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अज्ञात प्रेम का रहस्य (प्रथम संस्करण)

Chapter 1 - Palak

आज मैं.. बिल्कुल अकेली हूँ । लेकिन कुछ समय पेहले ऐसा नहीं था । कुछ समय पेहले तक मेरा पुरा परिवार मेरे साथ था । मोहिते एन्ड मोहिते इंडस्ट्री के मालिक, मीस्टर. शिवराज मोहिते मेरे बाबा थे । उस रात मैं, मेरा भाई और मेरे आईं-बाबा हम सब कार से घर लौट रहें थे । और तब हमारे साथ हुए एक हादसे ने सबको मुझसे दूर कर दिया । उस रात हुए ऐक्सिडेंट से मुझे बचा लिया गया और मुझे हॉस्पिटल लेजाया गया । दो महीनों तक हॉस्पिटल में बेहोश रहने के बाद मुझे होश आया । मेरे होश में आने पर मेरी दोस्त गीता से मुझे पता चला के, 'अब मेरा परिवार नहीं रहा । बाबा के जाने के बाद उनकी विल खोली गई । और जब मेरे अंकल-आंटी को इस बात का पता चला के 'मेरे बाबा के बाद उनकी सारी प्रोपटिज़ पर बस मेरा हक़ होगा और जब तक मैं इंडस्ट्री का हर काम सँभालने लायक नहीं बन जाती तब तक इसे चलाने की ज़िम्मेदारी सिर्फ़ और सिर्फ़ मातृछाया ट्रस्ट पर होगी ।' तो वो सब लोग इस बात से गुस्सा होकर मुझे बिना बताये मुझे हॉस्पिटल में अकेला छोड़कर चलेे गए । अब मैं.. इस बड़ी ज़ायदाद की अकेली वारिस थी । मगर मेरे परिवार के चलें जाने के बाद अब मैं यहाँ नहीं रहे सकती थी । मैं बिल्कुल अकेली पड़ चुकी थी और बहोत ही ज्यादा उदास रहने लगी थी । मुझे इस हादसे का इतना गहरा झटका पहुँचा था कि मैं नाहिं कुछ सोच पा रही थी और नाहिं मुझमें कुछ समझने की शक्ति बची थी । जब भी वो हादसा मुझे याद आता मेरी आँखों से अपनेआप ही आँसू बहने लगते और मैं अकेले में बैठकर कई घंटों तक रोती रहती । इस भयानक हादसे के बाद मुझसे मेरा सब कुछ छूट गया था । मेरा परिवार, मेरी पढ़ाई और इसके साथ ही मेरी जिने की उम्मीद भी छूट गई थी । उस ऐक्सिडेंट के बाद मैं करीब दो महीनों तक हॉस्पिटल में रही । और इस वजह से मेरी कॉलेज की पढ़ाई छुट गई । गीता और मैं एक ही क्लास में थे और अगर आज मैं ठिक होती तो उसी के साथ कॉलेज के आख़िरी साल में पढ़ रही होती । इस मुश्किल समय में गीता ने मेरा बहोत साथ दिया । हॉस्पिटल के इन दो महीनों में मैं पूरी तरह से बेहोश थी । लेकिन उसने वो सब किया जो मुझे बचाने के लिए ज़रूरी था । उसने मुझे बताया था के ऐक्सिडेंट में मुझे भी काफ़ी गहरी चोटें आयी थी और मुझे बचाना नामुमकिन सा हो गया था । मुझे बचाने के लिये डॉकटर को मेरे दिमाग़ का ऑपरेशन करना पड़ा । क्योंकि मेरे सर में लोहे का तार घुस गया था, जिसे ना निकालने पर मेरी मौत हो जाती । गीता की बातें सुनकर में जान चुकी थी कि उसने मेरे लिये क्या कुछ किया है । पर अब मेरे होश में आने के बाद मैं यहाँ नहीं रहे सकती थी । और मैंने यही बात गीता को भी समझाई, तब उसने मेरी खुशी के खातिर मेरे शहर छोड़कर जाने के फैसले पर अपनी सहमती । मेरे होश में आने के कुछ दिनों बाद मुझे हॉस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया गया और उसी दिन मैंने जाने की सारी तैयारियाँ कर ली । यहाँ से जाने से पेहले मैंने अपने बाबा की सारी प्रॉपर्टीज मातृछाया ट्रस्ट के नाम कर दी और यहाँ का सारा काम ख़त्म होते ही मैं जाने के लिए निकल पड़ी । उस समय गीता भी मेरे साथ आना चाहती थी । वो वहां कुछ समय मेरे साथ रहकर देखना चाहती थी कि मैं वहाँ ठिक से रहे पाउंगी भी या नहीं । लेकिन मैं नहीं चाहती थी कि मेरी वजह से अब उसे और परेशानी हो । इसलिए मैंने उसे अपने साथ चलने से मना कर दिया । अगले दिन वो मुझे स्टेशन तक छोड़ने आई । स्टेशन पर पहुँचते ही मैं अंदर ट्रेन में जाकर अपनी जगह पर बैठ गई । अभी ट्रेन छूटने में काफ़ी समय था । इसलिए गीता भी मेरे साथ बैठी थी । "मुझे तुम्हारी बहोत चिंता हो रही है । पता नहीं तुम अकेले इतनी दूर कैसे जाओगी ? ऊपर से तुमने मुझे अपने साथ आने से भी मना कर दिया ।" गीता ने मेरा हाथ पकड़कर परेशान होकर कहा । "तुम चिंता मत करो । मुझे कुछ नहीं होगा । मैं अब ठिक हुँ ।" मैंने उसे समझाते हुए धीरे से कहा । "मैं जानती हूँ कि अब तुम ठिक हो । पेहले तो तुम्हारा इतना दूर जाना ही मेरे लिए काफ़ी दु:ख की बात है । मगर फ़िर भी जब तक तुम वहां सही-सलामत पहुँच नहीं जाती तब तक मैं चैन से बैठ भी नहीं पाउंगी ।" गीता ने उदास होकर काफ़ी परेशानी में कहा । "प्लिज़.. गीता, ऐसी बातें करके मेरे लिए यहाँ से जाना और मुश्किल मत बनाओ । क्योंकि अगर तुम्हारी बातें सुनकर मैं यहाँ रूक गई तो मैं जि नहीं पाउंगी ।" मैंने उदास होकर उसे समझाते हुए धीरे से कहा । "ठिक है ।" "वैसे मैंने अपनी दोस्त से तुम्हारे बारें में बात कर ली है । वो तुम्हे वहाँ स्टेशन पर लेने आ जाएंगी ।" गीता ने मेरी तरफ़ देखकर हल्की सी मुस्कुराहट के साथ कहा और तभी ट्रेन छूटने का समय हो गया । "अब तुम जाओ । ट्रेन बस छूटने ही वाली है । तुम मेरी चिंता मत करना । मैं वहाँ ठिक से पहुँच जाऊंगी ।" मैंने ट्रेन छूटने की आवाज़ सुनकर उसकी तरफ़ देखकर धीरे से कहा । "वो मैं नहीं कर सकती । तुम्हारे वहाँ पहुंचने तक मुझे चिंता होती ही रहेगी । लेकिन विश यू अ वैरी हेप्पी एन्ड सेफ़ जर्नी । एन्ड आई.. मीस यू ।" गीता ने जाने के लिये खड़े होकर कहा । "मीस यू टू, माई फ्रैन्ड ।" मैंने गीता की तरफ़ देखकर कहा और उसके साथ खड़ी हो गई । मेरे कहते ही उसने मुझे गले लगा लिया और उसके बाद गीता जल्दी से ट्रेन से नीचे उतर गई । "ठिक से जाना और जाते ही मुझे इन्फॉर्म करना ।" गीता ने नीचे उतरते ही खिड़की में से मेरा हाथ पकड़कर कहा । मुझे पता था वो मेरे जाने से बहोत दु:खी थी । और उसे छोड़कर जाने में मुझे भी बहोत तकलीफ़ हो रही थी । लेकिन मैं.. उसे इस बात का पता नहीं चलने देना चाहती थी । क्योंकि ऐसा होते ही शायद वो मुझे यहाँ रोक लेती । और उस समय जो मुझे रोक सकता था ऐसी एक वही थी । "हाँ, मैं करूँगी । तुम बिल्कुल फ़िक्र मत करो ।" मैंने धीरे से कहा और उसी समय ट्रेन शुरू हो गई । ट्रेन के आगे बढ़ते ही गीता का हाथ मुझसे छूटता गया । और इसी के साथ मेरा नया सफ़र शुरू हो चुका था ।◆◇◆◇◆◇◆◇◆◇◆◇◆◇◆◇◆

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Chapter 2 - Palak (Part 1)

आज पेहली बार मैंने कहीं अकेले जाने की हिम्मत की थी और मुम्बई से सीमला तक का लंबा सफ़र बिल्कुल अकेले तय किया था ।सीमला स्टेशन पर ट्रेन के रूकते ही मैं नीचे उतरी और वहीं स्टेशन पर बैठकर उस लड़की का इन्तजार करने लगी, जो मुझे लेने आने वाली थी । उसे यहाँ पहुंचने में देर हो गई थी । और वो अब तक यहाँ नहीं पहुँच पायी थी । उस लड़की का इन्तजार करते हुए मैं स्टेशन पर बैठकर वहाँ आने-जाने वाले लोगों को देख रही थी । और उन्हें अपने सामने से गुज़रते देख मुझे महसूस हो रहा था, जैसे मेरे लिए समय की रफ़्तार वहीं थम गई थी; जैसे मुझसे मेरा समय काफ़ी पीछे छूट गया था । लेकिन, बाकी सब लोग समय की रफ़्तार के साथ कदम मिलाकर आगे बढ़ते चलें जा रहें थे । "हेय..? हेलो..! मेरा नाम सलोनी है, सलोनी जोषी । तुम... पलक मोहिते होना..?" अचानक एक काले-घुँघराले बालों वाली लड़की ने मेरे पास आकर कहा, जिसने पीले रंग का स्पोर्टस टी-शर्ट और नीले रंग की जिन्स पहनी थी । साथ ही उसने अपने पैरों में सफेद रंग के स्पोर्टस शूज़ पहने थे । उस लड़की ने आते ही मुझे उस परछाईं की दुनियाँ से बाहर खीच लिया और एक बार फ़िर इस दुनियाँ में ले आयी । "हाँ.. मैं ही हूँ । मगर.. तुम्हें कैसे..." मैंने अपनी परछाईं की दुनियाँ से बाहर आते ही उसकी तरफ़ देखकर धीरे से सवाल किया । "कैसे पता चला कि तुम ही पलक हो, यही ना ?" उसने मेरी बात को कांटते हुए, मेरी तरफ़ देखकर मुस्कुराते हुए कहा और मैंने सहमती में धीरे से अपनी पलकें झपकाई । लेकिन जवाब देने से पेहले ही उसने मेरी एक बैग उठा ली और तेज़ी से आगे बढ़ गयी । उसके आगे बढ़ते ही मुझे भी अपनी दूसरी बैग उठाकर जल्दी से उसके पीछे जाना पड़ा । "वो.. एक्टूअलि.. फ़ोन पर गीता ने तुम्हें इतनी अच्छी तरह से डिस्क्राइब किया था कि तुम्हें देखते ही मैंने पहचान लिया ।" सलोनी ने ख़ुशी से मुस्कुराते हुए कहना जारी रखा । "उसने.. मेरे बारें में ऐसा क्या कहा, जो तुम मुझे इतनी आसानी से पहचान गई ?" मैंने उलझी हुई दबी सी मुस्कुराहट के साथ धीरे से सवाल किया और उसके साथ आगे बढ़ती रही । "उसने  कहा  था  कि  तुम  बहोत  खूबसूरत  हो ।  तुम्हारा  रंग  गोरा  और  लंबे,  सुनहरे-भूरे  बाल  है ।  आँखों  का  रंग  डार्क  ब्राउन  है ।  तुमने  व्हाइट लॉग  ड्रेस,  ब्लेक  जेकिट  और  पैरों  में  सेन्डलस  पहने  हैं । और हाँ.. उसने मुझे ये भी भेजा था ।" सलोनी ने मेरी बात के जवाब में मुश्कुराते हुए कहा और आख़िर में अपने मोबाईल फ़ोन में मेरा और गीता का फ़ोटो दिखाकर हँसने लगी । "लेकिन.. उसने मुझे तुम्हारे बारें में एक सबसे ख़ास बात बताई थी ।" सलोनी कहते हुए अचानक शांत पड़ गयी, "गीता ने.. बताया था कि तुम अकेली आने वाली हो । और.. तुम्हें देखते ही मुझे लगा, जैसे तुमसे ज़्यादा अकेला यहाँ और कोई नहीं । तुम सचमें काफ़ी लोनली नज़र आ रही थी ।" सलोनी ने मेरी तरफ़ देखकर गंभीर आवाज़ में धीरे से कहा । और सलोनी की बात सुनते ही मैंने हैरानी से उसकी तरफ़ देखा । मगर अपने अंदर दबी तकलीफ़ उसके सामने ना आ जायें, इस डर से मैंने जल्दी से अपनी नज़रें निचे झुका ली । मगर उसकी बातें सुनकर ऐसा लगा, जैसे मेरे अंदर छुपी तकलीफ़ और अकेलापन कहीं ना कहीं उसने जान लिया था । "बट डोन्ट वॉरी । अब मैं आ गई हूँ न, सब ठिक हो जायेगा ।" उसने मुस्कुराकर मेरी तरफ़ देखते हुए कहा । "म..गर.. एक छोटी  सी प्रोबलम है ।" सलोनी ने अचानक उदास होकर कहा और सोच में पड़ गई । "क्या बात है ?" मैंने उसकी तरफ़ देखकर धीरे से सवाल किया । "वो एक्टूअलि, मैंने अपनी लैंडलेडी से तुम्हारे बारें में बात की थी । लेकिन.. उन्होंने मेरी बात सुने बिना ही मुझे सीधे मना कर दिया । उन्होंने कहा कि, 'एक कमरे में पेहले से चार लड़कियाँ रह रही हैं । अब इससे ज़्यादा वो और किसीको भी रखना नहीं चाहती ।' लेकिन डोन्ट वॉरी । ज़्यादा फ़िक्र की बात नहीं है । बस कुछ दिनों तक तुम्हें किसी दूसरी जगह रहना होगा । क्योंकि कुछ दिनों बाद हमारी एक रूममेट जाने वाली है । तब तुम मेरे साथ आकर रह पाओगी । पर तब तक हमें कुछ करना पड़ेगा ।" सलोनी ने थोड़ा परेशान होकर कहा । "कोई बात नहीं । मेरी.. वजह से तुम्हें इतना परेशान होने की कोई ज़रुरत नहीं । मेरा क्या है, मैं.. तो कहीं भी रहें लुंगी । कोई बंध जगह, जंगल या फ़िर चाहे वो.. कोई क़ब्रिस्तान ही क्यों ना हो । मैं कहीं भी रह लुंगी ।" मैंने लापरवाही से उदास होकर कहा । और आख़िरकार मेरे ना चाहते हुए भी मेरे ज़िन्दा होने की तड़प उसके सामने आ ही गयी । मेरी बात सुनते ही सलोनी चलते हुए एक पल के लिए वहीं थम गई और काफ़ी हैरानी भरी नज़रों से मेरी तरफ़ देखा । शायद मेरी बात सुनकर उसे झटका लगा था । शायद वो यही सोच रही थी कि, एक लड़की ऐसा कैसे सोच सकती थी, जबकि मेरे जैसी कोई आम लड़की जंगल और क़ब्रिस्तान जैसी ख़तरनाक जगह पर रहना तो दूर, वहाँ अकेले जाने के ख्य़ाल से भी डर जाती । "वोओओ...! तु..तुम तो..! बहोत ही डेरींगबाज़ लड़की हो ।" सलोनी ने हैरान होकर मेरी तरफ़ देखते हुए मुस्कुराकर कहा और किसी सोच में पड़ गई । "मगर.. फ़िर भी तुम ग्रेवयार्ड में बिल्कुल नहीं रह सकती ।" उसने साफ़ मना करते हुए परेशान होकर धीरे से कहा । "प्लिज़..! तुम्हें मेरे लिए ज़्यादा परेशान होने की कोई ज़रूरत नहीं । मैं.. नहीं चाहती कि मेरी वजह से किसीको भी कोई तकलीफ़ पहुँचें । यक़ीन मानों, मैं कहीं भी रह लुंगी । किसी भी बंध पड़ी जगह में या किसी पुराने खण्ड़हर में ।" मैंने सलोनी को परेशान देखकर गंभीरता से कहा और कुछ पलों के लिए एक बार फ़िर अपनी परछाइयों में गुम हो गयी । "वैसे भी मुझे अब अकेले ही रेहना है, तो अच्छा यही होगा कि मैं जल्दी ही इस सच के साथ रहना सिख जाऊँ ।" मैंने सलोनी की तरफ़ देखकर मायूसी भरी आवाज़ में धीरे से कहा । "वैसे..! ऐसी एक जगह है तो सही जहाँ तुम रह सकती हो । वो जगह काफ़ी समय से बंध पड़ी है । और वहाँ कोई आता-जाता भी नहीं । मगर..." सलोनी ने मेरी बात पर सोच-विचार करने के बाद धीरे से कहा और कहते हुए परेशान होकर फ़िर चुप हो गई । "क्या हुआ..? तुम कहते हुए रुक क्यूँ गई ?" मैंने सलोनी के कंधे पर हल्के से हाथ रखते ही धीरे से सवाल किया । "वैसे... वहाँ रहने में कोई प्रोबलम तो नहीं है और वो जगह भी काफ़ी अच्छी है । लेकिन.. यहाँ के कुछ लोग उसे भूत बँगला और गोस्ट हाऊस कहते हैं । लोग मानते हैं कि वो प्लेज़ गोस्टली है । वहाँ किसी की आत्मा भटक्ति है ।" सलोनी ने उस जगह के बारें में बताते हुए गंभीरता से कहा । "मगर.. मैं इन सब चीज़ों में यक़ीन नहीं करती । और अगर ऐसा कुछ हुआ भी तो मुझे उसकी कोई चिंता नहीं । जो होना है वो तो होकर ही रहेगा । तुम मुझे वहाँ ले जा सकती हो ।" मैंने सलोनी की परेशानी कम करने की कोशिश करते हुए लापरवाही से कहा । "मैं भी ऐसी बातों पर यक़ीन नहीं करती । लेकिन.. मुझे तुम्हारी चिंता है । अगर कहीं तुम्हे कुछ..." सलोनी ने परेशान होकर कहा । "तुम मेरी फ़िक्र मत करो । अगर मुझे कोई परेशानी हुई तो मैं तुम्हें बता दूंगी । तुम बस मुझे वहाँ तक ले चलों ।" मैंने सलोनी को समझाते हुए कहा । "ओके..! मैं तुम्हें वहाँ ले चलूंगी । लेकिन पेहले चलकर कुछ खाते हैं । मुझे पता है तुम्हें तो भूख लगती नहीं होगी । पर मुझे तो बहोत भूख लगी है । और इसका मतलब तुम्हें भी मेरे साथ खाना पड़ेगा ।" सलोनी ने मेरी तरफ़ देखकर हँसते हुए कहा । पर मैंने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया । और चुपचाप बस उसके साथ आगे चलती रही । "क्या हुआ ? तुम क्या सोच रही हो ? यही ना कि ये कैसी अजीब सी लड़की है । कितना पटर-पटर करती है । मगर क्या करूँ.. मैं ऐसी ही हूँ, टोकेक्टिव ।" सलोनी ने हँसते हुए कहा । "नहीं, ऐसी कोई बात नहीं । मैं तो बस युंही.." मैंने झिजकते हुए कहा । "तुम बिल्कुल परेशान मत हो । मुझे तुम्हारे बारें में सब पता है । इसलिए यू जस्ट डोन्ट वॉरी । ओके..!" सलोनी ने मेरी तरफ़ देखकर धीरे से कहा । "वो एक्टूअलि गीता ने मुझे तुम्हारे बारें में सब पेहले ही बता दिया था । इसलिए मैं तुमसे ऐसा कोई सवाल नहीं करूँगी, जिससे तुम्हें तकलीफ़ हो । तो तुम मुझसे कोई भी बात खुलकर शेयर कर सकती हो ।" सलोनी ने मेरी तरफ़ देखकर मुझे भरोसा दिलाते हुए मुस्कुराकर कहा । ऐसा नहीं था कि सलोनी मुझे पसंद नहीं थी । वो बहोत अच्छी थी और मुझे उसके साथ रहने में कोई दिक्कत नहीं थी । वो हमेशा खुश रहनेवालो में से थी और शायद वो दूसरों को भी खुश रखना चाहती थी । उसे मेरे बारें में सब पता था फ़िर भी वो मुझे खुश करने की कोशिश कर रही थी । लेकिन मेरे मन में उदासी और तकलीफ़ के सिवा कुछ नहीं बचा था । मैं उस एक्सीडेंट को भूल नहीं पा रही थी । वो सारी डरानी यादें हमेशा मेरे मन में घूमती रहती । मैं कितनी भी कोशिश क्यों ना करूँ, लेकिन मैं ये नहीं भूल पा रही थी कि उस एक्सीडेंट के समय मैं भी उसी गाड़ी में थी । मगर.. फ़िर भी ऐसा मेरे ही परिवार के साथ ही क्यूँ हुआ ? और अगर ऐसा होना ही था तो उस एक्सीडेंट में मेरी जान क्यूँ बच गई ! अगर उस दिन मेरी भी मौत हो जाती तो मुझे इतनी तकलीफ़ नहीं होती । मैं खुशनसीब थी कि मुझे गीता और सलोनी जैसे दोस्त मिले थे । लेकिन इसके सिवा मैं अपनी हर एक बात से नाराज़ थी; मुझे.. अपने ज़िंदा बचने का अफ़सोस था । "अरे..! हाँ । रहने की प्रोबलम तो सोल्व हो गई । लेकिन यहाँ रहकर तुम करोगी क्या..? तुमने इस बारें में कुछ सोचा है ?" सलोनी ने अचानक थोड़ी ऊँची आवाज़ में कहा । "नहीं, अभी तक.. मैंने कुछ सोचा नहीं । लेकिन अगर कोई जॉब मिल जाती तो मेरे लिये ठिक होगा ।" मैंने जवाब देते हुए धीरे से कहा । "ओके, वैसे मेरे ओफ़िस में एक राईटर की जगह खाली है । अगर तुम कहो तो मैं तुम्हारा नाम सजेस्ट कर सकती हूँ ।" "वाव..! अगर तुम्हें ये पोस्ट मिल गई तो मुझे बहोत अच्छा लगेगा । हम दोनों एक साथ ओफ़िस जाएंगे और एक ही ओफ़िस में काम करेंगे । और सबसे अच्छी बात हम दोनों रोज़ बहोत मज़ा भी करेंगे ।" सलोनी ने खुशी से चहकते हुए कहा । वो मेरी जोब पक्की होने से पेहले ही इतनी खुश थी कि उसकी इस खुशी को देखने के बाद अब मैं उसकी ये खुशी और उसकी उम्मीद तोड़ना नहीं चाहती थी । उसकी ये खुशी देखकर मुझे डर लगने लगा था कि कहीं मेरी वजह से उसकी ये खुशी दूर ना हो जाए ।

Chapter 2 - Palak (Part 2)

मेरे  साथ  जो  हुआ  उसके  बाद  मैं  इन  छोटी-छोटी  खुशियोँ  की  किमत  अच्छी  तरह  से  जानती  थी ।  मैं  हमेशा  से  कोशिश  करती  कि,  'मेरी  वजह  से  कभी  भी  किसीको  कोई  तकलीफ़  ना  हो ।'  मगर..  उस  हादसे  के  बाद  मैं  इस  बात  को  और  भी  ज़्यादा  गंभीरता  से  लेने  लगी  थी ।  इसलिए  अब  मैं  पूरी  कोशिश  करूँगी  के  ये  जोब  मुझे  मिल  जाए । होटल  के  बाद  सलोनी  मुझे  अपने  साथ  उस  जगह  पर  ले  गई,  जहाँ  वो  अपने  दोस्तों  के  साथ  रहती  थी । वो  जगह  बहोत  ही  साफ-सुथरी  और  खुली-खुली  थी ।  वहाँ  सड़क  के  दोनों  तरफ़  लंबी  कतार  में  घर  बनें  हुए  थे,  जो  ज़्यादातर  दो  या  तीन  मंज़िलोंवाले  थे ।  और  सलोनी  जिस  घर  में  रहती  थी  वो  भी  दो  मंज़िला  था ।  उस  घर  की  दीवारें  पीले  और  सफेद  रंगों  में  रंगी  थी ।  और  उस  घर  के  सामने,  डाई  तरफ़  हल्के  नीले  रंग  की  लकड़ी  की  सिढ़िया  बनी  हुई  थी । "ये  देखो,  पलक ।  मैं  यहाँ  रहती  हूँ ।  चलों  मैं  तुम्हें  अपना  रूम  दिखाती  हूँ ।"  सलोनी  ने  ऊपरवाले  कमरे  की  तरफ़  इशारा  करते  हुए  मुस्कुराकर  कहा । उसके  बाद  हम  दोनों  वहां  बनी  सिढ़ियों  से  होते  हुए  ऊपर  कमरे  तक  पहुंचें ।  वहां  ऊपर  सिढ़ियों  से  कुछ  कदमों  की दूरी  पर,  बाई  तरफ़  एक  भूरे  रंग  का  दरवाज़ा  बना  हुआ  था । "यहाँ..  तो  ताला.."  मैंने  परेशान  होकर  धीरे  से  कहा । "अरे..!  डोन्ट  वॉरी  अबाऊट  दाट ।  मेरे  पास  चाबी  है ।"  सलोनी  ने  मुस्कुराते  हुए  जल्दी  में  कहा  और  अपनी  बैग  से  चाबियां  निकालकर  ताला  खोला । सलोनी  के  दरवाज़ा  खोलते  ही  हम  अंदर  गए ।  वो  कमरा  बहोत  बड़ा  और  साफ-सुथरा  था ।  वहाँ  दरवाज़े  से  अंदर  डाई  तरफ़  चार  बेड्स  रखें  गए  थे,  जो  दो-दो  की  जोड़ी  में  आमने-सामने  लगाएं  गए  थे ।  वहां  कमरे  में  दो  बड़ी  अलमारीयां  भी  रखीं  हुई  थी,  जो  बेड्स  के  दूसरी  तरफ़  दाई  ओर  थी ।  वहीं  डाई  तरफ़  सामने  की  ओर  किचन  बना  हुआ  था ।  दरवाज़े  से  अंदर  बाई  तरफ़  दो  और  दरवाज़े  थे,  जिसमें  एक  बाल्कनी  का  दरवाज़ा  था  और  दूसरा  शायद  बाथरूम  का  था ।  मगर  उस  कमरे  की  सबसे  अच्छी  बात  ये  थी  कि  वहां  काफ़ी  रोशनी  और  हवा  आती  थी ।  कमरे  में  बनी  खिड़कियां  और  बाल्कनी  की  वजह  से  वहां  और  भी  अच्छा  लग  रहा  था ।  उस  कमरे  में  तीन  खिड़कियां  थी,  जिसमें  से  एक  किचन  के  पीछे  और  दूसरी  दो  खिड़कियाँ  दरवाज़े  की  तरफ़  बनाई  गई  थी । "अरे !  तुम  खड़ी  क्यूँ  हो ?  बैठो ।  मैं  पानी  लाती  हूँ ।"  सलोनी  ने  मुझे  वहीं  खड़े  देखकर  कहा  और  अंदर  जाते  हुए  अपना  बैग  सामनेवाले  बैड़  पर  उछाल  दिया । "हाँ ।  मगर  क्यां  हमें  जाना  नहीं  है ?"  "तुम  बस  मुझे  जल्दी  से  उस  जगह  तक  पहुँचा  दो ।"  मैंने  परेशान  होकर  धीरे  से  कहा  और  हिचकिचाते  हुए  उसके  बैड़  पर  बैठ  गई । ये  जगह  देखने  में  काफ़ी  अच्छी  थी ।  मगर  कुछ  देर  के  लिए  यहां  रहना  भी  मुझे  बहोत  अजीब  लग  रहा  था ।  एक  बार  यहां  की  लैंडलेडी  के  मना  करने  के  बाद  मेरे  लिए  यहां  कुछ  समय  के  लिए  रुकना  भी  मुश्किल  था ।  इसलिए  मैं  हो  सके  उतनी  जल्दी  यहां  से  चली  जाना  चाहती  थी । "डोन्ट  वॉरी,  मैं  तुम्हे  वहां  ज़रूर  ले  चलूंगी ।  मगर  पेहले  तुम  मुझे  ये  बताओ  कि  तुम  क्यां  पीओगी ?  टी,  कॉफी  या  कोल्ड  ड्रिंक ?"  सलोनी  ने  मेरी  बात  को  टालते  हुए  मुस्कुराकर  कहा । लेकिन  मैंने  उसकी  बात  का  कोई  जवाब  नहीं  दिया ।  उसने  मेरे  पास  आकर  मुझे  पानी  का  गिलास  दिया  और  फ़िर  से  अंदर  किचन  में  चली  गई । "तुम  नहीं  बताना  चाहती  तो  कोई  बात  नहीं ।  मैं  तुम्हें  स्पेसिअल  और  मेरी  फ़ेवरिट  ड्रिंक  पीलाती  हूँ ।"  सलोनी  ने  मेरा  जवाब  ना  पाकर  मुस्कुराते  हुए  कहा । "मैं  ठिक  हुँ ।  तुम्हे  मेरे  लिए  कुछ  स्पेसिअल  करने  की  जरूरत  नहीं ।  मैं  तो  बस  युंही.."  मैंने  सलोनी  को  मना  करते  हुए  कहा । "मैं  ये  बस  तुम्हारे  लिए  नहीं,  अपने  लिए  भी  कर  रही  हुँ ।  इसलिए  तुम  बस  आराम  से  बैठो ।  मैं  बस  अभी  आती  हुँ ।"  सलोनी  ने  मेरी  बात  का  जवाब  देते  हुए  मुस्कुराकर  कहा ।  मगर  मैं  चूप  रहकर  उसकी  बातें  सुनती  रही । "क्या  मैं  तुमसे  कुछ  पूछ  सकती  हूं ?"  मैंने  कुछ  देर  तक  सोचने  के  बाद  धीरे  से  हिचकिचाते  हुए  कहा । "अरे..  तुम  एक  क्या,  जितने  चाहो  उतने  सवाल  कर  सकती  हो ।  पर  शर्त  है  कि  वो  सवाल  मेथेमेटीक्स  के  ना  हो ।"  सलोनी  ने  हँसते  हुए  मज़ाक  में  कहा । "मैं  बस  जानना  चाहती  थी  कि..  मेरा  मतलब  तुम  जिस  जगह  की  बात  कर  रही  हो,  अगर  मैं  वहां  रहूंगी  तो  किसीको  कोई  परेशानी  तो  नहीं  होगी ?"  मैंने  झिजकते  हुए  धीरे  से  सवाल  किया । "ओ..!  तो  तुम  उस  पेलेस  के  बारें  में  बात  कर  रही  हो ?  नहीं,  तुम्हारे  वहां  रहने  से  किसीको  कोई  प्रोबलम  नहीं  होगी ।  ट्रस्ट  मी ।"  सलोनी  ने  मुस्कुराते  हुए  जवाब  दिया । "मुझे  तुम  पर  यक़ीन  है ।  मगर  क्या  तुम्हें  पूरा  भरोसा  है ?"  मैंने  परेशान  होते  हुए  फ़िरसे  सवाल  किया । "हां,  मुझे  यक़ीन  है ।  तुम  बिल्कुल  भी  टेन्शन  मत  लो ।  सब  सेट  हो  जायेगा ।"  सलोनी  ने  मुझे  भरोसा  दिलाते  हुए  मुस्कुराकर  कहा । "असल  में  उस  पेलेस  के  ओवनर  मिस्टर.  शर्मा,  उस  पेलेस  को  लेकर  काफ़ी  उलझन  में  थे ।  कुछ  सालों  पेहले  उन्होंने  उस  पेलेस  को  उसके  असली  मालिक  से  खरीदा  था ।  लेकिन  यहां  के  लोगों  की  बातें  सुनने  के  बाद  वो  परेशान  हो  गए ।  और  फ़िर  उन्होंने  उस  पेलेस  को  बेचने  का  फैसला  किया ।  इसलिए  वो  हमारे  ओफ़िस  भी  आए  थे ।  अपने  पेलेस  की  एडवर्टाईज़मेन्ट  करवाने  के  लिए ।  और  हमने  वो  एडवर्टाईज़मेन्ट  की  भी ।  लेकिन  हमें  कोई  रिसपोन्स  नहीं  मिला ।  और...  तुम  इसकी  वजह  तो  जानती  ही  होगी ?"  सलोनी  ने  सारी  बातें  बताते  हुए  कहा ।  और  मैंने  उसके  सवाल  पर  धीरे  से  अपना  सर  हिलाया । तब  सलोनी  ने  कहते  हुए  एक  पल  के  लिये  ख़ामोश  हो  गयी,  "तब  से  वहां  आज  तक  कोई  नहीं  गया ।  और  अब  तो  उस  पेलेस  के  मालिक  ने  भी  वहां  जाना  छोड़  दिया  है ।  इसलिए  अगर  तुम्हें  कोई  परेशानी  नहीं  हुई  तो  तुम  वहां  आराम  से  रह  पाओगी ।"  उसने  फ़िर  अपनी  बात  बताते  हुए  कहा । "लेकिन..!  क्या  तुम्हें  उस  पेलेस  के  असली  मालिक  के  बारें  में  कुछ  पता  है ?  मेरा  मतलब  उनका  नाम,  पता  कुछ  भी ।"  "और..  क्या  उन्हें  इन  सब  भूतों  की  कहानियों  के  बारें  में  पता  होगा ?"  मैंने  सारी  बातें  सुनने  के  बाद  सोच-समझकर  सलोनी  से  एक  और  सवाल  किया । उसी  समय  सलोनी  अपने  हाथों  में  दो  कप्स  लेकर  मेरे  पास  आई  और  मेरे  सामने  वाले  टेबल  पर  बैठ  गई । "उनके  बारें  में  मुझे  ज़्यादा  कुछ  तो  नहीं  पता ।  लेकिन..  जहां  तक  मुझे  लगता  है,  उन्हें  शायद  इन  कहानियों  के  बारें  में  पता  था ।  और  इसी  बात  से  अपना  पीछा  छुड़ाने  के  लिए  उन्होंने  वो  पेलेस  ऐसे  इन्सान  को  बेच  दिया,  जो  यहां  का  नहीं  था  और  इस  बात  से  अंजान  था ।"  सलोनी  ने  जवाब  देते  हुए  कहा  और  मेरे  हाथ  में  चाय  का  कप  पकड़ा  दिया । तभी  कुछ  देर  के  बाद  वहां  एक  लड़की  आई,  जिसने  वाईट,  लूज़  टोप  और  रेड  जिन्स  पहनी  थी ।  इसके  साथ  ही  उसने  अपने  पैरों  में  ब्लेक  सेन्डल्स  पहने  हुए  थे । "ये  सीमर  है ।  और  ये  मेरे  साथ  यहीं  रहती  है ।"  "और  सीमर  ये  पलक  है ।  ये  आज  सुबह  ही  यहां  आई  है ।"  सलोनी  ने  हम  दोनों  की  तरफ़  देखकर  हमारी  पहचान  करवाई । "हेलो !  नाईस  टू  मिट  यू ।  मगर  मैं  ज़रा  फ़्रेस  होकर  आती  हूं ।"  उस  लड़की  ने  सलोनी  की  बात  ख़त्म  होते  ही  जल्दबाज़ी  में  कहा  और  मेरे  कुछ  कहने  से  पेहले  ही  हड़बड़ाहट  में  वहां  से  चली  गई,  जैसे  वो  किसी  वजह  से  मुझसे  नाराज़  थी । कुछ  देर  बाद  हमारी  चाय  खत्म  होते  ही  सलोनी  हमारे  कप्स  लेकर  किचन  में  चली  गई ।  और  उसके  जाते  ही  मैं  उठकर  बाल्कनी  में  चली  गई । वहां  बाहर  काफ़ी  ठंड  थी  और  साथ  ही  काफ़ी  ठंडी  हवाऐं  चल  रही  थी ।  उस  बाल्कनी  से  खड़े  होकर  देखने  पर  गली  के  छोर  तक  हर  एक  चीज़  देखी  जा  सकती  थी ।  और  साथ  ही  वहां  से  सामने  बाई  तरफ़  दूर  पहाड़ी  पर  एक  पेलेस  के  छत  का  कुछ  हिस्सा  देखा  जा  सकता  था । मैं  काफ़ी  देर  से  बहार  बाल्कनी  में  खड़ी  रहकर  वहां  की  चीज़ें  देख  रही  थी ।  और  तभी  मुझे  अंदर  कमरे  से  सीमर  की  आवाज़  सुनाई  दी । "ये  वहीं  लड़की  है  न  जिसके  बारें  में  तुम  पीनाली  आंटी  से  बात  कर  रही  थी ?"  सीमर  ने  परेशान  होकर  गुस्से  में  सवाल  किया । "हां,  लेकिन  तुम  इतनी  क्यूं..."  सलोनी  ने  जवाब  देते  हुए  उसे  शांत  करने  की  कोशिश  की । "अगर  तुम..  उसे  यहां  हमारे  साथ  रखने  के  बारें  में  सोच  रही  हो,  तो  भूल  जाओ ।  तुम्हें  याद  नहीं  पीनाली  आंटी  ने  क्या  कहा  था !?  'अगर  तुमने  ऐसा  किया  तो  वो  तुम्हारे  साथ  हम  सबको  भी  यहां  से  निकाल  देंगी',  समझी  तुम..?"  सीमर  ने  सलोनी  को  टोकते  हुए  गुस्से  में  कहा । उसकी  बातें  सुनने  के  बाद  मेरा  एक  पल  के  लिए  भी  वहां  रुकना  मुश्किल  हो  गया ।  उस  समय  मैं  बस  यही  सोचकर  परेशान  थी  कि  कही  उन  आंटी  ने  मुझे  यहां  देख  लिया  तो  वो  गुस्सा  ना  हो  जाए ।  और  अगर  मेरी  वजह  से  इन  सबको  कोई  भी  तकलीफ़  हुई,  तो  मैं..  ख़ुद  को  कभी  माफ़  नहीं  कर  पाऊंगी ।  इसलिए  मैंने  जल्दी  से  अपना  सामान  उठाया  और  बिना  कुछ  कहें  वहां  से  चली  गई । सलोनी  के  घर  से  बाहर  निकलते  ही  मैं  बिना  कुछ  सोचे  बाई  तरफ़  मुड़  गई  और  आगे  बढ़ने  लगी ।  मुझे  इस  जगह  के  बारें  में  और  यहां  के  रास्तों  के  बारें  में  कोई  जानकारी  नहीं  थी ।  मगर  फ़िर  भी  मैं..  बग़ैर  कुछ  जाने-पहचाने  उस  रास्ते  पर  आगे  बढ़ती  जा  रही  थी ।  उस  वक़्त  मैं  बस  जितना  हो  सके  उतना  उस  घर  से  दूर  जाना  चाहती  थी,  जिससे  मेरी  वजह  से  किसीको  कोई  तकलीफ़  ना  हो । "पलक ?  प्लिज़  वेट !  रूको ।"  मैेंने  चलते  हुए  अचानक  पीछे  से  सलोनी  की  आवाज़  सुनी ।उसकी  आवाज़  सुनते  ही  मैंने  अपने  कदमों  को  वहीं  रोक  लिया ।  और  धीरे  से  पीछे  पलटकर  देखा ।  वो  सच  में  सलोनी  ही  थी ।  और  स्कूटर  लेकर  मुझे  ढूंढने  निकली  थी । "आई'एम  वैरी  सॉरी !"  मेरे  पास  आते  ही  सलोनी  ने  उदास  होकर  कहा  और  अपना  स्कूटर  रोक  दिया । "वो..  असल  में  सीमर  ऐसी  लड़की  नहीं  है ।  वो  तो  एक  बहोत  अच्छी  लड़की  है ।  लेकिन..  असल  बात  ये  है  कि  जब  मैंने  उस  दिन  आंटी  से  तुम्हारी  बात  की,  तब  वो  बिना  किसी  वजह  हम  सब  पर  बरस  पड़ी ।  उन्होंने  हमें  वॉर्न  किया  कि,  'अगर  किसी  ने  भी  उनकी  बात  नहीं  मानी  तो  वो  सबको  घर  से  निकाल  देंगी ।'  इसलिए  सीमर  परेशान  हो  गई  थी ।  आई'एम  वैरी  सॉरी !  मुझे  तुम्हें  ये  पेहले  ही  बता  देना  चाहिए  था ।"  सलोनी  ने  मुझे  सारी  सच्चाई  बताते  हुए  उदास  होकर  कहा । "लेकिन..  शायद  उसका  डर  सही  था ।  क्योंकि  वार्निंग  मिलने  के  बाद  भी  तुम  मुझे  अपने  साथ  रखना  चाहती  थी,  है  न ?"  मैंने  सलोनी  की  तरफ़  देखकर  धीरे  से  कहा । "हां,  चाहती  थी ।  क्योंकि  तुम्हें  वहां  अकेले  छोड़ने  का  मेरा  मन  नहीं  कर  रहा  था ।  तो  फ़िर  मैं  तुम्हें  वहां  अकेले  कैसे  रहने  देती ।"  सलोनी  ने  मेरी  तरफ़  देखकर  उदास  होकर  कहा । "मुझे  पता  है,  तुम्हें  मेरी  फ़िक्र  है ।  लेकिन  मैं  तुम्हारे  साथ  रहकर  सबकी  मुश्किलें  बढ़ाना  नहीं  चाहती ।  तुम  बस  मुझे  उस  पेलेस  तक  ले  चलों ।  मेरा  यक़ीन  मानों  मुझे  वहां  कुछ  नहीं  होगा ।  और  अगर  कोई  परेशानी  हुई  भी,  तो  मैं  तुम्हें  जरूर  बताऊंगी ।"  मैंने  सलोनी  को  समझाते  हुए,  छोट  सी  उलझन  भरी  मुस्कुराहट  के  साथ  कहा । "ओके,  फाईन ।  मगर..  तुम  मेरे  साथ  स्कूटर  पर  तो  चलोगी  न ?"  सलोनी  ने  मेरी  बात  समझते  हुए  मेरी  तरफ़  देखकर  मुस्कुराते  हुए  कहा । "हां,  ज़रूर  चलूंगी ।"  मैंने  हल्की  सी  मुस्कुराहट  के  साथ  कहा । "लेकिन  ये  तुम्हारे  पास  कैसे  आया ?"  मैंने  धीरे  से  सवाल  किया  और  सलोनी  के  पीछे  स्कूटर  पर  बैठ  गई ।  "वो  असल  में  ये  मेरा  नहीं  है ।  ये  स्कूटर  मेरी  एक  रूममेट  का  है ।  वो  अभी  घर  लौटी  है ।  लेकिन  मुझे  तुम्हें  ढूँढना  था  इसलिए  मैंने  मांग  लिया ।"  सलोनी  ने  जवाब  देते  हुए  मुस्कुराकर  कहा । "तो  तुम  ठिक  से  बैठ  गई.?"  सलोनी  ने  सवाल  किया  और  मेरे  "हाँ ।"  कहते  ही  उसने  स्कूटर  शुरू  कर  दिया ।  और  हम  पेलेस  की  तरफ़  जानेवाले  रास्ते  पर  चल  पड़े ।◆◇◆◇◆◇◆◇◆◇◆◇◆◇◆◇◆

हेलो दोस्तों, तो कैसी रही अब तक की ये असंभव कहानी ? मुझे आप सबके फिड़बेक का इन्तजार रहेगा ।

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