यह रविवार की सुबह थी और मैं अपने बेड पर बैठी कॉलेज का काम कर रही थी।
कुछ समय के बाद, कोई मेरे कमरे का दरवाजा खोलता है, और मैं सिर उठाकर देखती हूँ कि यह मेरा सौतेला भाई आरव था। मुझे कभी-कभी उसपर बहुत गुस्सा आता था। वह उन्नीस साल का हो गया था, लेकिन यह नहीं मालूम कि किसी के कमरे में जाने से पहले दरवाजा खटखटाया जाता है।
“तुम क्या कर रही हो?” आरव मेरी ओर आते हुए पूछता है और मैं गहरी लंबी सांस लेती हूँ। मुझे पता था कि अब जब तक वह वहाँ था, मैं अपने कॉलेज का काम नहीं कर पाऊंगी।
“अरे मैं अभी आया हूँ, और तुम पहले से ही ऐसा चेहरा बना रही हो।” वह अपने हाथ अपनी कमर पर रखता है और गुस्से में दिखने का नाटक करता है, लेकिन फिर अपनी हँसी को रोक नहीं पाता। यही एक बात थी जो मुझे उसके बारे में पसंद थी कि वह क्यूट था, लेकिन फिर तंग भी बहुत करता था। उसने मुझे परेशान किए बिना कोई दिन नहीं जाने दिया था, और मुझे मालूम था कि वह फिर से मुझे तंग करने के लिए ही आया है।
“तो मैं क्या करूँ? आखिरकार तुम दुनिया के सबसे बुरे भाई जो ठहरे।” मैं प्यार से कहती हूँ जबकि मैं वह सब गुस्से से कहना चाहती थी। मेरा मन कर रहा था कि मैं उसे अभी अपने कमरे से बाहर निकाल दूँ जैसे कि हमेशा करती थी, लेकिन फिर पापा मुझे डांटते।
“तुम मुझसे इतनी नफ़रत क्यों करती हो?” वह मेरे बेड पर बैठ जाता है, और उदास-सा चेहरा बनाकर पूछता है।
“क्योंकि मैं तुम्हें पसंद नहीं करती हूँ।” मैं कहती हूँ और फिर से लिखने लग जाती हूँ। मुझे उसका उदास चेहरा देखना बिल्कुल भी पसंद नहीं था। चाहें मुझे वह थोड़ा सा भी पसंद नहीं था, लेकिन जब भी मैं उसका उदास चेहरा देखती थी तो मुझे बहुत बुरा लगता था।
“लेकिन क्यों?” उसने पूछा और मैंने कोई जवाब नहीं दिया। उन शब्दों को कहकर वह मुझे ऐसा महसूस करा रहा था, जैसे कि उसे मालूम नहीं है कि मैं उसे नफ़रत क्यों करती हूँ। क्या उसे पता नहीं है कि वह मुझे कितना परेशान करता है।
“प्लीज, बताओ भी। चुप मत रहो।” वह कहता है और मैं फिर से चुप रहती हूँ।
जब मैंने फिर से उसका जवाब नहीं दिया तो वह गुस्से में बेड से खड़ा हो जाता है और चिल्लाता है, “मैंने तुमसे कुछ पूछा है। मुझे जवाब दो!” मैं फिर से कुछ नहीं बोलती हूँ। असल में उससे छुटकारा पाने का सबसे अच्छा तरीका था कि उसे नजरंदाज किया जाए और मैं वही कर रही थी।
पर इस बार यह तरीका उस पर काम नहीं करता है।
वह और गुस्सा हो जाता है और फिर मेरा ध्यान अपनी ओर करने के लिए वह मुझसे मेरी नोटबुक छीन लेता है जिसपर मैं काम कर रही थी।
“तुम क्या कर रहे हो? मेरी नोटबुक मुझे वापस दो।” वह नोटबुक मेरे लिए बहुत जरूरी थी। मुझे डर लग रहा था कि कहीं आरव उसे फाड़ न दे।
मैं जल्दी से बेड पर खड़ी हो जाती हूँ और अपनी नोटबुक उससे लेने की कोशिश करती हूँ। मैं बार-बार नोटबुक पकड़ने की कोशिश करती हूँ, लेकिन वह हर बार अपना हाथ मुझसे दूर ले जाता था। अब मुझे उस पर गुस्सा आ रहा था, और मेरा मन कर रहा था कि मैं उसका नाक तोड़ दूं।
“मुझे मेरी नोटबुक वापस दो।”
मैं बेड से नीचे उतर आती हूँ और अपनी नोटबुक उसके हाथ से छीनने की कोशिश करती हूँ। हालाँकि वह मुझसे ज्यादा लंबा नहीं था, लेकिन फिर भी मेरा हाथ उसके हाथ तक नहीं पहुंच पा रहा था।
“तुम इसे नहीं ले पाओगी।” आरव कहता है और फिर मेरी नोटबुक को हवा में फेंक देता है। नोटबुक हवा में उड़ते हुए ज़ोर से फर्श पर आ गिरती है और इसके साथ मेरा दिल भी फर्श पर आ गिरता है। मैंने पूरे हफ्ते उसपर काम किया था। अगर उसका एक भी पेज फट जाता तो मुझे दुबारा से सब लिखना पड़ता।
मैं आरव की ओर एक बार गुस्से से देखती हूँ, और फिर अपनी नोटबुक उठाने चली जाती हूँ। मैं नोटबुक उठाती हूँ, और देखती हूँ कि यह बिल्कुल ठीक थी। मैं मन में भगवान का शुक्रिया करती हूँ और फिर अपने बेड की ओर जाती हूँ, लेकिन इससे पहले कि मैं बेड पर पहुंच पाती, आरव मेरा हाथ पकड़कर मुझे रोक लेता है।
“कहाँ जा रही हो?” आरव कहता है और फिर मुझे मेरे हाथ से अपने पास खींच लेता है। मैं हैरानी से उसकी ओर देखती हूँ, और सोचती हूँ कि वह क्या कर रहा है?
इससे पहले कि मैं उसे कुछ पूछ पाती वह मुझे मेरे कमरे की अलमारी पर धकेल देता है और मेरे दोनों हाथ अपने हाथों में कसकर पकड़ लेता है। मेरी नोटबुक एक बार फिर से मेरे हाथ से गिरकर फर्श पर जा गिरती है, और इस बार यह बिल्कुल भी ठीक नहीं लग रही थी।
“तुमने ये क्या किया? अगर मेरी नोटबुक फट गईं तो मेरा सारा काम तुम्हें लिखना पड़ेगा।” मैं उसपर चिल्लाती हूँ और अपने हाथ उसकी पकड़ से छुड़ाने की कोशिश करती हूँ, लेकिन छुड़ा नहीं पाती। पता नहीं वह क्या खाकर बड़ा हुआ था कि उसकी पकड़ इतनी मजबूत थी।
“मुझे छोड़ो!” मैं गुस्से से कहती हूँ।
“नहीं। आज तो मैं तुम्हें नहीं जाने दूंगा। पहले मुझे जवाब दो कि तुम मुझसे नफरत क्यों करती हो?” आरव कहता है। मैं उसकी आँखों में देखती हूँ, और मुझे आज उनमें शरारत नज़र आ रही थी। मुझे पता था कि आज वह मुझे आसानी से जाने नहीं देने वाला है।
“मैं पहले ही बता चुकी हूँ कि मैं तुम्हें पसंद नहीं करती हूँ, तो तुम बार-बार वही सवाल क्यों पूछ रहे हो?” मैं जोर से अपने हाथ उसके हाथों से खींचती हूँ, और वह मेरे हाथ छोड़ देता है।
“तुम्हें पता है?... शायद तुमने अभी तक मुझे अपना भाई माना ही नहीं है।” आरव मेरी ओर देखता है और फिर अपना चेहरा मेरे पास लाते हुए कहता हैं। मैं एकदम से घबरा जाती हूँ और थोड़ा-सा और पीछे जाने की कोशिश करती हूँ, लेकिन वहाँ कोई जगह नहीं थी जहाँ मैं जा सकती।
“तुम क्या कर रहे हो?” मैं उसकी सीने पर अपना हाथ रखकर उसे रोकने की कोशिश करती हूँ।
“तुम्हें पता है?” वह मेरे और करीब आ जाता है, हालांकि मैं उसे रोकने की पूरी कोशिश कर रही थी। “मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ।” अब उसकी सांसे मेरी गाल पर पड़ रही थी, और मेरे दिल की धड़कनें ज़ोर-ज़ोर से धड़क रही थी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि वह ऐसा क्यों कह रहा था।
“पीछे हटो!” मैंने उसे ज़ोर से धक्का दिया और वह पीछे हट जाता है, लेकिन फिर दूसरे ही पल वह फिर से मेरे पास आ जाता है, और अपने हाथ मेरे दोनों ओर अलमारी पर जमा लेता है।
“तुम चाहते क्या हो?” मैं उसे गुस्से से पूछती हूँ लेकिन वह मेरी ओर मुस्कुरा रहा था।
“तुम जानना चाहती हो कि मैं तुमसे क्या चाहता हूँ?” वह एक बार फिर से मेरे चेहरे के करीब आता है, और फिर मेरे कान में कुछ कहता है। उसकी बात सुनकर मेरे होश उड़ गए थे और मेरे दिल की धड़कने अब और भी तेज हो गई थी।
‛वह मेरे साथ क्या?? सोना चाहता है!!!???’ मेरे दिमाग में अब एक ही आवाज़ गूंज रही थी।
“तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है? मैं तुम्हारी बहन हूँ!” मैं चिल्लाती हूँ। “तुम्हें पता है? मैं मम्मी को यह सब बता सकती हूँ, और फिर तुम्हें बहुत गालियां पड़ेगी। ”
“तुम्हें क्या लगता है कि मैं मम्मी से डरता हूँ?” वह एक बार फिर मेरे हाथ अपने हाथों में पकड़ लेता है।“ तुम्हें शायद अभी मालूम नहीं है कि मैं तुमसे कितना प्यार करता हूँ।” यह कहकर वह मेरे गाल पर किस करने की कोशिश करता है, लेकिन मैं अपना सिर इधर-उधर करती हूँ और उसे किस नहीं करने देती हूँ।
“मैं सच में मम्मी को बताऊंगी।” मैं चिल्लाती हूँ।
“ठीक है। बताओ जिसे बताना है। मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।” आरव कहता है और फिर मेरा कमरा छोड़कर चला जाता है।
चाहे अब वह मेरे कमरे में नहीं था पर मेरे दिल की धड़कने अब भी तेज थी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि वह मुझसे वैसा कुछ कैसे कह सकता है। चाहे हम असली भाई-बहन नहीं है, लेकिन फिर भी वह मुझसे प्यार कैसे कर सकता है? हम दोनों के बीच में वह सब नहीं हो सकता है।
मैं सोचते-सोचते अपने बेड पर वापस आ जाती हूँ और नोटबुक के बारे में बिल्कुल ही भूल जाती हूँ। मेरा दिमाग अब एक पल के लिए भी आरव के बारे में सोचना बंद नहीं कर रहा था। मुझे याद आ रहा था कि कैसे तीन साल पहले वह अपनी मम्मी के साथ इस घर में आया था, और उसी दिन से मैं उसे नफ़रत करने लग गईं थी।
असल में, मैं जब सिर्फ पांच साल की थी तो मेरी मम्मी गुजर गई थी, और फिर दादा-दादी के कहने पर भी पापा ने कभी दूसरी शादी नहीं की। वह हमेशा कहते थे कि वह मुझे सौतेली माँ नहीं देना चाहते। वह डरते थे कि उनकी दूसरी पत्नी मुझे असली माँ की तरह प्यार नहीं कर पायेगी। इस लिए उन्होंने कभी शादी नहीं की। लेकिन जब मैं बढ़ी हुई, तो मैं भी दादा-दादी की तरफ थी और पापा को हमेशा शादी करने के लिए कहती थी।
कुछ साल पापा ने ऐसे ही बिता दिए, लेकिन फिर एक दिन वह मुझे बताते है कि वह किसी को पसंद करने लगें है, और वह दोनों शादी करना चाहते है। मैं पापा की यह बात सुनकर बहुत खुश थी, लेकिन बाद में पापा बताते है कि उस औरत का एक बेटा भी है।
मुझे इससे कोई प्रॉब्लम नहीं थी। मुझे बस इतना पता था कि पापा खुश है। मैंने पापा को कह दिया था कि मुझे इससे कोई प्रॉब्लम नहीं है, वह शादी कर सकते है।
इसके बाद पापा कुछ दिनों में उस औरत से शादी कर लेते है, और ऐसे मुझे एक नई मम्मी और एक भाई मिल जाता है।
मैं मम्मी के साथ तो बहुत खुश थी लेकिन भाई के साथ नहीं। मुझे लगा था कि वह मुझसे छोटा होगा, लेकिन वह मेरी ही उम्र का था। लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता था। और अगर मैं उसे शादी के पहले भी देख लेती तो भी मैं शादी के लिए मना नहीं करने वाली थी। मेरे लिये पापा की खुशी सबसे बढ़कर थी और फिर मम्मी भी तो अच्छी थी।
समय के साथ मुझे मम्मी से और प्यार होता गया और आरव से नफरत।
और इसका कारण यह था, क्योंकि आरव हर दिन मेरे कमरे में आ जाता था और जब मैं उससे बात नहीं भी करना चाहती होती थी, तो तब भी वह मुझसे बात करने की कोशिश करता था। मैं यहाँ भी जाती थी, वह पूंछ की तरह मेरे पीछे-पीछे रहता था।
मुझे उसपर बहुत गुस्सा आता था लेकिन मैं कुछ नहीं कर पाती थी। पर शायद वह गुस्सा नहीं था बल्कि कुछ और जो मुझे खुद भी समझ नहीं आ रहा था।
शाम के छह बजे मैं अपने कॉलेज का काम ख़त्म करके अपने कमरे से बाहर आती हूँ, और देखती हूँ कि मम्मी-पापा पहले से ही हॉल में थे। मैं उनके पास जाकर सोफे पर बैठ जाती हूँ और उनसे बातें करने लगती हूँ। थोड़ी देर के बाद मैं मम्मी के साथ किचन में चली जाती हूँ और उनकी सब्जियां काटने में मदद करती हूँ। जब मैं सब्जियां काट रही थी तो तभी आरव भी हॉल में आ जाता है। मेरी और उसकी एक पल के लिए नजरें मिलती है लेकिन फिर दूसरे ही पल मैं कहीं ओर देखती हूँ।
कुछ देर के बाद, मैं सब्जी काटकर किचन से बाहर आ जाती हूँ, और पापा के साथ सोफे पर बैठ जाती हूँ। आरव जो खाने के टेबल पर बैठा कॉफी पी रहा था, वह भी उठकर वहीं आ जाता है।
वह पापा के पास बैठने के जगह मेरे पास आकर बैठ जाता है और इससे मैं और पापा, हम दोनों उसे हैरानी से देखते हैं।
“अरे, वाह क्या बात है? लगता है तुम दोनों ने अब लड़ना बंद कर दिया हैं।” पापा मुस्कुराकर कहते है।
मैं मन ही मन मैं उनकी यह बात सुनकर हँसती हूँ और सोचती हूँ, ‛अगर आपको पता चलता कि वह क्या करने की कोशिश कर रहा है, तो शायद आप यह न कह पाते।’
“तुम क्यों मुस्कुरा रही हो?” पापा मुझसे पूछते है, और मैं जवाब देने की जगह थोड़ा-सा और मुस्कुरा देती हूँ।
बाद में रात का खाना खाकर, हम सब अपने-अपने कमरे में चले जाते हैं, और मैं भी अपने कमरे में आ जाती हूँ। कमरे में आने के बाद मैं अपने कमरे का दरवाज़ा बंद करने लगती हूँ लेकिन तभी आरव वहाँ पर आ जाता है।
“तुम यहाँ क्या कर रहे हो?” मैं उसे धीमी आवाज़ में पूछती हूँ।
“मैं यहाँ पर यह जानने आया हूँ कि...तुम मुझे प्यार करती हो या नहीं?” आरव पूछता है।
“तुम्हें पता है? मैं तुम्हें चप्पल से मारूँगी। देखना चाहोगे?” मैं अपना पैर उठाती हूँ और चप्पल उतारने का नाटक करती हूँ। मैं सच में उसे नहीं मारने वाली थी।
“तुम मुझे मारोगी?” आरव कहता हैं, और फिर एक दम से मुझे कमरे के अंदर धकेल देता है। वह मेरे कमरे में घुस आता हैं और फिर मेरे हाथ पकड़कर मुझे दीवार से लगा देता है।
“तुम यह क्या कर रहे हो?” मैं अपनी हाथ उसके हाथों से छुड़ाने की कोशिश करती हूँ।
“तुम मुझे मारना चाहती थी ना? तो अब मारो मुझे।“ वह मुस्कुराता है।
“देखो - ।” मैं कुछ कहने ही वाली थी पर उसके पहले ही उसके होंठ मेरे होंठों से छू जाते है। मेरी आँखें फटी की फटी रह जाती है। मैं उसे अपने से दूर धकेलना चाहती थी, लेकिन नहीं धकेल पाई। उसके होंठ मेरे होंठों को बार-बार छू रहे थे। थोड़ी देर के बाद मेरे होंठों को कोई गीली चीज छूती हैं और मुझे पता था कि वह क्या है। आरव अपनी जीभ को मेरे मुंह में डालने की कोशिश कर रहा था।
मुझे वह सब कुछ बहुत अजीब लग रहा था। नहीं, ऐसा नहीं था कि उसकी किस बुरी थी। पर प्रॉब्लम यह थी कि यह मुझे अच्छी लग रही थी। मैंने पहले भी एक बार अपने कॉलेज के एक लड़के को किस किया था, लेकिन तब मुझे इतना अच्छा नहीं लगा जितना अच्छा अब लग रहा था।
“अपना मुंह खोलो।” आरव किस करना छोड़ देता है और मुझसे कहता है।
“मुंह खोलूँ अपना? अभी बताती हूँ तुम्हें।” मैं कहती हूँ और फिर अपना पैर उठाती हूँ उसे मारने के लिए, लेकिन इससे पहले कि मैं उसे मार पाती वह मुझसे पीछे हट जाता हैं।
“तुम बहुत बुरी लड़की हो।” आरव कहता है और मेरा पैर पकड़ लेता है जिससे मैं उसे मारने की कोशिश की थी।
“मेरा पैर छोड़ो।” मैं कहती हूँ और अपना पैर उससे खींचती हूँ, लेकिन वह इसे नहीं जाने देता। आरव एक बार फिर से मेरे करीब आने लगता है, और जैसे-जैसे वह मेरे करीब आ रहा था, वैसे-वैसे ही उसका हाथ मेरी टांग पर ऊपर की ओर जा रहा था। मुझे यह सोचकर डर लग रहा था कि वह क्या करने वाला है, लेकिन इसके साथ ही मेरे दिल में एक नई तरह की उमंग भी थी। उसका हाथ ऊपर बढ़ते-बढ़ते मेरी कमर तक आ जाता है। मेरी दिल की धड़कने अब बढ़ने लगी थी।
“क्या मैं तुम्हें यहाँ छू सकता हूँ?” उसने मुझसे पूछा और अपना हाथ मुझसे दूर ले गया।
मैंने अपनी नजरें नीचे झुका ली और कहा, “ तुम्हें नहीं लगता कि तुमने पहले से ही छू लिया है।“
“तो तुम्हारा क्या मतलब है? मैं तुम्हें और छू सकता हूँ?” वह पूछता है।
“नहीं। ये ग़लत है।” मैंने साफ इनकार कर दिया लेकिन मेरा दिल कुछ और कह रहा था। मेरा दिल चाहता था कि वह मुझे छूए ताकि मुझे भी पता चल सके कि मेरे साथ क्या हो रहा है।
“तुम मना कर रही हो, लेकिन देखो तुम्हारा चेहरा कैसे लाल हो रहा है।” उसका हाथ हल्के से मेरे गाल को छूता है और मैं कांप जाती हूँ। आरव मेरी इस प्रतिक्रिया को देख कर हैरान हो जाता है।
“तुम ठीक तो हो?” अब वह मेरी दोनों गालों को छूता है और मुझे ऐसा महसूस होता है कि जैसे मेरे सारे शरीर में करंट दौड़ रहा हो।
“मुझे छूना बंद करो।” मैं उसके हाथ अपनी गालों से हटाती हूँ।
“तुम्हें नहीं लगता कि तुम भी मेरे लिए कुछ महसूस करती हो?” वह मुस्कराते हुए कहता है।
“कुछ भी मत बोलो, और हटो मेरे रास्ते से।” मैं उसे पीछे धकेलती हूँ और, अपने बेड पर आ जाती हूँ।
आरव अब भी वहीं खड़ा मेरी ओर देख रहा था।
“ओके। गुडनाईट। सुबह मिलते है।” वह कहता है और फिर कमरे से बाहर चला जाता है।
मैं अपने कमरे का दरवाजा भी बंद नहीं करने जाती, और वैसे ही बेड पर लेट जाती हूँ।
उसने मुझे कैसे छुआ और क्या-क्या कहा, ये सब बार-बार मेरे दिमाग में आ रहा था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि यह सब क्या हो रहा है? एक तरफ़ तो मेरा दिमाग कह रहा था कि तुम मम्मी से डांट खाओगी, अगर मम्मी को पता चला के तुम दोनों के बीच में क्या हो रहा है। लेकिन फिर दूसरी तरफ मेरा दिल कुछ और कह रहा था, शायद यह आरव को पसंद करने लगा था।
‛पर ऐसा कैसे हो सकता है? मैं उसे कैसे पसंद कर सकती हूँ?’ मैं एकदम से बिस्तर पर उठकर बैठ जाती हूँ, और अपनी गालों को थपथपाती हूँ। “जागो रूही। जागो। तुम उसके बारे में ऐसा कुछ भी नहीं सोच सकती हो।” मैं एक बार फिर अपनी दोनों गालों को थपथपाती हूँ ताकि मैं उस आरव के बारे में सोचना बंद करूँ।
अगले दिन जब मैं नींद से उठती हूँ, तो मेरा और सोने का मन कर रहा था। कल सारी रात मैं अच्छे से सो नहीं पाई थी। सारी रात मेरा दिमाग उस आरव के बारे में सोच रहा था, और जब नींद आने लगी तो पहले ही सुबह के चार बज गए थे।
“रूही उठ जाओ। तुम्हें कॉलेज नहीं जाना आज?” मम्मी हाल से आवाज़ लगाती है।
“उठ गई, मम्मी।” मैं बेड पर उठकर बैठ जाती हूँ, लेकिन फिर पांच मिनट की झपकी लेने के लिए बेड पर फिर से लेट जाती हूँ।
“रूही, उठ जाओ। ”
“उठ गई हूँ, मम्मी।” मैं एक दम से नींद से उठकर बैठ जाती हूँ। मुझे नहीं लगता था कि मैंने पांच मिनट की भी नींद ली थी कि उससे पहले ही मम्मी ने मुझे उठा दिया।
मैं ब्रश करके, और नहा-धोकर अपने कॉलेज के लिए तैयार हो जाती हूँ, और फिर हाल में खाना खाने के लिए आ जाती हूँ। मम्मी, पापा और आरव पहले से ही डाइनिंग टेबल पर बैठे हुए थे। मैं उनको गुडमार्निंग बोलती हूँ, और फिर खाना खाने के लिए उनके साथ बैठ जाती हूँ।
“तुम्हें क्या हुआ है? आज इतनी बिखरी-सी क्यों लग रही हो?” मम्मी मेरी ओर देखकर पूछती है।
मम्मी की बात सुनकर, मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं मम्मी की बात का क्या जवाब दूं? क्या बता दूँ मम्मी और पापा को कि कल रात इस आरव के बच्चे ने क्या किया? और उसकी ही वजह से मुझे कल रात नींद नहीं आयी, और अब मैं ऐसी लग रही हूँ।
“नहीं, कुछ नहीं हुआ। वो कल रात मैं देर तक पढ़ती रही। तो देर से सोने की वजह से ऐसी लग रही हूँ।” मैंने उनके सामने झूठ बोलना सही समझा, लेकिन बाद में मुझे बुरा लग रहा था झूठ बोलने का। ऐसी बात नहीं थी कि मैंने कभी भी उनसे झूठ नहीं बोला था, लेकिन आज पहली बार मैंने उनसे इतनी जरूरी बात छिपाई थी।
“ठीक हैं, लेकिन इतनी भी पढ़ाई मत करो कि खुद का ध्यान रखना ही भूल जाओ।” पापा रूमाल से अपने हाथ पोंछते हुए कहते हैं।
“ठीक है पापा, मैं इस बात का ध्यान रखूंगी।” मैं कहती हूँ।
खाना खाने के बाद, पापा अपना ऑफिस का बैग लेते है और ऑफिस के लिए चले जाते है। मैं और आरव भी मम्मी को बाय बोलने के बाद घर से बाहर आ जाते है, और लिफ्ट लेकर बिल्ड़िंग के निचले फ्लोर पर आ जाते है।
आरव और मैं हम दोनों कॉलेज को साथ में जाते है, लेकिन हम दोनों का कॉलेज अलग-अलग है। वह मेडिकल का स्टूडेंट है और मैं आर्ट की। मुझे नहीं पता कि उसने मेडिकल कॉलेज क्यों चुना। लेकिन मुझे हमेशा उन मरीज़ों की चिंता होती रहती है जिनका इलाज आरव करेगा।
“कहाँ जा रही हो? मेरी बाइक वहाँ है।” आरव मुझे बुलाता है और तभी मुझे पता चलता है कि मैं दूसरी ओर जा रही थी।
“ सॉरी।” मैं उसकी ओर जाते हुए कहती हूँ।
“ मैं कुछ सोच रही थी तो पता नहीं चला।” मैं कहती हूँ और देखती हूँ कि वह कहीं ओर देख रहा था। मैं वहाँ देखती हूँ यहाँ वह देख रहा था और देखती हूँ कि एक लड़का हमारी ओर या शायद.... मेरी ओर देख रहा था?
“तुम पूरे कपड़े पहनना कब सीखोगी?” आरव मेरी टी-शर्ट कमर से नीचे खींचते हुए कहता है।
मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मेरी नीचे हुई टी-शर्ट को वह और कितना नीचे करना चाहता है।
“तुम लोगों पर ध्यान मत दो और बाइक पर बैठो।” मैं उसके हाथ को धीरे से मारते हुए कहती हूँ, और वह अपना हाथ मुझसे दूर ले जाता है।
“ठीक है।” आरव बाइक पर बैठ जाता है और उसके बाद मैं भी बाइक पर बैठ जाती हूँ। आरव अब भी उसी लड़के को देख रहा था जो अब मेरी ओर देखकर मुस्करा रहा था।
“मुझे पीछे से कसकर पकड़ो।” आरव कहता है।
“क्या?!" मैं उसकी बात पर हैरान थी।
“मैं आज बाइक तेज़ चलाने वाला हूँ, इसलिए कसकर पकड़ो वरना गिर जाओगी।”
“मैं ऐसा कुछ भी नहीं करने वाली हूँ।” मैं साफ इनकार कर देती हूं।
“ठीक है तो मुझे मत बोलना अगर तुम गिर गई तो।” आरव कहता है और फिर एक दम से बाइक वहाँ से भगा लेता है। मैं एक दम से उसके ऊपर गिरती हूँ, और फिर गिरने के डर से मैं उसे कसकर पकड़ लेती हूँ।
“तुम पागल हो गए हो! स्पीड कम करो।” मैं चिल्लाती हूँ।
वह मेरी बात नहीं सुनता है और उसी स्पीड से सड़क पर बाइक चलाता है। ये तो अच्छा हुआ कि आज रास्ते में ट्रैफिक पुलिस वाला नहीं था वरना आज हम दोनों पकड़े जाते।
जब आधा रास्ता पीछे निकल जाता है, तो आरव बाइक की स्पीड कम कर देता है। मैं चैन की सांस लेती हूँ और अपने हाथ उसकी कमर से हटा लेती हूँ, लेकिन उसी पल वह फिर से अपनी बाइक की सपीड बड़ा देता है।
“ तुम क्या कर रहे हो?” मैं एक बार फिर से उसको पकड़ लेती हूँ। “ तुम्हारा इरादा मुझे सच में गिराने का है क्या?”
“नहीं। तुम मुझे बस इसी तरह से पकड़े रहना, तो मैं स्पीड ज्यादा नहीं करूंगा।” आरव कहता है।
“तुम सच में पागल हो गए हो।” मैं कहती हूँ और आरव से हाथ हटाती हूँ, लेकिन फिर दूसरे ही पल मुझे फिर से उसे पकड़ना पड़ता है।
"तुम्हें मजा आ रहा है? मुझे बार-बार छोड़ने और पकड़ने का? ” आरव हँसता है।
“अपनी बकवास बंद करो। आज जब मैं घर जाऊंगी, तो मैं पक्का तुम्हारी शिकायत लगाऊँगी।”
“ हां, तुम धमकियां ही देती रहती हो, लेकिन फिर करती कुछ नहीं हो। कल रात जो हमारे बीच में हुआ, मुझे लगा तुम मम्मी-पापा को बताओगी, लेकिन तुमने किसी को नहीं बताया।” आरव गुस्से से कहता है।
“मैंने वह सब न बताकर तुम्हें डांट खाने से बचाया। तो मैंने गलती की क्या? ” मैं अपना एक हाथ उसकी कमर से हटाकर उसकी पीठ पर जोर से मारती हूँ।
“तुम क्या कर रही हो। एक्सीडेंट करवाना है क्या?” आरव चिल्लाता है।
“अच्छा सॉरी। अब जल्दी से चलो। अब मैं वैसा नहीं करूंगी।” मैं कहती हूँ।
“ठीक है, लेकिन पहले तुम मुझे जोर से हग करो। ” आरव कहता है और बाइक की स्पीड बिल्कुल ही कम कर देता है।
‛ये लड़का सच में पागल है।’ मैं सोचती हूँ और फिर उसे पीछे से हग कर लेती हूँ। जैसे ही मैं उसे हग करती हूँ मेरा दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लग जाता है। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि यह क्यों हो रहा है? मैंने पहले भी उसे पकड़ा था, पर शायद इतनी करीब से नहीं। मेरी छाती उसकी पीठ को छू रही थी, और मुझे डर लग रहा था कि उसको पता चल जाएगा कि मेरा दिल कैसे जोर-जोर से धड़क रहा है।
बाद में, हम जैसे ही कॉलेज के रास्ते पर आ जाते हैं, मैं अपने हाथ उससे हटा लेती हूँ और सीधी बैठ जाती हूँ। चाहे मैं अब उसे हग नहीं कर रही थी, लेकिन अब भी मेरा दिल जोरों से धड़क रहा था।
कॉलेज के गेट पर आने के बाद, आरव बाइक रोक लेता है और मैं बाइक से उतर जाती हूँ। मेरे उतरने के बाद भी आरव वहीं खड़ा रहता है और मेरी ओर देख रहा था।
“तुम्हें अपने कॉलेज नहीं जाना क्या?” मैं उसे पूछती हूँ।
“जाना तो है लेकिन पहले एक बात बताओ।” वह अपना चेहरा मेरे कान के पास लाता है, और फिर धीरे से कहता है, “ तुम्हारे दिल की धड़कने आज इतनी तेज क्यों थी?” वह अपना चेहरा मेरे पास से हटाता है और मेरी ओर देखकर मुस्कुराता है।
पहली बार उसकी मुस्कान देखकर मुझे ऐसा महसूस हो रहा था, जैसे अभी के अभी मेरा दिल सीने से निकलकर बाहर आ जायेगा। उसे पता नहीं था कि मेरे दिल पर क्या बीतती है जब वह मेरे इतने क़रीब आता है।
“मैं जा रही हूँ।” मैं कहती हूँ और वहाँ से चली जाती हूँ।
अपनी क्लास में आने के बाद, मैं अपनी सहेली सपना के साथ बैठ जाती हूँ और उससे बातें करने लगती हूँ।
"तुम्हें क्या हुआ है आज? ऐसी क्यों लग रही हो?” सपना मेरी ओर देखते हुए पूछती है।
“बहुत बुरी लग रही हूँ क्या?” मैं अपने बाल हाथों से सही करते हुए पूछती हूँ।
“नहीं। बुरी तो नहीं, लेकिन तू ऐसी लग रही है जैसे कि सारी रात सोई न हुई हो। देख तेरी आँखों के नीचे भी काले घेरे है।” सपना कहती है और मुझे एक बार फिर से कल रात वाली बात याद आ जाती है।
“क्या बात है? तेरा चेहरा टमाटर के जैसे लाल क्यों हो रहा है? ” सपना मेरी और हैरानी से देखती है।
“नहीं कुछ नहीं हुआ।” मैं नीचे डेस्क पर देखते हुए कहती हूँ।
“ठीक है, अभी मत बता। रेसस टाइम में बता देना।” सपना मेरी ओर मुस्कुराते हुए कहती हैं। मुझे पता था कि अब यह लड़की मुझे तब तक नहीं छोड़ने वाली थी जब तक सब कुछ जान नहीं लेती।
और फिर क्या था, रेसस टाइम मैं हम दोनों कॉलेज के पीछे वाली बालकनी में आ जाते है।
“तो बता, क्या बात है?” सपना उत्सुक होते हुए पूछती हैं।
“तुझे हर बात जाननी जरूरी है क्या? अगर मैं न बताऊँ, तो?” अभी मैं उसे कुछ भी नहीं बताना चाहती थी। मुझे खुद को टाइम चाहिए था सब कुछ समझने के लिए।
“अगर तुम नहीं बताओगी, तो मैं तुम्हें तब तक पूछती रहूंगी जब तक तुम सारा सच अपने मुंह से उगल नहीं देती हो।” वह इतने यकीन के साथ बोलती है कि मुझे लगता है कि अब तो इसे बताना ही पड़ेगा। और शायद उसे बताने से वह मेरी कोई मदद कर सके, यह समझने में कि मेरे दिल के साथ क्या हो रहा है।
“ठीक है बताऊँगी। लेकिन पहले वादा कर कि तू यह बात किसी को भी नहीं बताएगी।” मैं अपना हाथ उसके आगे करते हुए कहती हूँ।
“तुम्हें मैं ऐसी लड़की लगती हूँ, जो तेरे राज किसी को भी बता देगी?” सपना नाराज हो जाती है।
“ऐसी बात नहीं कि मुझे तुम पर भरोसा नहीं है। लेकिन मैं बहुत बड़ी बात बताने जा रहीं हूँ। तो वादा करना तो बनता है ना।” मैं उसे कहती हूँ और अपने हाथ की ओर इशारा करती हूँ।
“ठीक है। करती हूँ वादा, किसी को नहीं बताऊँगी। लेकिन अगर तू ना भी वादा मांगती तो भी मैं किसी को नहीं बताने वाली थी।” वह मेरे हाथ पर अपना हाथ रखती है और वादा कर देती है।
दस मिनट के बाद, मैंने उसे सब कुछ बता दिया था, और अब उसका चेहरा देखने वाला था। वह बहुत हैरान लग रही थी, और अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से मुझे घूर रही थी।
App Store और Google Play पर MangaToon APP डाउनलोड करें