Subah ke 5:30 AM, Mumbai
मुंबई — वो शहर जो कभी सोता नहीं। जहाँ एक तरफ ऊँची‑ऊँची इमारतें सूरज की पहली किरणों से सुनहरी नज़र आ रही थीं, तो वहीं दूसरी ओर पुराने पेड़ों और गलियों में अभी भी रात की ठंडी हवा बह रही थी। समंदर की लहरें किनारे से टकरा रही थीं, जैसे खुद शहर को जगाने की कोशिश कर रही हों।
शहर के बीचों‑बीच, गगनचुंबी इमारतों से घिरा हुआ एक प्राचीन दुर्गा माँ का मंदिर खड़ा था। लाल पत्थरों से बनी सीढ़ियाँ, पीतल के बड़े‑बड़े दीपक और घंटियों की गूंज से मंदिर का हर कोना पवित्र और अलौकिक लग रहा था। अगर कोई रुक कर देखे, तो लगे जैसे खुद माँ दुर्गा इस मंदिर में वास करती हों।
वहीं मंदिर के आँगन में, एक 17–18 साल की लड़की हाथों में पीतल की थाल लिए खड़ी थी। उसने हल्के गुलाबी रंग की सादी सलवार‑कुर्ता पहनी थी, जिसके दुपट्टे का किनारा हवा में लहराता जा रहा था। उसके सिर पर हल्का सा आँचल था और माथे पर लाल बिंदी। उसके मासूम चेहरे की चमक ऐसी थी कि उसे देखकर पत्थर का भी दिल पिघल जाए।
उसकी मीठी आवाज़ में आरती गूंज रही थी:
**"Durga hai meri Maa, Durga hai meri Maa
Main tera aasra, main tera aasra
Teri shakti se hi, bhagwan ko dar hai
Teri shakti se hi, bhagwan ko dar hai
Durga hai meri Maa, Durga hai meri Maa
Main tera aasra, main tera aasra
Meri raksha kar, mere dukh mitana
Meri raksha kar, mere dukh mitana
Durga hai meri Maa, Durga hai meri Maa
Main tera aasra, main tera aasra."**
आरती की मधुर ध्वनि और थाल में जलती हुई दीपक की लौ ने पूरे मंदिर को एक अद्भुत रोशनी से भर दिया। हवा में कपूर और चंदन की खुशबू फैल गई थी।
आरती पूरी होते ही वो पलटी, चेहरे पर मासूम मुस्कान लिए। उसके होंठों पर अब भी आरती की धुन थी। उसने वहाँ मौजूद हर श्रद्धालु को बड़े स्नेह और श्रद्धा से प्रसाद बाँटना शुरू किया।
भीड़ में से कई लोग उसकी तरफ देखते हुए कह रहे थे,
"भगवान हर किसी को ऐसी बेटी दे… कितनी मासूम है, जैसे खुद दुर्गा माँ का आशीर्वाद हो।"
लोग उसकी तारीफ़ करते जा रहे थे और हीर के चेहरे पर हल्की‑सी शर्मीली मुस्कान खिली हुई थी।
तभी मंदिर के बाहर से किसी ने ज़ोर से पुकारा —
“हीर!”
आवाज़ सुनकर वो जल्दी से पलटी।
सामने करीब 40 साल का एक आदमी खड़ा था, हाथ में काला चमड़े का बैग, भूरे रंग का कुर्ता‑पायजामा और माथे पर पसीने की बूंदें। उसका पहनावा बिलकुल एक पुराने जमाने के ब्रोकर जैसा लग रहा था।
हीर की आँखें चमक उठीं, और आरती की थाल पकड़े वो भागकर उसके पास पहुँची —
“मोनशी काका! आप कब आए? हमें तो लगा आप आएँगे ही नहीं।”
वो आदमी मुस्कुराया और बोला —
“अरे ऐसे कैसे, बिटिया। हमारे अंदर का लालच हमें यहीं खींच लाता है।”
हीर थोड़ी उलझन में हँसते हुए बोली —
“लालच? हाय राम, ये कैसा लालच काका?
वो आदमी मुस्कुराया-मीठी‑मीठी आरती की आवाज़ का लालच?”
मोनशी काका ठहाका मारते हुए बोले —
“अरे देखा, तुम्हारी बातों में इतना जादू है कि मैं असली बात बताना ही भूल गया।”
हीर उत्सुक होकर बोली —
“कैसी बात, मोनशी काका?”
वो झुककर धीरे से बोला —
“बिटिया, हमने तुम्हारे लिए एक नौकरी का इंतज़ाम कर दिया है।”
हीर की आँखें चौड़ी हो गईं और वो जोर से चिल्लाई —
“सच में! आप सच कह रहे हैं न?”
मोनशी काका ने सिर हिलाते हुए कहा —
“हाँ, पर…”
हीर उतावली होकर —
“पर क्या, काका?”
काका ने थोड़ा गंभीर होकर कहा —
“बिटिया, वो न… ये नौकरी एक बहुत बड़े घर में नौकरानी के काम की है। लेकिन तुम्हें मेहनताना अच्छा मिलेगा। अब तुम जानती हो न, 17 साल की उम्र में काम मिलना आसान नहीं होता। मगर मैं वादा करता हूँ, बस कुछ महीने ये काम कर लो, फिर मैं तुम्हें और अच्छी नौकरी दिला दूँगा।”
हीर मुस्कुरा दी —
“कोई बात नहीं, काका। काम छोटा या बड़ा नहीं होता। वैसे भी मेरी छुट्टियाँ चल रही हैं, जब खत्म हो जाएँगी तो मैं दूसरी नौकरी देख लूँगी। और मुझे पैसों की ज़रूरत तो पड़ेगी ही।”
इतने में मंदिर के कोने से एक बुज़ुर्ग आवाज़ आई —
“बिटिया, तुम क्यों इतना चिंता करती हो? तुम्हारे स्कूल की फीस तो तुम्हारी स्कॉलरशिप से हो ही जाती है। और बाकी के लिए हम हैं। मगर नहीं… तुम्हें तो नौकरी करनी ही है।”
हीर ने पलटकर देखा — एक 75 साल के बुज़ुर्ग बाबा, जो हमेशा उसे अपनेपन से देखते थे।
वो आगे बढ़कर उनके गाल पकड़ते हुए बोली —
“अरे बाबा, आप ऐसी बातें क्यों कहते हैं? मैं भले ही अनाथ हूँ, पर आपने और बाकी सबने मुझे अपने से भी ज्यादा प्यार दिया है। और बाबा, मैं अब बच्ची थोड़े ही न रही… बस 2–3 महीने में 18 साल की हो जाऊँगी। आप जानते हैं न, मेरा सपना है कि मैं अनाथ बच्चों के लिए फ्री डांस अकादमी खोलूँ। उसके लिए मुझे पैसे भी तो जमा करने होंगे।”
बाबा की आँखें भर आईं, और वहाँ खड़े सभी लोग हीर को दुआएँ देने लगे।
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