्रहण करते हैं जो परमेश्वर के पास है और वह जो है, ताकि यह वह बन जाए जो उनके भीतर होता है; उनमें परमेश्वर के सारे वचन गढ़ दिए गए होंगे; परमेश्वर की हस्ती चाहे जैसी भी हो, तुम लोग उन सबको जैसा वे हैं बिल्कुल उसी रूप में ले पाओगे, इस प्रकार से सत्य में जीवन बिताते हैं। यह उस प्रकार का व्यक्ति है जो परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनाया जाता है और परमेश्वर द्वारा अर्जित किया जाता है। केवल इसी प्रकार का मनुष्य परमेश्वर द्वारा दी जाने वाली आशीषों को पाने योग्य है:
1. परमेश्वर के संपूर्ण प्रेम को पाना।
2. सभी बातों में परमेश्वर की इच्छानुसार चलना।
3. परमेश्वर की अगुवाई को पाना, परमेश्वर की ज्योति में जीवन व्यतीत करना और परमेश्वर के द्वारा प्रबुद्ध बनाया जाना।
4. पृथ्वी पर परमेश्वर को भाने वाली "छवि" के साथ जीवन बिताना; पतरस के समान परमेश्वर से सच्चा प्रेम करना, परमेश्वर के लिए क्रूस पर चढ़ना और परमेश्वर के प्रेम की कीमत को अदा करने वाले मृत्यु के योग्य होना और पतरस के समान महिमा प्राप्त करना।
5. पृथ्वी में सभी के प्रिय, सम्माननीय और प्रशंसनीय बनना।
6. मृत्यु और पाताल के सारे बंधनों पर जय पाना, शैतान के कार्य को कोई अवसर न देना, परमेश्वर द्वारा नियंत्रित रहना, स्वच्छ और जिंदादिल आत्मा में जीवन व्यतीत करना, और थकानरहित बोध का अनुभव रखना।
7. पूरी जिंदगी हमेशा अकथनीय आत्मिक आनंद और जोश का भाव होना, मानो उसने परमेश्वर की महिमा के दिन को आते हुए देख लिया हो।
8. परमेश्वर के साथ महिमा को पाना और परमेश्वर के प्रिय संतों के जैसे हाव-भाव रखना।
9. वह बनना जो पृथ्वी पर परमेश्वर को पसंद है, अर्थात्, परमेश्वर का प्रिय संतान।
10. स्वरूप का बदल जाना और शरीर से श्रेष्ठ होकर, परमेश्वर के साथ तीसरे आसमान की ओर चढ़ना।"
स्रोत: सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया
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