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आखिरी दस्तक

दस्तक -१

जामनगर की उन व्यस्त गलियों की रौनक तो देखने ही लायक थी। कई दिनों की मूसलाधार बारिश की वजह से थमीं जिंदगी को जैसे ही थोड़ा मौका मिला तो खिल उठा चमन! ...... खुल गई गलियाँ और सज गया बाजार और उस बाजार में भीड़ तो इतनी कि पूछो मत।

आज कद्दू बहुत ही अच्छे आए हैं और भिंडी तो इतनी मँहगी की जैसे सोना। पास ही की दुकान में कांदा लेती मौसी का चार साल का पोता कुल्फी के लिए मचलने लगा , मौसी के मना करने पर वहीं कीचड़ में लोटने की धमकी देने लगा, मौसी आगे खींचे तो वह गाय के बछड़े की तरह पीछे जाए। आखिर में थक हार कर मौसी को उसे कुल्फी दिलानी ही पड़ी। बच्चा जैसे ही कुल्फी खाने को हुआ तभी एक झटका लगा और गई कुल्फी पानी में।

मौसी गुस्से बोली "क्यों री! .... तुझे दिखाई नहीं देता जो मेरे बच्चे को धक्का देकर भागी जा रही है?", उस औरत ने पलट कर माफी माँगते हुए कहा "माफ़ कर दीजिये मौसीजी, थोड़ी जल्दी में थी!" और मौसी के कुछ कहने से पहले ही उसे पचास का नोट पकड़ा कर चली गई।

व्यस्त बाजारों की तंग गलियों से होकर वह उस गली में पहुँची जहाँ उसका घर था। गली में एक तरफ़ मकान थे और दूसरी तरफ़ ऊँची दीवार, सड़क का हाल तो बारिश से देखने लायक था और सडक़ के किनारे कचरे का डिब्बा तो बीच में आकर बडी ही शान से खड़ा था।

उस गलीके सबसे आखिर में जो मकान था वही उसका घर था। दोपहर के साढे चार बजे भी आसमान में उठते घने बादलों की वजह से लग रहा है जैसे सूरज अभी ढ़ल गया। वह घबराई सी तेजी से आगे बढ़ रही थी कि "नलिनी!...." आवाज सुनकर वह जैसे डर कर जड़ हो गई, कुछ पलों बाद उसने डरते डरते पीछे देखा तो कोई नहीं था। कुछ ही पलों में वह अपने घर में चली गई।

दरवाजा बंद करने के बाद भी नलिनी की साँसें धौंकनी की तरह चल रही थी, बाजार में सामान खरीदते वक्त उसे ना जाने क्यों ऐसा लग रहा था जैसे कोई उसे देख रहा हो, जैसे कोई उसका पीछा कर रहा हो। वह कैसे वहाँ से आई है यह तो वह खुद ही जानती है। पिछले कुछ दिनों में बहुत कुछ घट गया उसके साथ। उसकी बंद आँखों के आगे उसकी यादों की जैसे झांकी निकल रही हो।

कालेज के वो दिन, श्वेता जो उसकी बेस्ट फ्रेंड थी उसके साए की तरह साथ देती थी। फिजिक्स की क्लास से साथ निकलती और शुरू हो जाती लड़कों की ताकाझाकी, कई लड़कों ने उससे दोस्ती करने की कोशिश की लेकिन नलिनी भी किसी भी ऐरे गेरे नत्थू खैरे को घास भी नहीं डालती। अरे कालेज के ब्यूटी कॉन्टेस्ट की रनर अप थी वो, और ब्यूटी क्वीन का ताज़ किसी को भी मिले लेकिन होल्कर कालेज की क्वीन तो वही थी। खूबसूरत तो इतनी कि सबको लगता था कि यह तो मॉडल बनेगी या फिल्मों में अच्छा नाम कमाएगी।

वैसे तो वह किसी लडके में कोई इंट्रेस्ट नहीं लेती थी लेकिन एक था भौंदू जो ना दिखने में कुछ खास था और ना ही बात करने का सलीका। फिर भी नलिनी उससे कभी कभी अपने नोट्स करवाने के लिए बात कर लेती थी।

"नलिनी!..." अचानक उसकी त्रंद्रा टूटी, "नलिनी!!...." , "ज... जी ....... आई!....." सुबोध की आवाज सुनकर वस उसके कमरे की तरफ भागी।

कमरे में सुबोध बिस्तर से नीचे गिर पड़ा था, शायद उसे पानी चाहिए था, जल्दी से नलिनी ने एक ग्लास में सुबोध को पानी पिलाया।

"क्यों घुट रही हो मेरे साथ?.......मुझे छोड़ क्यों नहीं देती?" सुबोध की आँखों से बहते आँसू भी उसका दर्द नहीं बयान कर पा रहे थे।

"ऐसा क्यों कहते हैं?......मैं आपको नहीं छोड़ने वाली!" नलिनी ने दिलासा देते हुए कहा।

"मैं सिर्फ चंद दिनों का परिंदा हुँ नलिनी, ...... कब उड़ जाऊंगा पता नहीं,..... तुम्हारे सामने पूरी जिंदगी पड़ी है......" सुबोध की बातें उसके दिल को तार-तार कर रही थी, कुछ पलों की चुप्पी के बाद सुबोध की तरफ़ देखते हुए बोली "सही कहा,...... मेरी जिंदगी तो यहाँ मेरे सामने ....... पड़ी हुई है" और मुस्कुराने की कोशिश करने लगी।

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जारी है अगले भाग में......

दस्तक - २ - लकड़बग्घा

नलिनी के चेहरे पर गहरी चिंता छाई हुई थी, थोड़ी देर पहले ही सुबोध को नींद आई , कई दिनों के बाद सुबोध आज सो पाया था। वो कभी बेचैनी से ऊपर देखती जहाँ उसका पति सो रहा था और कभी उस दरवाजे को देख कर सिहर सी जाती, ना जाने कौन सा राज़ उसे खाए जा रहा था।बाहर बारिश तो जैसे कहर ढा रही थी, तूफ़ान हर पल और ही उग्र होता जा रहा था। रात के आठ बज रहे थे, नलिनी की आँखों से आँसू जैसे बंद ही नहीं होना चाहते हों।"तुझे आना ही होगा आज! ........" खालिद की आवाज़ उसके कानों को चीर रही थी।खालिद, उस शहर के M.L.A. का दायां हाथ, उसके ऊपर हाथ डालने की हिम्मत किसी में नहीं थी। पिछले पुलिस सुपरिटेंडेंट सुरेन्द्रनाथ बागची ने उसके घर पर रेड डालने की कोशिश की थी लेकिन इससे पहले वो उस के घर में घुसते, उनका तबादला कर दिया गया और उस तबादले लेटर की प्रति सुरेन्द्रनाथ को खालिद से मिली। उसके बाद तो उसे रोकने वाला शहर में नहीं था।पिछले एक महीने से खालिद ने उसकी जिंदगी नर्क बना कर रख दी थी, जहाँ देखो वहीं पहुँच जाता और नलिनी को सबके सामने घूरता, उसकी आँखे तो जैसे उसके कपड़ों को उसके शरीर से नोंचकर अलग करना चाहती हो। उसे इतनी शर्मिंदगी होती लेकिन इतना सब होने पर भी किसी में हिम्मत नहीं कि कोई कुछ बोल भी सके।आखिर कितना बर्दाश्त करती वो? एक दिन वो बैंक से पैसे निकाल कर बाहर निकलने के लिए गई थी तो वहाँ भी वो नामुराद आ पहुँचा। उस छोटी सी बैंक की पुरानी इमारत का गलियारा बड़ा सँकरा था और वो उसी गलियारे पर गेट के बीचोंबीच खड़ा था। नलिनी इतने दिनों से सब चुपचाप बर्दाश्त कर रही थी लेकिन आज नहीं, इतना सोंचकर वो आगे बढ़ी ।"रास्ता छोड़ो मेरा!......." नलिनी किसी तरह अपने गुस्से को सँभाले हुई थी।खालिद कुछ नहीं बोला, बस बेशर्मी से उसके सीने के उभारों को देख रहा था।"मैंने कहा मेरा रास्ता छोड़ो!........ वरना!!...." नलिनी के अपनी बात पूरी होने से पहले ही वह एक तरफ़ हट गया। नलिनी को थोड़ा आश्चर्य तो लगा लेकिन वह वहाँ से जल्दी से निकल जाना चाहती थी इसलिये वह आगे बढ़ी। गलियारा सँकरा था और उसके एक तरफ़ हटने के बाद भी इतनी जगह नहीं थी कि नलिनी आसानी से निकल सकती इसलिए वो दूसरी तरफ दीवार से सटकर निकलने लगी। वो अभी भी नलिनी के उभारों को खा जाने वाली नज़रों से देख रहा था, उसके मुँह से आती शराब की बदबू से उसका सिर घूमने लगा था और वो जल्दी से निकल जाना चाहती थी।नलिनी खुद को उससे स्पर्श ना हो इसलिए धीरे धीरे सरक रही थी, सरकते सरकते वो खालिद के एकदम सामने पहुँची कि तभी वो अचानक नलिनी की तरफ झुक गया। यह सब इतना अप्रत्याशित सा हुआ कि कुछ पलों तक उसे कुछ समझ में ही नहीं आया कि क्या हो रहा है। अचानक खालिद की गर्म हथेलियों को उसने अपने उभारों पर फिसलते पाया, वो नींचे गिर गई थी और खालिद पूरा उसके ऊपर था और नलिनी को उसने कसकर जकड़ रखा था।नलिनी पूरी ताकत से छूटने की कोशिश कर रही थी कुछ पलों के बाद जैसे ही वह उसकी पकड़ से निकली तब तक खालिद उसके पूरे बदन का मुआयना कर चुका था।बड़ी ही बेशर्मी से हँसते हुए बोला "बड़ी गर्मी है तुझमें, .......... चल तुझे रातरानी बना दूँ!" नलिनी गुस्से से काँप रही थी, उसने आव देखा ना ताव एक जोरदार तमाचा उसने सबके सामने खालिद को जड़ दिया। उस तमाचे की गूँज बहुत दूर तक हुई, सभी लोग भय से जैसे जड़ हो गए और नलिनी की तरफ ऐसे देखने लगे मानो कहना चाहते हों कि आज इस औरत का आखिरी दिन है।खालिद ने बहुत देरतक आँखें नहीं खोली लेकिन जब उसकी आँखें खुली तो उनमें हवस और दरिंदगी भरी हुई थी। उसने सपने में भी नहीं सोंचा कि कोई औरत उसे भरे बाजार इस तरह तमाचा मार सकती है।खालिद को ऐसा लग रहा था कि जैसे किसी ने उसे.सबके सामने नंगा कर दिया हो, अपने अपमान से वह तिलमिलाया हुआ वह उठा और अपने कुर्ते से तलवार निकाल कर नलिनी की तरफ़ बढ़ा, नलिनी ना तो भागी और ना हि एक पल को विचलित हुई, बस अपनी जलती निगाहों से उसे अपनी तरफ़ बढ़ते देखती रही। खालिद अपनी तलवार हाथ में लिए बस एक कदम ही दूर था, अगला कदम और वो तलवार एक पल में नलिनी की जिंदगी का अंत कर देगी।खालिद ने अपनी खूंखार आँखों से नलिनी की आँखों में देखा लेकिन नलिनी ने अपनी पलक तक नहीं झपकाई, ......... डर उसकी आँखों से नदारद था।खालिद की तलवार उठी और एक दर्दनाक चीख गूँजी "आ!!!!!!!!!!!!!!!!!............ ह!!!!!!!!!......."।------- कहानी अभी बाकी है मेरे दोस्त-------बताना जरुर कैसा लगा यह भाग।

दस्तक - ३ ज़लज़ला

नलिनी के चेहरे से बहता खून उसके कपडों से टप टप कर बह रहा था, उसके बदन पर पड़े खून के लाल धब्बे खालिद की क्रूरता का जीवंत उदाहरण थी। खालिद वाकई में किसी जल्लाद से कम नहीं था उसके एक ही वार ने उसके साथी इलियास के दो टुकड़े कर दिये,........ खून का फव्वारा छोड़ता वो बीच सड़क में गिर पड़ा,........ थोड़ी देर छटपटाया और फिर उसका बेजान सिर एक तरफ़ लुढ़क गया। सड़क पर बहता खून पास की नाली में जा मिला.......... नलिनी उसके खून से रंग गई थी लेकिन इतना सबकुछ होने पर भी उसने अपनी पलकें तक नहीं झपकाई।खालिद स्तब्ध खड़ा थोड़ी देर तक नलिनी को देखता रहा। खालिद की आँखें नलिनी की आँखों में डर देखना चाहती थी लेकिन उसकी आँखों में तो आग थी........बगावत की......विद्रोह की। पहली बार किसी औरत ने भरे बाजार खालिद की सत्ता को चुनौती दी है, ............ पहली बार ....... हाँ पहली बार खालिद को डर लगा अपने साम्राज्य के हिलने का। उसने अपने आतंक से ही तो ये सब पाया, ये उसका डर ही था कि नेताजी ने उसे अपना दाँया हाथ माना और कमिश्नर तक भी उसका कुछ बिगाड़ ना सके ।आज उसी दाँये हाथ को सबके सामने नलिनी की आँखों ने मरोड़कर रख दिया। खालिद ने ना जाने कितने कत्ल किए.......... ना जाने कितनी औरतों का बलात्कार किया ......... अपने कसरती हाथों से उसने ना जाने कितनी औरतों को नंगा किया।आज पहली बार खालिद को लग रहा था जैसे उसे सबके सामने नंगा कर दिया गया हो।दोपहर की कड़ी धूप के बाद ये आँधी कैसी चल रही है? देखते-देखते ही पूरा बाजार धूल भरी आँधी के आगोश में समा गया ......... आसमान पर उमड़ते बादलों का रुख भयानक था। अचानक ही जोरदार बारिश होने लगी, ..... नलिनी के बदन पर लगा खून धुलकर बहने लगा.......... बारिश की बूंदें जैसे नंदिनी के दामन पर लगे दाग को धोने ही आई थी।गुस्से से भभकते हुए चेहरे पर भेड़िये सी कुटिल मुस्कान के साथ खालिद बोला "सुन रे कलुआ!!........ कल शाम को सारे मर्द यहीं होने चाहिए!", "क्यों सरकार??......" कलुआ ने डरते डरते दूर से ही पूछा।खालिद ने गुस्से से कलुआ को एक नजर देखा फिर नलिनी की तरफ घूरते हुए बोला "बहुत आग है तुझमें! ....... कलुआ! ...... सुन!! ......... कल इसी जगह पर मेरा बिस्तर लगेगा....... बीच सड़क पर!!.......... कल इस मोहल्ले के एक सौ बत्तीस मर्द इस औरत की आग ठंडी करेंगे!!!.........यही!!........सबके सामने!!....... इसी बिस्तर पर!!!"।नलिनी तो जैसे होश में आई और उसकी रूह तक अंदर से काँप गई यह सुनकर लेकिन खतरा तो उसने ले लिया और अब कुछ नहीं हो सकता था। वो वापस जाने को मुड़ी तभी रंगा, खालिद का चमचा बोला "सरकार!! कल की गंदी पिक्चर का आज ट्रेलर तो दिखा दो!.......", नलिनी के लिये ये खतरे की घंटी थी इसलिए उसने बिना मुड़े वहाँ से भाग निकली। खालिद के आदमी उसके पीछे तो थे पर इतने भी नहीं कि वो उसे पकड़ ना सके, ........ खालिद अपने शिकार के साथ खेल रहा था।सारा वाकया नलिनी की आँखों के सामने घूम रहा था, वह एक मासूम सी हिरन थी और खालिद भेड़ियों का सरदार लकडबग्घा....... कल आनेवाली कयामत से बचने का कोई तरीका नहीं. समझ आ रहा था। वो अब भाग भी नहीं सकती थी, बाहर खालिद के गुंडे हर रास्ते पर थे। अब या तो कल नलिनी अपनी लुटती इज्ज़त का तमाशा बनते देखे या खुद को ही मार दे।"हाँ!..... यही ठीक है......." सोचकर वो किचन में गई ......... इधर-उधर नज़रें दौड़ाने पर भी वो चीज नहीं मिली.......... उसने ड्रॉअर खोला.... उधर भी नहीं...... वो सोंचने लगी अचानक ही उसे याद आया...... उसने ऊपर रखे डिब्बे में से चावल की थैली निकाली और जहर की शीशी उठा ली .......।सुबोध का चेहरा, ...... उसकी बातें......... शादी की पहली रात..... सब नलिनी की आँखों के सामने घूम रहा था मानो मरने से पहले एक बार अपनी यादों को जी भर कर याद करना चाहती हो। "मेरे होते हुए तुम्हें कुछ नहीं हो सकता........" सुबोध की बातें याद आते ही नलिनी फूट-फूट कर रोने लगी.... "अगर मौत भी आई तो उसे मुझे ले जाना होकर...."।ना जाने वो कितनी देर तक रोती रही ....... अपनी किस्मत पर ..., आखिरकार उसने अपना मन कड़ा किया..... और जहर की शीशी धीरे-धीरे उसके होंठों की तरफ़ बढऩे लगी।बाहर अचानक गोलियां चलने लगी...... लोगों के चीखने की आवाजें आने लगी,.......गोलियों से निढाल होते बेजान शरीरों के गिरने की आवाजें दिल दहला देने वाली थी।.......गोलियों की आवाजें पास आ रही थीं,..... ऐसा लग रहा था जैसे कोई ज़लज़ला आ रहा हो।"क्या खालिद आ रहा है?......" नलिनी ने खुद से ही सवाल किया...... "हो सकता है..... और कौन हो सकता है?..."। "...लेकिन?.......लेकिन..... उसने तो मुझे कल तक की मोहलत दी थी..... क्या फ़र्क पड़ता है?......"। नलिनी ने नफ़रत से दरवाजे की तरफ़ देखा ".....औरत की भूख बर्दाश्त नहीं हुई उससे? ....... वो ऐसा मर्द है जिसे औरत का मान मर्दन करने में बड़ा मजा आता है, .........मेरे सम्मान को अपने पैरों तले रौंदने की जिद!,....... मेरे आत्मविश्वास को अपने अहंकार से कुचलने का जुनून!...........भरे बाज़ार मुझे बेआबरू कर मेरे बदन को नोंच-नोंच कर खाने की हवस उसे यहाँ तक ले आई है"।नलिनी की सुंदरता ही उसका अभिशाप बन गई है और आज वो इस अभिशाप को खत्म करती है ..... अगले ही पल में उसने जहर की पूरी शीशी खाली कर दी .......... बस अब उसे था सिर्फ और सिर्फ ..... मौत का इंतजार....।जहर जैसे जलते अंगारे की तरह उसके हलक को चीरता हुआ अंदर जा रहा था तभी दरवाजे पर किसी के आने की आहट हुई.... "आ गया...... लकड़बग्घा!...." नलिनी ने धीरे से खुद को ही कहा। नलिनी की साँसें अब उखड़ने लगी थी, ........... अचानक एक जोरदार धमाका हुआ और दरवाजा और दीवार का कुछ हिस्सा धमाके में उड़ गया।नलिनी समझ नहीं पा रही थी कि अंदर आने के लिए खालिद ने इस तरह से दरवाजा क्यों उड़ा दिया?...... उसे कौन रोक सकता है यहाँ?..... वह चाहे तो आसानी से उसे उठाकर ले जा सकता है लेकिन उसका यह तरीका नलिनी की समझ से परे था।धमाके से घर की बिजली भी चली गई थी जिससे घर में अंधेरा हो गया था, ...... दरवाजा टूट जाने की वजह से बाहर के स्ट्रीट लैंप की तेज रोशनी हॉल तक आ रही थी जो दूसरी तरफ दीवार तक पड़ रही थी। नलिनी किचन में पड़ी अपनी आखिरी साँसें गिन रही थी,........ जहर अपना काम बड़ी तेजी से कर रहा था...... और नलिनी की आँखें दीवार पर पड़ती रोशनी पर थीं।ना जाने क्यों उसे लग रहा था कि ये खालिद नहीं ...... कोई और आया है तभी अचानक मशीनगन की सैकड़ों गोलियां दीवार पर पड़ने लगी और दीवार का प्लास्टर निकलकर चारों तरफ़ फैलने लगा। किसी के गुस्से के लावे की तपन नलिनी ने भी महसूस की, ..... वो जो भी था गुस्से में पूरा घर उड़ा देना चाहता था।गोलियां चलनी बंद हो गई थी, शायद गोलियाँ खत्म हो गई थी और चारों तरफ सन्नाटा छा गया। नलिनी अभी भी उस दीवार की तरफ देख रही थी .......धीरे-धीरे उस शख्स की परछाई दीवार पर आई, नलिनी को जैसे दो हजार वोल्ट का झटका लगा, उसके अतीत में दफन दानव आज जिंदा होकर आया है।वो दानव! ......... जो कभी देवता की तरह था, .....और उसे नलिनी ने बनाया था। नलिनी के मुँह से खून की कुछ बूंदें छलकी, वो चीखना चाहती थी लेकिन उसमें इतनी शक्ति कहाँ बची थी, किसी तरह वो दीवार का सहारा लेकर खड़ी हुई, अपनी उखड़ती साँसों को एकत्रित कर उसने आवाज लगाई "....द....दे!...व!.......देव!!.." उस साये ने क्रोध से बिफरते हुए एक हाथ से नलिनी का गला पकड़ लिया और सीधे ऊपर उठा दिया मानो नलिनी को वह अपने हाथों से ही फाँसी दे देना चाहता हो। 

नलिनी साँस लेने के लिए तड़प रही थी कि अचानक उस साये ने उसे छोड़ दिया, वो नीचे गिर पड़ी, थोड़ी देर बाद वो वापस उठी ........ "त...डा..क!!!!!..."तभी उस साये ने एक जोरदार तमाचा नलिनी के गाल पर मारा, नलिनी की आँखों के सामने अंधेरा छाने लगा। तमाचा इतना जोरदार था कि नलिनी के गालों पर पाँचों अंगुलियाँ छप गई, उसका गाल इतना लाल हो गया मानो किसी ने होली का रंग लगाया हो।तभी उसकी आवाज से पूरा घर थर्रा उठा ...."मैंने कहा था ना!!.......मैं तुम्हारा बुरा वक्त हूँ!!!! ......... मैं तुम्हें मार दूँगा!!!......." उस साये की आवाज़ से नफंरत की चिंगारियां निकाल रही थीं।नलिनी की आँखों के आगे अंधेरा छा रहा था, ........ लगता है जहर ने अपना काम कर दिया। नलिनी जैसे किसी अंधेरे कुँए में गिरती जा रही थी, ...... उसे हर आवाज मंद सुनाई दे रही थी। लगता था कि वो सबसे दूर जा रही है, ...... इसी बीच उसे बस एक ही आवाज सुनाई दे रही थी "नलिनी??.....नलिनी!!!!.........", उसका अतीत उसके पीछे नंगे पांव दौड़ा आ रहा था, ... अपने लहुलुहान होते पैरों की परवाह किए बिना।////कहानी अभी बाकी है मेरे दोस्त/////

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