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घर

घर

प्यार में पागल दीवाना सचिन अपने भतीजे आदित्य को प्रेमिका और उसके पिता के कहने से अनाथ आश्रम में छोड़ने का पक्का इरादा कर लेता है, जब विधवा मां भाई भाभी की नदी में नौका डूबने से मौत होने के बाद उसकी प्रेमिका राधिका का पिता सचिन से बोलता है कि “मैं अपनी बेटी की शादी तेरे साथ तब करुंगा जब तू अपने भतीजे की संपत्ति पर भी चालाकी से कब्जा कर लेगा।” 

जब सचिन को अपने भतीजे की संपत्ति पर कब्जा करने का रास्ता दिखाई नहीं देता है, तो उसका होने वाला ससुर सचिन को रास्ता बताता है कि “अपने भतीजे आदित्य को दूसरे शहर के अनाथ आश्रम में छोड़कर आने के बाद गांव में कह देना कि आदित्य को कोई शहर के रेलवे स्टेशन से उठा कर ले गया है और तुझे जारा सी भी डरने की जरूरत नहीं है, क्योंकि तीन वर्ष का आदित्य पुछने पर भी किसी को कुछ नहीं बता पाएगा।” 

सचिन राधिका के प्रेम में इतना दीवाना था कि वह राधिका के बिना एक पल की जिन्दगी के बारे में सोचा भी नहीं सकता था, इसलिए सचिन राधिका के पिता के कहने से दुसरे दिन सुबह अपने भतीजे आदित्य को अनाथ आश्रम छोड़ने चल देता है।

अब अनजान शहर के अनाथ आश्रम में भतीजे को कैसे छोड़ा जाए, उसके सामने यह समास्या आ जाती है, क्योंकि जब वह पहली बार भतीजे को अनाथ आश्रम में छोड़ने जाता है, तो यह बोल देता है कि मैं बहुत गरीब युवक हूं, मैं अपना तो पेट भर नहीं पाता हूं, बिना मां बाप के अपने भतीजे का पेट भरने के साथ उसे अच्छी शिक्षा घर कपड़े खिलोने आदि सब कैसे दे पाऊंगा।

पिता के साथ अनाथ आश्रम चलाने वाली सीधी सादी भोली भाली मेघना को सचिन की बातों में सच्चाई नजर आती है इसलिए वह सचिन को अनाथ आश्रम के रसोई घर में नौकरी पर रख लेती है।

जब सचिन अपनी झूठी बातों के जाल में स्वयं फस जाता है, तो राधिका और उसके पिता से इस समस्या का हाल पूछता है? 

लालची दुष्ट राधिका का पिता सचिन से पूछता है? “तुमने अनाथ आश्रम में अपने गांव का पता सच्चा बताया है या झुठा।” 

“अनाथ आश्रम में मैंने अपना नाम पता ठिकाना गलत बताया है।” सचिन बताता है 

“यह तुमने बहुत अच्छा किया अब मेरी बात ध्यान से सुनो दो-चार दिन अनाथ आश्रम में नौकरी करने के बाद एक रात अपने भतीजे को अनाथ आश्रम में अकेला छोड़कर अपने गांव वापस भगा आना मुझे पक्का यकीन है, तुम्हारा भतीजा अनाथ आश्रम में होने के बाद अनाथ आश्रम वाले तुम्हें तनिक भी ढूंढने की कोशिश नहीं करेंगे।” होने वाले ससुर ने गहरी चाल बताई 

सचिन खुश होकर बोलता है “सच में ससुर जी आप बहुत बुद्धिमान हो आपके पास हर एक समस्या का हल है।”

“जब तक भतीजे की जमीन जायदाद तुम्हारे नाम नहीं हो जाती है तुम्हें मुझे ससुर कहने का हक नहीं है।” ससुर की यह दिल दुखाने वाली बात सुनकर सचिन उसी समय से अनाथ आश्रम से भागने की योजना बनाना शुरू कर देता है, वह सबसे पहले अनाथ आश्रम के रसोईए से झगड़ा करने की योजना बनाता है, ताकि अनाथ आश्रम की संचालक मेघना को ऐसा लगे की रसोईए के व्यवहार से दुखी होकर सचिन अनाथ आश्रम से भाग गया है।

और जब सचिन मेघना से रसोईए की शिकायत करते हुए कहता है कि “रसोईया और इसके दोनों साथी बच्चों को घर जैसे प्यार से भोजन नहीं खिलाते हैं, बल्कि उनके साथ गैरों जैसा व्यवहार करते हैं, तो मेघना एक रात रात के खाने के समय खिड़की से छुपकर देखती हैं कि रसोईया अपने दोनों साथियों के साथ बच्चों को घर जैसे प्यार से खाना खिलता है या गैरों जैसे।

तो मेघना को यह देखकर बहुत दुख होता है कि बरसों पुराने हमारे रसोईए का बच्चों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं है, लेकिन पढ़ी-लिखी समझदार मेघना यह भी जानती थी कि दुनिया में अच्छे लोगों के साथ बुरे लोग भी होते हैं, इसलिए वह रसोईए और रसोई घर के दूसरे दोनों कर्मचारियों को नौकरी से निकाल देती है और उनकी जगह अच्छे और ईमानदार व्यक्तियों को नौकरी पर रख लेती है।

फिर एक रात खाना खाते समय अनाथ आश्रम की आयु में सबसे बड़ी और समझदार लड़की विद्या सचिन से बोलती है “सचिन भैया मैं सब बच्चों की तरफ से आपका धन्यवाद करती हूं, क्योंकि आपकी वजह से सब बच्चों को स्वादिष्ट और प्यार से घर जैसे खाना खिलाया जाने लगा है।”

जब सचिन विद्या की बातों को फालतू समझ कर उसकी तरफ ध्यान नहीं देता है तो वह आश्रम के सबसे छोटे बच्चे नकुल की तरफ इशारा करके बोलती है “वह देखो भैया हमारे आश्रम में नकुल सबसे नटखट और जिद्दी बच्चा है, वह कभी-कभी जिद पर अड़ जाता है कि उसे मां जैसे कोई अपने हाथों से खाना खिलाए लेकिन पुराना रसोईया और रसोई घर के वह दोनों कर्मचारियों ने उसकी कभी यह जिद पूरी नहीं की थी, इसलिए जब नकुल से भूख बर्दाश्त नहीं होती थी तो वह अपनी आंखों से बहते आंसू पोछकर स्वयं ही खाना खाने लगता है और मेघना दीदी बेचारी अपने पिता की बीमारी अपनी पढ़ाई के साथ हम सब की पढ़ाई का ध्यान रखने के साथ साथ  आश्रम के खर्चो को पूरा करने की चिंता में रात दिन रहती है, इसलिए मेघना दीदी एक-एक बच्चे पर ध्यान नहीं दे पाती है और मेघना दीदी ने ही मुझे बताया था कि आपके आने से उनका बोझ कुछ कम हुआ है रसोईए और रसोई घर के उन दोनों कर्मचारियों को आपके कहने से ही सबक सिखाया गया था।”

किंतु सचिन विद्या की बातों का कुछ भी जवाब दिए बिना वहां से चला जाता है और आश्रम से भागने की नई युक्ति सोचने लगता है।

दूसरे दिन सुबह मेघना सचिन को अपने ऑफिस में बुलाकर एक नई जिम्मेदारी सौंपती है कि हमारे आश्रम के सारे बच्चे अच्छे नंबरों से पास हो गए हैं, इसलिए इन सबको पिकनिक पर घूमने ले चलना है और आपको पिकनिक की सारी जिम्मेदारी ईमानदारी से निभानी है।

और बच्चों के साथ पिकनिक में जाने के बाद सचिन को अपने बचपन का वह दिन याद आ जाता है जिस दिन वह अपने माता-पिता बड़े भाई के साथ आठ वर्ष की आयु में गंगासागर घाट पर मकर संक्रांति का मेला घूमने गया था और उसके पिता ने उसे अपने कंधों पर बिठाकर मेला घुमाया था और मां पिता के कंधों पर बैठे-बैठे उसे दूध जलेबी कुल्लड़ से चम्मच से निकाल निकाल कर प्यार से खिला रही थी।

उस दिन सचिन को थोड़ा बहुत यह महसूस होता है कि इन अनाथ बच्चों को अच्छा खाना कपड़े शिक्षा के साथ-साथ परिवार जैसा अपनापन मिलना भी बहुत जरूरी है।

लेकिन राधिका के प्रेम में पागल सचिन दिवाली के त्यौहार के लिए अनाथ बच्चों के लिए दान में आने वाले नए कपड़ों बम पटाखों मिठाइयों आदि सब समान को नदी में बहाने की योजना इसलिए बनता है कि इतनी बड़ी गलती करने पर मेघना उसे रसोईए जैसे अनाथ आश्रम की नौकरी से भगा देंगी।

और अपनी इस योजना को चालाकी से सफल बनाने के लिए वह जब दो बैलगाड़ियों में अनाथ बच्चों के लिए भरकर मिठाइयां नए कपड़े और बम पटाखे लाता है तो दोनों बैलगाड़ियों को नदी किनारे खड़ी करवा कर गाड़ी बानो को पैसे देकर दूर स्वादिष्ट महंगा खाना खाने के लिए भेज देता है और बैलों को बैलगाड़ी से खोलकर बैलगाड़ी को ढलान से धक्का देकर नदी में धकेल देता है।

वह इस घटना को इस तरह अंजाम देता है, ताकि मूर्ख से मूर्ख व्यक्ति को भी यह समझ आ जाए की दान के नए कपड़ो मिठाईयो पटाखों से भरी बैलगाड़ी को  नदी में जानबुझकर धाक दिया गया है और वह यह भी सोच लेता है कि जब मेरे ऊपर इस घटना को अंजाम देने का इल्जाम लगेगा तो मैं बोल दूंगा कि मुझसे मेरा अकेला भतीजा तो प्यार से संभाल नहीं जा रहा था, मैं इतने सारे बच्चों का शोर शराबा कैसे बर्दाश्त कर पाता इसलिए कुछ ही दिनों में मुझे बच्चों और आश्रम के माहौल से नफरत होने लगी थी इसलिए आश्रम की नौकरी को छोड़ने के लिए मैंने यह कार्य किया है।

उसे यह भी पक्का यकीन था कि आश्रम की संचालक मेघना मुझे इस घटिया कार्य के लिए एक दो महीने की जेल ही करवा पाएगी और वह मुझे घटिया आदमी समझकर मेरे भतीजे आदित्य को जरूर आश्रम में रखकर एक कामयाब अच्छा इंसान बनाने की सोचेगी।

और जब सचिन बच्चों का दान में आया हुआ सामान नदी में बहकर आश्रम वापस लौटता है, तो आश्रम के गेट पर उसे दो बच्चे आपस में बातें करते हुए सुनाई देते हैं कि “मैं दिवाली पर पेंट कमीज नहीं पहनूंगा, बल्कि रंगीन कुर्ता पजामा पहनूंगा और दूसरा बच्चा बोल रहा था मैं दिवाली पर सुतली बम नहीं फोडूंगा बल्कि फुलझड़ी अनार जलाऊंगा और फिर दोनों बच्चे आपस में खुद ही खुश होकर बोल रहे थे कि इस बार दिवाली पर चटपटे पकोड़े के साथ खूब डटकर मिठाई खाएंगे पूरी सब्जी बिल्कुल भी नहीं खाएंगे बस मिठाई खाकर अपना पेट भरेंगे। 

मासूम अनाथ बच्चों की आपस में यह बात सुनकर सचिन को अपना बचपन याद आ जाता है कि ऐसे ही वह होली दिवाली पर अपने भाई के साथ होली खेलने और दिवाली मनाने का योजना बनाता था और जब पिताजी होली पर रंग गुलाल गुब्बारे और दिवाली पर बम पटाखे नए कपड़े मिठाईयां लाते थे, तो हम दोनों भाई इतने खुश होते थे कि होली दिवाली की एक रात पहले हमें बेचैनी की नींद आती थी की कब सुबह हो हम होली खेले या दिवाली मनाएं।

यह सब सोचते सोचते सचिन की आंखों में आंसू आ जाते हैं, तभी सामने से मेघना आकर अपने रुमाल से सचिन की आंखों से आंसू पोंछ कर बोलती है “मैंने अपने जीवन में तुमसे अच्छा इंसान नहीं देखा है, जिसमें अनाथ बच्चों के लिए इतना प्यार है, तो उसके दिल में अपने परिवार और अपने बच्चों की लिए कितना प्यार होगा, इसलिए सचिन आपको दुखी होने की जरूरत नहीं है, बच्चों का जो सामान नदी में बह गया है उसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है, क्योंकि नदी के किनारे इतना ऊंचा ढलान था कि अगर तुम्हारे साथ वह दोनों गाड़ी बान भी होते तो भी तुम तीनों भरी गाड़ियों को नदी में डूबने से रोक नहीं पाते।”

और मेघना के बाद आश्रम के कुछ समझदार अनाथ बच्चे अनाथ विद्या बोलती है “सचिन अंकल आप दुखी मत हो ओ इस बार हम दिवाली अपना मन मार के जैसे तैसे मना ही लेंगे।”

तब सचिन वहां खड़े अनाथ बच्चों और अपने भतीजे को सीने से लगाकर बोलता है “मेरे होते हुए ऐसा नहीं हो सकता है, बस मुझे एक दिन का समय दो।” और सचिन अपने गांव जाकर अपने हिस्से की सारी जमीन जायदाद बेचकर अनाथ आश्रम को दान में देने के बाद जब अपने भतीजे आदित्य को अपने साथ दिवाली की रात अपने गांव ले जाने लगता है तो तब मेघना सचिन के पास पूजा की थाली में मिठाई का डिब्बा रखकर आती है और सचिन से उसके जीवन की पूरी सच्चाई पूछती है?

तब सचिन विधवा मां भाई भाभी की मौत की घटना से लेकर राधिका से प्रेम राधिका के ससुर के कहने से भतीजे को अनाथ आश्रम में छोड़ने की सारी सच्चाई बता देता है।

फिर सचिन के मुंह से सारी सच्चाई सुनने के बाद मेघना बोलती है “सब कुछ सच बात कर मेरी नजरों में आप और ऊंचे उठ गए हो।”

और तभी प्रेमिका राधिका का फोन सचिन के पास आता है और वह सचिन से नाराज होकर बोलती है “मूर्ख भिखारी सचिन अब तू मेरे सपने देखना छोड़ दे और पिताजी तो तेरी सूरत क्या तेरी आवाज भी नहीं सुनना चाहते हैं।”

“तुम दोनों नीच घटिया बाप बेटी से मैं खुद रिश्ता जोड़ने की सोच भी नहीं सकता हूं।” यह कहकर सचिन फोन काट देता है 

तब मेघना बोलती है “सचिन आप मेरे साथ तो रिश्ता जोड़ने की सोच सकते हो।” 

यह सुनकर सचिन मेघना की तरफ नजर उठा कर देखता है तो मेघना बोलती है “आपसे अच्छा जीवन साथी मुझे नहीं मिल सकता है और मेघना से शादी होने के बाद सचिन अनाथ आश्रम को संभालने के साथ-साथ अपने भतीजे की संपत्ति को भी तब तक संभालता है जब तक कि उसका भतीजा बालिक नहीं हो जाता है और पढ़ लिखकर एक जिम्मेदार नागरिक नहीं बन जाता है।

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