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लघुकथा

श्रीमद्भागवदगीता ने बदल दी मेरी ज़िंदगी

मैं एक मध्यम वर्गीय परिवार से हूँ, बचपन गाँव में ही बीता,अपने भाई बहनों के साथ,शिक्षा भी गाँव में ही हुई.बचपन में किसी ने भी गाइड नहीं किया जो भी पढ़ाई की,पापा की पोस्टिंग गाँव में ही रही,ज़िंदगी में गाँव का ज़्यादा प्रभाव रहा,पिता जी के साथ सबदलपुर,चौमुहाँ,बरोला आदि गाँव में रहा.मेरी ज़िंदगी के सबसे सुनहरे पल चौमुहाँ में बीते,यहाँ से १२वी पास करने के बाद,गांधी पॉलीटेक्निक मुज़फ़्फ़रनगर(१९८४-१९८७) से यांत्रिक अभियंता का डिप्लोमा किया, वैसे तो मैं पायलट बनना चाहता था,एनडीए की परीक्षा दी पास नहीं कर पाया,फिर सोचा प्रोफेसर बनूँगा उच्च शिक्षा नहीं ले पाया और नहीं बन पाया,अभियंता(डिप्लोमा)बन गया और बड़ी अजीब बात हैं पुस्तकें लिख रहा हूँ,सबसे पहली नौकरी प्याऊ मनिहारी कुंडली में ६०० रुपये की उसके बाद,८०० रुपये की पिलखुआ में ,उसके बाद १२०० रुपये की यामाहा सूरजपुर में अब २७ साल का अनुभव हैं.सन् २००० में ज़िंदगी बदल गई एक भयंकर दुर्घटना हो गईं, सड़क पर अपनी ज़िंदगी की भीख माँग रहा था कोई उठा कर अस्पताल ले जाने को तैयार नहीं था.मैंने उठने की खूब कोशिश की पर नहीं उठ पाया,मेरी दो महीने की बेटी थी मुझे सबसे पहले मेरी बेटी याद आई,मैंने साँई बाबा से प्रार्थना की व माँ वैष्णों वाली माँ को याद किया,मुझे तब तक ज़िंदा कर दे जब तक मैं अपनी बेटी की शादी न कर दूँ, चमत्कार हो गया,अस्पताल पहुँच गया १० ऑपरेशन होने के बाद और ९ महीने खाट पर रहने के बाद मैंने दुबारा से जॉब जॉइन किया,सब कुछ सही चल रहा था सन् २००३ में नौकरी चली गईं और अवसाद में चला गया,यहाँ फिर एक चमत्कार हुआ, मेरे एक मित्र ने भगवद्गीता दी पढ़ने के लिए मैंने प्रसाद समझ कर लिया और ईश्वर के आशीर्वाद से १८ अध्याय ७०० श्लोकों को पढ़ा लिखा हिन्दी व इंगलिश दोनों भाषाओं में,अवसाद भी ख़त्म हो गया और नौकरी भी लग गईं.मैं सोनीपत चला गया यहाँ पर भगवद्गीता पर दैनिक जागरण में लेख छपा, छपते ही न्यूज़ चैनल्स ने इंटरव्यू लेने शुरू कर दिये,किसी ने पूछ लिया आपने भगवद्गीता को दर्पण छवि में लिख दिया पर इसको कौन पढ़ेगा?.मैं उन सज्जन से बोला वाल्मीकि जी ने मरा मरा बोला और राम राम निकला और संस्कृत भाषा में रामायण लिख दी मेरा आप सबको एक संदेश हैं सीधी नहीं उल्टी पढ़ लो मेरी ज़िंदगी बदली हैं आपकी भी बदलनी चाहिए,फिर उसके बाद सुई से पुस्तक लिखी.भगवद्गीता ने मंच दिया सुई से लिखी पुस्तक ने गूगल दे दिया और २००३ से २०२४ तक १८ पुस्तकें लिख चुका हूँ.दोस्तों हमारा काम हैं करना,कुछ चीजे उसके हाथ में हैं …. और उसके हाथ में रहनी भी चाहिये. श्री पीयूष कुमार गोयल, मध्यम परिवार में जन्मे, यांत्रिक अभियंता, ५७ वर्षीय, २७ साल के अनुभव, आपने नौकरी के साथ-साथ वो काम किया हैं, वो शायद आपने पहले कभी सुना हो, गोयल ने ईश्वर के आशीर्वाद से १७ पुस्तकें हाथ से लिख अपने देश हिंदुस्तान का नाम विश्व में ऊँचा किया हैं,क्या आपने पहले कभी सुना था, कोई व्यक्ति सुई से, कार्बन पेपर से,मेहंदी कोन से,फ्लूइड पेन से,फैब्रिक कोन लाइनर से,और आयरन नेल से पुस्तकें लिख सकता हैं, जी हाँ आपने सही सुना, और पीयूष की तीन पुस्तकें वृंदावन में “वृंदावन शोध संस्थान” में रखी गई हैं, सुई से लिखी पुस्तक ने वर्ल्ड रिकॉर्ड(World Record Association)बनाया हैं उनके नाम दो लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स भी हैं,पीयूष की १० पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैं, पीयूष के इस काम को कई संस्थानों द्वारा सम्मानित भी किया हैं,क्षेत्रीय स्तर पर क्रिकेट अम्पायरिंग करने वाले पीयूष गोयल गणित पर भी काम कर चुके हैं उनके तीन पेपर रिसर्च जर्नल में प्रकाशित हो चुके हैं, आज कल पीयूष २ पत्रिकाओं के लिए लघु कथा लिख रहे हैं,आज कल पीयूष मोटिवेशनल स्पीकर का काम कर रहे हैं जो बिलकुल निःशुल्क हैं क़रीब ३००० छात्र छात्राओं को अपने मोटिवेशन से मोटीवेट कर चुके हैं और कर रहें हैं.

पीयूष आजकल १८वी पुस्तक रंगीन पेन्सिल से दर्पण छवि में हाथ से लिख रहें हैं वो उनके सबसे मनपसंद लेखक “रामधारी सिंह दिनकर” जी की “रश्मिरथी” को लिख रहें हैं.

अंत में उनका लिखा हुआ एक प्रसिद्ध कथन”मैं एक दीया हूँ मेरा काम हैं चमकना,हो सकता हैं मेरी रोशनी कम हो पर दिखाई बहुत दूर से दूँगा”.

पैसे की क़ीमत

एक क़स्बे में दो घनिष्ठ मित्र रहते थे,बात आज़ादी के तुरंत बाद की हैं,एक धनी था,एक इतना धनी नहीं था,रोज़ाना कमाना और गुजर बसर करना,पर दोस्ती की लोग मिसाल दिया करते थे.दोनों दोस्त अपने-अपने माँ बाप की इकलौती संतान थे.एक दिन दोनों दोस्त साथ-साथ अपने-अपने घरों को जा रहे थे,विदा लेते समय निर्धन दोस्त ने अपने दोस्त से १० रुपये उधार माँगे,धनी दोस्त ने देर नहीं की देने में और बोला कुछ और चाहिए तो बता,नहीं-नहीं मुझे तो बस १० रुपये ही चाहिए.अगले दिन धनी दोस्त अपने दोस्त का इंतज़ार करता रहा, सुबह से दोपहर हो गईं,आपस में नहीं मिले चिंता होने लगी,बहुत इंतज़ार करने के बाद धनी दोस्त अपने दोस्त को देखने उसके घर की ओर चल दिया,घर पर ताला लगा था,पड़ोसियों से पूछा सब ने मना कर दिया हमें कुछ नहीं बता कर गया हैं,हाँ सुबह क़रीब ४ बजे कुछ हलचल तो थी.धनी दोस्त सोच में पड़ गया आख़िर बिना बताये कहाँ चला गया,हर रिश्तेदार के यहाँ पता लगाया पर कुछ पता न चला, समय बीतता रहा,धनी दोस्त कुछ समय के लिए तो परेशान रहा,कुछ समय बाद शादी हो गई बच्चे हो गये,अपने काम में व्यस्त रहने लगा.जब भी समय मिलता रिश्तेदारों से पूछताछ करता रहता था पर पता न चला.क़रीब २५ साल बाद धनी सेठ को अपने व्यापार के लिए लखनऊ जाना हुआ, काम के कारण सेठ को क़रीब एक सप्ताह रुकना था,सेठ सोचने लगे क्यों न शहर भी घूम लिया जाये,एक दिन दोपहरी का खाना खाने एक होटल में रुके,ग़रीब दोस्त अपने धनी दोस्त को पहचान गया,जैसे ही सेठ खाना खाने के बाद पैसे देने के लिए काउंटर पर आया,दोस्त ने पैसे लेने से मना कर दिया,धनी दोस्त के पैर पकड़ कर ज़ोर- ज़ोर से रोने लगा और कहने लगा मैं तुझे वो १० रुपये नहीं दूँगा,जैसे ही धनी दोस्त ने ये सुना तुरंत गले से लगा लिया, दोनों दोस्त गले लग कर आपस में बहुत रोये,धनी दोस्त रोते हुए बोला पगले मैं तेरे से १० रुपये लेने नहीं आया हूँ.मैं तेरे से बहुत नाराज़ हूँ बिना बतायें यहाँ आ गया, मुझे पता हैं पर मैं क्या करता…. इसके लिए मुझे माफ़ कर दें पर ईश्वर ने हमें फिर से आज मिलवा दिया,आपस में बहुत बातें हुई अपने दोस्त को घर ले गया और अपने बच्चों से मिलवाया,अपने बेटे से बोला जा अपने ताऊ का सामान उस होटल से ले आ जिसमें ठहरें हुए हैं,रात का खाना खाने के बाद,सब बैठ कर बातें कर रहे थे, ग़रीब दोस्त ने अपने बचपन के दोस्त के बारे में बताया और मैंने १० रुपये उधार लेकर बिना बतायें अपने माँ बाप को लेकर मैं यहाँ आ गया,उन १० रुपयों से मैंने चाट की रेहड़ी लगाई,मेहनत की, आज एक होटल हैं और ये एक मकान,मुझे पता हैं उन १० रुपयों की क़ीमत आज मैं जो भी हूँ उन १० रुपयों की वजह से हूँ,मुझे पता हैं “पैसे की क़ीमत”, और हाँ वो १० रुपये मैं वापस नहीं करूँगा.परिवार में आपस में आना जाना शुरू हो गया,सबको पता चल गया दो बिछड़े दोस्त दुबारा से मिल गये हैं. लखनऊ वाला दोस्त बोला जो हमारा पुश्तैनी मकान हैं वो मैं तेरे नाम करता हूँ,एक दिन आकर सब से मिल भी लूँगा और मकान के कागज तेरे को दें दूँगा.

आनंद से जीयो और जीने दो

एक मछुआरा रोज़ाना मछलियाँ बेच कर अपने परिवार का लालन पालन करता था, बात बहुत पुरानी हैं,एक दिन जैसे ही मछली पकड़ कर अपनी टोकरी में रख रहा था,एक मछली बहुत ज़ोर-ज़ोर से उछल कूद कर रही थी बड़ी ही बेचैन थी,मछुआरे ने अपनी टोकरी से निकाल कर देखा तो मछली की आँखें नम थी,तभी मछली ने एक मोती उगल दिया,उस पर लिखा था,भैया मुझे छोड़ दो,मेरे बिना मेरे बच्चे मर जाएँगे. मछुआरे को तरस आ गया और उस मछली को छोड़ आया.और वो मोती अपने पास सुरक्षित रख लिया.ऐसे ही चलता रहा,पर बात मछुआरे को लग गई,एक दिन फिर ऐसा ही हुआ,एक मछली ज़ोर-ज़ोर से उछल कूद कर रही थी आँखें नम थी,जैसे ही हाथों में लिया एक मोती निकला, उस पर लिखा था मेरे बिना मेरी माँ मर जायेगी, मछुआरे का मन फिर पसीज गया और उस मछली को भी छोड़ आया और मोती अपने पास रख लिया और सोचने लगा अगर ऐसे ही चलता रहा तो मेरा तो काम बंद हो जायेगा.समय गुजरता रहा,एक दिन फिर ऐसा ही हुआ,आज मोती पर लिखा था, भैया मेरे बिना मेरी पत्नी नहीं रह पायेगी,मछुआरे से रहा नहीं गया,आज पूरा का पूरा मछली से भरा टोकरा तलैया में लोटाया,और तीनों मोती अपनी जेब में रख अपने घर को वापिस चल दिया,मछुआरे ने ये सारी बाँते अपनी पत्नी को बताई और कहाँ अब मैं यह काम नहीं कर पाऊँगा.मैं अपने मन के आगे हार गया मैं अब मछलियाँ नहीं पकड़ पाऊँगा, दोनों ही बड़ी सोच में पड़ गये,कैसे परिवार का लालन पालन होगा.एक दिन मछुआरा बड़े ही परेशान मन से तलैया के पास जाकर बैठ गया और ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगा,तभी एक मछली बाहर आई और बोली भैया, आप चिंता ना करे आपने हमारे लिए इतना किया हैं,अब हमारा वक़्त हैं एक-एक करके बहुत सारी मछलियाँ बाहर आ गयी और हर मछली एक- एक मोती उगल कर चली गई और बोली आप बिलकुल भी चिंता मत करना जब भी आपका मन करे मिलने आते रहना.मछुआरे ने सारे मोती इकट्ठा कर घर की और चल दिया इतने सारे मोती देख कर पूरा घर फूला न समाया और मछुआरे ने एक नया व्यापार शुरू कर दिया,बड़े आनंद के साथ जीवन जी रहें हैं.जब भी मन करता हैं तलैया के पास जाकर मछलियों से मिल आता हैं.आनंद से जियो और आनंद से जीने दो.

श्री पीयूष कुमार गोयल, मध्यम परिवार में जन्मे, यांत्रिक अभियंता, ५७ वर्षीय, २७ साल के अनुभव, आपने नौकरी के साथ-साथ वो काम किया हैं, वो शायद आपने पहले कभी सुना हो, गोयल ने ईश्वर के आशीर्वाद से १७ पुस्तकें हाथ से लिख अपने देश हिंदुस्तान का नाम विश्व में ऊँचा किया हैं,क्या आपने पहले कभी सुना था, कोई व्यक्ति सुई से, कार्बन पेपर से,मेहंदी कोन से,फ्लूइड पेन से,फैब्रिक कोन लाइनर से,और आयरन नेल से पुस्तकें लिख सकता हैं, जी हाँ आपने सही सुना, और पीयूष की तीन पुस्तकें वृंदावन में “वृंदावन शोध संस्थान” में रखी गई हैं, सुई से लिखी पुस्तक ने वर्ल्ड रिकॉर्ड(World Record Association)बनाया हैं उनके नाम दो लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स भी हैं,पीयूष की १० पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैं, पीयूष के इस काम को कई संस्थानों द्वारा सम्मानित भी किया हैं,क्षेत्रीय स्तर पर क्रिकेट अम्पायरिंग करने वाले पीयूष गोयल गणित पर भी काम कर चुके हैं उनके तीन पेपर रिसर्च जर्नल में प्रकाशित हो चुके हैं, आज कल पीयूष २ पत्रिकाओं के लिए लघु कथा लिख रहे हैं,आज कल पीयूष मोटिवेशनल स्पीकर का काम कर रहे हैं जो बिलकुल निःशुल्क हैं क़रीब ३००० छात्र छात्राओं को अपने मोटिवेशन से मोटीवेट कर चुके हैं और कर रहें हैं.

पीयूष आजकल १८वी पुस्तक रंगीन पेन्सिल से दर्पण छवि में हाथ से लिख रहें हैं वो उनके सबसे मनपसंद लेखक “रामधारी सिंह दिनकर” जी की “रश्मिरथी” को लिख रहें हैं.

अंत में उनका लिखा हुआ एक प्रसिद्ध कथन”मैं एक दीया हूँ मेरा काम हैं चमकना,हो सकता हैं मेरी रोशनी कम हो पर दिखाई बहुत दूर से दूँगा”.

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