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रंडी से प्यार

भाग- 1

शहर जितना बड़ा होता है वहां के लोगो का दिल उतना ही छोटा,ये जुमला मैंने शायद किसी फ़िल्म से सुना था,लेकिन जब मुझे सचमे शहर आना पड़ा तो ये बिल्कुल सत्य लगने लगा,मैं यहां पढ़ने के लिए आया था। मेरा एडमिशन एक इंजीनियरिंग कॉलेज में हुआ था। मैं अपने गांव का एकमात्र इंजीनियर बनने जा रहा था और इस उपलब्धि को पाने के लिए मैंने बहुत संघर्ष किया था।एडमिशन तो मुझे मिल गया लेकिन रहने की जगह नही मिल पाई ,होस्टल फूल हो चुके थे,और कई धर्मशाला से निकाला जा चुका था।मैं 6 महीने से यहां वहां भटक रहा था।मेरा कॉलेज एक सरकारी कॉलेज था,और यहां जो भी मेरे दोस्त बने वो मेरे ही तरह गांव से आये हुए लड़के थे,शहर के लड़के तो हमे भाव भी नही देते थे। और लडकिया….हमारे जैसे लोगो को वो अपने मुह नही लगना चाहती थी।यही बात एक लड़की ने मुझसे कही थी जब मैंने उसके बाजू में बैठने की हिमाकत कर दी । खैर मेरे दोस्तो के पास तो खुद का कोई जुगाड़ नही था ।जैसे तैसे सरकारी होस्टल में रह रहे थे,वहां उनकी वो रैगिंग हुआ करती थी जिसे सोचकर रूह कांप जाय लेकिन इसके अलावा उन बेचारों के पास कोई चारा भी नही था। ऐसे मैंने भी वहां रहने की कोशिशें की लेकिन वार्डन ने मुझे वहां से भी भगा दिया, जैसे तैसे 6 महीने तो गुजर गए लेकिन अब समय था मेरे पहले सेमेस्टर के एग्जाम का और मेरे पास तो रहने को भी जगह नही थी।मा बाप के पास इतना पैसा भी नही था की वो मुझे वो सुविधा दे सके की मैं किसी रूम किराए पर लेकर रह सकूँ।स्कॉलरशिप भी अभी मिली नही थी ,और इतनी मिलने वाली भी नही थी की कुछ जुगाड़ हो सके,पार्ट टाइम एक जॉब कर रखा था,उससे ही मेरे कपड़े और खाने पीने का जुगाड़ हो जाता था,मेरे पास कुछ ज्यादा समान नही थे।पुस्तके लाइब्रेरी से ही ले आता कुछ कापियां जिनमे मेरे नोट्स थे और 2 जोड़े कपड़े जिसे बदल बदल कर पहनता था। उस दिन जब धर्मशाला से निकाला गया तो मैं लगभग टूट गया,वहां के सभी धर्मशाला वाले मुझे पहचानने लगे थे। कही कोई जगह नही बची थी ,साला हमारा गांव ही अच्छा था वहां आप कही भी रहो कोई टोकने वाला नही होता था और एक ये शहर था जंहा बस स्टेशन में भी पुलिश वाले बैठने नही देते, मैं अंदर से टूटा हुआ अपना बेग लेकर कॉलेज पहुचा पता चला की एक दिन पहले ही फ्रेशर पार्टी की गई थी ,मुझे इन सबसे क्या मतलब था,मेरे एक दोस्त ने मेरी स्तिथि देखी और हाथ में मेरा बेग देखा वो समझ गया की इसे फिर से निकाल दिया गया है। एक दो दिन की बात हो तो मैं होस्टल में उसके साथ ही शिफ्ट हो जाता लेकिन कुछ ही दिनों में एग्जाम थे और मुझे कोई अच्छा सा बसेरा चाहिए था जिसमे कम से कम कुछ दिन मैं टिक सकू…वो मुझे चाय पिलाने ले गया उसका नाम प्यारे था,“यार राहुल कल पार्टी में क्यो नही आया ,साले सीनियरों ने जमकर शराब पिलाई पता है…”मैं चाय की एक सिप पीता हुआ उसे देखने लगा,और वो मेरी हालात समझ चुका था,“फिर से बेघर ???”“हा यार ,पता नही एग्जाम कैसे जाएंगे कॉलेज के कारण कोई नॉकरी भी नही कर पता ,पढ़ाई करू या नॉकरी समझ नही आता कोई जुगाड़ भी नही हो पा रहा है ,साला मेरा सेठ भी कुछ देने को तैयार नही कहता है की महीने के आखिर में पैसे लेना,जो बचे पैसे है उससे कोई कमरा ले लू तो खाऊंगा क्या समझ नही आ रहा ….”मैं जानता था की प्यारे भी इसमें कुछ नही कर सकता पर उसके अलावा मैं बताता भी किसे ,तभी सीनियर का एक ग्रुप वहाँ आया ,और मुझे देखकर वो गुस्से में आ गए ,“साले कल क्यो नही आया ,हमेशा सीनियरो से भागता है बहुत होशियार समझता है अपने को ….”एक तेज झापड़ ने मेरा गाल लाल कर दिया था।और मेरे सहनशीलता की सिमा टूट गई मैं जोरो से रोने लगा इतने जोरो से की सीनियर्स की भी हालत खराब हो गई । मैं ऐसे रो रहा था जैसे की मेरा दुनिया में कोई हो ही ना ,और अभी के परिपेक्ष में ये बात सही भी थी तभी उनमे से एक सीनियर आगे आया उन्हें हम बहुत मानते थे,असल में वो भी हमारी तरह गाँव से और एक अत्यंत गरीब घर से आये थे ,और कॉलेज में टॉप करने के कारण उन्हें थोड़ा सम्मान मिल जाया करता था,उनका नाम संजय था“तुम लोग जाओ यहां से मैं इसे समझाता हूँ ,”वो मेरे कंधे में हाथ रखकर मुझे सांत्वना देने के भाव से बोले“क्या हुआ राहुल ,लगता है की तू बहुत बड़ी परेशानी में है।”वो मेरे हालात समझते और जानते थे मैंने उन्हें अपने कंडीशन के बारे में बताया  इसका इलाज तो उनके पास भी नही था,लेकिन उसी चाय की टापरी में खड़े एक अंकल जो की हमारी बात ध्यान से सुन रहे थे अचानक हमारे पास आ गए ,“रूम चाहिए ““जी अंकल लेकिन पैसों की समस्या है थोड़ी ““एक काम हो सकता है,मैं रूम दिलवा दूंगा बिना पैसों के खाने का पैसा देना होगा,और साथ में कुछ काम करने होंगे चलेगा “मुझे लगा की ये आदमी जैसे मेरे लिए भगवान बन कर आया हो ,“बिल्कुल अंकल चलेगा चलेगा ““लेकिन एक और समस्या है,जिस जगह तुझे ले जा रहा हु वो सही जगह नही है “मेरे दोनो शुभचिंतकों ने अंकल की ओर प्रश्नवाचक नजर से देखा लेकिन मैं अभी भी उन्हें अभिभूत दृष्टि से देख रहा था,“अंकल जहन्नुम में भी रहने को बोलोगे रह जाऊंगा “अंकल के चहरे में एक मुस्कान खिल गई जैसे उन्हें कोई बड़े काम की चीज मिल गई हो ,ठीक है चल मेरे साथ ,“ऐसे कौन सी जगह है अंकल “मेरे सीनियर ने स्वाभाविक जिज्ञासा से पूछ लिया“****मार्किट का रंडीखाना “

हम सभी स्तब्ध थे लेकिन कोई कुछ नही बोल पाया मजबूरी ऐसी थी की हम कुछ बोलने के लायक भी नही थे…..

कहानी जारी है.... मिलते हैं कहानी के अगले भाग मे.....

भाग - 2

चहल पहल भरे बाजार से किसी संकरी गली के अंदर जाना मुझे ऐसे लग रहा था जैसे की मैं किसी पाताल में जा रहा हूँ। थोड़ी ही दूर में एक 3 मंजिला चाल थी जंहा आकर वो संकरी गली खत्म होती थी। उस चाल की रंगत भी उस मार्किट की तरह ही थी। जगमगाते हुए रंगीन लाइट उस शाम की सोभा बड़ा रहे थे, हाथों में हरीभरी चूड़ियां पहने महिलाएं जो सज धज कर खड़ी थी उनके मुह से निकलने वाली गालियाँ और प्यार भरे शब्द आपस में ऐसे मिल रहे थे की पता ही नही चलते की वो प्यार से बुला रहे हैं या की धुत्कार रहे हैं।मैं अपना छोटा सा बेग उठाये अजीब निगाहों से उनको देखता हुआ बस अंकल के पीछे चल रहा था,अंकल आखिरकार एक कमरे के पास पहुचे जो की बड़े से बरामदे के आखरी छोर पर था,"अरे चम्पा बाई ,कहा हो "कमरे के अंदर जाने पर मेरी आंखे खुली की खुली रह गई।ये गरीबों की सी बस्ती में ऐसा वैभव होगा मैंने सोचा नही था दुसरों के लिए तो नही पता मेरे लिए तो ये वैभव ही था।बड़ा सा सोफा कमरे में रखा था पास ही कोई 4-5 गुंडे किस्म के लोग खड़े थे जिनकी भुजाए मेरे जांघो जितनी होगी बड़ा सा कमरा था और कमरे के बीच में सोफे में एक औरत बैठी थी जिसका मुह पान से लाल हो रखा था।बड़े डीलडौल वाली ये महिला देखने में ही बड़ी खतरनाक लग रही थी मेरे माथे पर आया पसीना मेरे डर को साफ तौर से जाहिर कर रहा था।

“अरे आओ आओ बैठो बनवारी “अंकल का नाम बनवारी था ,जो भी हो मुझे एक कमरा चाहिए बस ,“देखिए आपके लिए क्या लाया हु, पढ़ा लिखा लवंडा है।कमरा चाहिए इसे “चम्पा मुझे ऊपर से नीचे तक देखने लगी“क्यो रे लवंडे कितना पढ़ा है”“जी बी ई कर रहा हूँ ”“वो क्या होता है”“जी इंजीनियरिंग कर रहा हूँ ”“इंजीनियर हो ”“जी पढ़ाई कर रहा हूँ , जिसे पढ़कर इंजीनियर बनूंगा ”वो मुझे अजीब निगाहों से देखती है , मेरे दिल की धड़कने बढ़ रही थी,वो बनवारी की तरफ देखती है ,“ये हमारे लिए काम करेगा ”“बिल्कुल करेगा ”“अरे तुम्हे कम्प्यूटर चलाना आता है क्या ”“जी आता है ”मेरे स्कूल में हमे कम्प्यूर का ज्ञान सरकार के द्वारा मिला था मेरा इंटरेस्ट उसमे इतना हुआ की मैं कंप्यूटर साइंस में ही इंजीनियरिंग करने की सोच ली …“कितना आता है ,हिसाब कर लोगे ”“जी मैं तो उसी में इंजीनियरिंग कर रहा हूँ ”“अरे हमे उससे कोई मतलब नही है की तुम किसमे क्या कर रहे हो हिसाब कर लोगे की नही ये बताओ ,साला एक झंझट दे दिया है शकील भाई ने हमे अब ससुरी रंडीखाने में भी कंप्यूटर लाना पड़ेगा ”मैंने दिल से शकील भाई को दुवा दी मुझे नही पता था की वो कौन है पर जो भी है मैं बहुत खुश हुआ ।कोई फालतू का काम नही करना पड़ेगा और रहने को कमरा भी मिल जाएगा,“जी बिल्कुल आता है ,सब कर लूंगा आप बताइये क्या करना है ,” मेरे चहरे पर खुशी और आत्मविस्वास आ गया था । जिन्हें कुछ नही पता हो उनके आगे तो मैं शेर बन ही सकता था। “ह्म्म्म ठीक है ,यहां से क्या क्या पैसा आता है और जाता है उसका हिसाब रखना पड़ेगा ,इसके लिए तुझे 2 हजार दूंगी और रहने को मकान चलेगा और मकान नही चाहिए तो 2.5 हजार मिलेगा । ”मेरे दिमाग में आया की साला ये मकान सिर्फ 500 में दे रही है ,पूरे शहर में सबसे सस्ता …“असल में क्या है ना की तू यहां रहेगा तो मैं जब चाहू तुझे बुला सकती हूँ ना इसलिए ज्यादा पैसा दूंगी बाहर रहेगा तो टाइम से आएगा टाइम से जाएगा तो मेरे से नही बनेगा ”“जी चलेगा ,यही रह लूंगा ”मेरी तो बांछे ही खिल गई ,खाने में मेरे ज्यादा खर्च नही थे ,मैं फिर भी 1000 रुपये बचा सकता था, मेरे दिमाग में माँ के लिए नई साड़ी घूम गई, बापू के लिए भी कुछ ले पाऊंगा अरे वाह …मैं खुस हो रहा था। ‘ठीक है इसे काजल का कमरा दिखा दे ,वही रहेगा ये ”अब मेरी संट हुई , मैं काजल के साथ रहूँगा मतलब ...लेकिन मैं कुछ बोला नही ,“सुन कल सुबेरे आ जाना क्या लगता है कंप्यूटर के लिए बता देना मंगवा लूंगी ”“आपको काम क्या क्या करना है ”“अरे बताई तो ना ”मैं सोच में पड़ गया ,फिर मेरे दिमाग में एक शैतानी आई“कितने लोग चलाएंगे ”“अब इस काम के लिए क्या मैं ऑफिस खोलू तू ही चलाएगा तुझे क्यो रखा है ”“ओहह ,तो एक काम क्यो नही करती डेक्सटॉप की जगह पर लैपटॉप ले लेते है ,बजट कितना है ”“मतलब ““मतलब की कितना खर्च कर सकते है”“30-40 हजार इससे ज्यादा नही “मेरे मन में लड्डू फूटे साला जिसे मैं सपने में देखता था शायद वो सच हो जाएगा ,खुद का लेपटॉप“हाँ हो जायेगा ,आराम से हो जाएगा ,एक लेपटॉप ले लेंगे और एक प्रिंटर आपके पैसे भी बच जायेगें ,आप बोलो तो यहाँ वाईफाई का राउटर भी लगा लेते है,कोई सस्ते वाला काम चल जाएगा ”। वो मुझे ऐसे सुन रही थी जैसे कोई दूसरी भाषा में कुछ कह दिया हो । “कितने में हो जाएगा ”“आपके बजट में हो जायेगा पैसे भी बच जायँगे हाँ वाईफाई के लिए महीने में बिल देना होगा”“कितना ”“यही कोई 500 ”“ह्म्म्म रुक शकील भाई से बात करती हूँ “वो फोन घुमाई और लगभग 5 मिनट तक बात करते रही उन्हेंने मेरे बारे में भी सब कुछ बताया और फोन मुझे दिया , शकील चम्पा से कही ज्यादा जानकर निकला उसने मुझे हर चीज के बारे में पूछा और मुझसे खुश भी हो गया। अंत में वो बस इतना बोला की तू मेरे बहुत काम आएगा और चम्पा से बात करने लगा ,चम्पा ने मेरी हर बात मान ली थी ,मैं बहुत खुश था मुझे हमेशा से ये सब चाहिए था लेकिन मैं इनके बस सपने ही देख सकता था लेकिन अब मरे पास ये सब होगा। मैं अब अपने प्रोजेक्ट अपने लेपटॉप में बना पाऊंगा और प्रिंट करा पाऊंगा ………..

अब बात थी मेरे नई रूममेट काजल की ,चलो उसे भी देखते है…..मैं एक बॉडी बिल्डर के पीछे चलने लगा …..

कहानी जारी है... मिलते हैं कहानी के अगले भाग में....

भाग - 3

“ये कौन है,”एक खूबसूरत बला मेरे सामने खड़ी थी ,अगर ये मुझे कही और मिल जाती तो मैं मान ही नही सकता था की ये कोई जिस्म का धंधा करने वाली लड़की होगी,ये तो असल में मेरे कालेज के उन लड़कियों से भी ज्यादा खूबसूरत थी जो की मेरे साथ पढ़ती थी और मुझे बिल्कुल भी भाव नही देती थी। “ये तेरे साथ ही रहेगा अब से इसी खोली में ”वो अजीब निगाहों से मुझे देखने लगी“अरे इतनी छोटी सी तो खोली है मेरी इसमें अब इसे कहा रखु ”वो लगभग रुआँसी सी हो गई“कुछ दिन काम नही किया तो मौसी मेरे साथ अब ऐसा करेगी ”वो सच में रुआँसी हो गई थी,ऐसा लगा की अब रोने ही वाली है“वो मुझे नही पता मौसी ने कहा की ये लड़का अब तेरे साथ ही रहेगा,ये शकील भाई के लिए काम करने आया है यहां पर ”वो फिर से मुझे खा जाने वाली निगाहों से देखती है,“मेरी तबीयत थोड़े दिन में ठीक हो जाएगी फिर तो मैं धंधे में आ जाऊंगी ना फिर से ”“2 महीने से तूने किराया नही दिया है ,और ये तेरी मुसिबित है ,अगर कुछ कहना है तो मौसी से बोल मुझे तंग मत कर अब ”

वो बॉडी बिल्डर वँहा से चला गया ,काजल मेरे तरफ मुड़ी, वो लगभग मेरी ही उम्र की थी,तीखे नयन नक्श की मल्लिका, मासूमियत उसके आंखों से छलक रही थी और नाजुक सी देह, लेकिन मुँह खोलती तो बिल्कुल तीखी मिर्च जैसे, कसा हुआ बदन था जो अभी - अभी जवान हो रहा था।मैं उसके चहरे में थोड़ी देर के लिए खो गया था,“ऐ क्या देख रहा है ,”मैं हड़बड़ाया …“कु कुछ नही बस ….”“चल अंदर आजा ”

वो अपने उसी रूखे स्वर में बोली ,मैं अंदर दाखिल हुआ वो मेरे पीछे कमरे का दरवाजा बंद कर दी ,मैं थोड़ा घबराया जिसे काजल ने भी महसूस किया ,और वो हँसने लगी“क्या हुआ कभी किसी लड़की के साथ कमरे में अकेले नही रहा है क्या ?”वो हँस रही थी ,मैंने ना में सर हिलाया“तो यहां क्या करने आ गया बहनचोद ,ऐसे भी मेरा बुरा समय चल रहा था और अब ये मुसीबत , मौसी से तो बात ही करना बेकार है , अब तुझे भी अपने साथ रखना पड़ेगा ” वो भुंभुनायी ,और फिर से मुझे देखने लगी

“देख मैं रंडी हूँ जानता है ना ”मैंने हा में अपना सर हिलाया“तो ये सोच कर की ये तो रंडी है इसके साथ कुछ भी कर लूंगा मुझसे बत्तमीजी से पेश मत आना वरना तेरा वो हाल करूँगी साले की ….....और तुझे अगर कुछ करने का मन हुआ तो 200 रुपये एक बार के ,1000 पूरी रात का समझा और मुँह में नही लुंगी....पिछवाड़े में भी नही लुंगी, होठों में चुम्मा नही करना है समझा..उसके अलग पैसे लगते है ,समझा …”वो ताव में आकर बोली .

“लेकिन मुझे कुछ भी नही करना है ,मैं आपको पैसे क्यो दु ,आप ये बता दीजिये की मैं सोऊंगा कहा पर …”

मेरे चहरे पर आये मासूमियत के भाव से शायद…... वो थोड़ी शांत हुई ,उसने एक कोने में इशारा किया , मेरे पास तो बिस्तरा भी नही था , मैंने वहीं जमीन पर अपना बैग रखा और एक पुस्तक जो कि मैंने लाइब्रेरी से लिया था और एक कॉपी निकाल कर वहां रख दिया ।

“अरे तेरा बिस्तर कहाँ है ?”“मेरे पास नही है ”वो थोड़ी मुस्कुराई“रुक मैं ला देती हु ”वो कमरे से बाहर चली गई .मैंने पूरे कमरे को ध्यान से निहारा ,वो एक छोटा सा कमरा था जिसमे एक बेड लगा हुआ था ,एक सिंगल बेड था। लेकिन थोड़ा चौड़ा था, वो एक लकड़ी का तख्त था जिसपर मोटा गद्दा बिछा हुआ था।कमरे की एक दिवाल पर जॉन अब्राहिम की एक बड़ी सी तस्वीर टंगी थी ,जिसमे उसके डोले शोले दिख रहे थे ,उसके 6 एब्स को देखकर कोई भी दीवाना हो जाये ।एक तरफ एक बड़े से दर्पण वाली अलमारी थी ,जिसमे एक ड्रेसिंग बना हुआ था और वो लड़कियों के श्रृंगार समान से भरा हुआ था । उस बेड के बाद थोड़ी सी और जगह बच रही थी जिसमे की एक आदमी आराम से सो सके और एक कोने में कुछ बर्तन और राशन के समान और एक गैस चूल्हा रखा था।कमरे से सटा हुआ ही टॉयलेट भी था जिसमे मुश्किल से एक आदमी खड़ा हो पता ,मेरे लिए इतना ही काफी था ,असल में मैं इससे भी बुरे हालात में रह चुका था और मुझे यहां सिर्फ सोने ही तो आना था।पढ़ाई के लिए लाइब्रेरी थी या कही गार्डन में बैठकर भी पढ़ सकता था ,और बाकी समय तो मेरा काम और कालेज में निकल जाएगा ,यही तो मैं पिछले 6 महीने से कर रहा था ,अब कम से कम मेरे पास एक स्थायी पता तो होगा । तभी कमरा फिर से खुला और काजल अंदर आयी साथ में वही पहलवान था जो मुझे छोड़ने आया था ,उसके हाथो में एक गद्दा था उसे लाकर वो मेरे पास पटक दिया ,और बिना कुछ कहे ही वँहा से चला गया ,मैंने उसे बिछाया और  उसपर बैठ गया । काजल अब अपने बिस्तर में बैठी थी और मेरे उस पुस्तक को ध्यान से देख रही थी ,वो c++ की बुक थी जो की लगभग 2 से 3 हजार पन्नो की रही होगी ।

“तुम इतना पढ़ लोगे ” उसने हैरत से कहा“हा ये पूरा थोड़ी ना पढ़ना रहता है ,बस जितना काम का हो उतना ही ”“अच्छा मौसी बता रही थी की तुम इंजीनियर हो, क्या सच में ”“नही मैं अभी पढ़ रहा हु ,ये पढ़ाई करके मैं इंजीनियर बनूंगा ”“तो अगर अब कमरे का पंखा बिगड़ गया तो तुम उसे बना दोगे ”मैंने उसे बड़े ही ध्यान से देखा इसने मुझे मेरे गांव के लोगों की याद दिला दी ,साले इंजीनियर को वो या तो मेकेनिक समझते है या फिर इलेक्ट्रिशियन ,अगर किसी को कुछ ज्यादा पता हो तो ठेकेदार.....

“नही असल में मैं कंप्यूटर इंजीनियर हूँ ”“वो क्या होता है ?”“कल आ जाएगा फिर बताऊंगा ”“क्या आ जाएगा ““कंप्यूटर ”“देखो मैं तुमसे कह रही हूँ मौसी के कारण तुम्हे यंहा रहने दिया है मैंने अब और यंहा कुछ कचरा नही चाहिए ,ऐसे भी धंधे की हालत खराब है और तुम यंहा और समान लाने की बात कर रहे हो ”वो फिर से गुस्से में आ गई लेकिन इस बार मुझे उस पर गुस्सा नही बल्कि हँसी आयी और मैं हँस पड़ा“क्या हुआ यू क्या दांत दिखा रहे हो ”“कुछ नही अरे वो इतना बड़ा थोड़ी होता है ,वो तो मेरे कॉपी जितना होगा ,कल आएगा तो देख लेना ”

वो अपना मुँह बनाने लगी जैसें मैंने उसे चिढ़ा दिया हो“हा हा जानती हु सब ,फिल्मों में देखा है मैंने सब ,”“तो तुम फिल्में देखती हो .”“ह्म्म्म लेकिन बस सलमान और जॉन के ”वो इठलाते हुए बोली ,

लगता है जॉन की दीवानी थी इसे पटा कर रखना मेरे लिए आसान होगा ।

“अच्छा सुनो अब मेरी बात ,खाने का पैसा लगेगा ,तुम्हे खाना बनाना आता है ?”मैंने हाँ में सर हिलाया“बढ़िया तो समान ले आना और एक समय का तुम बनाना, मैं बर्तन मांज दूंगी , एक समय का मैं बना दूंगी ,और तुम बर्तन धोना और अपना जूठा खुद ही धोना मैं उसे हाथ नही लगाउंगी ,बर्तन है की नही थाली भी तो नही दिख रही है तुम्हारी ”उसने मेरे समान की ओर देखते हुए कहा जिसमे महज एक बेग भर था ।

“ठीक है खरीद के ले आना कल ,और राशन का समान भी मैं लिख के दे दूंगी ”“वो ….वो मेरे पास अभी पैसे नही है ,अगर कल चम्पा मौसी कुछ दे दी तो ले आऊंगा ,वरना महीने के आखिर में तनख्वाह मिलेगी तो …”मैंने डरते हुए कहा ,वो फिर से मुझे घूर कर देखने लगी ,“ठीक है ठीक है ,अभी के लिए तो हो जाएगा,चलो अभी रात का खाना बनाओ ,कल से कौन से समय का खाना बनाओगे ”“जी सुबह का बना दिया करूँगा ”“हम्म ठीक है ,चलो अभी तो बनाओ देखते है कितना अच्छा बना लेते हो ,नही तो साला कचरा ही खाना पड़ेगा”

मैं उठा और खाना बनाने की तैयारी करने लगा ,भगवान का शुक्र था की मेरे हालात ने मुझे खाना बनाना सीखा दिया था। मेरी माँ अक्सर बीमार रहा करती थी ,इसलिए मुझे सीखना ही पड़ा ,घर का इकलौता बेटा था ,ना कोई बहन ना भाई ,मैं सब्जियां देखने लगा ,फिर काजल की तरफ देखा जो मुझे ध्यान से देख रही थी ,“क्या बनाऊ ??”“जो बनाना है बना दे ,चल ऐसा कर भिंडी ही बना दे रोटी के साथ ”मैं भीड़ गया और काजल बाहर जाकर ना जाने किनसे बात करने लगी ,कई औरते कमरे में झांकती और मुझे देखकर हँसती हुई वँहा से निकल जाती और फिर काजल से बात करने लगती उसकी कुछ बातें मेरे कानों में भी पड़ रही थी ।

“अरे काजल ये तो अच्छा नॉकर मिल गया है तुझे ”“अरे मत पूछो मौसी ने गले बांध दिया है साले को ,ऐसे लड़का अच्छा है ,सीधा साधा ”“अरे लड़के कभी अच्छे होते है क्या बच कर रहना साला हुक्म ना चलाने लग जाये, मुफ्त में कुछ करने लगे तो बताना इसकी अच्छी खबर लेंगे “दूसरी औरत ने कहा और सभी हँसने लगे।

“अरे ये बेचारा भी हमारे तरह ही तकदीर का मारा होगा, वरना यंहा रहने कौन आता है ,यंहा तो लोग अपनी हवस मिटाने ही आते है …” एक तीसरी महिला की आवाज मेरे कानों में पड़ी जिसकी आवाज से लग रहा था की उसकी उम्र कुछ ज्यादा रही होगी ,उसका इतना बोलने से ही मुझे अपने यंहा होने का अहसास हुआ की मैं कंहा हूँ , मैं इस जगह के बारे में ना अपने किसी दोस्त को बता सकता था ना ही अपने घरवालों को , इतनी मजबूरी थी की मुझे रंडीखाने में रहना पड़ रहा है ।इसका अहसास होते ही मेरे आंखों में आंसू आ गए और मैं बस उस भिंडी को देखता रह गया जिसे मैंने अभी अभी काटा था………...

कहानी जारी है....... मिलते हैं कहानी के अगले भाग में.....

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